मोदी के चौथी औद्योगिक क्रांति में भारत के योगदान संबंधी दावे को उनकी आदतन अतिशयोक्तियों में गिन सकते हैं. लेकिन इसकी संभावनाओं पर विचार किया जाना चाहिए.
इस सप्ताह सेंटर फॉर द फोर्थ इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन नामक एक संस्था के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चौथी औद्योगिक क्रांति में भारत का योगदान दुनिया को ‘स्तब्ध’ कर देगा. उन्होंने यह भी कहा कि भारत ‘लोकल सोल्यूशन’ (देसी समाधानों) से ‘ग्लोबल अप्लीकेशन’ (वैश्विक उपायों) की ओर बढ़ रहा है. दुनिया इस तरह की बातों से आसानी से ‘स्तब्ध’ नहीं होती क्योंकि वास्तविकता यह है कि चौथी औद्योगिक क्रांति के व्यापक दायरे में हरेक दिन तेज़ी से प्रगति हो रही है. इसलिए मोदी के इस दावे को उनकी आदतन अतिशयोक्तियों में गिन सकते हैं. लेकिन उनकी बात काबिलेगौर है और इसकी संभावनाओं पर विचार किया जाना चाहिए.
चौथी औद्योगिक क्रांति एक ऐसी व्यापक चीज़ है जिसके अंदर ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ तथा ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ से लेकर ‘थ्रीडी प्रिंटिंग’ तथा ‘ब्लॉकचेन’ तक और ‘स्पेशियल्टी मेटेरियल’ तथा ‘नैनो टेक्नोलॉजी’ से लेकर स्वचालित वाहन तथा 5जी कम्युनिकेशन तक सब कुछ शामिल है.
सार यह कि यह डिजिटल टेक्नोलॉजी तथा भौतिक दुनिया को साथ लाकर एकदम नए तरह के उत्पाद एवं सेवाएं तैयार करती है. यह तो स्पष्ट ही है कि भारत इनमें से अधिकांश क्षेत्रों में अगुआ नहीं है. लेकिन भारत तथा भारतीय लोग उभरती डिजिटल-भौतिक दुनिया में अपना योगदान देने लगे हैं.
यह भी पढ़ें: अर्थव्यवस्था में बदलाव से निकल सकता है पर्यावरण समस्या का हल
थोलोंस सर्विसेज़ ग्लोबलाइज़ेसन सूचकांक के मुताबिक भारत टॉप टेन डिजिटल देशों की सूची में सबसे ऊपर है. यह और बातों के अलावा यह दर्शाता है कि भारत मोबाइल डेटा के इस्तेमाल में दुनिया में अगुआ है (भला हो रिलायंस के जियो का), कि आधार हरेक निवासी को विशिष्ट डिजिटल पहचान देने में सफल हुआ है, कि वीसा और मास्टरकार्ड जैसी ग्लोबल कार्ड कंपनियां जबकि पिछड़ रही हैं तब हमारा रूपे कार्ड तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और मान्य हो रहा है. इन प्लेटफार्मों की विशेषता यह है कि ये कम लागत वाले हैं और इनका आधार विशाल है. दरअसल, अधिकांश भारतीय बाज़ारों की विशेषता यही है.
सरकारें और व्यवसाय जगत इस तरह के प्लेटफार्मों का इस्तेमाल नागरिकों तथा उपभोक्ताओं को क्लाउड आधारित उत्पाद और सेवाएं देने में कर सकता है. जीएसटी में एक करोड़ व्यवसाय रजिस्टर हुए हैं लेकिन इनमें से अधिकांश को संस्थागत ऋण की सुविधा उपलब्ध नहीं है. नई टेक्नोलॉजी, एक करोड़ रजिस्ट्रेशन वाले जीएसटी नेटवर्क जैसे डेटा प्लैटफ़ार्म, कॉर्पोरेट आइडेंटिफिकेशन नंबर जैसी सिस्टम के साथ-साथ पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री को रिज़र्व बैंक द्वारा समर्थन जैसे हस्तक्षेपों के बूते वित्त व्यवस्था की पारदर्शिता में भारी सुधार लाना संभव है.
इसका अर्थ यह है की जिन छोटे व्यवसायों का ऋण लेने का कोई पुराना रिकॉर्ड नहीं है या जो ज़मानत पर कुछ रख नहीं सकते, वे भी अपनी नकदी आवक के आधार पर ऋण पा सकेंगे. यह छोटे व्यवसायों का कायापलट कर देगा.
यह भी पढ़ें: रुपया मज़बूत करना है तो श्रम आधारित गतिविधियां बढ़ानी होंगी
अगर क्लाउड आधारित प्लेटफार्मों को सार्वजनिक किया जाए तो नए व्यवसाय उनके बूते फल-फूल सकते हैं, जैसे उबर ने जीपीएस के बूते किया है. स्वयंसेवकों पर चलने वाली बंगलुरु की फ़र्म आइस्पिरिट इस तरह के प्लेटफॉर्म का उपयोग मेडिकल सेवाओं के लिए कर रही है. इसके शरद शर्मा का कहना है कि कम लागत पर व्यापक आधार उपलब्ध कराने वाले इस तरह के प्लेटफार्म के बूते कारोबार बढ़ाने वाले व्यवसाय भारत को चौथी औद्योगिक क्रांति का अगुआ बना सकते हैं, जबकि मैनुफैक्चरिंग के मामले में भारत इस स्थिति में नहीं आ पाया (आखिर बजाज ग्लोबल स्तर पर होंडा को चुनौती देने में विफल ही रहे).
‘डिजिटल-ओनली’ बैंकिंग तो एक वास्तवकिता बन ही चुकी है, जबकि चेन्नई की फ़र्म द्वारा प्रस्तुत क्लाउड आधारित जोहो बिज़नेस सॉफ्टवेयर पैकेज छोटे व्यवसायों को सस्ता पे-ऐज़-यू-गो बिज़नेस सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराता है, जो ओरेकल जैसों के महंगे सॉफ्टवेयर के कारण पहुंच से दूर था.
जो काम हो रहे हैं उनके पीछे रणनीतिक हिसाब-किताब भी हैं. एक मान्यता यह है कि ‘की डेटा प्लेटफॉर्मों’ पर नियंत्रण न हो तो संघर्ष की स्थितियों में राष्ट्र कमज़ोर पड़ सकता है- यही वजह है कि अमेरिका के विरोध के बावजूद डेटा के स्थानीयकरण को एक नीति के तौर पर ज़ोरदार तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है.
यह भी पढ़ें: बढ़ती कीमतें मोदी सरकार का कहीं तेल न निकाल दें
इसी सोच का एक परिणाम यह है कि अमेरिका की जीपीएस की जगह उपग्रह निर्देशित ‘नेविक सिस्टम’ को विकल्प के तौर पर विकसित किया जा रहा है. जहां मुमकिन हो वहां चीन का अनुकरण करने की भी कोशिश की जा रही है. बीजिंग ने अपना बायदु सर्च इंजिन विकसित करने के लिए गूगल को परे रखा. यही नहीं, उसने अपना यूनियन पे कार्ड विकसित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्डों को परे रखा. चीन ने इलेक्ट्रिक बसों के बूते जो किया उस तरह क्या घरेलू बाज़ार तक पहुंच का लाभ उठाया जा सकता है?
एक सोच यह भी है कि घरेलू चुनौतियों से निबटने के लिए विकसित किए गए प्लेटफॉर्म अफ्रीका के देशों के लिए उपयुक्त हो सकते हैं, जिन्हें पश्चिम से हासिल विकल्प काफी महंगे लग सकते हैं या अपने छोटे व्यवसायों के लिए अनुपयुक्त लगते हैं. विश्व बैंक ने पिछले वर्ष मोरक्को को कर्ज़ दिया ताकि वह आधार के आधार पर अपने यहां यूनिक आइडेंटिटी सिस्टम तैयार करे. मोदी ने कहा ही है कि देसी समाधान से ग्लोबल उपायों की ओर बढ़ो.
(‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ के साथ विशेष व्यवस्था के अंतर्गत)
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.