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Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतमोदी सरकार के पास डिसइन्वेस्टमेंट से कतराने के बहाने खत्म हो चुके हैं, शेयर बाज़ार भी इसके लिए तैयार दिख रहा है

मोदी सरकार के पास डिसइन्वेस्टमेंट से कतराने के बहाने खत्म हो चुके हैं, शेयर बाज़ार भी इसके लिए तैयार दिख रहा है

कोविड-19 के कारण मोदी सरकार इस साल उम्मीद के मुताबिक कमाई शायद नहीं कर पाएगी, ऐसे में 2.1 लाख करोड़ रुपये मूल्य के विनिवेश पर सुस्ती बरतने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता.

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नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष 2020-21 में जीवन बीमा निगम (एलआईसी) में आंशिक विनिवेश समेत दूसरे विनिवेशों से 2.1 लाख करोड़ रुपये जुटा लेने की योजना बनाई थी. लेकिन इस वित्त वर्ष के पांचवें महीने में आ जाने के बावजूद इस मोर्चे पर कोई ठोस गतिविधि नहीं दिख रही है. यह चिंता का कारण है.

आमतौर पर यही होता रहा है कि जब सरकार विनिवेश में सुस्त होती है तो इसके लिए वह शेयर बाज़ार की बदहाली को दोषी ठहराती है. लेकिन मोदी सरकार के पास विनिवेश में देर करने के जाने-पहचाने बहाने भी खत्म हो चुके हैं. शेयर बाज़ार मार्च के अपने निम्न स्तर से ऊपर उठ चुका है और फिलहाल अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है. इसलिए आज से बेहतर समय नहीं हो सकता.


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शेयर बाज़ार है तैयार

2.1 लाख करोड़ का विनिवेश उस कुल राशि का करीब 9.4 प्रतिशत है, जो मोदी सरकार इस साल कमाने की उम्मीद कर रही है. सरकार ने जब फरवरी में बजट प्रस्तुत किया था तब कोरोनावायरस की महामारी का नकारात्मक प्रभाव सामने नहीं आया था. सो, 2.1 लाख करोड़ वाली योजना इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि सरकार करों से जितनी कमाई करने की उम्मीद कर रही थी उतनी नहीं कर सकती है.

बेशक, किसी भी विक्रेता की तरह सरकार जो बेचना चाह रही है उसका अधिकतम दाम पाने की कोशिश में है. शेयर बाज़ार मार्च के अंत में गिर तो गया था मगर अब सुधर भी गया है. शेयरों के मूल्यांकन फिलहाल सबसे ऊंचे स्तर पर हैं. निफ्टी-50 के सूचकांक का कीमत-आमदनी अनुपात 21 अगस्त को 32.08 अंक पर था. यह दूसरा सबसे ऊंचा स्तर था. सबसे ऊंचा स्तर 19 अगस्त को 32.09 पर था. इसका क्या अर्थ है? यही कि शेयर बाज़ार में पैसे लगाने वाले लोग निफ्टी-50 के शेयरों के लिए दिए जाने वाले हरेक रुपये के लिए 32 रुपये देने को तैयार हैं. यह ऊंचा स्तर 2000 में शेयर बाज़ार में भारी उछाल के दौरान भी नहीं देखा गया था और न 2008 में शेयर बाज़ार में भारी गिरावट के दौरान. इसलिए, यह विनिवेश प्रक्रिया को शुरू करने का सटीक समय है.


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यही समय है

इसमें शक नहीं कि मौजूदा शेयर मूल्य कंपनियों की अनुमानित भावी आय का संकेत नहीं देते क्योंकि उस पर कोरोना का असर पड़ेगा ही. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी हाल में दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि शेयर बाज़ार की मौजूदा स्थिति और अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति में कोई तालमेल नहीं है. उन्होंने कहा कि ‘आगे इसमें संशोधन जरूर होगा.’

