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Friday, 22 November, 2024
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ज्यादातर भारतीयों में नेचुरल इम्युनिटी, पूरी आबादी का टीकाकरण काफी नुकसानदेह हो सकता है

ठीक हो चुके कोविड मरीजों को टीके से कोई लाभ तो होगा नहीं बल्कि कुछ नुकसान जरूर हो सकता है. ऐसे में उन्हें टीका लगाना अनैतिक है.

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अब जबकि 2021 शुरू हो चुका है, भारत में कोविड-19 महामारी ऐसे मुकाम पर पहुंच गई है, जहां आबादी के अधिकांश हिस्से में वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है. हालांकि, बीमारी के कारण बहुत से लोगों की जान गई है लेकिन अच्छी बात ये है कि भारत में कोविड के कारण मृत्यु दर कई अन्य देशों की तुलना में काफी कम है. अब वैक्सीन का रोल-आउट तय हो जाने से एक चुनौतीपूर्ण वर्ष का सामना करने के बाद उम्मीदें जगाने वाली वजहें मौजूद हैं.

भारत में कोविड से निपटने की नीति बनाने वालों के सामने सबसे पहला सवाल यही है कि देश में महामारी के खात्मे तक इस बीमारी से बचाव के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल बेहतर ढंग से कैसे किया जाए, जिसका रोल-आउट 16 जनवरी को होगा और इसे सबसे पहले तीन करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों को लगाया जाएगा. जनसंख्या के आकार और वैक्सीन के उत्पादन की दर को देखते हुए यह तय है कि पूरी आबादी के टीकाकरण में काफी समय लग सकता है. इसलिए यह तय करना आवश्यक ही होगा कि प्राथमिकता किसे दी जाए.

वैक्सीन आने के बाद भी अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने वायरस के संक्रमण पर काबू पाने के प्राथमिक साधन के रूप में लॉकडाउन लगाए रहना जारी रखा है. इसके नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं, व्यवसाय, स्कूल और धार्मिक स्थल बंद होने के बावजूद कोविड केस और इसके कारण मौतों का आंकड़ा बढ़ ही रहा है. भारतीय नीति निर्धारकों को इन बुरे उदाहरणों से ठीक से सीख लेनी चाहिए और देशभर में लाखों गरीब लोगों का जीवन और आजीविका तबाह कर देने वाले लॉकडाउन से बचना चाहिए.

मृत्युदर के आंकड़े हमें बताते हैं कि कोविड संक्रमण बुजुर्ग आबादी के लिए सबसे बड़ा जोखिम है. दुनियाभर में 70 से कम उम्र के लोगों में संक्रमण के बाद ठीक होने होने की दर 99.95 प्रतिशत है, जबकि 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र वालों के लिए यह आंकड़ा 95 प्रतिशत है. ऐसे में नैतिकता तो यही कहती है कि वैक्सीन सबसे पहले कोविड मरीजों की देखभाल करने में जुटे अग्रणी स्वास्थ्यकर्मियों के साथ-साथ 70 और उससे अधिक उम्र के लोगों को दी जानी चाहिए.

संकट यह है कि भारत में बुजुर्गों की आबादी 8.8 करोड़ है और ऐसे में आने वाले कुछ महीनों में उन सबके लिए टीके की पर्याप्त खुराक उपलब्ध नहीं हो पाएगी. हमारा तर्क है कि केवल उन लोगों को टीका लगाया जाना चाहिए जो पहले संक्रमित नहीं हुए हैं, यही टीकाकरण में सबसे अधिक लाभान्वित होने वाले लोगों को लक्षित करने का उपयुक्त तरीका होगा.


