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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतमोदी और शाह को चुनाव जीतने में भले महारत हासिल हो, मगर उनका काम राजनाथ और गडकरी के बिना चल नहीं सकता

मोदी और शाह को चुनाव जीतने में भले महारत हासिल हो, मगर उनका काम राजनाथ और गडकरी के बिना चल नहीं सकता

कृषि क़ानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों को शांत करने की मोदी सरकार की रणनीति पर्दे के पीछे से तैयार करने में जुटे हैं राजनाथ सिंह.

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नरेंद्र मोदी और अमित शाह को यह तो बखूबी पता है कि चुनाव कैसे जीता जाता है लेकिन राजनीति केवल चुनावी जंग जीतने की कला नहीं है, उसमें राजकाज चलाने की महारत भी जरूरी है. और मोदी-शाह को अभी इसमें महारत हासिल करना बाकी है. यही वजह है कि यह ताकतवर जोड़ी अपने सबसे अनुभवी और जड़ों से जुड़े सहयोगियों के बिना काम नहीं चला सकती, खासकर तब जब वे किसी संकट से घिर गए हों. ये सहयोगी हैं— केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी. किसानों का आंदोलन तीसरे सप्ताह में प्रवेश कर रहा है लेकिन इसका समाधान अभी दूर ही नज़र आ रहा है, हालांकि मोदी सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता के कई दौर चल चुके हैं.

ऐसे कई कारण हैं जो राजनाथ और गडकरी को केंद्र की भाजपा सरकार के लिए लगभग अपरिहार्य बनाते हैं. प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह को इसका पूरा एहसास भी है. एनडीए सरकार के कमजोर मंत्रियों वाले मंत्रिमंडल के लिए राजनाथ और गडकरी अनुभव का खजाना जुटाते हैं क्योंकि ये दोनों तपे-तपाए, जमीन से जुड़े, राजनीति की गहरी समझ रखने वाले, कर्मठ नेता तो हैं ही, मिलनसार भी हैं और सभी दलों में सम्मान भी रखते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तमाम अफवाहों के बावजूद ये दोनों मोदी-शाह के ‘तख्तापलट’ की कोई कोशिश करने की न तो स्थिति में हैं और न शायद इसकी इच्छा रखते हैं. इसलिए अस्थिरता का कोई खतरा भी नहीं पैदा करते.

राजनाथ हालांकि रक्षा मंत्री हैं मगर किसान संकट से निबटने में उनसे मदद ली जा रही है और वे कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ मिलकर इस मामले में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं. यह पहला मौका नहीं है जब प्रशासनिक संकट में राजनाथ ने आगे बढ़कर मोदी-शाह की जोड़ी की मदद की है.

इस बीच, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी भी हर मौसम और मामले में काम के आदमी की भूमिका निभाते रहे हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल में वे ही शायद ऐसे मंत्री हैं, जो अपने क्षेत्र में भी विशेषज्ञता रखते हैं और अपने आलोचकों का दिल जीतने का राजनीतिक कौशल भी रखते हैं. मंत्रालय में उनके अधिकारों में भले कटौती कर दी गई हो, उनकी राजनीतिक अपरिहार्यता बदस्तूर कायम है.


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मोदी-शाह ही काफी क्यों नहीं हैं

मोदी और शाह को पता है कि उनकी राजनीति, उनके चुनावों, और भारतीय मतदाताओं को रिझाने की उनकी कला का लोहा सब मानते हैं. लोकसभा के चुनाव हों या विधानसभाओं के, वे सबमें कामयाब रहे हैं. लेकिन, गुजरात में लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद शासन की कला पर उन्हें पूरी पकड़ बनाना बाकी है. लोकतंत्र में सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए संवाद, विरोधियों और आलोचकों से संपर्क रखना और उनमें आपसे बातचीत करने का भरोसा पैदा करना बहुत जरूरी होता है.

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लेकिन मोदी और शाह ध्रुवीकरण पैदा करने वाली शख्सियतें हैं. विरोधियों से संपर्क करना और उन्हें शांत करना उनकी फितरत नहीं है. उनके अधिकतर आलोचकों और विरोधियों को उनके साथ बैठकर मतभेदों को सुलझाना सुहाता नहीं है. नीति निर्धारण, क्रियान्वयन, और कड़े फैसलों के नतीजों को संभालना ही सत्ता में बने रहने की कुंजी है. लेकिन मोदी और शाह राजनीति में इतने रंगे हुए हैं कि उनकी नज़र हमेशा इसी पर टिकी रहती है कि चुनावी फायदा किस बात से मिलेगा, और वे सभी पहलुओं को खुद ही कुशलता से संभालते हैं.

मोदी को मतदाताओं का पूरा समर्थन हासिल है. वे 2013 से राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हुए हैं और उसके बाद से चुनावों की व्यापक खबरें देते रहने के कारण मैं कह सकती हूं कि वे कई गलतियां करके भी पार पा सकते हैं, उदाहरण के लिए नोटबंदी. लेकिन यह किसान आंदोलन यही संकेत दे रहा है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारा हमेशा कारगर नहीं हो सकता.

