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Saturday, 4 May, 2024
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किसानों की समस्याएं सुलझाने के लिए मोदी सरकार के प्रमुख संकटमोचक बनकर क्यों उभरे हैं राजनाथ सिंह

अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ मिलकर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह बीजेपी के उस नेतृत्व का हिस्सा थे, जिसने कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को किसानों से मिलने से पहले ब्रीफ किया था.

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नई दिल्ली: मंगलवार को विवादास्पद कृषि क़ानूनों पर आंदोलन कर रहे पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ बैठक में जाने से पहले, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को, बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की ओर से हिदायत दी गई.

ऐसे विवादास्पद क़ानूनों पर पहले ही दौर की वार्ता में किसी बड़े नतीजे की अपेक्षा तो नहीं थी, लेकिन जिस बात ने सबका ध्यान आकर्षित किया, वो थी संकट को सुलझाने की कोशिश में राजनाथ सिंह का शरीक होना.

सत्तारूढ़ व्यवस्था के मुख्य रणनीतिकार के नाते शाह और बीजेपी प्रमुख के नाते नड्डा से अपेक्षा थी कि वो मामले की अगुवाई करते हुए, कृषि मंत्री का मार्गदर्शन करेंगे. लेकिन किसानों के संकट को दूर करने की कोशिश में रक्षामंत्री की सहभागिता पर ध्यान आकर्षित हुआ.

ऐसा अक्सर होता नहीं है कि रक्षामंत्री को, किसानों के लिए मध्यस्थता करते हुए देखा जाए. लेकिन जैसा कि राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, जब कोई ‘टकराव की स्थिति’ होती है, तो ये पुराने अंदाज़ के राजनाथ सिंह ही हैं, जो मध्यस्थता का काम हाथ में लेते हैं और ऐसी कई पुरानी मिसालें मौजूद हैं, जो इसका सबूत हैं.

किसानों के तेज़ होते आंदोलन के बीच, अटल बिहारी कैबिनेट में कृषि मंत्री रहे सिंह जो एक किसान के बेटे की अपनी पहचान पर गर्व महसूस करते हैं, एक प्रमुख संकटमोचक के तौर पर उभरे हैं, जो अधिकतर पर्दे के पीछे से काम कर रहे हैं.

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बीजेपी सूत्रों के अनुसार, वरिष्ठ पार्टी नेताओं के साथ मिलकर, सिंह किसानों को लेकर सरकार की रणनीति तैयार करने में लगे हैं.

कृषि बिलों के पारित होने के तुरंत बाद, सिंह ने सभी हितधारकों- किसानों, एक्सपर्ट्स, इंडस्ट्री लीडर्स से संपर्क किया- ये सुनिश्चित करने के लिए कि बिलों को लेकर कोई शंकाएं न हों.

बीजेपी सूत्रों ने कहा कि सिंह ने ऐसी बहुत सी बैठकें, अपने आवास पर तोमर की मौजूदगी में कीं थीं. ख़ुद को किसान के बेटे के तौर पर पेश करते हुए उन्होंने सरकार की स्थिति को दोहराया था.

अक्टूबर में उन्होंने कहा था, ‘एक किसान के बेटे के नाते, मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मोदी सरकार किसानों के हितों के ख़िलाफ कुछ नहीं करेगी’.

बीजेपी सूत्रों ने कहा कि जैसे ही किसानों ने, अपने विरोध प्रदर्शन को उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में शिफ्ट करने की केंद्र सरकार की पेशकश ठुकाई, ये तय किया गया कि सरकार को अपना रवैया नर्म करना चाहिए और किसानों को बिना किसी शर्त के बातचीत के लिए बुलाना चाहिए.

पार्टी सूत्रों ने कहा कि सिंह ने ये सुनिश्चित कराने में एक अहम भूमिका निभाई कि किसानों को बिना किसी शर्त के उनकी बात सुनने का मौक़ा मिले.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ‘वो काफी समय से किसानों और यूनियनों के संपर्क में थे. वो उनकी चिंताओं को समझते हैं, इसलिए ये महसूस किया गया कि उन्हें ही अगली रणनीति बनानी चाहिए, जिसे अंतिम स्वीकृति ख़ुद प्रधानमंत्री से मिलेगी’.

नेता ने आगे कहा, ‘वो पार्टी में दूसरे सबसे वरिष्ठ नेता हैं. पहले अरुण जेटली जी संकटमोचक का काम करते थे लेकिन धीरे-धीरे वो काम सिंह के हाथों में आ रहा है, भले ही वो अलग ढंग से हों. सिंह की सबसे अधिक रुचि ऐसे मुद्दों में रहती है, जो उनके दिल के क़रीब हैं, जैसे कि किसानों का हित. सिंह हमेशा से एक किसान का बेटा होने का दावा करते आए हैं, और ख़ुद को अंदर से एक किसान के रूप में ही देखते हैं. ये बिल्कुल स्वाभाविक है कि गतिरोध को दूर करने के लिए, वो इन बैठकों का हिस्सा रहे हैं’.

एक दूसरे वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘एक नेता होने के नाते उन्हें ज़मीन से जुड़ा माना जाता है, जिनके पास जन-साधारण की राजनीति और ज़मीनी जुड़ाव का अनुभव है. पहले वो कृषि मंत्री थे, इसलिए किसानों के समक्ष सरकार का रुख़ रखने के लिए वो सबसे सही व्यक्ति हैं’.

पार्टी नेताओं ने ये भी कहा कि पहले भी, किसानों के मुद्दों में शामिल रहने के कारण, वो किसान संकट को दूर करने में आगे आ गए हैं.

