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Thursday, 21 November, 2024
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अवैध तरीके से दूसरे देश में रह रहे लोगों का मुद्दा हमेशा विवादित रहा है, पीएम मोदी की राष्ट्रव्यापी एनआरसी है समय की मांग

गृहमंत्री अमित शाह बारंबार ये दलील देते रहे हैं कि कोई अन्य देश अवैध आप्रवासियों को बसने की अनुमति नहीं देता है.

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गृहमंत्री अमित शाह ने एनआरसी को पूरे भारत में लागू करने और अवैध आप्रवासियों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करने की घोषणा की है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि एनआरसी का मतलब राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर है, न कि असम का नागरिक रजिस्टर.

असम के बाद, अब हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी अपने यहां एनआरसी लागू करने के संकेत दिए हैं.

बाकी जगह एनआरसी लागू करने की मांगों से भारत के कई टिप्पणीकारों को संभावित गृहयुद्ध तथा देश के एक और बंटवारे का खतरा दिखने लगा है. लेकिन, भारतीय नागरिकों का एक देशव्यापी डेटाबेस समयोचित ज़रूरत है, न कि असम की एनआरसी प्रक्रिया का नतीजा.

अवैध आप्रवास सिर्फ भाजपा का ही राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि काफी समय से ये कई राज्यों में सार्वजनिक बहस का भी मुद्दा है. और, मुंबई आतंकी हमले के बाद यूपीए सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) परियोजना की सबसे बड़ी पैरोकार के रूप में सामने आई थी.


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अमित शाह बारंबार ये दलील देते रहे हैं कि कोई अन्य देश अवैध आप्रवासियों को बसने की अनुमति नहीं देता है. अवैध आप्रवास भारत के लिए एक गंभीर समस्या है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता. अवैध आप्रवासियों के बाढ़ की वजहों में शामिल है- राजनीतिक संरक्षण, वोटबैंक की राजनीति, खुली सीमाएं, अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था और भ्रष्टाचार.

पर नरेंद्र मोदी सरकार अपने एजेंडे को लागू करने में जिस कदर दृढ़ संकल्प दिखाती है, उसके मद्देनज़र ये तय बात लगती है कि सरकार भविष्य में राष्ट्रव्यापी एनआरसी की एक व्यापक योजना लेकर आएगी.

जून में संसद को अपने संबोधन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था, ‘अवैध घुसपैठिए हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा हैं… मेरी सरकार ने घुसपैठ प्रभावित इलाकों में प्राथमिकता के आधार पर ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ की प्रक्रिया को लागू करने का फैसला किया है.’

राज्यवार डेटाबेस

अखिल भारतीय एनआरसी की दिशा में पहले कदम के तौर पर मोदी सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तैयार करने पर विचार कर रही है. राज्यवार तैयार किए जाने वाले इस रजिस्टर में उन सभी नागरिकों के नाम होंगे जो छह महीने या अधिक समय के लिए ‘सामान्य रूप से’ किसी इलाका विशेष के निवासी हैं. ये चुनाव आयोग के ‘साधारण रूप से निवास’ वाले प्रावधान जैसा ही है.

एनपीआर की महत्वाकांक्षी परियोजना में प्रत्येक नागरिक का जनसांख्यिकीय और बायोमैट्रिक विवरण समेत पूर्ण ब्यौरा एकत्रित करने का लक्ष्य है. भारतीय महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय को इस व्यापक प्रक्रिया की निगरानी की जिम्मेवारी दी गई है.

इस प्रक्रिया को नागरिकता (नागरिक पंजीकरण एवं राष्ट्रीय पहचान पत्र निर्गम) नियम, 2003 तथा नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत कार्यान्वित किया जाएगा.

आलोचना

जैसा की अपेक्षित था, राष्ट्रव्यापी एनआरसी या भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) तैयार करने की मोदी सरकार की योजना पर खूब शोर-शराबा हुआ है. आलोचकों का कहना है कि नागरिकों की इस तरह की सूची बनाने पर उन लोगों के नाम ‘उजागर’ हो जाएंगे जो कि रोज़गार या अन्य किसी कारण से किसी इलाके में प्रवासी हैं.

यह आपत्ति सही नहीं कही जा सकती क्योंकि एनपीआर की प्रक्रिया में ‘सामान्य निवासी’ को ‘ऐसा व्यक्ति जो किसी इलाके में छह महीने या अधिक समय से रह रहा हो या ऐसा व्यक्ति जिसका उस इलाके में अगले छह महीने या अधिक समय तक रहने का इरादा हो’, के रूप में विशिष्ट रूप से परिभाषित किया गया है.

कहने की ज़रूरत नहीं कि जनसांख्यिकी गतिशीलता का ध्यान रखा जाएगा और इस व्यापक रजिस्टर को हर वास्तविक नागरिक के लिए नियमित रूप से अपटेड किया जाएगा. इस प्रक्रिया में उन लोगों के प्रति भेदभाव नहीं किया जाएगा जो कि काम के सिलसिले में या किसी आपातकालीन वजह से यहां हैं और वैध परमिट रखते हैं.

असम में एनआरसी की प्रक्रिया की एक बड़ी आलोचना ये हुई है कि राज्य में वर्षों से रह रहे असम के अनेकों वास्तविक नागरिकों के नाम तो छूट गए, पर पूर्वी सीमा से होकर आए अवैध आप्रवासियों ने अपने नाम दर्ज करा लिए. आलोचकों को डर है कि राष्ट्रव्यापी एनआरसी में भी ऐसा हो सकता है.


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असम की अंतिम एनआरसी सूची के 31 अगस्त को प्रकाशन के तुरंत बाद भाजपा विधायक शिलादित्य देव ने कहा कि वह आश्वस्त नहीं हैं क्योंकि ‘हमारा अनुमान था कि एक करोड़ से अधिक बांग्लादेशी मुसलमानों के नाम एनआरसी से बाहर रखे जाएंगे. पर आज इस एनआरसी के ज़रिए, ये लोग देश के नागरिक बन गए हैं.’

इसलिए, राष्ट्रव्यापी एनआरसी परियोजना पर कदम बढ़ाने से पहले मोदी सरकार को व्यवस्था की खामियों को दूर करना चाहिए ताकि आगे चल कर उसे ‘अवैध आप्रवासियों’ को नागरिक घोषित किए जाने और एनआरसी के मूल उद्देश्य को नाकाम करने की शर्मिंदगी नहीं झेलनी पड़े.

सरकार को अखिल भारतीय एनआरसी पर सार्वजनिक बहस भी शुरू करनी चाहिए और साथ ही इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए उसे राजनीतिक विरोधियों समेत तमाम संबद्ध पक्षों को विश्वास में लेना चाहिए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य और ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. इसमें व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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