scorecardresearch
Monday, 25 November, 2024
होममत-विमतमुर्शिदाबाद कलकत्ता से क्यों हार गया- मुगलों के उलट, ब्रिटिश बैंकिंग परिवारों पर नहीं थे निर्भर

मुर्शिदाबाद कलकत्ता से क्यों हार गया- मुगलों के उलट, ब्रिटिश बैंकिंग परिवारों पर नहीं थे निर्भर

मुर्शिदाबाद ईस्ट इंडियन कंपनी द्वारा स्थापित पहले जिलों में से एक था. अब ममता बनर्जी सरकार इसे तीन हिस्सों में बांटने की तैयारी में है.

Text Size:

अठारहवीं सदी के आखिरी सालों में ईस्ट इंडिया कंपनी ने चटगांव, मिदनापुर और नदिया के साथ मुर्शीदाबाद को भारत के पहले जिलों के रूप में स्थापित किया. सभी चारों ‘पहला’ होने का दावा करते हैं, लेकिन मुर्शीदाबाद की बराबरी वालों में पहला होने की संभावना ज्यादा है, क्योंकि वहीं अंग्रेजी राज की नींव पड़ी थी. वायसरॉय वारेन हेस्टिंग्स के दौरान वह ईस्ट इंडिया कंपनी की राजधानी था, सिर्फ 1772-1775 की अवधि को छोडक़र, जब सुप्रीम सिविल और क्रिमिनल अदालतें कलकत्ता में स्थानांतरित हो गई थीं. लेकिन 1790 में उनके उत्तराधिकारी लॉर्ड चाल्र्स कर्नावालिस ने कलकत्ता को मुख्यालय बना दिया, और गवर्नर जनरल के लिए बनाया गया मकान डीएम का बंगला और सर्किट हाउस बन गया.

इसी मकान में मैं दो साल तक ठहरा था, जब मुझे 1994 में मुर्शीदाबाद का कलेक्टर और मजिस्ट्रेट बनाया गया था. दो सौ बारह साल पहले इसमें ठहरने वाले किसी जॉन बैरिंग्टन मार्ट जूनियर के बारे में मैं रिसर्च करने की कोशिश कर रहा हूं, क्योंकि मुर्शीदाबाद के जिला कलेक्टरों में पहला नाम उनका है.

इसी जिले को अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीन हिस्सों- मुर्शीदाबाद, जंगीपुर और कांडी में बांटने का फैसला किया है. यह होना ही था क्योंकि यहां की अबादी 70 लाख से ज्यादा हो गई है, और पांच सबडिविजन, 29 विकास ब्लॉक तथा इतने ही पुलिस थानों के साथ 95 किलोमीटर लंबी बांग्लादेश सीमा को संभालना और प्रशासन चलाना काफी मुश्किल होता जा रहा है. आबादी तो तीन दशक पहले ही 60 लाख से ज्यादा हो गई थी. मुझे याद है कि राज्यपाल के.वी. रघुनाथ रेड्डी ने जिले की प्रोफाइल देखी तो उन्होंने अपने पूर्व रियासत त्रिपुरा से तीन गुना ज्यादा आबादी वाले जिले को संभालने के लिए मेरी पीठ थपथपाई थी!

मुर्शीद कुली खान का उदय और फिर मुर्शीदाबाद का पतन

मुर्शीदाबाद का इतिहास तब शुरू होता है्र जब मुर्शीद कुली खान बंगाल सूबे का राजस्व मुख्यालय इस नदी किनारे वाले कस्बे में ले आए.

इतिहासकार जदुनाथ सरकार के मुताबिक, उनका जन्म 1670 में दक्कन में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था और नाम था सुर्य नारायण मिश्रा. वे मुगल दरबार में पारसी अधिकारी हाजी शफी के तहत काम करने लगे, जिन्होंने उन्हें नया नाम, नई पहचान दी और राजस्व के मामलों में माहिर बनाया. उनके प्रशासकीय कौशल पर औरंगजेब की नजर पड़ी. 1700 में खान को बंगाल का दीवान बनाया गया और सूबे की तब राजधानी ढाका भेज दिए गए.

हालांकि उन्होंने दीवानी दफ्तर को गंगा के किनारे कस्बे मुर्शीदाबाद ले जाने की इजाजत मांगी, जो सूबे के हर हिस्से से जुड़ा था. शहर में यूरोपीय व्यापारी कंपनियों ने अपने कारखाने खोल लिए थे. उन्होंने जगत सेठ घराने सहित बैंकरों को अपना कारोबार वहां लाने को कहा.

शहर समृद्ध हो गया और राजस्व संग्रह बढ़ गया. इससे बादशाह खुश हुए और 1704 में उन्हें ‘मुर्शीद कुली’ की उपाधि से नवाजा और शहर का नामकरण मुर्शीदाबाद (मुर्शीद कुली खान का शहर) करने की इजाजत दी.