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा, ‘उन्होंने अटल बिहारी वाजपेई सरकार में, बतौर कृषि मंत्री काम किया था. वो काफी समय से किसान राजनीति और आंदोलन से जुड़े रहे हैं. उन्होंने हमेशा किसान समूहों से अच्छा संवाद बनाए रखा है, और उनके साथ क़रीबी रिश्ते रखे हैं. वो नियमित रूप से उनसे बातचीत करते रहे हैं, इसलिए इस मामले में अंतर्दृष्टि रखते हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अमित शाह जी और राजनाथ जी दोनों, बातचीत में शामिल हैं. सिंह दूसरे सबसे वरिष्ठ मंत्री हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि वो इन वार्ताओं का हिस्सा हैं, जो काफी अहम हैं’.

अतीत में भी संकटमोचक रहे

सिंह वाजपेई-आडवाणी दौर के उन गिने-चुने नेताओं में हैं, जो मोदी सरकार में भी एक शीर्ष हैसियत में बने हुए हैं.

कृषि संकट के अलावा, और भी कई उदाहरण रहे हैं जहां सिंह ने पार्टी और सरकार दोनों के लिए, एक स्तंभ का काम किया है.

ऐसा भी पहली बार नहीं है कि सिंह एक ‘पीस-मेकर’ के रूप में सामने आए हैं. एनडीए सहयोगियों के साथ डील करने में भी सिंह एक संकटमोचक बनकर उभरे थे.

जैसे ही बिहार चुनावों के नतीजे घोषित हुए और बीजेपी जेडी(यू) से आगे निकलकर प्रमुख भूमिका में आई तो बहुत से पार्टी नेता इस बात से नाराज़ थे कि बीजेपी चिराग पासवान को लेकर ख़ामोश रही थी, जबकि एलजेपी ने कई विधानसभा सीटों पर जेडी(यू) की संभावनाओं को नुक़सान पहुंचाया था.

बीजेपी सूत्रों ने कहा कि इसके बाद औपचारिक रूप से, एनडीए का नया नेता चुनने की बैठक में शरीक होने के लिए, सिंह को पटना भेजा गया. सिंह केंद्रीय पर्यवेक्षक के नाते बैठक में शरीक हुए थे, जिसमें नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का नेता चुना गया.

सितंबर में जब प्रश्न-काल स्थगित करने को लेकर, सरकार विपक्ष की आलोचना के निशाने पर थी तो वो सिंह ही थे जिन्होंने पलटवार की अगुवाई की और संसद सत्र के पहले ही दिन विपक्ष को शर्मिंदा होना पड़ा, जब सिंह ने, जो लोकसभा के उप-नेता भी थे, सदन को बताया कि सभी विपक्षी पार्टियां, जो प्रश्नकाल के निलंबन पर सवाल उठा रही थीं, उस समय सहमत हो गईं थीं, जब उनकी स्वीकृति मांगी गई थी.

‘उन्होंने भी अपने उतार-चढ़ाव देखे हैं’

लेकिन, सिंह के लिए भी सब कुछ अच्छा ही नहीं रहा है. रक्षामंत्री के सियासी विरोधी उन पर अक्सर तंज़ कसते थे, कि किस तरह पिछली एनडीए सरकार में कैबिनेट की नियुक्ति समिति के फैसले, उनकी जानकारी में नहीं लाए जाते थे, जबकि वो उसके सदस्य थे.

बीजेपी सूत्रों ने कहा कि पिछले मोदी प्रशासन में, हालांकि वो सरकार में नंबर दो थे, लेकिन ये वित्तमंत्री अरुण जेटली थे, जो फैसले लिया करते थे, चूंकि वो प्रधानमंत्री के भरोसेमंद थे.

मोदी शासन से जुड़े सब मामलों में, जेटली पर भरोसा करते थे और पार्टी से जुड़े मामलों में शाह पर.

एक तीसरे वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘उनके अपने उतार-चढ़ाव रहे हैं. अतीत में, शुरुआत में उन्हें कैबिनेट कमेटी से बाहर रखने, या उनके बेटे के कथित दुराचार की अफवाहें शुरू होने पर लगा कि मोदी (सरकार) के तहत सिंह की हैसियत, और रुतबे में और कमी आ गई है, और उन्हें किसी महत्वपूर्ण भूमिका की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए. लेकिन उन्होंने इसे बहुत धैर्य के साथ लिया और अपने काम तथा संयमित नज़रिए की, अपनी ताक़त पर फोकस करते रहे- जिसकी विपक्ष भी सराहना करता है’.

पार्टी नेता ने दिप्रिंट से कहा कि सिंह एक बड़े नेता हैं और पार्टी उनकी अहमियत से वाक़िफ है.

उन्होंने आगे कहा, ‘न सिर्फ इस किसान संकट में, बल्कि अतीत में भी, जहां तक हमारे सहयोगियों के साथ व्यवहार की बात है, वो एक सुलह का तरीका अपनाते हैं, जो काम करता है. जहां तक रक्षामंत्री होने का सवाल है, उसमें भी वो काफी मुखर हैं, और चीज़ों को अच्छे से संभाल रहे हैं और पार्टी इस चीज़ को समझती है’.

नेता ने आगे कहा, ‘सिंह कल और आज की बीजेपी में अंतर को समझते हैं और उन्होंने ख़ुद को इसमें अच्छे से ढाल लिया है. कृषि संकट जैसी स्थितियों में पार्टी की नज़र में उनकी अहमियत और बढ़ जाती है’.

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