मास्को में पूर्व सूचना केंद्र सेरपुखोव 15 में 1983 में सितंबर में एक दिन आधी रात के आधे घंटे बाद लेफ्टिनेंट कर्नल स्टानिस्लाव येवग्राफोविच पेट्रोव ने अपने शीशे की दीवारों वाले दफ्तर के भीतर कंप्यूटर मॉनिटरों पर देखा कि कयामत नजदीक आ रही है. धरती से 15 किमी. ऊपर सोवियत संघ के ओको सैटेलाइटों ने पाया कि पांच माइनूटमेन एटमी मिसाइल चली आ रही हैं और हरेक में 335 किलोटन एटमी हथियार हैं जो 1945 में हिरोशिमा में गिराए गए बम से लगभग 20 गुना ज्यादा तबाही मचा सकते हैं.
पेट्रोव के पास एक, सिर्फ एक ही विकल्प था. वे ओको की चेतावनी को सही मानते और सोविय संघ की अपनी कमांड कंट्रोल के खत्म होने के पहले अमेरिका पर जवाबी हमला दाग देते या तो वे इसे गलत बताकर अपने देश की तबाही को न्यौता देते. सही, गलत.
दूसरा पहलू यह है कि मानव जीवन अभी भी कायम है. भारत क्रूज मिसाइल की प्रक्रिया में खामी जैसी अजीब समस्या से मुकाबिल है, जो ‘गलती’ से चली और पाकिस्तान के दूर-दराज के कस्बे मियां चन्नू में जा गिरी, तो लेफिटनेंट कर्नल पेट्रोव की कहानी से सीख लेना चाहिए कि वाकई कितना कुछ दांव पर होता है.
एटमी हथियार जो चल पड़े
अमेरिका के रणनीतिक कमान के 1991-1992 में मुखिया जनरल जॉर्ज ली बटलर ने इतना कुछ देखा कि वे एटमी निरस्त्रीकरण के पैरोकार बन गए: ‘अपने साइलो में मिसाइल दगी और साइलो से बाहर एटमी वॉरहेड को फेंक दिया; बी52 विमान टैंकर से जा टकराया और पूरे तट पर एटमी हथियार बिखरे पड़े थे.’ बी52 की एक दुर्घटना में तो एटमी विस्फोट को रोकने के लिए लगाए गए सात उपकरणों में से छह डिसेबल्ड थे.
दुनिया भर में एटमी हथियार के कर्ताधर्ता यही कहानी बताते हैं कि उनकी मिसाइलें और वॉरहेड बेहद सुरक्षित और फॉल्ट-प्रूफ सिस्टिम में कैद हैं. सच्चाई तो यह है कि वे मशीनें हैं और उनके चलाने वाले आदमी हैं. कोई भी गलती या चूक से परे नहीं है.
2016 में ज़ुयिंग डॉक में खड़ी ताइवानी गश्ती नौका जिन चियांग से दुर्घटनावश अत्याधुनिक सियूंग फेंग III मिसाइल गलती से चल गई और जिससे मछली मारने वाली एक नाव नष्ट हो गई, इसमें 3 लोग मारे गए थे. पता चला कि मिसाइल के राडार निर्देशित डिटेक्शन सिस्टम मछली मारने वाली नाव को दुश्मन का तिलिट्री निशाना समझ बैठा और मिसाइल नाव पर जा गिरी.
पिछले साल रूसी कलीब्र मिसाइल, जो अब यूक्रेन युद्ध में काफी इस्तेमाल की जा रही हैं, मारक पोत मार्शल शापोशनिकोव से लॉन्च होने के बाद गड़बड़ी का शिकार हो गई और बगल की जहाज में जा गिरी. 2020 में सी802 नूर मिसाइल गलती से मददगार शिप कोनारक में जा गिरी और उन्नीस ईरानी सैनिक मारे गए.