औरंगजेब की 1707 में मौत के बाद खान को बंगाल का सूबेदार बना दिया गया, मगर मुगल राज कमजोर हुआ तो उन्होंने 1717 में बंगाल के नवाब की उपाधि ले ली. हालांकि उन्होंने मुगल दरबार में सालाना एक करोड़ रुपये राजस्व पंहुचाना जारी रखा, लेकिन बाकी सभी मामलों में वे लगभग स्वतंत्र हो चुके थे. बंगाल अब सबसे धनी सूबा था और मुर्शीदाबाद उसका सबसे मशहूर शहर था. बंगाल सूबे में आज का ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार शामिल था. डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज कारखानों की स्थापना के साथ शहर सिल्क, कपड़ा और मलमल के व्यापार का केंद्र बन गया था.

आखिर 1757 में जिले के बाहरी हिस्से पलासी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ्रांसीसी बलों और बंगाल के आखिरी स्वतंत्र नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ निर्णायक जंग जीत ली. और उससे भारत का इतिहास हमेशा के लिए बदल गया.

बाद के दशकों में मुर्शीदाबाद कलकत्ता से पिछड़ गया, क्योंकि मुगलों के विपरीत ईस्ट इंडिया कंपनी अपने वित्तीय मामलों के प्रबंधन के लिए बैंकर घरानों पर निर्भर नहीं थी. यहीं से उस शहर के पतन की शुरुआत हुई, जो कभी सियासी उथल-पुथल और उत्तराधिकार का केंद्र था. जब सस्ते आयात से बुनकर उद्योग का पतन शुरू हुआ, तो जिला और गरीब हो गया, और जूट तथा नील उगाने के ईस्ट इंडिया कंपनी के फरमान से खाद्य सुरक्षा भी संकट में पड़ गई.

चार झंडे

देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जिले से कई लोगों ने काफी भूमिका निभाई, पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ और बाद में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के फॉरवर्ड ब्लॉक के साथ. वजह यह थी कि जिले के ज्यादातर कांग्रेस कार्यकर्ता उन्हें अपना नेता मानते थे. कुछ लोग अनुशीलनी समिति से भी जुड़े थे, जो त्रिदीब चौधरी के नेतृत्व में आखिरका रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी बनी. त्रिदीब चौधरी जिले से छह बार लोकसभा के लिए चुने गए. वे 1974 के राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार बने, लेकिन फखरुद्दीन अली अहमद से हार गए. आखिरकार प्रणब मुखर्जी 2012 में राष्ट्रपति चुने गए, लेकिन उनका संसदीय क्षेत्र जंगीपुर अब नया जिला होगा.

खत्म करने के पहले मैं जरूर चर्चा करूंगा कि जुलाई 1947 में प्रकाशित भारतीय स्वतंत्रता कानून के परिशिष्ट में पूरब और पश्चिम बंगाल के बीच जिलों के बंटवारे की शुरुआती सूची में भारी मुस्लिम आबादी वाला मुर्शीदाबाद पाकिस्तान को दिया गया था. सो, आश्चर्य नहीं कि आइसीएस इकराम अहमद खान ने 14 अगस्त को डीम के बंगले पर पाकिस्तान का झंडा लहराया. हालांकि 17 अगस्त को रेडक्लिफ अवार्ड की घोषणा हुई तो कलकत्ता पोर्ट को भगीरथी का प्रवाह बरकरार रखने के लिए मुर्शीदाबाद भारत को दे दिया गया. इस तरह इस बंगले पर भारतीय तिरंगा पहली दफा 18 अगस्त को लहराया गया.

इस बंगले के फ्लैगस्टाफ ने चार झंडे लहराए. 1758 से 1858 तक ईस्ट इंडिया कंपनी का झंडा, फिर 1 नवंबर 1858 को ब्रिटिश महारानी के ऐलान के बाद से 14 अगस्त 1947 तक यूनियन जैक, चार दिनों तक पाकिस्तान का परचम-ए-सितारा, और 18 अगस्त को तिरंगा!

पुनश्च: 1997 में भारत की आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर एलबीएसएनएए ने सभी जिवित पूर्व आइसीएस के एक जमावड़े का आयोजन किया. सबसे आश्चर्य यह था कि मुझे 1947 में मुर्शीदाबाद के डीएम रहे इकराम अहमद खान से मिलने का मौका मिला. उन्हें 1971 में पाकिस्तान के बंटवारे के बाद सिंध काडर दे दिया गया था!

संजीव चोपड़ा पूर्व आइएएस अधिकारी और वैली ऑफ वड्र्स के फेस्टीवल डायरेक्टर हैं. हाल तक वे लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के डारेक्टर थे. उनका ट्विटर हैंडल @ChopraSanjeev.  है. विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments