अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के नाम पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 12 अक्टूबर को जिस ‘डिमांड इंफ़्यूज़न’ पैकेज का ऐलान किया है, उससे वैसा फ़ायदा नहीं होने वाला, जैसी तस्वीर मेनस्ट्रीम मीडिया ने बनायी है. क्योंकि केंद्रीय कर्मचारियों के लिए ‘LTC कैश वाउचर’ और ‘फ़ेस्टिवल एडवांस’ वाला नुस्ख़ा महज झुनझुना और लॉलीपॉप है. इसी तरह, भारी आर्थिक दबाव में फंसे हुए राज्यों के लिए भी वित्तमंत्री का सपना ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ के सिवाय और कुछ नहीं है. सरकार की सारी क़वायद आंकड़ों की एक और बाज़ीगरी है. इसका फ़्लॉप साबित होना तय है.
खयाली पुलाव है LTC स्कीम
लीव ट्रैवल कंसेशन (LTC) की कैश वाउचर स्कीम से पर्दा हटाते हुए वित्तमंत्री ने बताया कि सरकार को लगता है कि कोराना प्रतिबंधो के दौर में सरकारी कर्मचारियों ने काफ़ी बचत कर ली है. लिहाज़ा, यदि अपनी बचत को खर्च करने के लिए केंद्र सरकार के 48 लाख कर्मचारी आगे आ जाएं तो अर्थव्यवस्था को संजीवनी मिल जाएगी. लेकिन वास्तव में ये खयाली पुलाव है, क्योंकि LTC स्कीम की बदौलत ज़्यादा से ज़्यादा 7,575 करोड़ रुपये ही सरकारी ख़ज़ाने से निकलकर कर्मचारियों के पास पहुंच सकते हैं. इसमें केंद्रीय कर्मचारियों का हिस्सा 5,675 करोड़ रुपये होगा तो सरकारी बैंकों तथा केंद्रीय उद्यमों (पीएसयू) के कर्मचारियों के लिए 1900 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है.
आंकड़ों को भारी भरकम बनाने के लिए वित्तमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के कर्मचारी भी LTC स्कीम की गाइडलाइंस का पालन करके आयकर छूट पा सकते हैं. हालांकि, कोई नहीं जानता कि अर्थव्यवस्था में 7,575 करोड़ रुपये खर्च होने पर मिलने वाली आयकर छूट से ऐसा कौन सा जादुई खेल हो जाएगा कि क़रीब 19,000 करोड़ रुपये की मांग पैदा हो जाएगी? इसी तरह, ये भी खयाली पुलाव ही है कि भारी वित्तीय तंगी झेल रही राज्य सरकारें भले ही अपने कर्मचारियों को नियमित वेतन नहीं दे पाएं लेकिन केंद्र की गाइडलाइंस का पालन करके वे कर्मचारियों को एलटीसी का भुगतान ज़रूर करेंगी. ताकि अर्थव्यवस्था में 9,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त मांग भी पैदा हो जाए और चुटकी बजाकर 28,000 करोड़ रुपये का ‘डिमांड इंफ़्यूज़न’ यानी मांग पैदा करने वाले पैकेज़ का सब्ज़बाग़ तैयार हो जाए. साफ़ दिख रहा है कि वित्तमंत्री खुशफ़हमी में हैं कि सरकारी हों या निजी क्षेत्र के कर्मचारी, सभी उनके ‘तोहफ़े’ पर टूट पड़ेंगे. हालांकि, ऐसा कभी होता नहीं.
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गाइडलाइंस का पेच
नियमित केंद्रीय कर्मचारी चार साल में एक-एक बार ‘एलटीसी’ और ‘होम टाउन’ जाने-आने का किराया पाने के हक़दार हैं. एलटीसी के तहत सपरिवार देशभर में कहीं भी घूमने जाने पर खर्च हुए किराये की भरपाई होती है तो ‘होम टाउन’ में पैतृक स्थान पर आने-जाने का किराया क्लेम किया जाता है. अफ़सर तबक़ा जहां हवाई किराया पाता है वहीं बाक़ी कर्मचारी राजधानी एक्सप्रेस के एसी-3 का किराया ले सकते हैं. एलटीसी के बदले कर्मचारी चाहे तो ‘होम टाउन’ ला सकता हैं. इसका मौजूदा ‘ब्लॉक इयर’ 2018 से 2021 है.
सरकार देख रही थी कि कोरोना प्रतिबंधों की वजह से एलटीसी या होम-टाउन के लाभार्थी ठंडे पड़े थे. इन्हें लुभाने के लिए बग़ैर भ्रमण किये एलटीसी की रकम भुनाने की नीति बनी कि इसे ऐसे सामान की खरीदारी पर खर्च कर सकते हैं जिस पर 12 फ़ीसदी या अधिक जीएसटी लागू हो. ताकि ऐसा न हो कि फ़र्ज़ी बिल लगाकर सरकार से कर्मचारी तो रकम पा जाएं लेकिन उसे बाज़ार में खर्च नहीं करें और ‘डिमांड इंफ़्यूज़न’ पर पानी फिर जाए.
