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Thursday, 28 November, 2024
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महाराष्ट्र, झारखंड के नतीजे दिखाते हैं भारत में चुनाव टेनिस मैच जैसे होते हैं : कार्ति चिदंबरम

भारतीय राजनीति का भविष्य अब राज्य-केंद्रित समीकरणों के मुताबिक, खुद को ढालने और मतदाताओं के साथ निरंतर करीबी संपर्क बनाए रखने की राजनीतिक दलों की क्षमता पर निर्भर करेगा.

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भारत का चुनावी परिदृश्य हमेशा विविधताओं से भरा रहा है — मतदाताओं के बीच चर्चित होने वाले मुद्दों के दृष्टिकोण से भी और राजनीतिक गतिशास्त्र या समीकरणों के दृष्टिकोण से भी. राष्ट्रीय मीडिया में तो चुनावों को अक्सर विशद रूप में पेश किया जाता है, लेकिन इसके उलट, अब कोई एक ऐसा राष्ट्रीय ‘नैरेटिव’ नहीं होता जो पूरे देश को बांध सके. हर एक राज्य का अपना-अपना विशिष्ट राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ है, जो राजनीतिक दलों के लिए अलग-अलग तरह की चुनौतियां और अवसर प्रस्तुत करता है. इस नज़रिए से, भारत में चुनाव टेनिस मैच जैसे लगते हैं जिसमें हर एक सेट अपने में एक स्वतंत्र मुकाबला होता है और इसी तरह किसी एक राज्य का चुनाव नतीजा दूसरे राज्य के चुनाव नतीजे को प्रभावित नहीं करता.

हाल में संपन्न हुए महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश, केरल, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में हुए उपचुनाव भी टुकड़ों-टुकड़ों में बंटी इस चुनावी हकीकत का स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं. इन राज्यों के चुनाव नतीजे इस तथ्य को उजागर करते हैं कि स्थानीय हालात, ज़मीनी समीकरण और हर एक क्षेत्र की अपनी भावनाएं प्रायः राष्ट्रीय रुझानों को खारिज करते हुए मतदाताओं के व्यवहार को दिशा देने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं.

महाराष्ट्र : राष्ट्रीय मीडिया के लिए सबक

महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे खासतौर से चौंका देने वाले रहे हैं और ये मतदाताओं की सूक्ष्म भावनाओं को पूरी तरह समझने में मुख्यधारा की मीडिया की अक्षमता के बारे में अहम सबक को रेखांकित करते हैं. महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों के साथ जुड़े आनुषंगिक संगठनों ने — खासकर आरएसएस, जो औपचारिक राजनीतिक संरचना से परे समाज में गहरी पैठ रखता है — भाजपा को महत्वपूर्ण बढ़त लेने में मदद की. इसके विपरीत, कांग्रेस पार्टी का ऐसा कोई व्यापक सामाजिक नेटवर्क नहीं है इसलिए उसने खुद को बचाव की मुद्रा में पाया.

महाराष्ट्र के नतीजे कांग्रेस के लिए झटका तो रहे, उन्होंने यह भी याद दिलाया कि राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में गैर-राजनीतिक संगठनों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती जा रही है. राष्ट्रीय मीडिया इस पहलू की अक्सर अनदेखी कर देता है, जिसके कारण वह मतदाताओं की पसंद और भारतीय राजनीति की वास्तविक स्थिति के बारे में खंडित समझ बना लेता है.

हर राज्य के अपने समीकरण

हाल में हुए राज्यों के चुनाव और उपचुनाव समग्र राष्ट्रीय रुझान के अभाव को और उजागर करते हैं. हर एक राज्य का अपना अलग राजनीतिक ‘व्याकरण’ है, जो मतदान के विविध तरह के रूपों में सामने आता है. उदाहरण के लिए झारखंड में मतदाताओं का व्यवहार महाराष्ट्र के मतदाताओं के व्यवहार से बिलकुल अलग रहा, जबकि कर्नाटक में उपचुनाव के नतीजों ने बिल्कुल अलग संदेश दिया.

कई राज्यों में हुए उपचुनावों ने राजनीतिक हकीकत के विविध रूपों की झलक प्रस्तुत कर दी. केरल में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी-अपनी सीट जीत ली, जबकि पालक्कड में भाजपा अपनी सीट न बचा सकी और दूसरे नंबर पर रही. राजस्थान में भाजपा ने पांच और कांग्रेस ने एक सीट जीती. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) विजेता बनकर उभरी, तो पंजाब में ‘आप’ तीन सीटें समेट ले गई जबकि कांग्रेस एक सीट जीतने में सक्षम रही.

एक सबसे उल्लेखनीय नतीजा मध्य प्रदेश में मिला, जहां भाजपा सरकार के वन मंत्री रामनिवास रावत विजयपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार से हार गए. यह इस बात का एक और संकेत है कि एक ही पार्टी के गढ़ में मतदाताओं की भावनाओं में नाटकीय फर्क आ सकता है. इसी तरह, कर्नाटक में कांग्रेस ने उपचुनाव वाली सभी सीटें जीतकर इस राज्य के अपने विशेष राजनीतिक चरित्र को उजागर कर दिया.

