दक्षिण एशियाई देशों की जटिल भू-राजनीतिक डायनमिक्स को समझने के लिए उन्हें चीन-समर्थक या भारत-समर्थक बाइनरी में अत्यधिक सरलीकृत करने के लालच से बचने की ज़रूरत है. हालांकि, यह अतिसरलीकृत नैरेटिव मालदीव के मामले में सही साबित होती है.
पिछले साल सितंबर में मालदीव में हुए राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज्ज़ू की जीत ने हिंद महासागर के इस छोटे से द्वीपसमूह को सुर्खियों में ला दिया है. उनके कैंपेन ‘इंडिया आउट’ और चीन के साथ उनकी नज़दीकी ने मालदीव की विदेश नीति के रुख में एक बार फिर सबकी रुचि जगा दी है. यह भारत की ‘पड़ोसी पहले (नेबरहुड फर्स्ट)’ नीति पर गहरा प्रभाव डालता है और हिंद महासागर क्षेत्र में नई दिल्ली और बीजिंग दोनों की प्रभाव पर असर डालता है.
मालदीव का झुकाव चीन की ओर हो रहा है
भारत विरोधी भावनाओं ने मुइज्ज़ू प्रशासन को चीन की ओर धकेला है. यह बदलाव तब स्पष्ट हुआ जब परंपरा से हटकर उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत के बजाय तुर्की को चुना. बाद में, 8-12 जनवरी तक, उनकी चीन की पांच दिवसीय राजकीय यात्रा के दौरान उनका रेड कार्पेट स्वागत किया गया, जो मालदीव को रिझाने की चीन की इच्छा और भारत से खुद को दूर करते हुए चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने के मालदीव के स्पष्ट इरादे दोनों को दर्शाता है.
बीजिंग से लौटने के बाद मुइज्ज़ू के बयान से भी यह जाहिर था. उन्होंने जोर देकर कहा, “हम ऐसे देश नहीं हैं जो किसी के घर के पिछवाड़े की तरह हो… हम छोटे हो सकते हैं, लेकिन यह आपको हमें धमकाने का लाइसेंस नहीं देता है.” 14 जनवरी को मालदीव ने 15 मार्च की समय सीमा तय करते हुए अपने क्षेत्र से भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग की.
लक्षद्वीप को लेकर भारत और मालदीव के बीच शुरू हुआ सोशल मीडिया विवाद का प्रभाव वास्तविक धरातल पर दिखने लगा है, जिससे वीबो पर कई बड़े चीनी इन्फ्लुएंसर्स ने मालदीव में अपनी छुट्टियां बिताने की तस्वीरें और वीडियो शेयर किए. उन्होंने चीन के अन्य नागरिकों को मालदीव जाकर छुट्टियां मनाने पर विचार करने के लिए प्रेरित किया.
भारत और मालदीव के बीच बढ़ते मतभेदों ने चीन की मीडिया और वहां के शिक्षा जगत का भी ध्यान अपनी ओर खींचा है. सिचुआन इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने भारत को चीन-भारत-मालदीव के डायनमिक्स को ज़ीरो-सम-गेम मानने के प्रति आगाह किया. एक अन्य टिप्पणी में चीन के साथ मालदीव की नज़दीकी को “विश्वासघात” मानने के लिए भारतीय मीडिया और टिप्पणीकारों की आलोचना की गई. जिसमें कहा गया कि यह मालदीव के प्रति उनके सम्मान की कमी को दर्शाता है.
हालांकि, मुइज़्ज़ू की चुनावी जीत और भारत के प्रति उनके टकरावपूर्ण रुख का चीनी सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से जश्न मनाया जा रहा है. कई वीबो यूज़र्स इसे चीन की जीत और भारत के लिए प्रतिकूल खबर के रूप में देख रहे हैं. मुइज़्ज़ू के ‘इंडिया आउट’ कैंपेन को तारीफ मिली, और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए उनके समर्थन को एक पॉज़िटिव डेवलेपमेंट के रूप में देखा गया, जो भारत के मुकाबले चीन के लिए उनकी प्राथमिकता को दर्शाता है.
