आपकी और मेरी याददाश्त जहां तक जाती हो, भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के प्रति नापसंदगी की किताब में सदैव नए अध्याय जोड़ते गए हैं. दोनों देशों ने 2019 में भी ना सिर्फ इस चलन को जारी रखा, बल्कि उन्होंने दुनिया को ये दिखाने के लिए अतिरिक्त प्रयास भी किए कि परस्पर पड़ोस में रहना कितना मुश्किल है.
अब जब 2019 का साल खत्म होने को आया, बीते दिनों की घटनाओं पर नज़र डालने पर स्पष्ट देखा जा सकता है कि कई अवसरों पर भारत और पाकिस्तान के संबंध और भी खराब हो गए.
बालाकोट हवाई हमला, भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान का पकड़ा जाना, टमाटर के निर्यात पर भारत का प्रतिबंध, कुलभूषण जाधव पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला और जम्मू कश्मीर पर लागू अनुच्छेद 370 को अप्रभावी बनाया जाना जैसी कई घटनाएं ऐसी थीं कि जिनके कारण पाकिस्तान में तरह-तरह की भावनाएं, प्रतिक्रियाएं और नाराजगी देखने को मिलीं.
2019 में ऐसा एक भी दिन नहीं गुजरा जब भारत और पाकिस्तान ने तनाव बढ़ाने वाले क्रियाकलापों से परहेज किया हो. लोकसभा चुनाव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान पर विशेष फोकस ने पाकिस्तानियों समेत हर किसी को व्यस्त रखा. इस बात में कोई संदेह नहीं कि 2020 का वर्ष 2019 जितना तनावपूर्ण नहीं रहेगा.
नामालूम पायलट, कुछ पेड़ और एक कौवा
ये सब 14 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले से शुरू हुआ था. और दो हफ्ते बाद ही, 26 फरवरी को, भारत के मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने सीमा पार पाकिस्तान में लगभग 70 किलोमीटर भीतर घुसकर बालाकोट में एक पहाड़ी के ऊपर जैश-ए-मोहम्मद के कथित शिविर पर बमबारी की.
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उरी हमले के बाद 2016 में उसके इलाके में घुसकर भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक किए जाने से इनकार करने के विपरीत, हमें बालाकोट हवाई हमलों की जानकारी पहली बार पाकिस्तान सेना से ही मिली थी, जब पाकिस्तानी सशस्त्र सेनाओं के जनसंपर्क महानिदेशक मेजर जनरल आसिफ गफ़ूर ने अहले सुबह इस बारे में ट्वीट किया. हमें बता गया था कि भारतीय वायुसेना ने जल्दबाजी में अपना असला गिरा दिया. हालांकि एक बात ने हमें जरूर हैरान किया था: भारतीय वायुसेना इतनी जल्दी में क्यों थी?
पाकिस्तान के रडारों को भारतीय लड़ाकू विमानों की आहट नहीं लग पाने में अचरज जैसी कोई बात नहीं थी. जब ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए अमेरिकी विशेष बलों के पाकिस्तान में घुसते समय पाकिस्तानी रडारों ने काम नहीं किया था तो वे बालाकोट हवाई हमलों के दौरान कैसे काम कर सकते थे? पाकिस्तान क्यों भारत को रोकने में विफल रहा, इसका सबसे अच्छा जवाब रक्षा मंत्री परवेज खट्टक ने दिया: ‘अंधेरा था’.
जहां तक बालाकोट हवाई हमले में निशाना बने लक्ष्यों की बात थी, तो इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रखी गई – एक कौवा और 19 पेड़. भारत का 300 आतंकवादियों को मार गिराने का शुरुआती दावा एक मिथक भर था. पाकिस्तान के वन विभाग द्वारा नामालूम (अज्ञात) भारतीय पायलटों के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी में न केवल पाकिस्तानी क्षेत्र में घुसने के बल्कि बालाकोट में देवदार के पेड़ों को नष्ट करने के भी आरोप लगाए गए.
अभिनंदन की चाय
बालाकोट में एक कौवे और कुछ पेड़ों की हत्या का बदला लेने के लिए पाकिस्तान ने अगली सुबह 27 फरवरी को जवाबी कार्रवाई की. हमें बताया गया कि पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा एक नहीं, बल्कि दो भारतीय विमानों को मार गिराया गया. इसी तरह अधिकारियों ने एक नहीं बल्कि दो भारतीय पायलटों को बंदी बनाने का दावा किया. लेकिन हमारे सामने उनमें से केवल एक को ही पेश किया गया. दूसरा कहां गायब हो गया? यह एक रहस्य है और आगे भी रहेगा क्योंकि किसको इसकी पड़ी है.
