हिंसा के लिए मुख्य रूप से केवल व्हाट्सएप ही ज़िम्मेदार नहीं है और न ही इसे अपने उपयोगकर्ताओं की आजादी को कम करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए।
व्हाट्सएप केंद्र सरकार को दिए गए जवाब में बहुत सी चीजें कर रहा है जैसे: अग्रेषित संदेशों को टैग करना, “एक बार में पांच चैट की न्यूनतम सीमा” का परीक्षण करना, “मीडिया संदेशों के बगल में क्विक फॉरवर्ड बटन” को हटा देना और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना। यह 2019 में आगामी आम चुनावों से पहले भारत में अपने “फर्जी समाचार सत्यापन मॉडल” को पेश करने की भी योजना बना रहा है। इसने गलत इरादे से दी गई जानकारी के फैलाव को रोकने के तरीकों की पहचान के लिए सार्वजनिक प्रतिस्पर्धा की भी घोषणा की है।
फिर भी, हिंसक लिंच मॉब्स को रोकने और दंडित करने के सरकार के अपने स्वयं के किन्ही भी उपायों की अनुपस्थिति में, एक विशिष्ट संचार चैनल के खिलाफ जाने का सरकार का दृढ़ संकल्प निरर्थक प्रयत्न का रूप ले सकता है।
संकल्पनात्मक रूप से, सभी दोष व्हाट्सएप पर मढ़ना तो ऐसा है जैसे अपराधियों को अपराध के लिए बस पर सवारी करने की इजाजत देने के लिए बस सेवा प्रदाताओं को दोषी ठहरना। ऐसा नहीं है कि अपराध को रोकने में बस ऑपरेटर की कोई भूमिका नहीं है; लेकिन यह पूरी तरह से या मुख्य रूप से बस ऑपरेटर की गलती नहीं है कि अपराधियों ने उनकी बसों की सवारी ऐसे कार्यों के लिए की है।
अब, यह तर्क देना उचित है कि बस ऑपरेटरों को संदिग्ध यात्रियों की रिपोर्ट करनी चाहिए और अपराधियों की गतिविधियों को रोकना उनका कर्तव्य है, यदि उन्हें ऐसी गतिविधियों की जानकारी हो जाती है।
हालांकि, बस ऑपरेटरों को, यात्रियों से उनके आपराधिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करने की मांग करने, या यात्रा के उद्देश्य को जानने की मांग करने या सीट के नीचे माइक्रोफोन छुपा कर यह पता लगाने कि कहीं यात्री किसी घातक अपराध की योजना तो नहीं बना रहा हैं, का अधिकार देना मानव स्वतंत्रता की ओर एक अपराधिक कदम है।
हालांकि सरकार के लिए यह आवश्यकता तर्कसंगत है कि वह व्हाट्सएप पर फैलाई जाने वाली दुर्भावनापूर्ण खबरों के खिलाफ कार्य करे जिसके परिणामस्वरूप हिंसा होती है, हमें स्पष्ट रूप से यह बात पता होनी चाहिए कि व्हाट्सएप हिंसा के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार नहीं है, और इसे अपने उपयोगकर्ताओं की स्वतंत्रता को कम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। जैसा कि मैंने कहीं और भी लिखा है, अगर केंद्र और राज्य सरकारें अपराधियों को दंडित करने के लिए अनुकरणीय कार्रवाई करती हैं और नेता इस बर्बर प्रवृत्ति के खिलाफ बोलने के लिए अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा का उपयोग करते हैं तो इन हत्याओं को आसानी से रोका जा सकता है।
यह हुई एक बात। लेकिन इसमें व्हाट्सएप क्या कर सकता है?
