भारतीय अर्थव्यवस्था लड़खड़ाते हुए पटरी पर लौटने लगी थी और लोग बेकार पड़े मास्क तथा सेनेटाइजर को फेंकने लगे थे कि तभी कोविड महामारी की वापसी की आशंका सुर्खियों में तैरने लगी. कई विदेशी सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा कोरोनावायरस और टीकाकरण कार्यक्रम से निपटने के भारत के ट्रैक रिकॉर्ड की सराहना की गई. सही है कि कोविन पोर्टल बेहतरीन और मार्के की टेक्नोलॉजी थी, जिसने बड़े पैमाने पर टीकाकरण को संभव बनाया, बल्कि आज के शुरुआती रिकॉर्ड को भी रखा और करोड़ों के कंप्यूटर या मोबाइल पर बस कुछेक क्लिक से यह मौजूद हो जाता है.
जहां तक लॉकडाउन और कोविड-19 की रोकथाम का मामला है, सरकार और देश के लोग दोनों एक ही तरफ थे और कम से कम नुकसान के साथ महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ी. जानमाल का नुकसान दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता थी जिसे कोई नकार या अनदेखा नहीं कर सकता. फिर भी, सब समेटकर लोग और संस्थाएं तेजी से सामान्य स्थिति में लौटने लगीं थीं.
कुछ चीनी शहरों में ओमिक्रॉन सब-वैरिएंट बीएफ.7 के कहर बरपाने की खबर ने अतीत के बुरे सपने को दोबारा से ताज़ा कर दिया है. चीनी अर्थव्यवस्था में संकट की खबर आते ही भारत में शेयर बाज़ार फिसल गए. महामारी के फिर से उभरने का डर और लॉकडाउन की आशंका निवेशकों को डरा रही है, इसके अलावा अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी से उतर सकती है. हालांकि, बाज़ार में दहशत है, लेकिन लोगों में फैले डर से ज्यादा बड़ी नहीं है. महामारी के चरम दौर में, लोग ऑक्सीजन सिलेंडरों के लिए भागते फिर रहे थे, नतीजतन, डर और लालच ने जमाखोरी को बढ़ावा दिया और भारी किल्लत का सामना करना पड़ा. दुष्प्रचार और अफवाहें स्वास्थ्य के लिए शायद वायरस से भी बड़ा खतरा हैं.
नए वैरिएंट के बारे में प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, वायरस पिछले वैरिएंट के मुकाबले कम घातक नज़र आ रहा है. फिर भी सरकार को सतर्क रहने और नई स्थिति से निपटने के दौरान लोगों को अपने साथ लेकर चलने की ज़रूरत है.
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सरकार क्या करे
पहले तो केंद्र सरकार को लोगों के साथ संवाद करने और लोगों को नए वैरिएंट के बारे में जानकारी देने के लिए बाकायदा कई तरह की व्यवस्थाएं बनानी चाहिए. इससे अधिकारियों को चिकित्सा संबंधी आपात स्थिति से निपटने में मदद मिलेगी और अस्पतालों में भगदड़ की स्थिति नहीं बनेगी. कोविड अस्पतालों, दवाओं और ऑक्सीजन की कमी की वजह कोविड-19 के आखिरी चरण में कई मौतें हुईं, जिनसे बचा जा सकता था.
कई अस्थायी कोविड-उपचार अस्पताल स्थापित किए गए थे और हालात से निपटने में उल्लेखनीय भूमिका भी निभाई. लेकिन उस दौरान स्वास्थ्य संबंधी दूसरी आपात स्थितियों को नज़रअंदाज किया गया या टाल दिया गया और कभी उन पर गौर भी नहीं किया गया. कई देशों में सामान्य स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में व्यवधान देखा गया, भारत कोई अपवाद नहीं था.
उस कड़वे सबक के बाद कुछ निजी अस्पताल महामारी के मामलों के इलाज के लिए विशेष वार्ड खोलने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए और अधिक सुविधाएं तैयार करनी चाहिए. उपयुक्त टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल, गैर-संपर्क इलाज की व्यवस्था और शारीरिक तथा मानसिक आघात का इलाज ऐसे मामले हैं जिन पर सरकार को फौरन गौर करना चाहिए.
स्वास्थ्य सेवा जिस कदर राज्य का विषय है, उसी पैमाने पर केंद्र का मामला भी है और इसमें काफी हद तक निजी संस्थाएं भी शामिल हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने महामारी को लेकर एडवाइजरी जारी की है. वह तैयारियों की निगरानी के लिए सर्वदलीय निगरानी समिति का गठन भी कर सकता है. केंद्र ने कांग्रेस से कहा है कि अगर कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर पाना संभव न हो तो वह भारत जोड़ो यात्रा रोक दें. दुर्भाग्य से, कांग्रेस इसे यात्रा को रोकने के लिए बीजेपी की राजनैतिक चाल की तरह देख रही है, ताकि उसके जरिए मिल रही पार्टी की लोकप्रियता पर अंकुश लगाया जा सके. सर्वदलीय समिति शायद इस संवेदनशील मुद्दे से निपट सकती है और इसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से अलग कर सकती है. महामारी से निपटना एक गंभीर मुद्दा है और इसे नेताओं के बजाय विशेषज्ञों के जिम्मे छोड़ देना चाहिए.
फौरन गौर करने का दूसरा मामला यह है कि वायरस के प्रसार की रोकथाम और पीड़ितों के इलाज के लिए टीकों और उचित दवाओं का उत्पादन हो और इलाज की मानक विधि तैयार की जाए. कोविड-19 महामारी के दौरान, दवा बनाने का कच्चा माल या सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) के उत्पादन को सुविधाजनक बनाने और चीन पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार जुलाई 2020 में पीएलआई योजना लाई. चीन एपीआई उत्पादन में भारत से बहुत आगे है, लेकिन सरकार पीएलआई योजना की घोषणा करके ही एपीआई के स्वदेशी उत्पादन की कमी से हाथ नहीं झाड़ सकती है.
अब तक, संबंधित मंत्रालयों को उन उद्योगों की जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए थी जिन्हें तमाम बाधाओं को दूर करके मंजूरी दी गई थी. उद्योगों की भी बड़ी जिम्मेदारी है कि वे अपनी समस्याओं से सरकार को अवगत कराएं और उद्योग अनुकूल नीतियां बनाने में मदद करें, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर के बुनियादी ढांचे, पूंजी की उपलब्धता और उपभोक्ता-अनुकूल मूल्य निर्धारण तंत्र विकसित हो सके.
महामारी लोगों, सरकारों और उद्योग को ‘महामारी-मुक्त’ व्यवस्था तैयार करने की मोहलत देने का इंतज़ार नहीं करती है. यह त्योहारों, जमावड़ोंं और नए साल के जश्न के साथ चुपके-से आ धमकेगी. तैयारी, रोकथाम और सतर्कता ही अहम हैं. आरोप-प्रत्यारोप के शोरगुल में लोग ही खुद को मायूस महसूस करेंगे.
शेषाद्रि चारी ‘ऑर्गनाइजर’ के पूर्व संपादक हैं। उनका ट्विटर हैंडल @seshadrichari है. व्यक्त विचार निजी हैं.
(अनुवादः हरिमोहन मिश्रा | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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