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कोविड से उबरने के बाद इम्युनिटी

ये वैज्ञानिक साक्ष्य उत्साहित करने वाले हैं कि कोविड संक्रमण से उबरने के बाद हासिल होने वाली नेचुरल इम्युनिटी काफी लंबे समय तक चलती है. संक्रमण के बाद विशिष्ट एंटीबॉडीज का उत्पादन, टी-सेल और बी-सेल जैसी प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं होती हैं जो कि लगभग हर ठीक हो चुके मरीजों को पुन: संक्रमण से बचाती हैं. महामारी फैलने के बाद की करीब एक वर्ष की अवधि में अब तक सामने आए 9 करोड़ मामलों और संभवत: संक्रमण का शिकार हो चुके हजारों-लाखों लोगों के बीच केवल 34 केस और दो मरीजों की मौत की घटनाएं ऐसी हैं जिन्हें पुन: संक्रमण होने की बात सामने आई है.

टीकाकरण कराने वालों में वैक्सीन के कारण उसी तरह का इम्यून सिस्टम विकसित होता है जैसी प्रतिक्रिया संक्रमण के बाद प्राकृतिक रूप से होती है. यद्यपि क्लीनिकल ट्रायल में दर्ज की गई कोविड वैक्सीन की प्रतिरक्षा क्षमता एकदम उत्कृष्ट है लेकिन प्रभावकारी होने के मामले में यह नेचुरल इंफेक्शन वाली इम्युनिटी की बराबरी नहीं कर सकती.

इसके अलावा, जो लोग पहले ही संक्रमण के कारण कोविड की प्रति इम्युनिटी विकसित कर चुके हैं उन्हें टीकाकरण से अतिरिक्त प्रतिरक्षा क्षमता हासिल होने की गुंजाइश नहीं के बराबर है. उदाहरण के तौर पर फाइजर रैंडमाइज्ड ट्रायल में पहले ही संक्रमित हो चुके लोगों को भी टीका दिया गया ताकि इस समूह में वैक्सीन की सुरक्षा की जांच की जा सके. लेकिन इन मरीजों को प्रभावकारिता के विश्लेषण से बाहर रखा गया, क्योंकि वैज्ञानिक संभवत: यह समझ चुके थे कि टीका उन्हें कोई अतिरिक्त लाभ नहीं देगा.

हर वैक्सीन के कुछ दुष्प्रभाव होते हैं और मंजूरी हासिल कर चुके कोविड टीके हालांकि सुरक्षित हैं लेकिन वे कोई अपवाद नहीं हैं. अधिकांश साइड इफेक्ट हल्के होते हैं—जैसे इंजेक्शन की जगह पर खिंचाव, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के कारण दर्द और पीड़ा—लेकिन गंभीर प्रतिकूल असर वाली घटनाएं कम ही होती हैं. ठीक हो चुके मरीजों को टीके से कोई खास लाभ नहीं होता बल्कि उल्टे नुकसान जरूर हो सकता है. इसलिए उन्हें टीका लगाना अनैतिक है.

भारत नेचुरल इम्युनिटी में उच्च स्तर पर पहुंच रहा है

ये विचार केवल सैद्धांतिक स्तर के नहीं हैं कि भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा पहले ही संक्रमित होकर ठीक हो चुका है. वैसे तो भारत में कोविड मामलों का आंकड़ा आधिकारिक तौर पर लगभग 1.4 करोड़ है, लेकिन गणितीय मॉडल बताते हैं कि संभवत: 50 प्रतिशत से अधिक भारतीय आबादी में वायरस के प्रति नेचुरल इम्युनिटी विकसित हो चुकी होगी.

यह तथ्य थायरोकेयर की तरफ से कोविड एंटीबॉडी पर बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रूप से किए गए सीरोलॉजिकल टेस्ट से सामने आया है. थायरोकेयर के संस्थापक डॉ. ए. वेलुमणि कहते हैं, ‘प्रकृति…पहले ही स्वतंत्र रूप से, चुपचाप 70% भारतीयों का टीकाकरण कर चुकी है.’