जिन मुद्दों पर मोदी सरकार और विपक्ष ने आमने-सामने बैठकर बात नहीं की है उनकी सूची लंबी है—अनुच्छेद 370 को रद्द करना, तीन तलाक कानून, नागरिकता कानून में संशोधन, जीएसटी के अमल पर निरंतर विवाद, एलएसी पर चीनी घुसपैठ का मसला, और कोरोना महामारी से निबटने के सरकारी उपाय. असहमति अलग बात है, और कटुता बिलकुल अलग बात है. मोदी और शाह उन लोगों से बात करने में विश्वास नहीं रखते जो उनसे सहमत नहीं हैं. इसलिए विपक्ष और दूसरे आलोचकों ने फैसला कर लिया हैं कि उनसे बात करने का कोई मतलब नहीं है.

इसलिए, आज ऐसे अनुभवी नेताओं की एक टीम की जरूरत है जिसे सभी दलों का समर्थन हासिल हो और जो ऐसी विकट स्थितियों में कारगर भूमिका निभा सके. संकट और आलोचना से निबटने के अलावा सरकार को ‘काम करने’ पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है. उसे ऐसे मंत्रियों की जरूरत होती है जिन्हें अपने महकमे की पूरी समझ हो और जो काम करवाने में कुशल हों. केवल मोदी और शाह न तो हर मर्ज के जानकार हो सकते हैं, न शासन से जुड़े हर मर्ज का इलाज जान सकते हैं. लेकिन आज की भाजपा के पास मानव संसाधन का जो निम्न स्तर है वह भी उसके लिए एक गंभीर चुनौती है.

राजनाथ क्यों

किसान तीन नये कृषि क़ानूनों से नाराज हैं. और इस मसले पर जो राजनीति हो रही है उसने आग में घी डालने का काम किया है. इस आग से जूझने में मोदी-शाह ने राजनाथ की मदद ली है क्योंकि वे किसानों के नेता माने जाते हैं, और तोमर का राजनीतिक कद अपेक्षाकृत छोटा है. वास्तव में, राजनाथ पर्दे के पीछे से काम कर भी रहे थे और विरोध कर रहे किसानों को शांत करने की सरकारी रणनीति तैयार करने में मदद कर रहे थे. अक्तूबर में ही राजनाथ ने ‘किसान का बेटा’ वाली अपनी छवि आगे बढ़ाते हुए किसानों को आश्वस्त किया था कि वे उनके हितों को चोट नहीं पहुंचने देंगे.

इस तरह की मदद देने के लिए राजनाथ कोई पहली बार आगे नहीं आए हैं. विपक्ष जब लद्दाख में चीन के साथ टक्कर को लेकर, और खासकर इस मसले पर प्रधानमंत्री के भ्रामक बयान को लेकर सरकार के पीछे पड़ा था, तब संसद के दोनों सदनों में राजनाथ के शांत और संतुलित मगर मजबूती से दिए गए बयान ने राजनीतिक विरोधियों को शांत किया था और सरकार के एकमत रुख को सामने रखा था. राजनाथ ने विपक्ष और सरकार के सहयोगियों, दोनों के लिए ‘शांतिदूत’ की भूमिका निभाई है. इसने उन्हें मोदी सरकार के लिए अत्यावश्यक बना दिया है.

और, गडकरी क्यों?

राजनाथ के साथी मंत्री नितिन गडकरी महाराष्ट्र में अपनी कामों के कारण ‘हाइवे मैन’ कहे जाते हैं. वे भी राजनाथ किस्म के नेता हैं— मिलनसार, राजनीतिक रूप से चतुर, सक्षम, और अपनी बात बेबाकी से रखने वाले लेकिन किसी को दुश्मन न बनाने वाले. राजनाथ और गडकरी, दोनों ही घोर संघी हैं और संघ के ढांचे में गहरे फिट होते हैं.

गडकरी के पास इस सरकार के सबसे अहम मंत्रालय हैं—‘एमएसएमई’, और सड़क तथा राजमार्ग. मोदी और शाह को ऐसे लोगों की जरूरत है, जो कार्यक्रमों को लागू करवा सकें, लालफ़ीताशाही को नाकाम कर सकें. ‘विकास’ मोदी की राजनीति का मूलमंत्र है और बुनियादी ढांचे का सुधार इसका अहम पहलू है. इसलिए, आश्चर्य नहीं कि कि एक ही ढब के न होने के बावजूद मोदी ने गडकरी में अपना भरोसा बनाए रखा है.

याद कीजिए कि हाल में गडकरी ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) के अधिकारियों को सुस्त कामकाज के लिए किस बुरी तरह फटकारा था. अब आप समझ गए होंगे कि अपने को कामदार कहने वाले और काम करने में गर्व महसूस करने वाले मोदी के लिए गडकरी जैसे मंत्री क्यों महत्वपूर्ण हैं.

मोदी और शाह राजनाथ और गडकरी को अपनी आंतरिक मंडली वालों में भले न गिनते हों लेकिन उन्हें पता है कि संकट में कोई वे किसी और पर भरोसा नहीं कर सकते. अरुण जेटली ऐसे जरूर थे लेकिन उनके जाने के बाद संकटमोचन बनने लायक ज्यादा लोग नहीं हैं. इसलिए भाजपा के पूर्व अध्यक्ष रहे राजनाथ और गडकरी भले ही नेपथ्य में रहें, वे मोदी के लिए अहम हैं.

(यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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