रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश में ‘संयुक्त थिएटर कमांड’ के गठन की घोषणा जब पिछले सप्ताह की तो वे महज एक राजनीतिक बयान दे रहे थे और उस फैसले के बारे में दोबारा जानकारी दे रहे थे जो फैसला करीब ढाई साल पहले ही किया जा चुका है. वास्तव में, यह मसला दिसंबर 2021 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के असमय निधन के बाद से अटका हुआ है.
संयुक्त थिएटर कमांड की जरूरत पर राजनीतिक और फौजी महकमों में सहमति बन चुकी है. लेकिन इस कमांड में भारतीय वायुसेना की भूमिका को लेकर विवाद बना हुआ है.
पहले साल, एक सेमिनार में सीडीएस और वायुसेना अध्यक्ष के बीच तो एक खुली बहस हो गई थी जब सीडीएस ने वायुसेना को फौज का ‘सहायक अंग’ कहा था और वायुसेना अध्यक्ष ने इसका जवाब देते हुए कहा था कि ‘केवल सहायक भूमिका नहीं, वायुसेना की शक्ति को विशाल भूमिका निभानी होती है. किसी भी समग्र युद्ध क्षेत्र में मामला केवल सहायक भूमिका का नहीं होता.’
वर्तमान वायुसेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल वी.आर. चौधरी ने वायुसेना की हिचक को दोहराया : ‘… एयर डिफेंस कमांड का गठन उलटा नुकसानदायक साबित हो सकता है क्योंकि हवाई सुरक्षा की कार्रवाइयां आक्रामक हवाई कार्रवाई से अटूट रूप से जुड़ी होती हैं क्योंकि एक की कामयाबी या नाकामी पर ही दूसरे की मांगें तय होती हैं.’
थिएटर कमांड के गठन की प्रगति के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि वह सुस्त है. रणनीतिक दिशा, और राजनीतिक निगरानी में समयबद्ध क्रियान्वयन का पक्ष कमजोर है. संयुक्त थिएटर कमांड के गठन के मुख्य उत्प्रेरक सीडीएस का पद सात महीने से ज्यादा से खाली पड़ा है. फिलहाल जो रवैया अपनाया जा रहा है वह दोषपूर्ण है क्योंकि यह नीचे के स्तर से शुरू होने वाली ऐसी प्रक्रिया जिसमें हर चीज सेना के जिम्मे छोड़ दी गई है, जबकि वह सेवाओं के बीच होड़ के लिए बदनाम है. वायुसेना की आपत्तियों का समाधान न किया जाना इसकी पुष्टि ही करता है.
वायुसेना की भूमिका
सार्वजनिक दायरे में उपलब्ध जानकारी के आधार पर सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) ने उत्तर, पूरब, और पश्चिम क्षेत्र में एक-एक थिएटर कमांड, एक समुद्री थिएटर कमांड और एक हवाई सुरक्षा कमांड भी बनाने का प्रस्ताव किया है.
जहां तक वायुसेना की बात है, सभी हवाई अभियानों/कार्रवाइयों का नियंत्रण चार थिएटर कमांडों के हाथ में रहेगा. यह एयर डिफेंस के संसाधनों को छोड़ शुरुआती/पुनरावंटित साधनों पर आधारित होगा. यह मॉडल 50-60 स्क्वाड्रनों जितनी बड़ी वायुसेना के साथ ही काम करेगा. 30 स्क्वाड्रन वाली सेना के लिए, सीडीएस या सीओएससी के अधीन संयुक्त मुख्यालय को संसाधनों को थिएटर कमांडों और एयर डिफेंस कमांड के बीच निरंतर बांटते रहना पड़ेगा.
‘भारतीय वायुसेना का बुनियादी सिद्धांत, 2012’ बताता है कि भारतीय संदर्भ में वायुसेना की ताकत का प्रयोग कैसे किया जा सकता है. इसे तीन उप-रणनीतियों— रणनीतिक हवाई अभियान, जवाबी हवाई अभियान, और दुश्मन की जमीनी सेवा पर जवाबी अभियान—के जरिए लागू किया जाता है, जिसे कॉम्बैट इनेबलिंग ऑपरेशन का सपोर्ट होता है. आदर्श स्थिति तो यह होती है कि ये कार्रवाइयां प्राथमिकता के उसी क्रम से एक साथ की जाती हैं, लेकिन कम नोटिस पर या छोटी अवधि के युद्ध में, खासकर लघु/माध्यम आकार की वायुसेना के द्वारा जिसे अंतर्निहित लचीलेपन के साथ हर अभियान पर ज़ोर देना पड़ता है.
