भाजपा जब चुनाव नहीं लड़ रही होती तब क्या करती है? तब भी वह यही कर रही होती है. नरेंद्र मोदी के नये मंत्रियों की ‘जन आशीर्वाद यात्राएं’ यही साबित कर रही हैं. फिलहाल तुरंत कोई चुनाव नहीं होने वाला है और कोविड का खतरा अभी भी सिर पर मंडरा रहा है, फिर भी भाजपा अपने मंत्रियों का इस्तेमाल शासन चलाने की जगह भीड़ भरी रैलियां करवाने में कर रही है.
जाहिर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की भाजपा ने कोविड महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर से कोई सबक नहीं सीखा है. इस लहर से पहले उसने खतरनाक रूप से कुंभ मेले और चुनावी रैलियों के आयोजन किए थे.
अब जन आशीर्वाद यात्राएं कोविड की तीसरी लहर को बुलावा देने की अविवेकपूर्ण कोशिश ही मानी जाएगी. आखिर अभी ही उन्हें आयोजित करने की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी है?
जनता से आशीर्वाद लेने के लिए भाजपा को यह तामझाम करना क्यों जरूरी हो गया है? अगले साल से पहले कोई चुनाव नहीं होने वाला है. इसलिए यह समय तो शासन और प्रशासन पर ध्यान देने का है, खासकर इसलिए कि देश महामारी के घातक प्रभावों से उबरने की कोशिश में जुटा है. लेकिन इसकी जगह केंद्रीय मंत्री रैलियां करने और राजनीतिक तमाशा करने में व्यस्त हैं.
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फिर वही गलती
इस मामले में भाजपा गलती दोहरा रही है. इस साल के शुरू में विधानसभाओं के चुनाव में रैलियां और जनसभाएं करने के आरोप से बेशक किसी दल को बरी नहीं किया जा सकता, लेकिन सत्ता में बैठी पार्टी और सरकार जब इस तरह चुनाव करवा रही हो मानो हम किसी महामारी की गिरफ्त में नहीं हैं, तो यही साबित होता है कि उसके लिए लोगों की जान से ज्यादा उनका वोट ही कीमती है.
जैसा कि मैं पहले ही कह चुकी हूं, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जब विशाल चुनाव सभाएं करें तो यही संदेश जाता है कि सब कुछ ‘सामान्य’ है और कोविड से अब कोई खतरा नहीं है. अपने समर्थकों के तुष्टीकरण के लिए कुंभ मेले की इजाजत देना लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी से भी बड़ी बात थी. यह एक अपराध जैसा ही था.
इन रैलियों में भारी भीड़ तो इकट्ठा होती ही है, इससे भी ज्यादा खतरनाक है इन रोड शो और मेलों से उभरने वाला संदेश, जो लोगों में लापरवाही का भाव पैदा करता है.
राष्ट्र के नाम अपने संदेशों और रेडियो शो ‘मन की बात’ में मोदी कोविड के मामले में एहतियातों का पालन करने की जो बातें करते हैं वे तब बेमानी हो जाती हैं जब वे विशाल जनसभाओं में बिना मास्क लगाए पहुंच जाते हैं. उन्हें मालूम है कि उनके संदेशों का क्या असर होता है.
इसके साथ यह तथ्य भी जोड़ दीजिए कि उनके ट्विटर हैंडल पर ‘भारी जनसभाओं’ की तस्वीरें इस तरह पोस्ट की जाती हैं मानो भीड़ को पसंद करने वाले वायरस के तांडव के बीच ऐसे आयोजन करना गर्व करने की बात हो.
इन आयोजनों के बाद महामारी की दूसरी लहर के कहर को हम दशकों तक याद रखेंगे. कोई भी सोच सकता है कि देश भर में फैली विनाशकारी महामारी ने सरकार और तमाम राजनीतिक दलों की संवेदना को कुरेदा होगा और वे बेहोशी से जाग गए होंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
कोई भी वायरस मोदी-शाह की भाजपा को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने से नहीं रोक सकता.
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लापरवाही की नयी लहर
जरा गौर कीजिए कि मोदी मंत्रिमंडल के 39 नये मंत्री देश के 22 राज्यों में जन आशीर्वाद यात्राओं में भाग ले रहे हैं. ये वो मंत्री हैं जो या तो अभी-अभी मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं या उन्हें नया मंत्रालय सौंपा गया है.
तार्किक बात तो यह होती कि वे अपने मंत्रालय के बारे में जानकारियां लेते, उन पर गहराई से विचार करते और शासन को प्राथमिकता देते. इससे भी ज्यादा अहम सवाल यह है कि वरिष्ठ मंत्री भीड़ इकट्ठा करने में जुट जाएं और घातक वायरस के कोप को बुलावा दें तो यह कितनी जिम्मेदारी वाली बात मानी जाएगी?
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की यात्राओं को कवर कर रहे मेरे सहयोगी शंकर अर्निमेष ने बताया कि वहां अच्छी खासी भीड़ जमा थी और ‘किसी ने मास्क पहनने का कष्ट नहीं किया था, खासकर सुदूर गांवों में.’
महाराष्ट्र में भाजपा नेता नारायण राणे की यात्राओं के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज किए गए हैं. राजनीति को परे रखें तो भी तथ्य यह है कि कोविड के नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है और सावधानी बरतने की कोई परवाह नहीं की जा रही है. यानी वायरस की कोई परवाह नहीं की जा रही है.
आखिर इन यात्राओं का मकसद क्या है?
मेरी सहयोगी नीलम पाण्डेय के मुताबिक इनका मकसद ‘लोगों तक पहुंचना, सबको साथ लेकर चलने का दिखावा करना, और कार्यकर्ताओं में जोश पैदा करना’ है.
क्या इन्हें महामारी के मद्देनजर भारी तामझाम के बिना नहीं किया जा सकता? और, जो बिलकुल राजनीतिक कार्यक्रम है उनमें मंत्रियों को शरीक होने की क्या जरूरत है?
भीड़ जमा करने का हमेशा कोई कारण होता है लेकिन महामारी के बीच इसे अच्छा नहीं माना जा सकता. कहा जाता है कि चुनाव लोकतंत्र के लिए बेहद अहम हैं लेकिन वायरस जब बड़ी आफत बना हो तब क्या इन्हें शांति से नहीं किया जा सकता? कहा जाता है कि कुंभ मेले की इजाजत हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के सम्मान के लिए दी गई लेकिन क्या वायरस ऐसी भावनाओं का सम्मान करेगा?
लापरवाही के भाजपाई मानदंडों के हिसाब से भी जन आशीर्वाद यात्राएं एक बार फिर वायरस को बुलावा देना ही है. जो सरकार ‘सुशासन’ के वादे करते नहीं थकती उसके नये मंत्री नयी जिम्मेदारियों को समझने की जगह अगर जनता तक पहुंच बनाने और उससे ‘आशीर्वाद’ लेने के लिए निकल पड़ें तो यही संदेश मिलता है कि मोदी सरकार के लिए राजनीति ही सर्वोपरि है.
(व्यक्त विचार निजी हैं)
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