कांग्रेस नांदेड़ लोकसभा सीट जीतने में तो सफल रही थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों पर हार गई, जिससे साबित हुआ कि एक ही क्षेत्र के अंदर चुनाव नतीजे कितने उलटे मिल सकते हैं. ये चुनाव एक महत्वपूर्ण तथ्य को रेखांकित करते हैं कि राज्यों के चुनाव नतीजे स्थानीय मुद्दों से तय होते हैं और वे अपेक्षित राष्ट्रीय पटकथा के अनुसार, शायद ही आते हैं. क्षेत्रीय दलों और स्थानीय गठबंधनों के असर और हर एक राज्य में मतदाताओं के विशेष सरोकारों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा जा सकता.

ज़मीन से जुड़ाव और संवाद का महत्व

इन चुनावों का एक महत्वपूर्ण सबक यह है कि राजनीतिक दलों को चुनावी दौर के सिवा भी जनता से निरंतर संवाद करते रहना चाहिए. राजनीति को केवल चुनाव प्रचार में नहीं सिमटाया जाना चाहिए. इसे जनता के साथ निरंतर जारी गहरे संवाद में बदलना चाहिए ताकि यह संवाद केवल वोट जुटाने के प्रयास के रूप में नहीं हो बल्कि मतदाताओं के अनुभवों, सरोकारों और आकांक्षाओं को छूने वाला हो. निरंतर ऐसे अर्थपूर्ण प्रयासों के जरिए ही पार्टियां मतदाताओं के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाती हैं और उनकी नब्ज को समझती हैं.

प्रियंका की बढ़ती लोकप्रियता

वायनाड लोकसभा सीट से प्रियंका गांधी की जीत राष्ट्रीय राजनीति के व्यापक परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है. यह जीत उनके लिए एक बड़ी व्यक्तिगत उपलब्धि है. वे न केवल बड़े अंतर से जीतीं बल्कि 2024 के आम चुनाव में सबसे बड़े अंतर से जीतने के पिछले रेकॉर्ड को भी तोड़ा. यह उनके नेतृत्व की बढ़ती लोकप्रियता का भी संकेत है. यह जीत उनके लिए बढ़ते समर्थन और उत्साह को भी दर्शाता है और यह संकेत देता है कि वे अपना एक राजनीतिक स्थान बना रही हैं.

निष्कर्ष : कोई राष्ट्रीय रुझान नहीं, केवल स्थानीय वास्तविकताएं

विभिन्न राज्यों में हुए ताजा विधानसभा चुनाव और उपचुनाव के नतीजे इस सीधी-सी सच्चाई की पुष्टि करते हैं कि देश की राजनीति में फिलहाल कोई राष्ट्रीय रुझान नहीं है. हरेक राज्य अपनी विशिष्ट राजनीतिक संस्कृति और स्थानीय वास्तविकताओं के साथ अपना अलग रास्ता चुनता है. मुख्यधारा का मीडिया प्रायः इस जटिलता को पकड़ नहीं पाता और उस एक व्यापक राष्ट्रीय ‘नैरेटिव’ को ढूंढने लगता है जिसका कोई अस्तित्व है नहीं. इस विभाजित परिप्रेक्ष्य में स्थानीय कारक, जमीनी संगठन, और मतदाताओं से व्यक्तिगत स्तर पर संबंध बनाने की क्षमता ही चुनाव नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं.

इन चुनावों ने भाजपा की बदलती रणनीति भी उजागर कर दी है. जैसा कि हरियाणा और अब महाराष्ट्र के चुनाव से जाहिर है, यह पार्टी चुनावों को उत्तरोत्तर संस्थागत रूप देती जा रही है. वह केवल नरेंद्र मोदी की छवि पर निर्भर नहीं कर रही है. एक समय था जब वह मुख्यतः उनकी निजी छवि के बल पर चुनाव जीत रही थी, लेकिन अब अधिक ढांचागत, संस्थागत स्वरूप पर ज़ोर दिया जा रहा है. यह इस बात का संकेत दे रहा है कि मतदाता का समर्थन हासिल करने में मोदी की छवि का जादू फीका पड़ता जा रहा है.

पार्टी की उभरती रणनीति चुनाव जीतने में स्थानीय समीकरणों, और पार्टी के ढांचे की अहमियत को प्राथमिकता दे रही है. भारतीय राजनीति का भविष्य अब राज्य-केंद्रित इन समीकरणों के मुताबिक खुद को ढालने और मतदाताओं के साथ निरंतर करीबी संपर्क बनाए रखने की राजनीतिक दलों की क्षमता पर निर्भर करेगा. चुनावी परिदृश्य जबकि निरंतर विविधतापूर्ण होता जा रहा है और इसके चलते एक राष्ट्रीय राजनीतिक ‘नैरेटिव’ अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है, तब चुनाव नतीजे स्थानीय रुझानों से ही तय होंगे.

(कार्ति पी चिदंबरम शिवगंगा से सांसद और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं. वे तमिलनाडु टेनिस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी हैं. उनका एक्स हैंडल @KartiPC है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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