रणनीतिक हवाई अभियान शत्रु की प्रतिकार क्षमता और रणनीतिक स्तर पर युद्ध लड़ने की क्षमता को निशाना बनाता है. वायु शक्ति के निरंतर केंद्रित प्रयोग द्वारा शत्रु के रणनीतिक गुरुत्वाकर्षण केंद्रों या अहम कमजोरियों को निशाना बनाया जाता है. वायु शक्ति में नेतृत्व, कमान और नियंत्रण, संचार व्यवस्था; औद्योगिक ढांचा/अहम आर्थिक ठिकाने, परिवहन व्यवस्था; और अंदरूनी इलाके में सेना/रिजर्व सेना की तैनाती शामिल है. स्पष्ट है कि हमारे संदर्भ में, रणनीतिक हवाई अभियान के लिए केंद्रीकृत नियंत्रण चाहिए, न कि चार अलग-अलग थिएटर कमांड का नियंत्रण.
जवाबी हवाई अभियान का लक्ष्य ऐसी अनुकूल हवाई स्थिति बनाना है ताकि शत्रु की वायुसेना आपकी कार्रवाइयों में दखल न दे सके. जवाबी हवाई अभियान में आक्रामक और सुरक्षात्मक दोनों तरह की हवाई कार्रवाइयां की जाती हैं. आक्रामक कार्रवाई दुश्मन के इलाके में की जाती है ताकि दुश्मन की हवाई सुरक्षा (वेपन्स सिस्टम्स और रडार आदि), हवाई अड्डों आदि के इन्फ्रास्ट्रक्चर, जमीन पर और उसके इलाके मौजूद विमानों को नाकाम/नष्ट किया जा सके.
हवाई सुरक्षा कार्रवाई का लक्ष्य दुश्मन के इलाके में उसकी हवाई/मिसाइल आक्रमण क्षमता को नष्ट या कमजोर करना होता है और इसमें कमांड एवं कंट्रोल के साधनों के साथ फाइटर विमानों और जमीन से हवा में मार करने वाली वेपन सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. हवाई सुरक्षा कार्रवाई जवाबी हमले के रूप में होती है इसलिए अनुकूल हवाई स्थिति तैयार करने का मुख्य आधार आक्रामक जवाबी हवाई कार्रवाई होती है.
जमीन से और समुद्र से हवाई कार्रवाई करने का मकसद दुश्मन को अपनी सैन्य ताकत का इस्तेमाल करने से रोकना होता है ताकि वह जमीन या समुद्र पर आपकी सेना की कार्रवाइयों में दखल न दे. यह रणनीतिक स्तर पर हवाई रोक लगाकर, युद्ध क्षेत्र में कार्रवाई के स्तर पर हवाई रोक लगाकर, सामरिक स्तर पर युद्ध क्षेत्र में अपनी सेना के इर्दगिर्द हवाई हमले करके, सामरिक टोह लगाकर, और तलाश एवं हमले के मिशन चलाकर किया जाता है. रोक लगाने के मतलब है दुश्मन सेना की रिजर्व, कमांड व कंट्रोल साधनों, सड़क/रेलवे नेटवर्क और दूसरे इंतज़ामों को नष्ट करना ताकि वह युद्ध क्षेत्र में अपनी ताकत न झोंक सके. समुद्र क्षेत्र में यह दुश्मन के युद्धपोतों और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर हवाई हमले के रूप में होता है.
युद्ध में सहायक भूमिका के तहत हवाई परिवहन, हवा में ही ईंधन आपूर्ति, निगरानी और टोही कार्रवाई, यूएवी की तैनाती, हवा में पूर्व चेतावनी वाले विमान के अलावा एरोस्टाट की तैनाती, , इलेक्ट्रोनिक युद्ध, स्पेशल फोर्सेस की कार्रवाई, तलाशी एवं बचाव, ट्रेनिंग, रखरखाव एवं लॉजिस्टिक्स आदि शामिल होते हैं.
