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Friday, 8 November, 2024
होममत-विमतमिशनरी ऑफ चैरिटी के पीछे पड़ी BJP-RSS, मदर टेरेसा ने प्यार का जो सागर भरा था उसे सुखाने की तैयारी

मिशनरी ऑफ चैरिटी के पीछे पड़ी BJP-RSS, मदर टेरेसा ने प्यार का जो सागर भरा था उसे सुखाने की तैयारी

गृह मंत्रालय ने उनकी अर्जी में 'प्रतिकूल जानकारियों' के बहाने उनके एफसीआरए खाते का नवीकरण करने से मना किया मगर उन 'जानकारियों' का कोई खुलासा नहीं किया.

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नरेंद्र मोदी सरकार के गृह मंत्रालय ने मदर हाउस ऑफ द मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी (एमओसी) और उनकी सिस्टर्स को 25 दिसंबर 2021 को क्रिसमस का एक तोहफा दिया. मंत्रालय ने ‘विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम,2010’ (एफसीआरए) के तहत उनके पंजीकरण का नवीकरण करने से मना कर दिया. मंत्रालय ने कहा है कि एमओसी के नवीकरण की अर्जी इसलिए खारिज की गई क्योंकि ‘उसकी अर्जी में कुछ प्रतिकूल जानकारियां पाई गईं.’

रोमन कैथलिक चर्च ने मदर टेरेसा को 2003 में जब संत की मान्यता प्रदान की थी तब कोलकाता में एमओसी ने सेंट मदर के इस मर्मस्पर्शी बयान की प्रतियां वितरित की थी— ‘हमें खुद यह महसूस होता है कि हम जो कर रहे हैं वह समुद्र में एक बूंद के समान है लेकिन वह बूंद न हो तो समुद्र उतना कम हो जाएगा.’ और वह कोई साधारण बूंद नहीं थी, वह प्रेम की बूंद थी, जीवन का अमृत! ‘प्रेम की इस बूंद’ की दुर्लभ अनुभूति मुझे और मेरे परिवार को वर्षों पहले चंडीगढ़ में हुई थी.

एमओसी से मेरा रिश्ता 1975 के अंत में जुड़ा था, जब मदर टेरेसा मेरे निमंत्रण पर ‘खूबसूरत शहर’ के दौरे पर आई थीं. चंडीगढ़ और इसकी आसपास के इलाके की भौतिक सुंदरता के आवरण के पीछे गरीब, अवांछित, और उपेक्षित कुष्ठ रोगियों और दरिद्र लोगों की भी आबादी मौजूद थी. हम चाहते थे कि ‘ईश्वर के इन अभागे बंदों’ को मलहम लगाने वाला कोई हाथ भी यहां पहुंचे.

हमें लगा कि मदर टेरेसा और उनकी मिशनरी ऑफ चैरिटी इस काम के लिए सबसे उपयुक्त होंगी क्योंकि वे ‘जाति, नस्ल, राष्ट्रीयता, या स्थान का ख्याल किए बिना निर्धनतम लोगों की सेवा करती हैं— ऐसे हर एक व्यक्ति की पूरे मन से और निःशुल्क सेवा करती हैं.’ उनके लिए ‘निर्धनतम वह है जो भूखा, प्यासा, नग्न, बेघर, अज्ञानी, बंदी, विकलांग, कुष्ठ रोगी, उपेक्षित, शराबी, मृतप्राय, और बीमार; बहिष्कृत, जाति निष्कासित हैं, वे सब जो मानव समाज के लिए बोझ माने जाते हैं, जिन्होंने सभी उम्मीदें छोड़ दी हैं और जीवन में भरोसा जिनका टूट गया है.’ इन सबकी सेवा के उद्देश्य से चंडीगढ़ में 1977 में ‘शांति-दान’ का गठन हुआ और तब से यह सेवा करता आ रहा है.

पूरे भारत में एमओसी अनाथों, गरीबों और एड्स के रोगियों के लिए 240 से ज्यादा अनाथालय चलाता है. इन्हें चलाने वाली सिस्टर्स की कुल सांसारिक संपत्ति तीन साड़ियां, दो-तीन सूती हैबिट, एक कमरबंद, एक जोड़ी चप्पल, एक सलीब, कुछ बरतन, कपड़े की नैपकिन, कनवास का थैला और एक प्रार्थना पुस्तिका होती है. इन्हें ‘शुद्ध आचरण, गरीबी, आज्ञाकारिता, और ‘निर्धनतम लोगों की पूरे दिल से निःशुल्क सेवा करने’ के संकल्प का पालन करना होता है. उनके मकसद का मूल वाक्य बाइबिल से लिया गया है— ‘जब कभी तुमने मेरे भोले-भाले बंधुओं में से किसी एक के लिए भी कुछ किया, तो वह तुमने मेरे लिए ही किया’. (मैथ्यू, 25:35-40).


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एफसीआरए के मामले में भेदभाव

मोदी सरकार के इनकार के चलते अगर 31 दिसंबर को एमओसी का पंजीकरण रद्द हो जाता है तो बैंक में उसका एफसीआरए खाता भी बंद हो जाएगा. सरकार ने जो दावा किया है कि उसे ‘प्रतिकूल जानकारियां’ मिली हैं, उनका कोई खुलासा नहीं किया गया है.

