एक महामारी से कैसे नहीं जूझना चाहिए उसकी तस्वीर मध्य प्रदेश ने इस बीमारी के संक्रमण और पहले चरण के लॉकडाउन के समय दिखाई. यहां न कोई स्वास्थ्य मंत्री था, बल्कि स्वास्थ्य विभाग खुद ही बीमार था. ये हाल तब है जब पूरा राज्य कोरोनावायरस की गिरफ्त में नहीं है. राज्य के पश्चिमी भाग से अब तक कोरोनावायरस पीड़ितों के 97 प्रतिशत मामले आये हैं, बाकी राज्य इससे लगभग अछूता ही है. हालांकि अब तस्वीर बदल रही है.
राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) मोहम्मद सुलेमान का कहना है कि अब राज्य सरकार पूरी तरह से इस बीमारी से निपटने के लिए तैयार है. राज्य में कोविड का इलाज कर रहें मेडिकल कर्मियों के लिए पीपीई किट का उत्पादन शुरू हो गया है और सभी मरीज़ों का मुफ्त इलाज हो रहा है. उनका कहना था कि, ‘हमने स्थानीय स्तर पर पीपीई किट विकसित करना सुनिश्चित किया है. हम इंदौर के पास पीथमपुर स्थित एक कारखाने में रोजाना 10,000 पीपीई किट का उत्पादन कर रहे हैं और अपने लोगों को मुहैया करा रहे हैं. अब तक हम एक लाख पीपीई किट वितरित कर चुके हैं.’
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की 9.5 लाख से अधिक गोलियां है और एन-95 मास्क का भी पर्याप्त भंडार है.
सुलेमान ने बताया कि मध्य प्रदेश में कोविड-19 के मरीजों के लिए 25 विशेष अस्पताल बनाए गए हैं. इसके अलावा, 66 स्वास्थ्य केंद्र और 400 से अधिक कोविड सेवा केंद्र भी स्थापित किए गए हैं.
शुरू में टेस्टिंग क्षमता कम थी जिसे अब कई गुना बढ़ाया गया है. जहां शुरुआती दौर में 200-300 टेस्ट रोज़ होते थे वहां अब ये 1600-1800 होते हैं. अब 14 निजी लैब्स में टेस्ट की सुविधा पर बातचीत हो रही है, तीन टेस्टिंग मशीने भी खरीदी गई हैं. यानि जैसे एक महामारी से निपटना चाहिए वैसे अप्रैल के तीसरे हफ्ते में जाकर काम हो रहा है.
पर सवाल इस बारे में किया जाना लाज़मी है कि इतना बड़ा राज्य इतनी देर से क्यों जागा. वो भी ऐसे में जब उसका सामना पहले भी महामारियों से हो चुका है.
2012 में राज्य ने स्वाइन फ्लू का सामना किया था. और महामारी से निपटने के तय प्रोटोकॉल भी हैं.
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मध्य प्रदेश में कुल कोविड संक्रमितों की संख्या 1407 है. इससे सबसे अधिक 47 लोगों की मौत अकेले इंदौर में हुई है जबकि भोपाल और उज्जैन में छह-छह, देवास में पांच, खरगोन में चार तथा छिंदवाड़ा में एक व्यक्ति की कोरोनावायरस से मौत हुई है.
प्रदेश के कुल 52 जिलों में से 25 जिलों में कोविड-19 मरीज मिले हैं.
बात इंदौर की
राज्य की वाणिज्यिक राजधानी, मिनी बॉम्बे के नाम से प्रचलित इंदौर में पहला मामला 24 मार्च को आया था. और आज वहीं करीब 900 मामले हैं. पहली बार में चार मामलों की जांच हुई.
सुलेमान मानते हैं कि हो सकता है कि मामले और ज्यादा हों. यानि लॉकडाउन के बाद भी राज्य प्रशासन मामले की गंभीरता को शायद नहीं आंक पाया. साथ ही मामले घनी आबादी वाले क्षेत्र में तेज़ी से फैल रहे थे और दिल्ली के तबलीगी जमात मरकज़ से उसके तार जुड़ने लगे थे. उन संक्रमित लोगों की कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की जानी थी ताकि रोग का फैलाव रोका जा सके. साथ ही मेडिकल जांच के लिए पहुंची टीम पर टाटपट्टी बाखल में जैसे हमला हुआ उससे साफ था कि कहीं न कहीं सुरक्षा की कमी के साथ-साथ अफवाहों के गर्म बाज़ार के बीच लोगों को जागरूक करने में भी चूक हुई. आज धार, देवास, रतलाम आदि के कोविड-19 के तार इंदौर से जुड़े हैं. आज भी क्वारेंटाइन से कूद कर भागने की खबरें आ रही है.
