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Wednesday, 23 October, 2024
होममत-विमतमोदी की 56 इंच सीने वाली डिप्लोमेसी भारत की नैतिक छवि के उलट है, ‘विश्वगुरु’ US-कनाडा नागरिकों को नहीं मार सकता

मोदी की 56 इंच सीने वाली डिप्लोमेसी भारत की नैतिक छवि के उलट है, ‘विश्वगुरु’ US-कनाडा नागरिकों को नहीं मार सकता

मोदी सरकार को आंतरिक जांच करवानी चाहिए थी और जहाँ जरूरी हो वहां ज़िम्मेदारी तय करनी चाहिए थी. अहम बात यह है कि विपक्षी नेताओं को भरोसे में लेना चाहिए था

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पिछले एक दशक से सत्ताधारी भाजपा का प्रचार तंत्र भारत को ‘विश्वगुरु’, यानि कि पूरी दुनिया के लिए ज्ञान के स्रोत के रूप में प्रस्तुत करता रहा है. भाजपा की प्रचार मशीनरी रात-दिन यह भ्रम फैलाने में जुटी रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उदय के बाद ही भारत विश्व मंच पर अपनी जगह बना सका है. संघ परिवार के भक्तों के लिए जवाहरलाल नेहरू की विशाल अंतर्राष्ट्रीय हस्ती या इंदिरा गांधी की प्रभुत्वशाली उपस्थिति तो किसी गिनती में ही नहीं है, उनके लिए तो मोदी ही हैं जिनके कारण भारत का नाम दुनिया में रोशन हुआ.

2019 में ह्यूस्टन में हुए ‘हाउडी मोदी’ जैसे बहुप्रचारित आयोजनों, या विदेश में बसे भक्त भारतीय प्रवासियों द्वारा मोदी के स्वागत की मीडिया में प्रसारित तस्वीरों ने इस छवि को मजबूत किया. कोविड महामारी के दौरान जरूरतमंद देशों को वैक्सीन भिजवाने वाले मोदी की ‘कोविड मुक्तिदाता’ और ‘वैक्सीन गुरु’ वाली भूमिकाओं ने भी यही काम किया. 2014 में, साबरमती नदी के तट पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूला झूलते मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेन्स्की से भी गले मिलते मोदी— इन सभी छवियों का बड़े कायदे से इस्तेमाल करते हुए मोदी को सफ़ेद दाढ़ी वाले वैश्विक संत के रूप में प्रचारित किया गया.

लेकिन कनाडा के साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण कूटनीतिक विवाद और अमेरिका की ओर से एक गंभीर आरोप ने ‘विश्वगुरु’ वाले इस तामझाम की पोल खोल दी है. जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खुला आरोप लगाया कि 2023 में खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के बड़े अफसरों का हाथ था और लॉरेंस बिश्नोई का माफिया गिरोह भारत सरकार के अफसरों की शह पर कनाडा के नागरिकों के साथ हिंसा कर रहा है, तब पूरी दुनिया में सदमे की लहर दौड़ गई.

हत्या की साजिशें

ट्रूडो द्वारा आरोप लगाए जाने के तुरंत बाद अमेरिकी जस्टिस विभाग ने औपचारिक आरोप दर्ज कराया. अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने ‘रॉ’ के एक पूर्व अधिकारी विकास यादव के खिलाफ भाड़े पर हत्या करने और ‘मनी लॉन्डरिंग’ के आरोप लगाए. न्यू यॉर्क में गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश की अमेरिका में जो जांच चल रही है उसमें यादव को ‘सीसी-1’ नाम से दर्ज किया गया है. यह साजिश लगभग उसी दौरान रची गई थी जब निज्जर की हत्या की गई थी. इस मामले में अमेरिका ने यह दूसरा आरोप लगाया है. अमेरिका और कनाडा, दोनों आरोप लगा रहे हैं कि भारतीय अधिकारी विदेश में उनके नागरिकों की हत्या की साजिशों में शामिल हैं.

भारत की सम्मानित विदेश नीति हमें एक गौरवपूर्ण विरासत के रूप में मिली है. हमारा अंतर्राष्ट्रीय रुख हमेशा अपने देश और विदेश में भी लोकतांत्रिक मूल्यों की पैरवी करने के ऊंचे नैतिक स्तर को छूता रहा है. पश्चिम के कई लोकतांत्रिक देश भारत के केवल इसलिए मित्र हैं कि वे हमारे बहुलतावादी तथा संवैधानिक मूल्यों को साझा करते हैं. मोदी पाकिस्तान जैसे देशों को तो “घर में घुसकर मारेंगे” की धमकी दे सकते हैं लेकिन कनाडा और अमेरिका कोई पाकिस्तान नहीं हैं.