इनमें हर र्दुघटना के भारी तबाही वाले नतीजे हो सकते थे. मसलन, कल्पना कीजिए कि ताइवानी मिसाइल पेंगू की खाड़ी में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जहाज से जा टकराती या ईरानी नूर अमेरिका के सैनिकों के मारे जाने का कारण बनती.
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शीतयुद्ध के घुमड़ते बादल
शीतयुद्ध के इतिहास से हम जानते हैं कि दुनिया एक से अधिक बार विनाश की कगार पर पहुंच चुकी है. नवंबर 1979 में पूर्व सूचना प्रणाली ने पहले 200 और फिर 2,200 सोवियत वॉरहेड को बढ़ता हुआ बताया. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ज़्बिग्नेव ब्रजेजिंस्की जवाबी कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति से अनुमति लेने की तैयारी कर रहे थे कि मिसाइलें रहस्यमय ढंग से गायब हो गईं. बाद में पता चला कि एक टेक्नीशियन ने दौरे पर आए एक वीआइपी को खुश करने के लिए गलत कंप्यूटर पर ट्रेनिंग अेप लगा दिया था.
करीब न्यूकिल्यर त्रासदी पर ‘दि वर्ल्ड फैट’ शीर्षक के एक लेख में विद्वान जोनाथन ग्रानोफ ने लिखा है कि ‘कुछ लोगों और कुछ मिनटों को, संतुलन से लटका दिया गया है.’
इस तरह की घटनाएं अपवाद भर नहीं हैं. 1980 में अमेरिका के एटमी बल एक चिप की गड़बड़ी की वजह से आई पहले हमले की चेतावनी से जवाबी हमले को तैयार हो गए थे. 1955 में सोवियत पूर्व सूचना सिस्टम ने एक वेदर सैटेलाइट को एटमी उपकरण समझ लिया, बाद में तब के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन कबूल किया कि उन्होंने अपनी ‘फुटबॉल’ का इस्तेमाल किया था, इस उपकरण को एटमी हथियार संकट के वक्त दबाया जाता है.
फरवरी 2009 में एटमी हथियार से लैस ब्रिटेन का वैंगॉर्ड और फ्रांस का ले ट्रायंफेंट अटलांटिक में टकरा गए, बाद में अधिकारियों ने बताया कि दोनों ‘एक-दूसरे को देख नहीं’ पाए.
सबसे सुरक्षित सिस्टम भी ऐसी गलतियों से महफूज नहीं हैं. 2003 में एटमी हथियारों के प्रबंधन में लगी अमेरिकी वायु सेना की आधी इकाइयां सुरक्षा जांच में नाकाम रहीं, जबकि जांच की सूचना पहले से थी. चार साल बाद क्रू प्रोटोकॉल की गलती से एटमी हथियारों वाली क्रूज मिसाइलें बी52 बॉम्बर में चढ़ा दी गईं.
एटमी विद्वान ब्रुनो टेरट्रेस जैसे कुछ के मुताबिक, ये गलतियां सबूत हैं कि एटमी हथियार प्रणाली हर मोड़ पर किसी न किसी वजह से काम करती है इसलिए प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन होना चाहिए. समस्या यह है कि भविष्य में ऐसे गड़बड़झाले शर्तिया तौर पर होंगे तो नतीजे अच्छे ही होंगे और बुरे नतीजे तो किसी पक्ष को मंजूर नहीं होगा.
एटमी चूक के बढ़ते खतरे
मियां चन्नू में गिरने वाली मिसाइल में क्या गड़बड़ी हुई, हम ठीक-ठीक नहीं जानते. मिसाइल टेस्ट के दौरान चल सकती है या नहीं भी चल सकती है. वह किसी लड़ाकू जेट में लगी हो सकती है या नहीं भी लगी हो सकती है. कुछ ही मामलों में एक व्यक्ति को लॉन्च की जिम्मेदारी होगी. वह ब्रहमोस हो भी सकती है या नहीं भी हो सकती है, जिसमें एटमी वॉरहेड लगा हो सकता है या नहीं भी हो सकता है. और असली सवाल ये नहीं हैं.
