जिस तरह का घिनौना, बेशर्म घालमेल महाराष्ट्र में महा विकास अगाड़ी की अस्वाभाविक सरकार बनाने में हुआ था, वो पूरे कोरोनावायरस संकट के दौरान स्पष्ट रूप से दिखता रहा है. तीनों दलों- शिवसेना, कांग्रेस और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी- ने एक बार भी साथ मिलकर काम नहीं किया.
इधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनके सहयोगी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने, साफ तौर पर महाराष्ट्र की विफलता में कांग्रेस की ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है, उधर प्रदेश के गृहमंत्री अनिल देशमुख जैसे एनसीपी नेता भी बिल्कुल नाकारा साबित हुए, जिससे संकट और बढ़ गया. चतुर शरद पवार की भूमिका भी अटकलबाज़ियों की दलदल में धंसी है. मुख्यमंत्री उधव ठाकरे के साथ उनकी लम्बी बैठकें चलीं हैं, लेकिन हमें नहीं मालूम कि वो बैठकें कोई सकारात्मक सलाह देने के लिए थीं या उनका मक़सद एनसीपी को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार से कुछ काम निकालना था.
पूरी तरह ग़ौर किया जाए, तो मुख्यमंत्री ठाकरे के घिसे-पिटे फेसबुक लाइव्ज़ के बावजूद, महाराष्ट्र में कोविड-19 की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. आज देशभर में कोरोनावायरस के कुल मामलों में, 36 प्रतिशत से अधिक योगदान महाराष्ट्र का है, हर रोज़ यहां औसतन 2,000 नए केस सामने आते हैं. महाराष्ट्र में कोविड-19 की मृत्यु दर 3.25 प्रतिशत है, जो 2.86 प्रतिशत की राष्ट्रीय दर से अधिक है. प्रदेश में ऐसे भयावह मेडिकल केस सामने आए हैं, जिनमें आईसीयू बेड्स का इंतज़ार करते करते मरीज़ दुनिया से रुख़्सत हो गए.
इस नाकामी का ज़िम्मा साफ तौर पर सीएम ठाकरे की अयोग्यता, और अपनी गद्दी को लेकर उनके अनाड़ी विचारों पर जाता है, और साथ ही उस अपाकृतिक गठबंधन पर भी, जिसके एजेण्डा में शासन का मुद्दा कभी दूर-दूर भी नहीं था.
गठबंधन के भागीदारों में सम्पर्क टूटा
लॉक डाउन के दौरान सीएम ठाकरे का कार्यक्रम क्या रहा है? शायद ही कोई सबूत होगा जिसमें वो अपने साथी मंत्रियों या नौकरशाहों से बात करके, नियमित रूप से हालात का जायज़ा लेते हों. इसीलिए कोई ताज्जुब नहीं कि 24 मई को, जब सीएम ने अपने फेसबुक लाइव पर ऐलान किया, कि महाराष्ट्र अभी उड़ाने चालू करने के लिए तैयार नहीं था, शाम तक उनके कैबिनेट सहयोगी, मंत्री नवाब मलिक ने अगले दिन से 25 उड़ानों की पुष्टि कर दी. जब रेल मंत्री पीयूष गोयल ने सीएम के उस बयान को चुनौती दी, जिसमें प्रवासियों के लिए ट्रेनें नहीं होने की बात कही गई थी, तो मुख्यमंत्री के पास कोई जवाब नहीं था.
आईएएस लॉबी चला रही शासन
कोविड-19 संकट के दौरान महाराष्ट्र में राजनीतिक नेतृत्व की कमी की पुष्टि कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ख़ुद करते हैं. ऐसा लगता है कि राज्य सरकार को पता ही नहीं है कि सरकार के दूसरे स्तर की शक्तियां और कार्य क्या होते हैं, और इसकी बजाय वो तीसरे स्तर- बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी)- को आगे रखना चाहती है. राज्य सरकार का इस तरह अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ लेना, एक अपराधिक ग़फ़लत है.
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केंद्र के साथ टकराव का रवैया
राज्य सरकार की विफलताओं पर जब भी सवाल उठाए गए, उद्धव ठाकरे ने नरेंद्र मोदी सरकार पर राज्य को पर्याप्त फंड्स न देने का आरोप लगा दिया. उनके झूठ का पर्दाफाश आख़िरकार पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने तथ्यों और आंकड़ों के साथ कर दिया, जिसका सीएम या उनकी सरकार के पास कोई जवाब नहीं था.
सच्चाई ये है कि बहुत भारी तादाद में प्रवासी मज़दूरों को, लॉकडाउन के दौरान कोई राशन नहीं मिला, जिसकी वजह से अधिकतर प्रदेश छोड़कर अपने पैतृक स्थानों की ओर निकलने को मजबूर हो गए.
राज्य सरकार की बेरुख़ी की वजह से महाराष्ट्र जिन भयावह हालात से गुज़रा है, वो बहुत लम्बे समय तक लोगों के दिमाग़ में ताज़ा रहेंगे. जिस चीज़ ने स्थिति को और भी शर्मनाक बना दिया, वो था राहुल गांधी का ये बयान, कि महाराष्ट्र में उनकी पार्टी निर्णय लेने वाली स्थिति में नहीं है. बहुत से मायनों में ये इस बात का इक़रार था, कि गठबंधन के तीनों दल अपनी पार्टी की जेबें भरने के लिए सत्ता में हैं, वर्षों की उस शीत-निद्रा के लिए, जो आगे आने वाली है.
अप्राकृतिक गठजोड़
शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की सरकार महाराष्ट्र में जो तबाही लेकर आई है. उसे देखते हुए ज़रूरत है कि हम स्थिति के एक बड़े दृश्य को देखें. वेस्ट मिनिस्टर लोकतंत्र अकसर संख्या का मज़ाक़ बना देता है. हमने इसे 1996 में होते हुए देखा जब एचडी देवगौड़ा, जिन्होंने कभी राष्ट्रीय नेता बनने की कल्पना भी नहीं की होगी, रातों रात एक पूरी तरह अवसरवादी सरकार के प्रधानमंत्री बन गए, जिससे भारत के विकास का एजेण्डा पटरी से उतर गया. महाराष्ट्र में 2019 में जो हुआ, वो उससे भी बुरा था. इसमें सहयोगियों को बदलकर जनादेश ही चुरा लिया गया. ये एक ऐसी दुर्घटना थी जिसकी वजह से महाराष्ट्र, आज अव्यवस्था के गर्त में है.
इसलिए हमें आदर्श रूप से एक क़ानून -सार्वजनिक जनादेश तोड़फोड़ रोकथाम अधिनियम- की ज़रूरत है, जो भविष्य में ऐसे नुक़सान को रोक सके. किसी कारणवश अगर चुनाव पूर्व गठबंधन के पास आवश्यक बहुमत न हो, तो ऐसी स्थिति में सरकार बनाने के लिए, 40 प्रतिशत सीटों पर जीत को देहलीज बना देना चाहिए.
1991 में हमने नरसिम्हा राव की अल्पमत सरकार को, शानदार काम करते हुए देखा है, जबकि 1996 में एक अप्राकृतिक गठबंधन की सरकार गिर गई. महा विकास अगाड़ी गठबंधन इतना अप्राकृतिक है, कि इसके साझीदार ही कभी आश्वस्त नहीं होते कि इसका वजूद वास्तविक है.
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया पैनलिस्ट हैं. यह उनका निजी विचार है)
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