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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतमोदी सरकार अकेले कोविड-19 से नहीं लड़ सकती, उसे आरएसएस जैसे ज़मीनी सिपाहियों का साथ चाहिए

मोदी सरकार अकेले कोविड-19 से नहीं लड़ सकती, उसे आरएसएस जैसे ज़मीनी सिपाहियों का साथ चाहिए

आरएसएस अपने स्वयंसेवकों को राहत शिविर संचालित करने की ट्रेनिंग नहीं देता है. फिर भी स्वयंसेवक कोविड-19 संबंधी राहत कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं.

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भारत 21 दिवसीय लॉकडाउन को शीघ्र ही पूरा करने वाला है और पूरी संभावना है कि नरेंद्र मोदी सरकार इसे आगे बढ़ाएगी, ख़ासकर कोविड-19 के मामलों में बढ़ोत्तरी जारी रहने के कारण. कई राज्यों ने भी लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की मांग की है.

लॉकडाउन ने हमारे सरकारी तंत्र और क्षमताओं की पूरी परीक्षा ली है. बात आवश्यक वस्तुओं की अबाध आपूर्ति की हो, प्रवासियों के संकट से निपटने की या चिकित्सा तंत्र पर बढ़े बोझ को संभालने की.

यदि लॉकडाउन बढ़ाया गया तो सरकारी तंत्र की चुनौतियां बढ़ जाएंगी और निश्चय ही उसे अतिरिक्त समर्थन की ज़रूरत होगी, विशेष कर सामाजिक सहायता संस्थाओं से.

लॉकडाउन की सर्वाधिक कठिन चुनौतियां हैं इसका प्रभावी कार्यान्वयन तथा गरीबों, ज़रूरतमंदों और उन लोगों की सुध लिया जाना जिनके पास आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की सुरक्षा नहीं है. और यही वो पहलू है जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अन्य सामाजिक संगठन अहम भूमिका निभा सकते हैं.

यदि अन्य स्वयंसेवी संगठन जैसे कांग्रेस सेवा दल, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और विभिन्न गैर-सरकारी संस्थाएं आरएसएस का अनुकरण कर सकें, तो महामारी से निपटने में सरकार का काम बहुत आसान हो जाएगा, जो कि किसी युद्ध से कम नहीं है.


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स्वयंसेवकों की सक्रियता

खतरनाक कोरोनावायरस ने इतनी तेज़ी से पांव पसारे कि सरकार और जनता उसके लिए तैयार नहीं दिखी. मौजूदा महामारी के अभूतपूर्व होने के कारण इससे निपटने का कोई परखा हुआ तरीका भी नहीं है, और इसका अकस्मात फैलाव बहुत ही व्यापक है. लेकिन पहले ही की तरह, इस संकट के समय भी आरएसएस के स्वयंसेवकों ने लगभग पूरे देशभर में राहत शिविर आयोजित किए हैं.

अपनी प्रकृति के अनुरूप आरएसएस संकट के दौरान सहायता संबंधी अपनी गतिविधियों को लेकर ज़्यादा प्रचार-प्रसार नहीं कर रहा है. लेकिन नेक जनता और कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आरएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा स्थानीय अधिकारियों की मदद से किए जा रहे अथक प्रयासों का उल्लेख कर रहे हैं.

आरएसएस राहत शिविर संचालित करने के बारे में नियमित प्रशिक्षण आयोजित नहीं करता है. फिर भी इस बात की असंख्य मिसालें हैं कि कैसे आरएसएस के स्वयंसेवक कुछ ही समय में राहत कार्यों के लिए सक्रिय हो जाते हैं. इस स्वैच्छिक प्रतिक्रिया की एक बड़ी वजह है स्वगृहीत अनुशासन, समाज के साथ भावनात्मक जुड़ाव, समतावादी दृष्टिकोण तथा एकता, भाईचारे एवं सामाजिक जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के प्रयासों का आरएसएस के कार्यों की बुनियाद होना.

त्वरित प्रतिक्रिया

जैसे ही वुहान से मारक वायरस के निकलने की खबर दिल्ली में सत्ता के गलियारों में पहुंची, आरएसएस ने अपनी महत्वपूर्ण वार्षिक बैठक को रद्द करने का फैसला किया. संघ ने देशभर में अपनी सभी इकाइयों को मोदी सरकार द्वारा की जाने वाली घोषणाओं की श्रृंखला के लिए तैयार रहने तथा केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों से पूर्ण सहयोग करने के निर्देश दिए.

संगठन की गहन संरचना तथा बिना देरी किए स्वयंसेवकों की अत्यधिक समर्पित टीम को सक्रिय करने की इसकी सराहनीय क्षमता को देखते हुए, 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा से भी पहले हरकत में आना आरएसएस के लिए मुश्किल नहीं था.

शहरी केंद्रों में काम करने वाले कई सामाजिक संगठनों के साथ-साथ आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय संगठनों, और आरएसएस से जुड़ी संस्थाओं ने भी अपने कैडरों और संसाधनों को परस्पर मिलाने का कार्य किया है, जिससे शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की हर इकाई भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गई है.

पहले की तरह ही इस बार भी, सभी स्तरों पर आरएसएस का अनुभव अपेक्षाओं के अनुरूप रहा है. संगठन में लोगों के अत्यधिक भरोसे तथा सहजता और विश्वास के साथ स्थानीय अधिकारियों से मिले त्वरित सहयोग को हर स्तर पर महसूस किया गया है.

स्थगित हुई शाखाएं

ये बात सबको पता है कि आरएसएस कभी-कभार ही अपनी दैनिक गतिविधि या शाखा को स्थगित करता है. आरएसएस की 1925 में स्थापना के बाद से ही शाखा इसकी शक्ति का स्रोत रही है. महात्मा गांधी की हत्या के बाद, सिर्फ एक बार, 13 दिनों के लिए शाखाओं का आयोजन स्थगित किया गया था. कुख्यात आपातकाल के दौरान दैनिक सभाएं संभव नहीं थीं क्योंकि संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन शाखाएं किसी न किसी रूप में आयोजित की जाती रहीं, जैसे मंदिरों में या सार्वजनिक स्थानों पर बैठकों के रूप में.

आरएसस देशभर में करीब 30 प्रशिक्षण शिविर लगाता है, जिनमें एक लाख से भी अधिक स्वयंसेवक भाग लेते हैं. लेकिन सोशल डिस्टैंसिंग संबंधी सरकार के निर्देशों के मद्देनज़र इस साल इन शिविरों के कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं.


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महामारी के मोर्चे पर सक्रिय लोगों को सतर्क रहने की ज़रूरत

राहत कार्यों में जुटे स्वयंसेवकों को भी सतर्कता बरतने की ज़रूरत है क्योंकि महामारी के मोर्चे पर तैनात लोगों के कोरोनावायरस से संक्रमित होने के अनेक मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी शामिल हैं. टेस्ट किटों की भारी कमी के कारण बिना किसी क्रम के परीक्षण किए जाने की खबरें मिल रही हैं. हाल में यात्रा कर चुके व्यक्तियों में संभावित संक्रमण की जांच के लिए भी परीक्षण किए जा रहे हैं.

ऐसी स्थिति में इन स्वयंसेवकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना कठिन होगा क्योंकि उन्हें भी बड़ी संख्या में लोगों के संपर्क में आना पड़ता है. संक्रमण के जोखिम को देखते हुए सभी सामाजिक संगठनों को ज़रूरी ऐहतियात बरतने होंगे और स्वयंसेवकों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था करनी होगी.

(लेखक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य और ऑर्गनाइज़र पत्रिका के पूर्व संपादक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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