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Monday, 14 October, 2024
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उपचुनाव में जीत के बाद सिमरनजीत मान ने ट्विटर बॉयो से हटाया ‘ख़ालिस्तान के लिए संघर्षरत’, फिर बहाल किया

अकाली दल के अलग हुए एक गुट के प्रमुख मान रविवार को संगरूर सीट के लिए चुन लिए गए. एक पूर्व-आईपीएस अधिकारी का जिन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में इस्तीफा दिया था, खालिस्तान-समर्थक टिप्पणियां करने का इतिहास रहा है.

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नई दिल्ली: एक उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) से संगरूर लोकसभा सीट छीनने के 24 घंटे के भीतर, शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) प्रमुख सिमरनजीत सिंह मान ने कुछ समय के लिए अपने ट्विटर बायो से एक खालिस्तान-समर्थक उल्लेख को हटा दिया, लेकिन फिर सोमवार को उसे बहाल कर दिया.

मूलरूप में बहाल किए जाने के बाद, 77 वर्षीय के ट्विटर बायो में अब लिखा है: ‘संसद सदस्य (लोकसभा) संगरूर/अध्यक्ष शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर), # खालिस्तान (सिखों के लिए संप्रभु राज्य) के लिए संघर्षरत’.

मान ने रविवार को संसदीय उपचुनाव में आप के गुरमैल सिंह को 5,822 मतों से परास्त करते हुए, संगरूर लोकसभा को लगातार तीसरी बार जीतने की सत्तारूढ़ पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. ये सीट तब ख़ाली हुई जब संगरूर से दो बार के सांसद भगवंत मान ने इसी साल पंजाब विधान सभा का चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री बन गए.

एक खालिस्तान समर्थक, पूर्व आईपीएस अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान- जो शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) से अलग हुए एक गुट के अध्यक्ष हैं- लगातार सिखों, कश्मीरियों, और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों से जुड़े मुद्दे उठाते रहे हैं.

मान ने 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया था, जिसकी परिणति खालिस्तान-समर्थक लीडर जरनैल सिंह भिंडरांवाले की मौत में हुई थी.

रविवार को संगरूर उपचुनाव में विजय प्राप्त करने के बाद मान ने कहा, कि उनकी जीत ‘उन शिक्षाओं की जीत है जो जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने दी हैं’.

उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘सिख समुदाय दीप सिंह सिद्धू, और सिद्धू मूसे वाला की मौत को लेकर बहुत ख़फा है, और अब भारत सरकार उस तरह का बर्ताव नहीं करेगी जैसा वो मुसलमानों के साथ कर रही है, जैसा उनकी बस्तियों पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जैसा भारतीय सेना कश्मीर में अत्याचार कर रही है, और हर रोज़ मुसलमानों की हत्या कर रही है’.

कश्मीर और अल्पसंख्यकों पर

पहली बार 1989 में तरन तारन, और फिर 1999 में संगरूर से लोकसभा के लिए चुने गए सिमरनजीत सिंह मान का विवादों से पुराना नाता रहा है.

1984 में उन्हें विभिन्न आरोपों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, जिनमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के षडयंत्र में उनकी कथित भूमिका शामिल थी, और 1989 तक उन्होंने पांच साल जेल में बिताए.

मान पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब लोक कांग्रेस प्रमुख कैप्टन अमरिंदर सिंह के साढ़ू भी लगते हैं.

1999 से 2004 के बीच एक सांसद के नाते मान अपने चुनाव क्षेत्र में गौशालाओं के निर्माण का आदेश देने के लिए सुर्ख़ियों में आए थे, और तत्कालीन लोकसभा स्पीकर ने उन्हें एक ‘उत्कृष्ट सांसद’ भी घोषित किया था.

2016 में मान ने दावा किया था कि उन्हें ‘घर में नज़रबंद’ कर दिया था, क्योंकि उन्होंने 2015 के बेअदबी मामले में फरीदकोट ज़िले में बरगरी तक एक विरोध मार्च निकालने का ऐलान किया था, जहां वो घटित हुआ था.

उसी साल, पूर्व आईपीएस अधिकारी ने एक खालिस्तानी उग्रवादी परमजीत सिंह पम्मा की रिहाई का भी जश्न मनाया था, जिसे पुर्तगाल में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उस समय छोड़ दिया गया जब पुर्तगाल सरकार ने भारत के एक प्रत्यर्पण अनुरोध को ख़ारिज कर दिया था. पम्मा को कथित रूप से 2010 के पटियाला और अंबाला के धमाकों का एक प्रमुख षडयंत्रकर्ता बताया जाता है.

मान की ट्विटर टाइमलाइन पर एक सरसरी नज़र डालने पर कश्मीरियों, मुसलमानों तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के बारे में बहुत से पोस्ट दिखते हैं. उनकी टाइमलाइन की कुछ अन्य प्रमुख पोस्ट वो हैं जो जरनैल सिंह  भिंडरांवाले को समर्पित हैं.

2017 के उनके एक ट्वीट में लिखा है, ‘भारत कश्मीर को अपना हिस्सा मानता है. जब भारतीय सेना किसी कश्मीरी को मारती है, तो भारत कहता है कि एक अतंकी मारा गया है. जब कोई सैनिक मारा जाता है तो कहा जाता है कि वो एक शहीद है. जब भारत का कोई नागरिक मारा जाता है तो वो आतंकी कैसे बन जाता है, और दूसरा शहीद कैसे हो जाता है’.

आर्म्ड फोर्सेज़ (स्पेशल पॉवर्स) एक्ट (एएफएसपीए) को वापस लिए जाने की वकालत करते हुए, मान ने जुलाई 2016 में पोस्टर्स लिए हुए ख़ुद की तस्वीरें साझा कीं जिनमें कहा गया था, ‘भारतीय सेना के हाथों कश्मीरी जन संहार बंद करो’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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