भारत में आतंकवाद का निर्यात करना पाकिस्तान का पुराना इतिहास रहा है, और उसने सीमा पार आतंकवाद को अपनी सरकारी नीति बना लिया है. पाकिस्तान में अड्डा बनाए आतंकवादियों के हमलों के मद्देनजर भारत ने आत्मसुरक्षा के अपने अधिकार का इस्तेमाल किया है तो यह ठीक भी है. पाकिस्तान भारत का तथाकथित पुराना ‘दुश्मन’ रहा है, जिसके साथ दशकों से सीमा पार से आतंकवादी हमलों और युद्धों का सिलसिला चलता रहा है जैसे जनवरी 2019 में पुलवामा में आतंकवादी हमले के जवाब में फरवरी में बालाकोट में हवाई हमले किए गए. 2019 में अहमदाबाद में मोदी ने जब चुनावी रैली में हुंकार भरी कि “हम घर में घुसकर मारेंगे”, तो जनता ने खूब तालियां पीटीं.

लेकिन अमेरिका और कनाडा का तो मामला एकदम अलग ही है. कनाडा एक मजबूत संवैधानिक लोकतंत्र है, जहां 10 लाख से ज्यादा भारतीय बसे हुए हैं. 2023 में तीन लाख भारतीय छात्र वहां ऊंची पढ़ाई करने के लिए गए. कनाडा भी हमारी तरह राष्ट्रमंडल का सदस्य है और भारत के साथ उसके गहरे व्यापारिक संबंध हैं. दोनों देशों के नागरिकों के बीच प्रत्यक्ष संबंध तो हैं ही, हम लोकतांत्रिक तथा बहुलतावादी मूल्यों को भी साझा करते हैं. कनाडा भी ‘फाइव आइज़’ नामक खुफिया गठबंधन का एक सदस्य है और वह भारत के बारे में अपनी खुफिया सूचनाएं ‘फाइव आइज़’ के अमेरिका तथा दूसरे सदस्य देशों के साथ जरूर साझा करता होगा. अमेरिका के साथ भारत के संबंध काफी अहम, गहरे और मजबूत हैं. भारतीय मूल के 50 लाख से ज्यादा लोग अमेरिका में रह रहे हैं.

मोदी मार्का ‘छत्तीस इंच सीने वाली’ कूटनीति अमेरिका और कनाडा के मामले में भारी जोखिम भरी साबित हो सकती है. पश्चिम के दोस्ताना लोकतांत्रिक देशों के साथ कूटनीतिक दुस्साहस काफी परेशानी में डाल सकती है. कनाडा और अमेरिका की अपराध न्याय-व्यवस्था बिलकुल स्वतंत्र हैसियत रखती हैं. दोनों ही देश अपने नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी जैसे संवैधानिक अधिकारों की मजबूती से रक्षा करते हैं. मारा गया निज्जर या पन्नू, कोई भी ओसामा बिन लादेन जैसा वैश्विक रूप से बदनाम आतंकवादी नहीं हैं, हालांकि भारत इन दोनों को भारत की भौगोलिक संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा मानता रहा है.

संवैधानिक लोकतंत्र वाले देशों को कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता है. अगर कोई देश किसी व्यक्ति को ‘आतंकवादी’ घोषित करता है और दूसरा देश ऐसा नहीं करता तो लोकतांत्रिक सरकारों के पास इस स्थिति से निबटने के कई उपाय हैं— उस व्यक्ति के खिलाफ सबूत जुटाना, उसके देशनिकाले की मांग करना, अदालतों के दरवाजे खटखटाना, और मेजबान देश की पुलिस के साथ सहयोग करना. भारत का कहना है कि उसने पिछले एक दशक में कनाडा से देशनिकाले के लिए 26 बार अनुरोध किए. लेकिन ऐसा अनुरोध करने के लिए गहन जांच और सबूत जुटाने की जरूरत होती है. विस्तृत सबूतों के बिना देशनिकाला नहीं दिया जा सकता है. यह प्रक्रिया लंबी होती है लेकिन लोकतांत्रिक देशों के पास यही एक उपाय है जिसके आधार पर वे सीमा पार के अपराधियों को अपनी गिरफ्त में ले सकते हैं. किसी तरह के ‘एनकाउंटर में सफाया’ (जो कि उत्तर भारत में प्रायः होते रहते हैं) या ऐसी कार्रवाई के लिए साजिश रचना नियमों पर चलने वाले लोकतांत्रिक देशों के लिए निंदनीय और कुत्सित है.