उपरोक्त बातों से साफ है कि ‘हवाई सुरक्षा’ वायुसेना की अपेक्षाकृत अप्रत्यक्ष भूमिका में शामिल है, और मुख्य भूमिका तो दुश्मन की ओर से हवाई खतरे को नाकाम करने के लिए उसके इलाके में घुसकर जवाबी हवाई हमला करने की होती है. इसके अलावा, जमीन और समुद्र में जवाबी सैन्य कार्रवाई और विमान या हेलिकॉप्टर से हवाई परिवहन आदि की कार्रवाइयां केवल ‘सहायक’ कार्रवाई होती है जिसमें जमीनी सेना के साथ करीबी तालमेल जरूरी होता है.
भारतीय वायुसेना के सीमित संसाधन के मद्देनजर थिएटर कमांडरों को बहुपयोगी विमान, एयरबोर्न वार्निंग ऐंड कंट्रोल सिस्टम/ एयरबोर्न अर्ली वार्निंग ऐंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट, एयरोस्टाट, हवा में ईंधन आपूर्ति करने वाले विमान आदि बांटना उलटे नुकसान पहुंचा सकता है.
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रणनीतिक हवाई कमांड
भारतीय वायुसेना जैसी छोटी वायुसेना का अधिकतम उपयोग प्रयासों के केंद्रीकरण से ही किया जा सकता है. वह एक दिन में 700 सामरिक उड़ान भर सकती है. शुरू में अधिकतम प्रयास रणनीतिक हवाई अभियान और दुश्मन के इलाके के ऊपर जवाबी आक्रामक हवाई कार्रवाई चलाने का किया जाना चाहिए, जिसका जमीनी सेना से कोई मतलब न हो और यह केंद्रीय नियंत्रण में हो. पाकिस्तान और चीन, दोनों से एक साथ दो मोर्चे पर युद्ध में वायुसेना का पूरा ज़ोर शुरू के आधे दिन में चीन के खिलाफ और बाद के आधे दिन में पाकिस्तान के खिलाफ होना चाहिए.
एक रणनीतिक एअर कमांड का गठन उचित होगा, जिसे रणनीतिक हवाई अभियान और सभी थिएटरों में जवाबी हवाई अभियान चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई हो. सभी संसाधनों को ग्रहण करने का उसे अधिकार हो. चूंकि हवाई और जमीनी कार्रवाई एक साथ शुरू की जा सकती है, जवाबी जमीनी सैन्य अभियान और जमीन से हवा में मार करने वाले वेपन सिस्टम के रूप में हवाई सुरक्षा अभियान चलाने के लिए हरेक थिएटर को विमानों/मिसाइलों का अधिकतम आवंटन करना होगा.
बदलाव की प्रक्रिया को दुरुस्त करें
तीनों सेनाओं का थिएटर कमांडों के रूप में एकीकरण 21वीं सदी के युद्ध के लिए सेना को तैयार करने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है. रणनीतिक समीक्षा और औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के बिना यह बदलाव लक्ष्यहीन और दिशाहीन होगा. यह केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह तीनों सेनाओं और इस मामले में महत्व रखने वालों से मशविरा करके औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाए. थिएटर कमांडों के गठन समेत इस बदलाव के लिए उसे विस्तृत राजनीतिक दिशानिर्देश जारी करना चाहिए.
केवल राजनीतिक मंशा से ही सेना में बदलाव नहीं हो जाएगा. अनुभवजनित ज्ञान ही राजनीतिक हस्तक्षेप को निर्देशित करे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री को इस चुनौती का सीधे सामना करना चाहिए और पूरी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए. औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और बदलाव की रणनीति तय करनी चाहिए. रक्षा मंत्री के नेतृत्व में एक अधिकार संपन्न कमिटी का गठन किया जाए जो बदलाव को लागू करे. कमिटी को एक ‘विज़न’ दस्तावेज़ बनाना चाहिए जिसमें सभी विवादास्पद मसलों का समाधान हो और वह सब काम के लिए समय सीमा भी तय करे.
सीडीएस की तुरंत नियुक्ति होनी चाहिए और सेना में बदलाव समेत थिएटर कमांडो के गठन का विस्तृत प्रस्ताव जारी किया जाए. संसद को जानकारियां दी जाएं और रक्षा मामलों की स्थायी संसदीय कमिटी या विशेष कमिटी के जरिए जांच की जाए. बदलाव की प्रक्रिया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून बनाने के साथ पूरी की जाए ताकि भविष्य में जवाबदेही पक्की की जा सके.
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटा.) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड थे. रिटायर होने के बाद वो आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिब्युनल के सदस्य थे. व्यक्त विचार निजी हैं)
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