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Monday, 23 December, 2024
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लोकसभा अध्यक्ष का ब्राह्मणों के बारे में बयान और डॉ. आंबेडकर

संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति से अपेक्षित है कि वह श्रेष्ठता बोध को फैलाने का निषेध करेगा. उनसे उम्मीद की जाती है कि वे ऐसी कोई बात नहीं कहेंगे जिससे किसी समूह की जन्म के आधार पर श्रेष्ठता का संदेश जाए.

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भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा अतार्किक बातें जाति-व्यवस्था के बारे में कही गई हैं, इसलिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के जाति संबंधी बयान पर विवाद होना ही था. दरअसल, जाति व्यवस्था को सही ठहराने के लिए किसी ने इसे श्रम विभाजन कहकर तार्किक आधार देने की कोशिश की है, तो किसी ने इसे धार्मिक और दैवीय करार दिया है. वहीं कुछ लोग उसके लिए नस्लवादी तर्क देते हैं कि कुछ लोग जन्मना श्रेष्ठ हैं और इसी तरह बाकी लोग जन्मना नीच होते हैं. कोई ये कहता है कि वर्ण विभाजन इसलिए है क्योंकि लोग ब्रह्मा के शरीर के अलग-अलग अंगों से जन्म लेते हैं.

कुछ लोग ये तर्क देते हैं कि किसी व्यक्ति का खास जाति में जन्म लेना पूर्व जन्मों का फल है और अगर कोई इस जन्म में नीची जाति में जन्मा है तो इसका कारण ये है कि उसने पूर्व जन्म में नीचे कर्म किए हैं. इसी तरह अगर कोई ऊंची जाति में जन्मा है तो इसकी वजह ये है कि उसने पूर्व जन्म में अच्छे कर्म किए हैं. यह भी कहा जाता कि नीच जाति में जन्म लेने वाला व्यक्ति अगर अपनी जाति के निर्धारित कर्मों को सही तरीके से करता है तो अगले जन्म में वह उच्च वर्ण में पैदा होगा. पौराणिक ग्रंथ इन तर्कों को धार्मिक आधार देते हैं. मिसाल के तौर पर वेदों और श्रीमद्भागवत गीता में वर्ण व्यवस्था को दैवी सृष्टि माना गया है.


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लेकिन भारतीय संविधान ने समानता के सिद्धांत को प्रस्तावना में ही स्वीकार करके जन्मना ऊंच और नीच के विचार का अंत कर दिया है. प्रस्तुत लेख का उद्देश्य संविधान के आलोक में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के उस ट्विटर पोस्ट की समीक्षा करना है, जिसमें उन्होंने एक जाति की श्रेष्ठता की बात की थी. इस संदर्भ में ये ध्यान देना आवश्यक है कि सरकार, सत्ताधारी दल या आरएसएस के किसी भी नेता या अन्य जिम्मेदार व्यक्ति ने ओम बिरला के इस वक्तव्य का समर्थन नहीं किया है. मीडिया में ओम बिरला के ट्वीट की काफी चर्चा हुई और मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल ने तो इसे वापस लेने की मांग भी की.

ओम बिरला के बयान का संदर्भ

सबसे पहले देख लेते हैं कि ओम बिरला का वह बयान क्या है. ओम बिरला ने अपने चुनाव क्षेत्र कोटा में ब्राह्मण महासभा के एक कार्यक्रम को संबोधित करने के बाद संबंधित कार्यक्रम की तस्वीरें अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट करने के साथ ये मैसेज लिखा – ‘समाज में ब्राह्मणों का हमेशा से उच्च स्थान रहा है. यह स्थान उनकी त्याग, तपस्या का परिणाम है. यही वजह है कि ब्राह्मण समाज हमेशा से मार्गदर्शक की भूमिका में रहा है.’

वैसे तो लोकसभा अध्यक्ष का किसी जाति की सभा में जाने का निर्णय ही अपने आप में कई सवाल खड़े करता है. लेकिन ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष होने के साथ ही एक जनप्रतिनिधि भी हैं और इस नाते ऐसी सभाओं में जाने की राजनीतिक मजबूरी हो सकती है. लेकिन वहां जाकर भी उनसे अपेक्षित था कि वे संविधान की नैतिकता और राष्ट्र निर्माण की ही बात करते.


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समानता या श्रेष्ठताबोध? क्या है संविधान का विचार

इस संदर्भ में संविधान की प्रस्तावना यानी उद्देश्यिका में समता यानी इक्वेलिटी और बंधुत्व यानी फ्रेटर्निटी का स्पष्ट रूप से उल्लेख है. प्रस्तावना के दो अंश इस मामले में महत्वपूर्ण हैं –

एक, ‘प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करना’ और दो, समस्त नागरिकों में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाना’. क्या ओम बिरला का बयान इन दोनों कसौटियों पर खरा उतरता है? इसके साथ अगर संविधान के दो अनुच्छेदों को देखें तो इस बारे में स्थिति और स्पष्ट हो जाएगी.

अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता- इसका अर्थ यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान ढंग से अमल करेगा.

अनुच्छेद 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेद-भाव का निषेध- राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग एवं जन्म-स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा.

ऐसी स्थिति में संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति से अपेक्षित है कि वह श्रेष्ठताबोध को फैलाने का निषेध करेगा और समता के विचार को ही आगे बढ़ाएगा. उनसे उम्मीद है कि वे ऐसी कोई बात नहीं कहेंगे जिससे किसी जाति या धर्म या अन्य समूह की जन्म के आधार पर श्रेष्ठता का संदेश जाए. खास कर इसलिए कि ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति की कही बातों का समाज और खासकर बच्चों पर गहरा असर होता है. इसके अलावा नागरिकों के कर्तव्यों के अध्याय में वैज्ञानिक चिंतन की बात है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि कोई भी समूह जन्म के आधार पर श्रेष्ठ नहीं हो सकता.

जातिभेद पर बाबा साहब के विचार

इस संदर्भ में बाबा साहेब डॉ. भीम राव आंबेडकर का संविधान सभा में दिया गया आखिरी भाषण हम सब का मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकता है. इस भाषण में बाबा साहब भारत के राष्ट्र बनने की चुनौतियों के बारे में कहते हैं कि – ‘भारत में जातियां हैं. जातियां राष्ट्रविरोधी हैं. इनकी वजह से सामाजिक जीवन में भेदभाव और अलगाव है. जाति व्यवस्था राष्ट्रविरोधी इसलिए भी हैं क्योंकि इसकी वजह से जातियों के बीच जलन और एक दूसरे के प्रति घृणा का भाव पैदा होता है. अगर हम वास्तव में एक राष्ट्र बनना चाहते हैं तो इन मुश्किलों से मुक्त होना होगा. बंधुत्व का भाव तभी आएगा जब हम एक राष्ट्र बनेंगे. बंधुत्व के बिना समानता और स्वतंत्रता सतही बात साबित होगी.’

ओम बिरला ने जिस संविधान की शपथ ली है, उसे बनाने वाले की भावना को देखें तो उनका ट्वीट एक गहरी समीक्षा की मांग करता है. यह सच है कि जाति भारतीय समाज की सच्चाई है. इंसानों को ऊंचे और नीचे सीढ़ीदार, लेकिन स्थायी और जन्म आधारित दर्जों में बांटने वाली जाति व्यवस्था इसलिए नहीं खत्म हो जाएगी कि संविधान निर्माता ने जाति को राष्ट्र विरोधी करार दिया है.


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सामंती समाज में लोकतंत्र का मतलब

भारत मानव विकास के हिसाब से सामंती समाज है, जिसने शासन प्रणाली के तौर पर एक आधुनिक व्यवस्था यानी लोकतंत्र को अपना लिया है. इसके अंतर्विरोध समय-समय पर सामने आते रहेंगे. समझने की जरूरत सिर्फ यह है कि बेशक राजस्थान के किसी खास इलाके में जाति व्यवस्था खास तरह से काम करती है, लेकिन देश के महानगरों में और वहां भी खास तौर पर युवाओं के बीच जातियों का भेद और किसी को श्रेष्ठ और किसी को नीचा मानने की भावना अब उस तरह काम नहीं करती. राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को अपने वचनों में इसका ध्यान रखना चाहिए.

ओम बिरला को ये समझना चाहिए कि कोई भी जाति श्रेष्ठ नहीं है, क्योंकि किसी को श्रेष्ठ बताने का स्वाभाविक अर्थ किसी को नीचा बताना है. दूसरी बात, किसी भी जाति ने ज्यादा त्याग किया हो, ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. और तीन, किसी जाति को बाकी समाज का मार्गदर्शक बताना पूरे देश की सामूहिक चेतना की अनदेखी करना है. हालांकि ओम बिरला ने अपने बयान पर अब तक अफसोस नहीं जताया है लेकिन इस बयान के दो दिन बाद एक अन्य अवसर पर एक ट्विटर पोस्ट में उन्होंने लिखा कि, ‘समाज के सभी वर्गों का देश के उत्थान में योगदान रहा है. इसी कारण देश प्रगति पथ पर अग्रसर है.’ यही भावना देश को एकजुट और मजबूत बनाएगी.

(लेखक साहित्यकार हैं. इनका कार्य क्षेत्र राजस्थान है. यह लेख उनका निजी विचार है)

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