इसे हम विनिवेश के लिहाज से कैसे देखें? मुद्दा यह है कि शेयर बाज़ार आज जिस ऊंचाई पर है उसे अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व सही नहीं ठहराते इसलिए स्थिति जल्दी ही बदलेगी और शेयर बाज़ार नीचे जाएगा.

इसलिए मोदी सरकार के लिए समझदारी की बात यही होगी कि वह शेयर बाज़ार के मौजूदा हालात का फायदा उठाते हुए सार्वजनिक उपक्रमों में अपने शेयरों का विनिवेश करे. बेशक यह पूरी गारंटी के साथ नहीं कहा जा सकता. दुनियाभर में और भारत में भी जिस तरह मुद्रा का प्रसार हो रहा है उसके कारण शेयर बाज़ार अभी और ऊपर जा सकता है. लेकिन असली बात यह है कि हम कुछ कह नहीं सकते और यह विनिवेश शुरू करने के लिए अच्छा समय हो सकता है.


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विनिवेश में अड़चनें

यहां एक बात यह भी कही जा सकती है कि विनिवेश के मोर्चे पर सरकार को कुछ नया सोचने की जरूरत है. सार्वजनिक उपक्रमों में अपने शेयरों को बेचने के अलावा उसे इन उपक्रमों और सरकारी विभागों के पास जो जमीन है उसे भी बेचने के बारे में सोचना चाहिए. इस बारे में बातें तो बहुत हुई हैं मगर काम कम ही हुआ है.

यहां यह बताया जा सकता है कि चीन के कई शहरों में सरकारों के लिए जमीन की बिक्री राजस्व का बड़ा स्रोत है.

मोदी सरकार जिस 2.1 लाख करोड़ की उम्मीद कर रही है उसमें से 90,000 करोड़ उसे सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं (एलआईसी) में विनिवेश से आने की अपेक्षा है. लेकिन एलआईसी का ‘आईपीओ’ लाने से पहले कई कानूनी अड़चनों को दूर करना होगा. इसमें समय लगेगा.

अच्छी खबर यह है कि सरकार ने पिछले दिनों एलआईसी के लिए आईपीओ-पूर्व लेन-देन की सलाह देने के लिए डिलॉइट और एसबीआई कैप्स को सलाहकार नियुक्त करने की मंजूरी दे दी है. एलआईसी का आईपीओ भारतीय शेयर बाज़ार का सबसे बड़ा आईपीओ होने जा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि देश की इस सबसे बड़ी बीमा कंपनी का मूल्य 9-10 लाख करोड़ आंका जा सकता है. अब देखना यह है कि मोदी सरकार की सुस्त चाल के मद्देनज़र 2020-21 में यह हो पाता है या नहीं.


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सरकार के रत्न

दरअसल, जब सार्वजनिक क्षेत्र में निजीकरण की बात आती है तब नौकरशाह से लेकर मंत्री तक हिचकने लगते हैं. इसके पीछे वजह भी है. इससे उन्हें होने वाले लाभ जो बहुत हैं, अगर किसी मंत्रालय से सार्वजनिक उपक्रम छीन कर उसका निजीकरण कर दिया जाए तो उस मंत्रालय का रुतबा घट जाता है, अपने कब्जे में किसी पीएसयू होने से जो ताकत मिलती है वह खत्म हो जाती है. इसलिए निजीकरण का प्रतिकार किया जाता है. लेकिन इस लाभ को खत्म करने का समय आ गया है, इससे सरकार को आगे भारी मदद मिलेगी.

वर्षों से हर दल के नेता सार्वजनिक उपक्रमों को सरकार के ताज के रत्न बताते रहे हैं. लेकिन यह भी याद रहे कि रत्न गाढ़े वक्त में काम आते हैं और वह वक्त आ गया है जब सार्वजनिक उपक्रम पैसे की कमी से परेशान सरकार की मदद कर सकते हैं.

(लेखक ने ‘बैड मनी’ किताब लिखी है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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