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बुधवार, 21 मई, 2025
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मणिपुर खेलों का केंद्र बन सकता है, वित्तीय सुरक्षा को सियासत का मोहताज मत बनाइए

मणिपुर को पांचवीं या छठी अनुसूची के अंतर्गत लाने की मांग में दम है, लाभकारी खेती को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय तथा तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जाए ताकि बाज़ार के अनुकूल कृषि उपजों, सघन वृक्ष रोपण, और लघु सिंचाई को बढ़ावा मिले.

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मणिपुर का राजकीय फूल शिरुई लिली शिरुई काशुंग पहाड़ियों के अपने प्राकृतिक परिवेश में बहुत खूबसूरती से खिलता है. ये पहाड़ियां वहां की माकलांग नदियों और उनसे निकलने वाली दूसरी नदियों का भी उदगम स्थल हैं, जो धान के खेतों की सिंचाई करती हैं और भारी मात्रा में मछलियां भी उपलब्ध कराती हैं. समुद्र तल से 2,835 मीटर की ऊंचाई पर बसा मुख्यतः तंगखुल नगाओं की आबादी वाला उखरुल गांव जिला मुख्यालय से 18 किमी और राज्य की राजधानी इंफाल से 97 किमी दूर है. इस गांव में तीन फुट लंबे पौधों पर उगने वाले, घंटीनुमा नीले-गुलाबी रंग के इस फूल को जब विश्वविख्यात वनस्पति वैज्ञानिक फ्रैंक किंग्डन-वार्ड ने ब्रिटेन के चेल्सिया में रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी द्वारा 1948 में आयोजित प्रदर्शनी में प्रस्तुत किया था तब इसे ‘वनस्पति का चमत्कार’ बताया गया था.

किंग्डन-वार्ड उत्तर-पूर्व के सीमावर्ती इलाकों में सालों तक घूमते रहे और तिब्बत की सरकार द्वारा 1935 में थोड़े समय के लिए गिरफ्तार भी कर लिए गए थे. उनकी गिरफ्तारी के बाद ब्रिटिश भारत ने 1914 में शिमला में हुए समझौते के तहत निर्धारित मैकमोहन रेखा के इर्द-गिर्द के क्षेत्रों पर अपने अधिकारों पर दावा किया. किंग्डन-वार्ड ने इस फूल का नाम अपनी पत्नी लिलियम मैकलिन के नाम पर रखा.

काशोंग टिमरावों के बारे में मौखिक परंपरा

तंगखुल की मौखिक परंपरा के मुताबिक, इस काशोंग टिमरावों फूल का नाम पहाड़ियों की रक्षा करने वाली पौराणिक देवी फिलावा की बेटी टिमरावों के नाम पर रखा गया था. आगे इस कथा के तीन रूप सामने आए.

पहला यह कि टिमरावों भी एक देवी थी, जिन्होंने अपने भक्तों को समृद्धि, सौंदर्य, दया और संतृप्ति का वरदान दिया. दूसरा रूप यह था कि टिमरावों अपने प्रेमी शिरुई के साथ पहाड़ों में रहती थी और उसकी मृत्यु के बाद वह हर साल उस सरजमीं पर अपनी मौजूदगी जताने के लिए आता है जहां टिमरावों दफन है. तीसरा रूप यह है कि चूंकि, वह एक देवी थी और शिरुई एक नश्वर मनुष्य था इसलिए उनका प्रेम सफल नहीं हुआ और उन दोनों ने पहाड़ से कूद कर आत्महत्या कर ली. यह फूल मणिपुर में इस बलिदान और शाश्वत प्रेम का प्रतीक है.

इस मौखिक परंपरा की खूबसूरती यह है कि नई कथाएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी गढ़ी जाती रही हैं और मौखिक रूप से आगे बढ़ती रहती हैं, लेकिन इन सभी कथाओं में इस फूल का ज़िक्र आश्चर्यजनक सम्मान, प्यार, सदभावना, और निजता की भावना के साथ किया गया है. मई के मध्य या जून के पहले हफ्ते में जब ये फूल खिलते हैं तब यह समुदाय वार्षिक शिरुई लिली उत्सव का आयोजन करता है. इस उत्सव को राज्य सरकार का भी समर्थन है और अब यह देश-विदेश से संगीत, कला और बागवानी के हज़ारों प्रेमियों को आकर्षित करने लगा है.

राज्य में कानून-व्यवस्था की बदहाली के कारण 2023 और 2024 में इस उत्सव का आयोजन नहीं हो पाया, लेकिन इस बार इसके आयोजन की काफी उम्मीद है. उखरुल के जिला प्रशासन ने पुष्टि की है कि देश भर से कई म्यूजिक बैंड इसमें शरीक होंगे. बेंगलोर का बैंड ‘इनर सैंक्टम’, सिक्किम/गुवाहाटी का ‘आरोग्य’, मिजोरम का ‘मैगडेलेन’, नगालैंड का ‘डिवाइन कनेक्शन’, और कोलकाता का ‘जिंजरफीट’ भी भाग लेगा ही. इसके अलावा मेघालय का ‘अलाइव’ और खुद मणिपुर का ‘हाई वोल्ट’ भी होगा. इज़रायली बैंड ‘ऑर्फंड लैंड’ ने भी आने की पुष्टि की है.

मणिपुर के राज्यपाल ए.के. भल्ला और उखरुल के विधायक, तंगखुल नगा और पूर्व आईएएस राम मुइवा ने केंद्रीय गृह मंत्री को शिरुई उत्सव के लिए आमंत्रित किया है. अब जबकि पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम की घोषणा हो चुकी है, पूरी उम्मीद है कि वे उखरुल का दौरा करेंगे.

