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Wednesday, 20 November, 2024
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मिताली राज तब आईं जब महिला क्रिकेट की किसी को परवाह नहीं थी, 23 सालों बाद भी ज्यादा कुछ नहीं बदला

पुरूषों के लिए माने जाने वाले इस खेल में मिताली राज की कहानी महिलाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रेरित करती रहेगी. लेकिन उनकी विदाई पर पसरा सन्नाटा दर्शाता है कि क्यों बीसीसीआई को अब इस ओर अपने कदम बढ़ाने की जरूरत है.

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मिताली राज के करियर ने दो दशकों का लंबा सफर तय किया और भारतीय महिला क्रिकेट का उदय होते देखा, जिसने मैदान और मैदान के बाहर दोनों जगह संघर्षों का सामना किया. दाएं हाथ की बल्लेबाज जिसने लंबे समय तक कप्तानी की है. कम जानकारी रखने वालों के लिए मिताली के खेल को आकड़ों के परिप्रेक्ष्य में रखकर बताया जा सकता है -सचिन तेंदुलकर 24 साल तक खेले, जबकि मिताली ने 23 साल तक बड़े मंच पर कब्जा जमाए रखा. वह अपनी टीम को दो बार विश्व कप फाइनल तक ले जाने में कामयाब रहीं और विशाल 10,868 रन बनाकर एक विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया. लेकिन ये आंकड़े हमें यह नहीं बताते हैं कि मिताली मुख्य रूप से पुरुषों के लिए माने जाने वाले इस खेल में महिला क्रिकेटरों की पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं.

उनके जाने से 1990 के दशक के भारतीय क्रिकेट के उस आखिरी जुड़ाव का भी अंत हो गया जो अभी तक खेल में सक्रिय बना हुआ था. हरमनप्रीत कौर अब अपने नेतृत्व में क्रिकेट के हर प्रारूप में एक नए युग की शुरुआत के लिए तैयार हैं. उनको सौंपा गया पहला असाइनमेंट इस महीने के अंत में भारत का श्रीलंका दौरा होगा.

जब मिताली राज ने क्रिकेट में कदम रखा था तो उस समय भारत में महिला क्रिकेट की किसी को परवाह नहीं थी. 23 साल बाद उनकी शांत विदाई महिला क्रिकेट के प्रति उस संस्कृति और रवैये की खासियत है जिसे बदलना अभी बाकी है. और यही वजह है कि मिताली राज दिप्रिंट की न्यूज मेकर ऑफ द वीक हैं.

मिताली राज के करियर का उतार-चढ़ाव

मिताली राज ने 26 जून 1999 को आयरलैंड के खिलाफ जब अपने खेल की शुरूआत की तो उस समय वह एक टीनएजर थीं. 2004 में कप्तान बनीं और क्रिकेट के सभी प्रारूपों में लगभग 11,000 रन बनाने के लिए अथक रूप से बल्लेबाजी की. उन्होंने इस साल मार्च में महिला विश्व कप में भारत का नेतृत्व किया, लेकिन उनकी टीम दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपना आखिरी राउंड-रॉबिन मैच हारने के बाद सेमीफाइनल में जगह बनाने में विफल रही.

इन 23 सालों में मिताली ने अपनी तकनीक और बेहतरीन बल्लेबाजी का प्रदर्शन किया और समझदारी से खेलते हुए हमेशा अपने विकेट को अहमियत दी. एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उनका प्रदर्शन बेहतरीन रहा है. 20 कैलेंडर वर्षों में उनका औसत 40 से अधिक का रहा, जिसमें 2004 और 2017 में दो बड़े सीज़न शामिल थे – तब भारत महिला विश्व कप फाइनल तक पहुंची थी.

उस समय 34 साल की मिताली के लिए 2017 का विश्व कप विशेष रूप से शानदार था. उसमें उन्होंने 9 पारियों में 409 रन बनाए, जो टूर्नामेंट के शीर्ष स्कोरर इंग्लैंड के टैमी ब्यूमोंट से सिर्फ एक रन पीछे थे.

ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार जारोड किम्बर कहते हैं, ‘वह अपने समय की बेहतरीन खिलाड़ी रहीं थी, और उनके पास 70 का स्ट्राइक रेट था. लेकिन महिलाओं के सफेद गेंद वाले क्रिकेट के विकास के साथ-साथ स्ट्रोक प्ले और पावर गेम की कमी ने उनके खिलाफ काम किया, खासकर टी 20 में.

और इसलिए अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय मैचों में 66 के स्ट्राइक रेट के बाद भी मिताली को उन खिलाडियों से रैंकिंग में काफी पीछे रखा गया जिन्होंने 2000 और 2010 में डेब्यू किया था. इन खिलाड़ियों में लिज़ेल ली, नट साइवर, मेग लैनिंग, स्टैफ़नी टेलर और यहां तक कि उनकी टीम की साथी स्मृति मंधाना का नाम लिया जा सकता है. और ये अंतर 2022 के विश्व कप में और भी साफ हो गया. मिताली 7 पारियों में 26 के औसत और 63 से कम के स्ट्राइक रेट पर केवल 182 रन ही बना सकें. एक खिलाड़ी के लिए यह एक साफ संकेत था कि अब वह अपना श्रेष्ठ पीछे छोड़ चुके हैं.