सामान्य हालत में इसकी संभावना थोड़ी ही है कि भारत और पाकिस्तान के सिस्टम आने वाले हमले की सूचना दें तो दोनों मिसाइल लॉन्च कर दें. एक तो, इसका समय ही नहीं होगा. इसी तरह दोनों ही या तो पहले हमले को झेल लेंगे या पहला हमला करके एक-दूसरे को चौंका देंगे.
हालांकि यह सोचने के लिए ज्यादा कल्पाना की दरकार नहीं है कि सैनिक टकराव, हवाई हमले या किसी चूक से भारी तबाही के मामले में प्रतिक्रिया दूसरी होगी. इस्लामाबाद ने मियां चन्नू की घटना पर बहुत ही संयम रवैया अपनाया. दूसरी हालत में उसने या नई दिल्ली ने कुछ और किया होता.
मतलब यह है कि जोखिम बढ़ रहा है. विद्वान क्रिस्टोफर क्लैरी और विपिन नारंग ने जाहिर किया है कि दोनों ही तरफ एक-दूसरे के एटमी हथियार का जवाब देने की होड़ बढ़ रही है तो पहले हमले की फितरत बढ़ सकती है. उनके मुताबिक, भारत के एटमी हथियार ‘ऊंचे स्तर की तैयारी और सेकेंड या मिनटों में दागे जाने’ की हालत में हैं.
राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने कभी कहा था, ‘रडार पर किसी ब्लीप के जवाब और आर्मागेडॉन/कयामत को दागे जाने में सिर्फ छह मिनट लगेंगे. ऐसे वक्त में कोई दिमाग कैसे लगाएगा?’
कयामत से बचा जा सकता है
एटमी निवारण अब स्थापित हो चुके हैं और उसे यूं ही नहीं खारिज किया जाना चाहिए. विद्वान केलेथ वॉल्ट्ज ने बताया है कि 1945 के बाद का दौर इतिहास में अपवाद है, किन्हीं बड़ी ताकतों के बीच युद्ध नहीं देखा गया. एटमी हथियार ही वजह है कि भारत और पाकिस्तान 1999, 2001-2002 और 2019 में पूरे स्तर का युद्ध नहीं हुआ.
फिर भी गलती, गलत आकलन या दुर्घटना से युद्ध को रोकने के लिए संयम को बढ़ाया जा सकता है. एटमी युद्ध के खतरे को रोकने के मॉडल मौजूद हैं. 1971 में अमेरिका और सोवियत संघ ने दुर्घटना से बचने के लिए कदम उठाने के खातिर एक संधि हुई. कैसे और कितने हथियार तैनात किए जाएं और किसी को धोखा न देने के लिए निगरानी की व्यवस्था की भी संधियां हैं.
एटमी निवारण शांति बनाए रखते हैं, लेकिन उसे बड़ी ताकतों के उलझने से रोकने के लिए हथियारों पर रणनीतिक सीमा कायम करने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे. मियां चन्नू के अनुभव से सीख लेकर इस्लामाबाद और नई दिल्ली को सार्थक बातचीत करनी चाहिए और उसके सबक अपने एटमी हथियारों के मामले में लागू करने चाहिए.
1983 में लेफ्टिनेंट कर्नल पेट्रोव ने हमले की चेतावनी को गलत माना. बाद में जांचकर्ताओं ने पाया कि पूर्व चेतावनी की सिस्टम में ‘बगी कोड’ था, जिसने बादल से टकराती सूरज की किरणों को मिसाइल मान लिया. उन्होंने दुनिया को बचा लिया. हालांकि वे अपने फैसले को गलत भी मान सकते थे.
(लेखक ट्विटर हैंडल @praveenswami से ट्वीट करते हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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