फिलहाल जो स्थिति है, तीनों प्रमुख समुदायों — मैतेई, नगा, और कुकी — के प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लेने की पुष्टि की है जिसमें विचारों का स्वतंत्र, खुला और निष्पक्ष आदान-प्रदान होगा. एक-दूसरे को लेकर आशंकाओं पर भी विचार किया जाएगा. विवादास्पद मसले कायम हैं. मैतेई समुदाय खासकर सेनापति जिले के तीन अनुमंडलों में कुकी-ज़ो समुदाय की बढ़ती आबादी को लेकर सशंकित है; और नगा एवं कुकी समुदाय मैतेईयों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा जारी रखे जाने को लेकर चिंतित है. उनकी चिंता यह है कि अगर ऐसा किया गया तो पहाड़ी लोगों के लिए रोज़गार के अवसर घट जाएंगे.

जहां तक राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात है, मणिपुर की आबादी में 54 फीसदी की हिस्सेदारी करने वाला मैतेई समुदाय विधानसभा की 60 में से 40 सीटों पर काबिज है और राज्य के वित्तीय संसाधन पर पूरा नियंत्रण रखता है. पहाड़ी समुदायों की आबादी 43 फीसदी है और उन्हें केवल 20 सीटें हासिल हैं. मणिपुर पांचवीं या छठी अनुसूची के अंतर्गत नहीं है, जिनका संबंध उत्तर-पूर्व के जनजाति बहुल इलाकों के प्रशासन से जुड़ा है.


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सुलह की कोशिश

मणिपुर को पांचवीं या छठी अनुसूची के अंतर्गत लाने की पुरानी मांग में दम है और यह सुलह की कोशिश का पहला कदम साबित हो सकता है. इसके साथ, अफीम की अवैध खेती पर सख्ती से रोक लगाना भी बहुत ज़रूरी है. इसकी जगह लाभकारी खेती को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय तथा तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए जिसके तहत बाज़ार के अनुकूल कृषि उपजों, सघन वृक्ष रोपण और लघु सिंचाई को बढ़ावा दिया जा सकता है.

इसके साथ ही, म्यांमार में हिंसा के कारण विस्थापित लोगों को अस्थायी शरणार्थी का दर्जा देने के मसले पर भी विचार किया जा सकता है. पड़ोसी देश में चाहे जैसी भी सरकार हो, हमारी अपनी सुरक्षा ज़रूरतों के लिए और 1,736 किमी लंबी स्टिलवेल रोड के शीघ्र निर्माण तथा सीमा पार से नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए उसके साथ संबंध रखना ज़रूरी है.

इन शरणार्थियों को म्यांमार के अपने गांवों में लौटने के लिए भारत ज़रूरत पड़ने पर वित्तीय पैकेज की पेशकश भी कर सकता है. स्थानीयता और देशों की सरहदों के बीच के टकराव को हम हमेशा राष्ट्र-राज्य के पश्चिमी चश्मे से नहीं देख सकते. अर्जुन पुरस्कार विजेता पद्म विभूषण, पूर्व (नामजद) राज्यसभा सदस्य मैरी कॉम तमाम संबद्धताओं के ऊपर जनजातीय पहचान के महत्व की सच्ची प्रतीक हैं. वे कह चुकी हैं कि “अपने देश में या पूरी दुनिया में, अपनी कॉम जनजाति की पहचान का दावा करने की इच्छा मेरे लिए एक सबसे प्रेरणादायी बात रही है.” संयोग से, कॉम न तो मैतेई हैं और न कुकी-ज़ो, फिर भी आज वे मणिपुर का सबसे जाना-पहचाना चेहरा हैं.

सियासत से परे

कई मणिपुरी ऐसे हैं जो खेलकूद और संगीत की दुनिया में ‘आईकन’ बनने की योग्यता रखते हैं. लोककथा यह है कि आधुनिक पोलो खेल की उत्पत्ति इसी राज्य से जुड़ी है. आशीष कुंदरा ने अपनी किताब ‘अ रिसर्जेंट नॉर्थ-ईस्ट : नरेटिव्स ऑफ चेंज’ में लिखा है कि राज्य में खेलकूद के 1,000 से ज्यादा सामुदायिक क्लब हैं और फुटबॉल सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. यह राज्य खेलकूद की नयी संस्कृति का केंद्र बन सकता है जिसमें पोलो, मुक्केबाज़ी, तीरंदाजी, फुटबॉल, रग्बी और कुश्ती की अकादमियां विभिन्न जिलों में खुल रही हैं.

शास्त्रीय मणिपुरी नृत्य को समर्पित संगीत विद्यालयों और अकादमियों की स्थापना कैसी रहेगी? सरकार यहां ऐसे शिक्षा केंद्र स्थापित कर सकती है जहां से आईटी, फार्मा और बायोटेक्नोलॉजी की दुनिया में उभरते शीर्ष पदों के लिए योग्य लोग निकल सकें.

व्यक्तियों और समुदायों के लिए पहचान, प्रसिद्धि, और वित्तीय सुरक्षा को राजनीतिक प्रतिनिधित्व या सरकारी नौकरी से जोडनी की ज़रूरत नहीं है. इनका अपना महत्व तो है, लेकिन इन्हें ही ज़िंदगी का सब कुछ नहीं माना जा सकता. एक दुनिया सियासत से परे भी है.

(मणिपुर संघर्ष मसले पर दो-पार्टी की सीरीज़ का यह पहला लेख है.)

(संजीव चोपड़ा पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और वैली ऑफ वर्ड्स के फेस्टिवल के निदेशक रहे हैं. हाल तक वे लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के निदेशक थे. उनका एक्स हैंडल @ChopraSanjeev हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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