यद्यपि, यह एक बुरी खबर लग सकती है, क्योंकि इसका मतलब है कि लगभग एक अरब भारतीय पहले ही संक्रमित हो चुके हैं, लेकिन इसका उजला पहलू यह है कि एक विशाल आबादी संक्रमण से उबर चुकी है और प्राकृतिक रूप से लंबे समय चलने वाली प्रतिरक्षा क्षमता हासिल कर चुकी है. ये लोग टीके के जरिये इम्युनिटी हासिल करने वालों की तुलना में संभवतः लंबे समय तक कोविड से बेहतर ढंग से बचे रहेंगे, क्योंकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि टीकाकरण से मिलने वाली प्रतिरक्षा कितने समय तक रहती है.

पिछले संक्रमण की जांच आसान है. टीकाकरण से पहले लोगों से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे पहले संक्रमित हो चुके हैं, और यदि उत्तर न है, तो एंटीबॉडी के लिए एक सस्ता टेस्ट कराया जाना चाहिए. यदि वह परीक्षण निगेटिव रहता है तभी वैक्सीन लगाई जानी चाहिए. यह प्रक्रिया पिछले सभी संक्रमणों के बारे में जानकारी नहीं भी दे सकती है क्योंकि एंटीबॉडी कुछ महीनों के बाद खत्म हो जाती है, और कई संक्रमित लोगों को कोविड केस के रूप में पहचानना मुमकिन नहीं है. फिर भी, यह प्रक्रिया बड़ी संख्या में लोगों को अनावश्यक टीकाकरण से बचा लेगी.

इस तरह से पहले संक्रमित नहीं हुए लोगों के लिए वैक्सीन की खुराक जुटाकर वैक्सीनेशन के शुरुआती महीनों में टीके की अतिरिक्त मांग की समस्या को हल किया जा सकता है, जब सभी लोगों के लिए पर्याप्त खुराक उपलब्ध कराना मुश्किल होगा.

टीकाकरण में ज्यादा जोखिम वालों को प्राथमिकता दें

एक ऐसी बीमारी, जिसमें एसिमप्टमैटिक मामले ज्यादा सामने आते हैं और जो कम जटिल या कम जानलेवा संक्रमण वाली है, में टीकाकरण का पहला लक्ष्य हर्ड इम्युनिटी के स्तर पर पहुंचना है न कि यूनिवर्सल वैक्सीनेशन के जरिये इसे जड़ से मिटाना, जो कि एक तरह से असंभव भी है. एकमात्र ह्यूमन वायरस जिसे दुनिभाभर में पूरी तरह से खत्म कर दिया गया वह चेचक है, और एक उत्कृष्ट वैक्सीन की उपलब्धता के बावजूद इस प्रयास में दशकों लग गए. इस असंभव लक्ष्य का पीछा करना भारत के लिए काफी नुकसानदेह हो सकता है.

इसके विपरीत सुरक्षात्मक रणनीति पर फोकस करते हुए टीकाकरण अभियान चलाना, जिसमें पहले संक्रमित नहीं हुए सबसे ज्यादा जोखिम वाले लोगों को वैक्सीन देना प्राथमिकता हो, कोविड संक्रमण के कारण मृत्यु दर को लगभग शून्य कर देगा और यही एक बेहतर रणनीति है.

एक बार जोखिम वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाए और अपेक्षाकृत कम संवेदनशील आबादी का भी टीकाकरण हो जाए तो आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत लॉकडाउन प्रतिबंधों को हमेशा के लिए और पूरी तरह हटा दिया जाना चाहिए. लॉकडाउन के कारण होने वाला आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक नुकसान कम जोखिम वाले लोगों में कोविड के कारण गंभीर बीमारी और मृत्युदर से कहीं बहुत ज्यादा होता है. अब चाहे टीका लगे या नेचुरल इम्युनिटी हो इससे जोखिम वाले लोगों की रक्षा ही होगी, ऐसे में बचे-खुचे लॉकडाउन प्रतिबंधों को जारी रखने का कोई नैतिक कारण नहीं होगा.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संजीव अग्रवाल मुंबई स्थित गुड गवर्नेंस इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक हैं. जय भट्टाचार्य स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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