वैसे गौरव भाव पाकिस्तान के हिस्से में आया क्योंकि अभिनंदन वर्धमान पैराशूट से पाकिस्तान में कूदे थे. किसी अच्छे मेजबान की तरह पाकिस्तानी सेना ने उन्हें चाय पेश की, जिसे उन्होंने शानदार बताया. उनकी चाय की रसीद दस्तावेजों में दर्ज हो चुकी है. भारत द्वारा उन 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का पेट भरने की बात भूल जाइए जिन्हें 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में आत्मसमर्पण के बाद भारत ने युद्धबंदी बनाया था, भारत को सर्वाधिक कीमत चुकानी पड़ेगी बंदी बनाए जाने के दौरान अभिनंदन को परोसी गई चाय की.
ऐसा लगा मानो अभिनंदन को पाकिस्तान से प्यार हो गया हो. हमने बेहद संपादित एक वीडियो में उन्हें भारतीय मीडिया की आलोचना करते हुए देखा. मुझे लगता है दोनों पड़ोसियों के बीच तनाव के उन क्षणों में ‘मेक चाय, नॉट वॉर’ की उक्ति अचानक प्रासंगिक हो गई थी.
लोगों को ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि अभिनंदन को रिहा किए जाने में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के नोबेल शांति पुरस्कार जीतने की संभावना देखी जा रही थी. हालांकि ऐसा हो नहीं पाया. आज पाकिस्तान की स्मृतियों में अभिनंदन या तो युद्ध संग्रहालय के एक पुतले के रूप में या फिर चाय की एक दुकान के प्रचार के रूप में हैं: ऐसी चाय जो दुश्मन को भी दोस्त बनाए. चाय को लेकर भले ही उलाहने दिए जाते हों, पर इसे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने पर एक शांतिकारक पेय के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
भारत के खिलाफ योजना
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के भारत के कदम से इमरान ख़ान सरकार के लिए कूटनीति और भी मुश्किल हो गई थी.
ऐसे में पाकिस्तान के लिए मोदी सरकार के खिलाफ कोई कदम उठाना अनिवार्य हो गया था और उसे ट्विटर पर हुंकार भरने से आगे कुछ करने की जरूरत थी. प्रधानमंत्री ख़ान के लिए तो भारत के खिलाफ कुछ ठोस करने की कुछ ज्यादा ही जरूरत थी क्योंकि बीते वर्षों में वह ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ का शोर मचाते रहे थे. इसलिए उन्होंने घोषणा की कि कश्मीरियों से एकजुटता दिखाने के लिए हर पाकिस्तानी को जुमे के दिन अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए, ऐसा वास्तव में करने को कहा गया न कि महज मुहावरे के तौर पर.
यह कवायद एक ही हफ्ते चली क्योंकि सप्ताहांत तक लोग इतने थक गए कि दोबारा आधा घंटा खड़ा रहने (आसान नहीं है) की तो बात ही छोड़ें, वे इस पर विचार तक करने को तैयार नहीं थे. सबसे मुश्किल काम विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी का था: कश्मीर मुद्दे पर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का; विषुवत रेखा के दोनों ओर, और उससे भी आगे, तमाम लोगों को स्थिति से अवगत कराने का. क़ुरैशी ने सिर्फ खुद को समझाने की कोशिश नहीं की, क्योंकि कश्मीर में हुआ क्या ये बात साफ तौर पर उन्हें समझ में नहीं आ रही.
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संयुक्तराष्ट्र में पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे पर समर्थन जुटाने की कितनी मशक्कत की इसमें नहीं जाते हुए हमें इस बात को याद रखने की जरूरत है कि संयुक्तराष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री ख़ान का 50 मिनट का भाषण शानदार था.
पर असाधारण समय में असाधारण कदमों की दरकार होती है, इसलिए पाकिस्तानी सेना ने दो मिनट का गीत जारी कर भारत से कश्मीर छोड़ने को कहा: ‘इंडिया जा जा कश्मीर से निकल जा, मेरी जन्नत मेरे घर से निकल जा.’ लेकिन अभी तक इसका परिणाम यही है कि भारत ‘हमारी जन्नत’, ‘हमारे कश्मीर’ से नहीं निकला है. हमने ये जरूर जाना कि भारत के चंगुल से कश्मीर को आज़ाद कराने के पाकिस्तान के उपायों में देशभक्ति वाला आइटम गीत भी शामिल है. लक्ष्य हासिल होने तक ये सब चलता रहेगा.
जश्न जारी रखो, चाहे जो हो जाए
ध्यान बंटाने वाली तमाम घटनाओं के बीच कुलभूषण जाधव पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला पाकिस्तान के लिए एक और महत्वपूर्ण अवसर था. फैसले को जीत के रूप में लिया गया – ये अलग बात है कि अदालत ने पाकिस्तान को वियना संधि के उल्लंघन का दोषी करार दिया. पाकिस्तान सरकार के अधिकारियों में झूठी जीत का यही भाव तब भी दिखा जब जैशे मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया गया. बस जश्न मनाते रहो, किंतु-परंतु के चक्कर में मत पड़ो.
करतारपुर गलियारा खोले जाने को शांति की अभिव्यक्ति बताया गया, पर क्या 2020 में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति के कोई संकेत दिखेंगे?
(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @nailainayat हैंडल से ट्वीट करती हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
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