दिलचस्प बात यह है कि टिकटॉक पर #ChinaMaldivesfriendshipbridge वाले वीडियो को 100,000 से अधिक बार देखा गया. मुइज़्जू ने इस गर्मजोशी का जवाब टिकटॉक पर चीन में अपनी व्यस्तताओं को बता के किया, जिसका उद्देश्य चीनियों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में अपने व्यक्तिगत और अपने देश के हित को दिखाना है.
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चीन की विन-विन पार्टनरशिप
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मुइज़्जू को “एक पुराना मित्र” कहा, संबंधों को व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी के स्तर तक बढ़ाया और विभिन्न क्षेत्रों में 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए. हालांकि, मालदीव के साथ चीन के बढ़ते जुड़ाव के पीछे प्राथमिक प्रेरणा भारत पर नियंत्रण और हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक हितों की खोज है.
मुइज़्ज़ू का झुकाव चीन द्वारा भारत को ‘दक्षिण एशिया बॉक्स’ के भीतर सीमित रखे जाने में मदद करता है, जैसा कि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी पुस्तक द इंडिया वे में जोर देकर कहा है. चीन-मालदीव संयुक्त बयान में, भारत का एक बहुत छोटा सा संदर्भ भी दिया गया था: “दोनों देशों ने हमेशा एक-दूसरे का सम्मान और समर्थन किया है, विभिन्न आकार के देशों के बीच समानता, पारस्परिक लाभ और विन-विन को-ऑपरेशन का एक अच्छा उदाहरण स्थापित किया है.”
अपनी यात्रा के दौरान, मुइज़्ज़ू ने पिछले कुछ वर्षों में चीन द्वारा शुरू की गई हर पहल को अपना समर्थन दिया. यह चीन के लिए एक जीत है क्योंकि मालदीव बीआरआई का समर्थन करता है और उसे अपनाता है, इसे करीब 1.2 मिलियन फॉलोअर्स वाले एक वीबो यूज़र ने ‘विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे और जीवन स्तर में सुधार लाने के उद्देश्य से एक नैतिक रूप से आधारित परियोजना’ बताया है. मालदीव पर पहले से ही 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का चीनी कर्ज़ है. बीआरआई के प्रति यह अटूट और निर्विवाद निष्ठा संभावित रूप से मालदीव को श्रीलंका वाले रास्ते पर ले जा सकती है. हालांकि, दूसरी ओर, बीआरआई के लिए मालदीव का समर्थन चीन के लिए फायदेमंद है, खासकर क्योंकि कई प्रमुख देश इस पहल को आशंका के साथ देखते हैं और इससे दूरी बनाकर रखे हुए हैं.
चीन ने मालदीव को सार्वजनिक रूप से तथाकथित ‘वन चाइना’ सिद्धांत का पालन करने के लिए भी राजी किया. मालदीव ने स्पष्ट रूप से ताइवान को चीनी क्षेत्र के एक अविभाज्य हिस्से के रूप में मान्यता दी है, ऐसे समय में जब दुनिया ‘वन चाइना’ नीति का सख्ती से पालन करने से दूरी बना रही है और ताइवान के साथ आर्थिक संभावनाएं तलाश रही है.
कुछ दक्षिण एशियाई देशों के लिए भारत और चीन के पाले में आते-जाते रहना कोई नया दृष्टिकोण नहीं है. रणनीतिक रूप से अपने अधिकतम हितों के लिए दोनों देशों के बीच की प्रतिस्पर्धा का लाभ उठाना, एक ऐसा दृष्टिकोण रहा है जो लंबे समय में कई लोगों के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुआ है.
चीन से लौटने के बाद, मुइज़्ज़ू ने भारत का स्पष्ट रूप से उल्लेख किए बिना, जोर देकर कहा कि मालदीव धमकी के आगे नहीं झुकेगा. फिर भी, सवाल उठता है: भारत से दूरी बनाकर, चीन के साथ जुड़ने और संभावित रूप से एक क्लाइंट स्टेट बनना व चीन के कर्ज के जाल (China’s Debt Trap) में फंसना कितना समझदारी भरा है?
(सना हाशमी, पीएचडी, ताइवान-एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन और जॉर्ज एच.डब्ल्यू फाउंडेशन फॉर यूएस-चायना रिलेशन्स में फेलो हैं . उनका एक्स हैंडल @sanahashmi1 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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