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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतमोदी के आंसू भले ही असली न हों लेकिन उनका मखौल उड़ाना विपक्ष पर भारी पड़ सकता है

मोदी के आंसू भले ही असली न हों लेकिन उनका मखौल उड़ाना विपक्ष पर भारी पड़ सकता है

मोदी पर हमलावर विपक्ष के जुमले मज़ाकिया, आकर्षक और सोशल मीडिया पर चलने वाले भले ही हों, इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि इन्हें अपने फायदे में इस्तेमाल करने के लिए मोदी अपनी पूरी ताकत और कल्पनाशीलता झोंक देंगे.

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विपक्ष जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर आखिरकार सही निशाना लगाता दिख रहा था, तभी वह उनके ऊपर व्यक्तिगत हमला करके निशाना चूकता दिख रहा है. कोविड महामारी की दूसरी लहर से निपटने में गड़बड़ी करने या वैक्सीन को लेकर दोषपूर्ण नीति के लिए सरकार पर हमला करना तो ठीक था लेकिन उनके आंसुओं को ‘घड़ियाली आंसू ’ बताना उतना ही अविवेकपूर्ण था.

‘द न्यू यॉर्क टाइम्स’ के पहले पन्ने पर छपी एक तस्वीर (वास्तव में यह ‘डेली न्यू यॉर्क टाइम्स’ नामक पैरोडी ट्विटर हैंडल पर लगाया गया एक पोस्ट था) तुरंत चारों तरफ दिखने लगी और लोगों की दिलचस्पी का केंद्र बन गई. इसमें एक घड़ियाल के चित्र के साथ शीर्षक लगाया गया था— ‘भारत के प्रधानमंत्री रो पड़े’. यह कार्टून सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.

वाराणसी में स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ वीडियो बैठक में मोदी जिस तरह भावुक हुए, उसके बाद विपक्ष को और मोदी के आलोचकों को लगा कि इस कार्टून के रूप में उन्हें उन पर हमला करने का कारगर हथियार मिल गया है.

लेकिन मोदी के विरोधियों को देश में पिछले कुछ वर्षों में हुए चुनावों के नतीजों और भारतीय राजनीति की वर्तमान दशा से कम-से-कम यह सबक तो लेना चाहिए था कि मोदी पर किए गए व्यक्तिगत हमले का उलटा ही नतीजा मिलता है और वह ‘ब्रांड मोदी’ को और मजबूत ही करता है.

विपक्ष के पास मोदी को सचमुच में टक्कर देने का एक ही उपाय है— उनके शासन और उनकी नीतियों की विफलताओं को अपना औज़ार बनाना. कहा भी गया है कि लोगों के बीच जिसकी छवि ईमानदार नेता की हो, जैसी मोदी की है- उसकी विशेषताओं को कभी अपना औज़ार मत बनाइए. उसकी विशेषताओं को निशाना बनाना, चुनावी चुनौती को उसके लिए आसान बनाना है.

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अतीत से सबक

मोदी अपनी छवि एक ‘साफ-सुथरे’, ‘अपने बूते शिखर पर पहुंचे’ ‘जन नेता’ की पेश करके छवि की लड़ाई में बाजी मारते रहे हैं. उन्होंने अपनी ‘आमदार’ वाली पृष्ठभूमि और विपक्ष की ‘नामदार’ वाली पृष्ठभूमि के बीच के अंतर को खूब उभारा है. खासकर गांधी परिवार इस जाल में फंसता रहा है.

मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उनके लिए सोनिया गांधी ने बुरी सलाह पर बेवक्त जो ‘मौत के सौदागर‘ वाली टिप्पणी की थी उसकी कीमत कांग्रेस को वहां 2007 के विधानसभा चुनाव में तो चुकानी ही पड़ी, उसने देश में राजनीतिक माहौल को भी एक तरह से बदल दिया. उसने मोदी के बारे में यह धारणा बना दी कि वे तो हमेशा ‘पीड़ित’ रहे हैं और उनके राजनीतिक विरोधी उन पर हमेशा ‘कटु हमले’ करते रहे हैं.

2019 में आकर यह धारणा और मजबूत हो गई. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान मोदी पर किए गए अपने कटाक्ष ‘चौकीदार चोर है’ को खूब उछालते रहे और राफेल विमानों की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप पर ज़ोर देते रहे. लेकिन मोदी ने इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हुए यह प्रचार किया कि वे तो ‘कामदार’ हैं, जिसे अधिकार-संपन्न वंशज निशाना बना रहे हैं.