फिर भी अपने करियर के अंतिम पड़ाव में मिताली ने भारतीय मध्यक्रम को एक साथ जोड़कर रखा, जिसे शीर्ष स्तर के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जमने के लिए सीनियर्स से समय और लगातार विश्वास की जरूरत थी.


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क्रिकेट में लंबे समय तक बने रहना पुरुषों और महिलाओं के लिए समान नहीं है

अपने ऑन-फील्ड कारनामों और शानदार पारी की बदौलत मिताली टीम की साथी झूलन गोस्वामी के साथ एक भारतीय और वैश्विक क्रिकेट आइकन बन गईं. उनकी पीढ़ी के कुछ पुरुष खिलाड़ी दशकों तक खेलते हुए उनके लंबे करियर की तुलना में उनके करीब तक आए, मसलन -जेम्स एंडरसन, शोएब मलिक, रंगना हेराथ, क्रिस गेल, मोहम्मद हफीज और रॉस टेलर. हालांकि इन नामों और मिताली के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर हैं – इन सभी खिलाड़ियों के पास या तो पहले से ही अंतिम विदाई मैच या श्रृंखला के साथ बाहर जाने का अवसर था, या निकट भविष्य में एक मैच होने की उम्मीद थी (यहां तक कि हफीज को एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस भी बुलानी पड़ी)

लेकिन मिताली की बिदाई की खबर उनके आखिरी मैच के लगभग तीन महीने बाद एक सोशल मीडिया ग्राफिक के जरिए आई और कहीं गुम भी हो गई. क्योंकि खबरों ने तेजी से अपना रूख दक्षिण अफ्रीका के साथ भारतीय पुरुषों की चल रही टी-20 श्रृंखला की तरफ मोड़ लिया था.

एक मायने में  मिताली की अपेक्षाकृत शांत विदाई उनके व्हाइट फर्न्स समकक्ष एमी सैटरथवेट की तरह अनौपचारिक नहीं हो सकती है वह युवा घरेलू खिलाड़ियों को अचानक से दी गई प्राथमिकता के चलते न्यूजीलैंड की केंद्रीय अनुबंध सूची से अप्रत्याशित रूप से हटा दी गईं थी और उसके बाद उन्होंने रिटायरमेंट ले ली थी.

लेकिन एक पुरुष खिलाड़ी का एक मौजूदा महिला कप्तान की तरह से बाहर जाने की कल्पना करना मुश्किल है. कई लोग कहेंगे कि एमएस धोनी ने भी तो सोशल मीडिया पर अचानक से रिटायरमेंट की घोषणा की थी. लेकिन भारत की महिला क्रिकेटरों के विपरीत, धोनी और अन्य लोगों के पास अपने पेशेवर करियर को और लम्बा करने के लिए एक आकर्षक इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) तो है, लेकिन महिला क्रिकेटरों के भविष्य के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पास कोई एक स्पष्ट योजना नहीं है.

यह पहले से ही भारत में पुरुष और महिला क्रिकेट के बीच असमानता के सबसे बड़े संकेतों में से एक है. लेकिन निराश करने वाले आकड़े और भी हैं. मिताली और भारत की महिला टीम ने केवल 12 टेस्ट मैच खेले हैं , जिनमें से अधिकांश 2002 और 2006 के बीच थे. जबकि भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम ने पिछले साल ही 14 मैच खेले लिए थे.

टेस्ट मैच को क्रिकेट का सबसे शुद्ध और सबसे चुनौतीपूर्ण रूप माना जाता रहा है. इस वित्तीय और लिंग-आधारित अंतर को जल्द ही कभी भी गंभीरता से संबोधित किया जाना बाकी है. यह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अध्यक्ष ग्रेग बार्कले की पिछले हफ्ते की टिप्पणी के आलोक में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. उन्होंने महिला टेस्ट क्रिकेट के भविष्य में क्रिकेट परिदृश्य का हिस्सा नहीं बनने की बात कही थी.

अपने लंबे क्रिकेट करियर में मिली उपलब्धियों के बीच मिताली इस बात का भी प्रतिनिधित्व करती है कि महिला क्रिकेटरों को उच्च स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए किन-किन मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ता है. अगर क्रिकेट गवर्निंग बॉडी चाहे वह बीसीसीआई हो या आईसीसी, महिलाओं के खेल में महत्वपूर्ण निवेश करते हैं तो फिर आने वाली पीढ़ियां को इनका सामना नहीं करना पड़ेगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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