शायद इस सप्ताह घोषित किए गए कुछ उपाय प्रभावी साबित होंगे। लेकिन यहां एक साधारण सी बात प्रस्तुत करी गयी है कि व्हाट्सएप इसमें क्या कर सकता है, और कुछ ऐसा जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईटीई) को लागू करने के लिए सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की आवश्यकता हो सकती है। जैसे कि सिगरेट के पैकेट पर वैधानिक चेतावनी तथा कुछ प्रकार के टेलीविजन कार्यक्रमों पर वैधानिक चेतावनियों की तरह, उपयोगकर्ताओं की संदेश धाराओं में अनुकूलित प्रासंगिक चेतावनियां डाली जाएँ।
दि इकॉनोमिस्ट के अपने विज्ञापन अनुभाग में एक नोटिस शामिल होता है, जो पाठकों को उन पृष्ठों पर प्रदर्शित विज्ञापनों के बारे में अपनी जाँच करने के लिए चेतावनी देता है। व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और इनकी तरह अन्य चीजें समरूप और बेहतर कार्य कर सकती हैं। उपयोगकर्ताओं के उपयोग किए जाने वाले पैटर्न, प्रमुख भाषा और मीडिया प्रकार के आधार पर डिस्क्लेमर का प्रदर्शन किया जा सकता है।
यद्यपि सामान्य डिजिटल साक्षरता आवश्यक है, एक प्रासंगिक उपयोगकर्ता को विश्वास करने से पहले सत्यापित कर लेने का बढ़ावा देना, अगला कदम उठाने से पहले विवेकाधिकार का प्रयोग करना और लागू कानूनों के प्रति सावधान रहने से दुर्भावनापूर्ण अफवाहों को फैलाने से रोका जा सकता है। उदाहरण के लिए, संदेश के प्रेषक और उनके प्राप्तकर्ता बार-बार और तंग करने वाले डिस्क्लेमर प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा उसी स्थान और समय पर किया जाता है जहाँ तीव्रता का अनुमानित जोखिम हो।
चूंकि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को केवल मेटा डेटा, जो इसके पास पहले से ही है, का उपयोग करने की आवश्यकता है, इसे न तो अपने उपयोगकर्ताओं के संदेशों की सामग्री को जानने की और न ही अपनी सुविधाओं को अंधाधुंध रूप से प्रतिबंधित करने की जरूरत है। वास्तव में, जो डेटा की मात्रा इनके पास है उसके बल पर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के साथ एक अनुमानित मॉडल विकसित करना अपेक्षाकृत आसान है जिसका उपयोग उच्च जोखिम स्थितियों की पहचान के लिए तथा उन्हें चेतावनी संदेश देकर रोकने के लिए किया जा सकता है।
सबसे अच्छी बात यह है कि ऐसे संदेश केवल कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में ही उपयोगी नहीं हैं बल्कि एक अच्छी संपूर्ण संचार स्वच्छता को बढ़ावा भी देते हैं।
आदर्श रूप से, व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म स्वेच्छा से इस तरह की सुविधा को स्वयं या संयुक्त रूप से उद्योग स्व-विनियमन के रूप में कार्यान्वित कर सकते हैं। यह सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि प्लेटफॉर्मों के नीति उद्देश्यों के प्रति संवेदनशील होने के बाद, उनके पास सुधार करने तथा और समस्या का समाधान करने के लिए सर्वोत्तम तरीकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन और लचीलापन दोनों होंगे। यही कारण है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को कुछ ऐसे लोगों को साथ लाने के लिए अपनी धीमी तथा संयोजी शक्ति का उपयोग करना चाहिए और उन्हें स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
यदि ऐसा दृष्टिकोण काम नहीं करता है, तो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को नियमित और प्रासंगिक वैधानिक चेतावनियों को सम्मिलित करने के लिए सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की आवश्यकता हो सकती है। इसका स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं की तरह प्रभावशाली होना असंभव है (क्योंकि यह केवल अनुपालन खेल बनकर रह जाएगा) लेकिन तब भी स्थिति में सुधार होगा।
परिणाम यह है कि सामाजिक समस्या से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए सरकार और निजी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के बीच सहायक संबंध विकसित करना संभव है। यह सरकार के विश्वसनीय इरादों का विस्तार करने का काम करेगा। यह समाधानों की तलाश में काम करेगा, सिर्फ बलि के बकरे ही नहीं तलाशेगा।
नितिन पाई तक्षशिला इंस्टीट्यूशन के निदेशक हैं, जो सार्वजनिक नीति में अनुसंधान और शिक्षा का एक स्वतंत्र केंद्र है।
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