सुलेमान का कहना है कि शुरुआती दौर के केसेज का आंकलन बताता है कि मरीज 3.5 दिन अस्पताल में गुज़ारता था और उसे बचाया नहीं जा पाता था. यानि वो अस्पताल बहुत देर से पहुंचता था. आज राज्य रोगी को जल्दी चिन्हित कर रहा है, आइसोलेशन में रख रहा है और जरूरत पड़ने पर आईसीयू में भेज कर जाने बचा रहा है. यानी जो आज किया जा रहा है वो अगर मार्च में कर दिया गया होता तो इंदौर की कहानी कुछ और ही होती.
ये सब नहीं हुआ जिसकी वजह से राष्ट्रीय औसत से मध्य प्रदेश में कोविड मरीज़ों की मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है. पहले ये 9 प्रतिशत तक रही आज इसे 5 प्रतिशत पर लाया गया है.
आज ज्यादा टेस्टिंग, सेल्फ क्वारेंटाइन, इंस्टिट्यूशनल क्वारेंटाइन या फिर कोविड अस्पतालों में संक्रमण के संदेह पर लोगों को रखा जा रहा है और खुला घूमने नहीं दिया जा रहा.
बीमार स्वास्थ्य विभाग
अब बात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की, जिसके स्वास्थ्य विभाग ने गलत कारणों से सुर्खियां बटोरी. शहर के आधे कोरोना पॉजिटिव मरीज इस विभाग से जुड़े थे. स्वास्थ्य विभाग स्वयं कैसे सुपर स्प्रेडर बना इसकी जांच एक तीन सदस्यीय टीम कर रही है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कई जिलों में भी गए और क्या वे कोविड कैरियर बने ये भी सोचने की बात है. बीमार स्वास्थ्य विभाग के सदस्यों में तीन आईएएस अधिकारी भी शामिल थे.
अब खबर आ रही है कि कोरोनावायरस से स्वस्थ्य होने वाले लोगों में प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ एक महिला सहित दो आईएएस अधिकारी भी शामिल हैं. उनकी रिपोर्ट के नेगेटिव आने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. दोनों को अगले 14 दिन घर पर ही रहने के लिए कहा गया है.
भोपाल में कुल संक्रमितों में से आधे स्वास्थ्य विभाग से जुड़े थे. सुलेमान मानते हैं कि बेहतर एतिहात बरती जा सकती थी. हालांकि पल्लवी जैन, जोकि स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख सचिव थी, उनको कोई सिंपटम नहीं था, वे काम करती रही और उनको लगा कि वे घर से काम कर रही हैं उतना ही एतिहात काफी है. पर भोपाल का ग्राफ बताता है कि वो काफी नहीं था.
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आज मरीज़ चिन्हित करना, इसे अलग करना (आइसोलेट), उसका टेस्ट करना और उसका इलाज करना- ये सामान्य प्रकिया बन गई है जिसका असर धीरे-धीरे मामलों के बढ़ने की गति थमने में नज़र आने लगेगी.
हालांकि सुलेमान का दावा है कि मुख्यमंत्री ही स्वास्थ्य मंत्री का काम संभाल रहे हैं. वे 25 वीडियो कांफ्रेंस कर चुके हैं, 58 घंटे कोविड मैनेजमेंट की उन्होंने चर्चा की, प्रमुख सचिव रोज़ इस पर बैठके लेते हैं पर ये भी एक सच्चाई है कि मध्य प्रदेश में इस वक्त सरकार है, मुख्यमंत्री है पर कोई कैबिनेट नहीं, कोई स्वास्थ्य मंत्री नहीं है.
क्या एक महामारी के दौर में ये सही स्थिति है या जनता के जीवन से किया गया खिलवाड़ है. क्या एक मुख्यमंत्री अकेले इस लड़ाई को लड़ सकते हैं या फिर विधायकों से ज्यादा नौकरशाहों को इस बीमारी से निपटने में राज्य सरकार सक्षम मानती है? या यहां बात राजनीतिक नफे नुकसान, मंत्रीपद के मोलभाव में अटकी है फिर चाहे दौर महामारी का ही क्यों न हो.
(यहां व्यक्त विचार निजी हैं)