उस लोकसभा चुनाव के नतीजे जगजाहिर हैं. मतदाताओं को यह पसंद नहीं आया कि विरोधी लोग उनके प्यारे, ‘ईमानदार’ प्रधानमंत्री को बदनाम करें और कांग्रेस को उन्होंने सबक सिखा दिया.

कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर ने जिस तरह मोदी के खिलाफ ‘चायवाला ‘ और ‘नीच आदमी ‘ कहकर हमला किया वह एक लोकप्रिय नेता पर व्यक्तिगत हमला करने की मूर्खता का प्रमाण बन गया.

अब मोदी को भी यह सबक मिल गया है. इस साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले प्रचार के दौरान मोदी ने वहां की लोकप्रिय नेता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर जिस तरह ‘दीदी… ओ दीदी…’ की तंज भारी पुकार लगाई उसने भाजपा को बड़ा झटका दे दिया. जिस पार्टी ने वहां सत्ता हासिल करने के बड़े दावे किए थे, मतदाताओं ने उसे सबक सिखा दिया.


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महामारी में नीति बनाम निजी हमला

अपनी छवि चमकाने को समर्पित लोकप्रिय नेता मोदी को अपने ऊपर व्यक्तिगत हमले ही तो चाहिए. इससे लोगों का ध्यान एक नेता के रूप में उनकी विफलताओं और उनके शासन की खामियों की ओर से हटाने में मदद मिलती है. मोदी इसका इस्तेमाल लोगों का ध्यान भटकाने और अपने समर्थकों को यह बताने में करते हैं कि अधिकार संपन्न लोग उन्हें निशाना बना रहे हैं.

महामारी के दौर में मोदी और उनकी टीम ने अपने ऊपर सवाल उठाए जाने, खुद को निशाना बनाए जाने के कई कारण लोगों को समझाए हैं. वैसे, मोदी के आंसू को उन कारणों में नहीं गिना जा सकता.

कोविड की दूसरी लहर का मोदी सरकार ने जिस तरह सामना किया है उसे नगण्य और उदासीनता भरा ही कहा जा सकता है. सरकार महामारी को रोकने से ज्यादा अपने लिए प्रचार बटोरने के लिए फिक्रमंद और लड़खड़ाती दिखी. टीकाकरण का उसका कार्यक्रम दिशाहीन और दागदार रहा है.

इन मसलों ने लोगों को वास्तव में प्रभावित किया है, उन्हें दुख और पीड़ा पहुंचाई है. सात साल में संभवतः पहली बार मोदी ने लोगों को स्पष्ट और मजबूत कारण दिया है कि वे उन्हें निशाना बना सकें और विपक्ष इसका पूरा फायदा उठाकर ठीक ही कर रहा है.

लेकिन उनके विरोधी मोदी का मखौल उड़ाने का लालच रोक नहीं पा रहे हैं. ऐसा लगता है कि वीडियो बैठक में मोदी के आंसू पर ‘घड़ियाली आंसू’ वाले कटाक्ष ने उन्हें और साहसी बना दिया है. राहुल ट्वीट कर रहे हैं कि ‘मगरमच्छ निर्दोष हैं’, तो कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अपने डिलीट कर चुके ट्वीट में लिखा कि ‘उनके लिए सही समय पर आंसू बहाना भी एक कला है’. मोदी के राजनीतिक विरोधी मोदी का मज़ाक बनाने के इस नये मौके को तुरंत भुनाने लग गए.

उनके जुमले मज़ाकिया, आकर्षक और सोशल मीडिया पर चलने वाले भले ही हों, इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि इन्हें अपने फायदे में इस्तेमाल करने के लिए मोदी अपनी पूरी ताकत और कल्पनाशीलता झोंक देंगे. ये वही मोदी हैं जिन्होंने नोटबंदी जैसी अपनी भारी भूल की ओर से लोगों का ध्यान अपने जोरदार संदेशों के बूते भटका दिया था और उन्हें ‘थाली बजाओ’, ‘दीया जलाओ ’ जैसे अपने खोखले टोटकों में उलझा दिया था.

किसी भी शासक के लिए अपने ऊपर किए गए व्यक्तिगत हमलों का जवाब देना तो काफी आसान हो सकता है मगर इस तरह के संकट के दौरान अपने शासन की विफलताओं का बचाव करना बेहद मुश्किल साबित होता है. मोदी के आंसू शायद सच्चे हों या एक कला हों मगर उनका मज़ाक उड़ाकर उनके विरोधियों ने उन्हें इस समय में दम लेने का मौका दे दिया है जिसकी उन्हें बहुत जरूरत थी.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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