पेचीदा शर्त
एलटीसी स्कीम का लाभ उठाने की अगली शर्त बहुत पेचीदा है, क्योंकि इसमें कर्मचारियों को एलटीसी की रकम के मुकाबले तीन गुना ज़्यादा मूल्य का सामान ख़रीदना होगा. यानी, यदि एक कर्मचारी 50 हज़ार रुपये का एलटीसी पाने का हक़दार है तो उसे वित्तमंत्री की ताज़ा स्कीम का फ़ायदा लेने के लिए 1.5 लाख रुपये खर्च करने होंगे. इससे सरकार को कम से कम 18 हज़ार रुपये की जीएसटी वाली आमदनी हो जाएगी. लेकिन कर्मचारी के लिए अपनी बचत से एक लाख रुपये निकालना न तो आसान होगा और न ही इससे उसे खुशी या सन्तोष मिलेगा.
दरअसल, सरकार ने हिसाब लगाया कि एलटीसी लेने वाले कर्मचारियों को घूमने-फिरने, खाने-पीने और होटल का किराया तो अपनी बचत से ही भरना पड़ता है. बचत के ऐसे खर्च से अर्थव्यवस्था में जो मांग पैदा होती वही 1.5 लाख रुपये की ख़रीदारी से पैदा हो सकती है. भ्रमण के दौरान खर्च बढ़ाने के लिए ही एलटीसी लेते वक़्त कर्मचारी को 10 दिन तक के अर्जित अवकाश यानी अर्न लीव को भुनाने की सुविधा मिलती है. वैसे ये रकम ‘कर-योग्य’ होती है, लेकिन इसे ही अभी वित्तमंत्री ने ‘तोहफ़ा’ देकर ‘कर-मुक्त’ बना दिया है. ये ‘कर-मुक्ति’ भी झुनझुना ही है.
इसे उदाहरण से समझिए. यदि किसी कर्मचारी का 10 दिन का वेतन 25 हज़ार रुपये है तो 31 मार्च 2021 तक एलटीसी स्कीम का लाभ लेने वाले के लिए ये रकम ‘नॉन टैक्सेबल’ होगी. आमतौर पर ‘लीव इनकैशमेंट’ वही कर्मचारी लेते हैं जो इससे पैदा होने वाले टैक्स की देनदारी को ‘मैनेज़’ करने में सक्षम हों. बड़े अफ़सरों के लिए भी ‘लीव इनकैशमेंट’ पर टैक्स की देनदारी महज चन्द सौ रुपये ही बैठती है. यानी, इस कर-मुक्ति योजना का असली फ़ायदा मुट्ठी भर अफ़सरों की किस्मत में ही आएगा. निचले और मध्यम स्तर के 95 फ़ीसदी कर्मचारियों को इससे कोई लाभ नहीं होगा. जबकि एलटीसी स्कीम के सभी लाभार्थियों को ख़ासी बचत खर्च करनी पड़ेगी. पूरी स्कीम को अप्रिय बनाने और वित्तमंत्री के सपनों पर पानी फेरने के लिए यही पहलू पर्याप्त साबित होगा.
कर्ज़ लेकर उत्सव मनाएं
वित्तमंत्री चाहती हैं कि सभी केंद्रीय कर्मचारी 31 मार्च 2021 तक सरकार से 10,000 रुपये तक का कर्ज़ लें क्योंकि ये ब्याज़-मुक्त होगा. इसे ‘स्पेशल फेस्टिवल एडवांस स्कीम’ कहा गया है. जनवरी 2016 में 7वें वेतन आयोग की सिफ़ारिशें लागू होने से पहले कर्मचारियों को साल में एक बार 7,500 रुपये तक का ‘फ़ेस्टिवल एडवांस’ जो सुविधा मिलती थी उसे ही 10,000 रुपये करके सिर्फ़ मौजूदा वर्ष के लिए पुनर्जीवित किया गया है. इसकी किस्तें 10 महीने तक कर्मचारियों के वेतन से काटी जाएगी.
कर्ज़ लें, खर्च करें और उत्सव मनाएं. इस मंत्र के लाभार्थी वो 48 लाख कर्मचारी होंगे जो किसी भी तरह के केंद्रीय प्रतिष्ठान के नियमित कर्मचारी हैं. सरकार के 65 लाख पेंशनर्स ये झुनझुना नहीं बजा सकते. हालांकि, 23 अप्रैल 2020 को दोनों तबकों के लिए जनवरी 2020 से लेकर जुलाई 2021 तक के महंगाई भत्ते (डीए) के भुगतान को स्थगित किया गया था. इससे केंद्र सरकार को 21,000 करोड़ रुपये की बचत की बात की गयी थी, लेकिन अब ‘ब्याज़-मुक्त कर्ज़’ की सौगात सिर्फ़ एक तबके को मिलेगी, दोनों को नहीं.