इससे भी ज्यादा परेशान करने वाले आरोप ये हैं कि हत्या की साजिश में लॉरेंस बिश्नोई जैसे आपराधिक गिरोह भारतीय अधिकारियों के साथ शामिल थे. इस तरह की चालें पश्चिमी सहयोगियों के साथ सहयोग की भावना के विपरीत हैं. इस तरह की कोशिशों का जब उल्टा नतीजा निकलता है तो वह और बड़ी परेशानी में डालता है.

भारतीय कूटनीति की नैतिक चमक

कनाडा के आरोपों पर मोदी सरकार की प्रतिक्रिया अकड़ वाली और शिष्टाचार रहित रही है. भाजपा समर्थक टीवी एंकर ट्रूडो सरकार की बुराइयों का शोर कर रहे हैं. लेकिन कनाडा की आंतरिक राजनीति या ट्रूडो की नाकामियां भारत की चिंता का विषय नहीं हो सकतीं. हमें अपने से मतलब रखना चाहिए और अपनी एजेंसियों तथा संस्थाओं को लोकतांत्रिक रूप से जवाबदेह बनाना चाहिए.

मोदी सरकार को कानून का शासन कायम करने के लिए कनाडा के साथ पूरा सहयोग करने का संकेत देना चाहिए था. और वह जवाबदेही तय करनी चाहिए थी. अगर अमेरिका और कनाडा, दोनों आरोप लगा रहे हैं कि भारतीय एजेंसियां उनकी जमीन पर हत्या करने में शामिल हैं, तो मोदी सरकार को आंतरिक जांच करवानी चाहिए थी और जहां जरूरी हो वहां ज़िम्मेदारी तय करनी चाहिए थी.

अहम बात यह है कि विपक्षी नेताओं को भरोसे में लेने के लिए सर्वदलीय बैठक तुरंत की जानी चाहिए थी. भारतीय विदेश नीति हमेशा दोनों पक्षों की सहमति से उभरती रही है. विपक्ष और सरकार, दोनों मिलकर देश को सर्वोपरि रखते रहे हैं. देश के विदेश संबंध कभी अलोकतांत्रिक और एकपक्षीय कदमों के आधार पर नहीं चले. वास्तविकता यह है कि भारतीय खुफिया एजेंसियां जबको खालिस्तान समर्थक नेताओं पर निगरानी रखती रही हैं, भारत दाऊद इब्राहिम जैसे तलाशशुदा अपराधियों या धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोपी मेहुल चोकसी जैसे बदनाम व्यवसायियों का मेजबान देश से हासिल करने में सफल नहीं हुआ है.

जो देश ‘विश्वगुरु’ होने का दावा करता है उसे कानूनसम्मत साधनों, निष्पक्ष जांच, और दूसरे देश की भौगोलिक संप्रभुता का सम्मान करने जैसे मानदंडों का पालन करना चाहिए. विश्व नेता नियमसम्मत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का सम्मान करते हुए एक जिम्मेदार ताकत की तरह व्यवहार करता है. ‘विश्वगुरु’ दुस्साहसिक कारनामे और मूर्खताएं नहीं करते.

सत्य की खोज जैसे गांधीवादी आदर्श, नेहरूवादी गुटनिरपेक्षता, इंदिरा गांधी वाली साहसिक देशभक्ति, और शांतिपूर्ण पडोसे के प्रति मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी वाली प्रतिबद्धता, और खुली अर्थव्यवस्था ने दुनिया में भारत की एक अनोखी जगह बनाई है. आजादी के बाद के दशकों में इन आदर्शों ने भारत की आवाज को अमन और नैतिक प्रतिबद्धता की आवाज के रूप में स्थापित किया था. जी नहीं, दुनिया में भारत का नाम मोदी के आने के बाद नहीं रोशन हुआ, आजादी के बाद बने तमाम प्रधानमंत्रियों ने भारतीय कूटनीति की नैतिक चमक को बनाए रखा.

देश को ‘विश्वगुरु’ के रूप में पेश करना और फिर उसे शर्मसार करना भारतीय कूटनीति की मशाल को बुझाने के समान है. ‘एक्स’ पर जमी ‘ट्रोल’ सेना और शोर मचाते टीवी एंकर इस नुकसान की भरपाई नहीं कर सकते. मोदी सरकार को अपनी मनमानी, रहस्यपूर्ण लापरवाही को छोड़ समझदारी भरी, तर्कपूर्ण तथा आम सहमति वाली कूटनीति पर ज़ोर देना चाहिए. यही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को शोभा देता है. वही सच्चे ‘विश्वगुरु’ की पहचान बनेगी.

(सागरिका घोष अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सांसद हैं. उनका एक्स हैंडल @sagarikaghose है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)


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