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Friday, 15 November, 2024
होममत-विमतमर्दों की लीडरशिप से काम नहीं चलेगा, भारत के मुसलमानों को एक मजबूत महिला नेता की जरूरत

मर्दों की लीडरशिप से काम नहीं चलेगा, भारत के मुसलमानों को एक मजबूत महिला नेता की जरूरत

भारत को एक ऐसी आधुनिक मुस्लिम महिला की जरूरत है जो अंग्रेजी में बात करती हो लेकिन उसे उर्दू में भी महारत हासिल हो, जो सांस्कृतिक रूप से इस्लामी हो, लेकिन जरूरी नहीं कि वो उसके कपड़ों से झलके.

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एक सवाल: क्या आप एक अखिल भारतीय महिला मुस्लिम नेता का नाम बता सकते हैं? अगर आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, तो इसके पीछे वजह यह है कि पुरुष समुदाय हमेशा से मुसलमानों का आवाज़ उठाने में आगे रहा है भले ही वह मुद्दे महिलाओं से जुड़े हुए क्यों न हों और उन्होंने इसके लिए कुछ छिटपुट काम ही किए हों. चाहे वह बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी हो, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद या फिर वो कुछ मुस्लिम राजनेता जिन्हें हम जानते हैं, इन सभी लोगों ने मुस्लिम समुदाय को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की है और उन्हें गर्त में धकेल दिया है.

2019 में मैंने अपने एक लेख में तर्क दिया था कि भारतीय मुस्लिमों को एक ऐसे नेता की सख्त जरूरत है, जो कांग्रेस के शशि थरूर जैसा लचीला हो – जो कि एक धर्मनिष्ठ हिंदू और धड़ल्ले से ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के शब्दों का इस्तेमाल करने वाले प्रगतिशील राजनेता हैं. एक ऐसा नेता जो धर्मनिरपेक्ष हो, जरूरी नहीं कि वह मुस्लिम हो क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनना चाहता है.

लेकिन अब यह बिल्कुल साफ है कि, देश की न्याय प्रणाली में विश्वास की सामान्य कमी और उनकी स्वतंत्रता और समानता की भावना को काबू में करने के लिए लाए जा रहे कानूनों की वजह से, मुसलमान अब केवल अपने में से ही किसी एक पर भरोसा कर सकते हैं. और हाल के वर्षों ने यह दिखा भी दिया है कि क्यों एक आधुनिक, मुखर और जागृत मुस्लिम महिला को ही नेतृत्व की कमान संभालनी चाहिए.


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ओवैसी कोई हल नहीं हैं

फिलहाल सबसे लोकप्रिय मुस्लिम नेता एआईएमआईएम अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी हैं. लेकिन वह समुदाय के नेतृत्व को लेकर किए गए सवाल का जवाब नहीं है. विपक्षी दलों के लिए ‘वोट-कटवा’ बनकर बीजेपी को फायदा पहुंचाने के उनके प्रयास अब सभी के सामने हैं. मुस्लिम समुदाय कई सालों से उनके झांसे में आता रहा था. लेकिन आज वो उससे बाहर आ गया है. यहां तक कि मीडिया में इनकी कथित हत्या की जो खबरें इतनी तेजी से उछली थीं वो भी लोगों को बरगला न सकीं. क्योंकि 56 इंच का सीना ठोकने की तर्ज पर किए जाने वाले जोशपूर्ण दावे अब रटे-रटाये जैसे लगने लगे हैं.

पिछले तीन दशकों में सबसे भावनात्मक मुद्दा अयोध्या विवाद था. इस मामले में मुस्लिम आवाज पूरी तरह से हावी थी और इसका प्रतिनिधित्व पुरुष सदस्य ही कर रहे थे. अखिल भारतीय बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी में ‘मुस्लिमों के हक’ का प्रतिनिधित्व करने वाले मामले में मुख्य रूप से – पूर्व राजनयिक और राजनेता सैयद शहाबुद्दीन, पूर्व राज्यसभा सदस्य ओबैदुल्लाह खान आज़मी, जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी, समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान और वरिष्ठ अधिवक्ता जफरयाब जिलानी शामिल थे. लेकिन राजनीति में वाहवाही लूटने के अलावा, उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया.

जिन नेताओं की हमें जरूरत नहीं है उनका जिक्र बेमानी है. दरअसल समय यह आकलन करने का है कि भारत में मुसलमानों को एक नेता से क्या चाहिए? क्योंकि 2014 से यानी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मुस्लिम मुद्दों पर जिस तेजी और कटु शब्दों के साथ चर्चा की जा रही है, वो अभूतपूर्व है.


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एक महिला नेता क्यों मायने रखती है

जब मुस्लिम समुदाय के तलाक कानून – तत्काल तीन तलाक – ध्रुवीकरण करने वाले बहस का विषय बन गए, तो फिर से पुरुष सदस्यों ने ही इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के खिलाफ मुखर होकर बात की. समस्या यह है कि बिना एक-दूसरे की बात सुने इस मुद्दे पर बोलने वाले मुस्लिम पुरुषों ने इस तथ्य से ध्यान हटा दिया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस प्रथा को ‘नल एंड वॉयड (null and void)’ घोषित करने के बाद, सरकार द्वारा इसे अपराध की श्रेणी में लाना पूरी तरह से सांप्रदायिक फैसला था. अगर इस मुद्दे को एक मुस्लिम महिला नेता ने उठाया होता तो तीन तलाक कानून लाने के पीछे सरकार की मंशा को बेहतर तरीके से सबके सामने लाया जा सकता था.

हाल ही में सुर्खियों में रहा हिजाब विवाद एक और मुद्दा था जहां एक मुस्लिम महिला की अपनी मर्जी से कपड़े पहनने की आजादी अदालतों के शोरगुल में खो गई. चर्चा इस बात पर होती रही कि इस्लाम में क्या पहनना जरूरी है. एक महिला मुस्लिम नेता ने इस मामले की अगुवाई की होती तो उससे न केवल हिजाब विवाद में लक्ष्य निर्धारित करने में मदद मिलती, बल्कि कर्नाटक को दक्षिण भारत को हिंदुत्व मॉडल बनाने की भाजपा की राजनीतिक कोशिश में, युवा मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा किस तरह से बाधित हो रही है, वो उजागर हो जाता. मुस्लिम महिलाओं की ‘रक्षा’ करने का दावा करने का भाजपा का दिखावा सभी के सामने साफतौर पर आ जाता.

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध ने दिखा दिया कि कैसे भारत की मुस्लिम महिलाएं समुदाय की आवाज बनने का बीड़ा उठा सकती हैं. आज हमें एक आधुनिक मुस्लिम महिला नेता की जरूरत है – वह जो अंग्रेजी और उर्दू में बात करती हो, जो सांस्कृतिक रूप से इस्लामी हो लेकिन जरूरी नहीं, वो उसके कपड़ों से झलके. ऐसी नेता जो मुस्लिम विक्रेताओं के बहिष्कार और उन पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से समुदाय को होने वाले आर्थिक नुकसान की बात करती हो, जो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की बात करती हो. भारत के मुस्लिम समुदाय को दंगा भड़काने वाले की जरूरत नहीं है, हमें एक ऐसे नेता की जरूरत है जो समय के साथ चलते हुए समाज को आगे की ओर ले जाए.

(लेखक एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं जिनका ट्विटर हैंडल @zainabsikander है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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