इसके बाद क्रिसमस के आसपास ईसाइयों पर हमले की कई घिनौनी घटनाए हुई हैं. उग्र हिंदुत्ववादियों ने पिछले शनिवार को गुरुग्राम (हरियाणा) और पांडवपुरा (कर्नाटक) में दो स्कूलों में क्रिसमस समारोहों को भंग करने के लिए हमले किए. इसके अगले दिन हरियाणा के अंबाला में हिंदुत्ववादियों की भीड़ ने होली रिडीमर चर्च में ईसा मसीह की मूर्ति तोड़ डाली. कर्नाटक में भाजपा सरकार ने धर्मांतरण पर रोक लगाने का कठोर कानून बना डाला.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया है कि केंद्र सरकार ने भारत में मदर टेरेसा के एमओसी के सभी बैंक खाते बंद कर दिए हैं. लेकिन एमओसी की सुपीरियर जनरल सिस्टर एम प्रेमा ने यह स्पष्टीकरण जारी किया है— ‘गृह मंत्रालय ने हमारा कोई बैंक खाता बंद नहीं किया है. हमें बताया गया है कि हमारे एफसीआरए के नवीकरण की मंजूरी दे दी गई है. कोई चूक न हो इसके लिए हमने अपने केन्द्रों से एफसी (विदेशी मुद्रा) खाता तब तक इस्तेमाल न करने के लिए कहा है जब तक मामला सुलट नहीं जाता.’

शब्दों का खेल अपनी जगह है, एफसीआरए के नवीकरण से गृह मंत्रालय का इनकार एमओसी को फंड का उपयोग करने से रोक देगा और इसके चलते उसे अपनी सेवाएं तथा गतिविधियां बंद करनी पड़ेंगी. वास्तव में यह बैंक खातों को बंद करना ही है, जैसा कि ममता बनर्जी ने कहा है.

कोलकाता के आर्कीडायोसी के वाइकार जनरल फादर डॉमिनिक गोम्स ने केंद्र के फैसले को ‘निर्धनतम लोगों के लिए क्रिसमस का क्रूर तोहफा’ बताया. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ‘ईसाई समुदाय और उनके सामाजिक प्रयासों पर यह ताजा हमला भारत के निर्धनतम लोगों पर, जिनकी एमओसी समूह सेवा करता है, कहीं ज्यादा बर्बर हमला है.’

इसके बरअक्स इस तथ्य पर गौर कीजिए कि मोदी सरकार ने अपनी पार्टी भाजपा को दंड से बचाने के लिए एफसीआरए में पांच साल पीछे यानी 2016 से संशोधन करने का मनमाना कदम उठाया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा के मामले में आदेश जारी कर दिया था. इस संशोधन के तहत, विदेशी कंपनियों की भारतीय शाखाओं को ‘विदेशी कंपनी’ की परिभाषा से अलग कर दिया गया ताकि भारत में राजनीतिक दलों को चंदा देने को इच्छुक विदेशी इकाई भारत में अपनी शाखा खोल कर ऐसा कर सके. यह शाखा किसी फर्जी कंपनी की भी हो सकती है. इसने भ्रष्टाचार के बांध का दरवाजा खोल दिया और चुनावी बॉण्ड के जरिए चंदा देकर शासक दल का खजाना भरने का रास्ता बना दिया.

लंबा चल सकता है हेट कैंपेन

प्रधानमंत्री मोदी वैटिकन में पोप फ्रांसिस से गले मिलकर आए लेकिन ऐसा लगता है कि उसके बाद हाल में ईसाइयों के खिलाफ नफरत की मुहिम ने क्रिसमस के तोहफे का आधार तैयार किया है. वैसे, आरएसएस/भाजपा के बड़े लोग मदर टेरेसा और उनके एमओसी को काफी समय से निशाना बनाते रहे हैं. 2014 में भाजपा जब सत्ता में आई, तभी ‘घर वापसी’ के नाम पर चली सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की मुहिम के दौरान आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने राजस्थान के भरतपुर में ‘महिला सदन’ के उदघाटन के मौके पर मदर टेरेसा के बारे में कहा था कि ‘उनके सेवा कार्य महान रहे होंगे मगर उनके सामाजिक कार्यों के पीछे एक मकसद छिपा था. वे लोगों को ईसाई बनाना चाहती थीं.’ बाद में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब सांसद थे तब उन्होंने अपने ज्ञान के मोती बिखेरते हुए कहा था कि ‘टेरेसा भारत के ईसाईकरण की साजिश का एक हिस्सा थीं… जब लोग अपनी गरीबी के कारण अपने बीमार परिजनों या विकलांग बच्चों का इलाज नहीं करा पाते तो ये लोग उन्हें सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं. इस दौरान ये लोगों की मति फेर देते हैं और उन्हें ईसाई बना देते हैं.’ भारत में ईसाइयों की बेहद छोटी आबादी को देखते हुए इस तरह के बयानों का कोई अर्थ नहीं है.

हकीकत यह है कि मदर टेरेसा और उनके एमओसी ईसाइयत और प्रेम तथा करुणा के उसके मूल्यों का आकाशदीप माना जा सकता है. ऐसा लगता है कि उसकी रोशनी को बुझाने की कोशिशें जारी हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

(एम.जी. देवसहायम एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और पीपल-फर्स्ट के अध्यक्ष हैं. उन्होंने भारतीय सेना में भी अपनी सेवाएं दी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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