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Sunday, 22 December, 2024
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मुंबई में इन्फ्रा बूम के कारण गतिशीलता बढ़ेगी मगर उसका दम भी घुट सकता है

देश की वित्तीय राजधानी में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण का काम देर से शुरू हुआ और इसके साथ रियल एस्टेट के निर्माण में भी जबरदस्त तेजी आई, लेकिन वायु प्रदूषण में भी वह देश की राजधानी को टक्कर देने लगी है.

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दिल्ली और उसके आसपास बसे नोएडा तथा गुरुग्राम को लेकर बना एनसीआर दशकों से देश का भवन निर्माण केंद्र बना हुआ है. पिछले 15 वर्षों में यहां दुनिया का एक सबसे बड़ा हवाई अड्डा बना और मेट्रो रेल का विशाल नेटवर्क भी शुरू हो गया. उपग्रह नगरों में हाउसिंग और ऑफिस टावरों का निर्माण हुआ है, एक्सप्रेसवे और मेट्रो का विस्तार हुआ है. फ्लोर एरिया अनुपातों में वृद्धि के नियमों ने एकमंज़िला मकानों को बहुमंजिला अपार्टमेंट में बदलना आसान कर दिया.

आबादी की बढ़ती सघनता के कारण नये फ्लाइओवर और शहरों के बीच बनाए गए उड़न मार्ग आबादी और ट्रैफिक में वृद्धि के कारण नाकाम साबित हो रहे हैं, जबकि शहर (दूसरे शहरों के मुक़ाबले सबसे ज्यादा निजी वाहनों के कारण) का दम प्रदूषित हवा के कारण घुट रहा है.

अब मुंबई की बारी है.

इस वित्तीय राजधानी में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण का काम देर से शुरू हुआ और इसके साथ रियल एस्टेट के निर्माण में भी जबरदस्त तेजी आई है, जिनके चलते इस महानगर ने दिल्ली को पीछे छोड़ दिया है. शहर में आप जिधर भी जाइए, आपको मिट्टी भरकर ले जाते डंपर जाते दिख जाएंगे, मेट्रो या फ़्लाइओवर के निर्माणाधीन खंभे लोहे की जाली से घिरे खड़े मिलेंगे, अलग-अलग दिशाओं में जाने वाली सुरंगों की खुदाई होती दिख जाएगी. इन निर्माणों की कीमत हवा के प्रदूषण के रूप में चुकानी पड़ रही है, जो कभी-कभी दिल्ली से भी बदतर स्तर पर पहुंच रहा है.

वादा यह किया जा रहा है कि यह सब परिवहन की बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहे शहर को बदल देगा.

उपनगरों में अब मेट्रो की तीन लाइनें चालू हैं और लंबी लाइनें बनाई जा रही हैं. समुद्रतटीय सड़क की विशाल परियोजना के लिए निर्माण जारी है जिसमें बस की अलग लेन होगी, जो मौजूदा छोटी ‘सी लिंक’ पर ट्रैफिक से चार गुना ज्यादा ट्रैफिक का बोझ उठाएगी; मुंबई के बीच शहर से मुख्य इलाके तक 22 किमी की ट्रांस-हार्बर लिंक का निर्माण पूरा होने वाला है. एक नया हवाई अड्डा भी बन रहा है; शहर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से को जोड़ने वाले उड़न मार्गों और शहर तथा समुद्र के अंदर से कई किमी लंबी सुरंग का निर्माण भी होने वाला है.

निर्माण कार्य जबरदस्त तेजी से चल रहा है क्योंकि इन परियोजनाओं को अगले दो-तीन वर्षों में ही पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन शहर की जीवन रेखा मानी गई उपनगरीय रेल नेटवर्क का विस्तार करने पर कोई विचार नहीं किया जा रहा है.


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निर्माण जिस पैमाने पर हो रहा है उसने वर्ली-बांद्रा सी लिंक, बांद्रा-कुर्ला वित्त जील, और नरीमन प्वाइंट बिजनेस डिस्ट्रिक्ट को जन देने वाले बैकवे रिक्लेमेशन सरीखी पुरानी परियोजनाओं को भी बौना साबित कर दिया है. ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्टों से अलग (अनुमानतः 15 करोड़ वर्गफीट के) रियल एस्टेट के निर्माण का आकार नरीमन प्वाइंट से पांच गुना ज्यादा माना जा रहा है. कोस्टल रोड के लिए समुद्र का जितना हिस्सा लिया जाएगा उतना पहले कभी नहीं लिया गया था.

ये ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट रेल और सड़कों के रूप में नया उत्तर-दक्षिण कॉरीडोर और पूरब-पश्चिम लिंक और द्वीप क्षेत्र को मुख्य भूमि से जोड़ने वाली लिंक और वहां से नये हवाई अड्डे तथा न्हावा-शेवा बंदरगाह तक का मार्ग उपलब्ध कराएंगे.

दो वर्षों के बाद शहर में आना-जाना आसान हो जाएगा. लेकिन बंगलूरू व दिल्ली और मध्य मुंबई में कपड़ा मिलों वाले इलाके के पुनर्विकास के जो अनुभव हैं वे यही बताते हैं कि ट्रांसपोर्ट के नये इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ती जरूरतों को शायद ही पूरा करते हैं.

इसकी वजह यह है कि ट्रांसपोर्ट के लिंक नये ट्रैफिक को जन्म देते हैं क्योंकि बेहतर रास्ते शहर और मुख्य भूमि को जोड़ते हैं जैसे गुरुग्राम और नोइडा दिल्ली से जुड़कर विशाल शहरी क्षेत्र बनाते हैं.

मुंबई के मामले में, मुख्य भूमि से बेहतर जुड़ाव जमीन की कमी को, जिसके चलते विस्तार बाधित हो रहा था, पूरी करने में मदद करते हैं. इसी तरह, आवास और दफ्तर के निर्माण से आबादी में वृद्धि होती है जबकि शहर में पहले से ही भीड़भाड़ है. इसके तहत धारावी झोपड़पट्टी का विकास किया जाएगा. जल आपूर्ति और कचरा निबटारा और समस्याग्रस्त हो जाएगा.

यह तो शुरुआत है. दिल्ली में अभी हाल में ही 65 किमी दूर मेरठ के लिए तीव्र गति रेल लाइन का उद्घाटन किया गया है. अलवर जैसी जगहों के लिए ऐसी दूसरी दिशाओं में भी रेल लाइनें बनाने की योजना है.

दैनिक यात्री मुंबई, ठाणे, और नवी मुंबई के बीच आवाजाही करते हैं. कल्पना कीजिए और ज्यादा तेज गति वाली परिवहन सेवा शुरू हो जाएगी तब क्या होगा. चीन के दक्षिणी हिस्से में शेनझेन, गुयांग झाउ और हांगकांग जैसे शहरों को मिलाकर बने ग्रेटर बे एरिया जैसा क्षेत्र कुछ ही समय में हमारे यहां भी बन सकता है. चीन में इस तरह 7 करोड़ लोग उसके 12 फीसदी जीडीपी का हिसाब करते हैं. इसलिए, क्या भारतीय शहरों से अब तक जो हासिल हुआ है उससे बेहतर पाने के लिए योजना बनाने का समय आ गया है?

(बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पेशल अरेंजमेंट द्वारा. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन : ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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