ज़ाहिर है, ‘फ़ेस्टिवल एडवांस रूपी ब्याज़-मुक़्त कर्ज़’ और ‘एलटीसी कैश वाउचर स्कीम’ के लाभार्थी पेंशनर्स नहीं हो सकते क्योंकि वो न तो एलटीसी पाते हैं और न ही सैलरी एडवांस की तरह पेंशन-एडवांस के हक़दार होते हैं. इसका मतलब ये हुआ कि कटौती तो सबकी की गयी, लेकिन राहत सिर्फ़ छोटे वर्ग यानी 48 लाख कर्मचारियों को ही मिलेगी. वित्तमंत्री ने चालाकी से पेंशनर्स का पत्ता काट दिया. अब समझते हैं कि 10,000 रुपये की सौगात से कर्मचारी आख़िर पाएंगे क्या?
कर्ज़ पर ब्याज़ होता तो क्या होता?
यदि सरकार ने 10,000 रुपये को 10 महीने के लिए 6 प्रतिशत ब्याज़ पर देने की पेशकश की होती तो कितना ब्याज़ होता? ईएमआई की गणना के मुताबिक़, यदि 1028 रुपये महीने की किस्त हो तो 10,000 रुपये के कर्ज़ पर 10 महीने में 10,280 रुपये चुकाने पड़ेंगे. साफ़ है कि ब्याज़-मुक्त कर्ज़ से 28 रुपये महीने की बचत होगी और 10 महीने में कुल 280 रुपये बचेंगे. ये एक रुपया रोज़ाना से भी कम है. यहां ब्याज़-दर तो 6 प्रतिशत इसलिए माना गई है क्योंकि किसान क्रेडिट कार्ड पर ब्याज़ दर 4 प्रतिशत है. वक़्त पर कर्ज़ चुकाने वाले किसानों को ब्याज़ में और राहत मिलती है.
अब यदि हम ये मान लें कि एक रुपया रोज़ वाले ब्याज़-मुक्त कर्ज़ का सुख लूटने के लिए केन्द्र के सभी 48 लाख कर्मचारी ‘फ़ेस्टिवल एडवांस’ पर टूट पड़ेंगे तो भी इनकी बदौलत अर्थव्यवस्था में रोज़ाना 48 लाख रुपये से ज़्यादा खर्च नहीं होंगे. महीने भर में ये रकम 13.44 करोड़ रुपये होगी तो 10 महीने में 134 करोड़ रुपये. दूसरी ओर, यदि सभी 48 लाख कर्मचारी इसी महीने 10,000 रुपये का ‘फ़ेस्टिवल एडवांस’ ले लें तो भी सरकार को एकमुश्त सिर्फ़ 4,800 करोड़ रुपये का ही कर्ज़ देना पड़ेगा.
सरकार ने इस साल 200 लाख करोड़ रुपये की जीडीपी का अनुमान लगाया था, हालांकि लॉकडाउन के बाद आये आंकड़ों को देखते हुए लगता है कि साल के अन्त तक भारत की जीडीपी 100-110 लाख करोड़ रुपये के आस-पास ही सिमटकर रह जाएगी. इसीलिए ज़रा सोचिए कि इसमें 4,800 करोड़ रुपये यानी क़रीब 0.04 प्रतिशत का कर्ज़ वाला पैकेज़ क्या धमाका पैदा कर पाएगा? ज़ाहिर है, अर्थव्यवस्था हो या सरकारी कर्मचारी दोनों को वित्तमंत्री झुनझुना ही दिखा रही हैं.
12,000 करोड़ रुपये का लॉलीपॉप
वित्तमंत्री का कहना तो सही है कि ढांचागत खर्च से न सिर्फ़ अल्पकाल में बल्कि भविष्य में भी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) बेहतर होती है. लेकिन अगले 50 वर्षों में राज्यों के पूंजीगत खर्च (कैपिटल एक्सपेंडीचर) की ख़ातिर ‘ब्याज़-मुक्त स्पेशल लोन ऑफ़र’ के रूप में फ़िलहाल, केन्द्र सरकार से सिर्फ़ 12,000 करोड़ रुपये का ही इंतज़ाम हो सका. इस रकम की ‘विशालता’ भी ख़ासी रोचक है.
इसमें 2,500 करोड़ रुपये का पहला हिस्सा पूर्वोत्तर के 8 राज्यों के अलावा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लिए आरक्षित है, तो दूसरे हिस्से के रूप में बाक़ी बचे राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के बीच 7,500 करोड़ रुपये का बंटवारा होगा. ये काम वित्त आयोग के उस फ़ॉर्मूले के मुताबिक होगा जिससे राज्यों के बीच केंद्रीय राजस्व बांटा जाता है.
तीसरे हिस्से के रूप में 2,000 करोड़ रुपये उन राज्यों के लिए होंगे जो आत्मनिर्भर वित्तीय पैकेज़ में तय चार में से तीन सुधारों को अमल में लाएंगे. अभी ये सुधार खुद ही बहुत बोझिल हैं, लिहाज़ा जब तस्वीर साफ़ होगी तभी 2,000 करोड़ रुपये बंटेंगे. इसीलिए साफ़ दिख रहा है कि 21 लाख करोड़ रुपये वाले आत्मनिर्भर पैकेज़ की तरह वित्तमंत्री की ताज़ा घोषणाएं भी ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ वाली ही हैं.
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं. यह उनके निजी विचार हैं)