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Friday, 22 November, 2024
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मोदी सरकार तय करे कि कोविड-19 के दौरान लोग काढ़ा पीएं या शराब

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस महामारी के दौरान स्वस्थ जीवन शैली अपनाने की सलाह दी है और उसकी गाइडलाइंस में शराब का सेवन न करना शामिल है. ऐसे में भारत में शराब बेचने की इजाजत देना आश्चर्यजनक है.

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लॉकडाउन 3.0 के साथ देश के ज्यादातर हिस्सों में शराब की दुकानें खुल जाएंगी. इसके साथ ही बिड़ी-सिगरेट-तंबाकू-गुटखा की दुकानें भी खुल जाएंगी. ये आदेश ग्रीन और ऑरेंज जोन तथा ग्रामीण इलाकों के लिए है. इसके अलावा रेड जोन में भी हॉटस्पॉट या कंटेनमेंट एरिया के बाहर इन दुकानों को खोलने की इजाजत दे दी गई है. रेड जोन और ग्रीन जोन वे जिले हैं जहां कोरोना संक्रमण के केस कम हैं या नहीं हैं. देश के 733 में से 284 जिले ऑरेंज जोन और 319 जिले ग्रीन जोन में रखे गए हैं. इस फैसले का मतलब है कि 130 जिलों के हॉटस्पॉट के अलावा देश भर में शराब की बिक्री 4 मई से शुरू हो जाएगी.

यह एक आश्चर्यजनक फैसला है. यह सही है कि देश को अनंतकाल के लिए बंद नहीं रखा जा सकता. प्रधानमंत्री ने ठीक कहा है कि हमें जान और जहान दोनों की ख्याल रखना है. इसलिए लॉकडाउन करने वाले दुनिया के कई देश, कोरोना महामारी फैलने के जोखिम के बावजूद सामान्य कामकाज की तरफ बढ़ रहे हैं. इसलिए अगर भारत भी ऐसा कर रहा है तो इसे एक सुचिंतित फैसला माना जाना चाहिए.

लेकिन, लॉकडाउन हटाते हुए ये ध्यान रखा जाना चाहिए कि जहां बीमारी नहीं फैली है, वे बंद डब्बे नहीं हैं. लोगों और सामान का आना जाना पूरी तरह नहीं रुका है और ऐसे में हर जिला संभावित या भविष्य का रेड या ऑरेंज जोन है. कोरोना की संक्रामक प्रवृत्ति को देख कर भी अगर कोई व्यक्ति या कोई इलाका खुद को पूरी तरह सुरक्षित मान कर चल रहा है, तो ये उचित नहीं होगा.


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ऐसी स्थिति में, देश के ज्यादातर इलाकों में शराब और तंबाकू प्रोडक्ट को बेचने की इजाजत देना एक अनुचित निर्णय कहा जाएगा. इसके पीछे चार प्रमुख तर्क हैं.

1. शराब और तंबाकू इस समय ज्यादा खतरनाक हैं– विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस महामारी के दौरान स्वस्थ जीवन शैली अपनाने की सलाह दी है और उसकी गाइडलाइंस में शराब का सेवन न करना शामिल है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि शराब से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, जो इस समय ज्यादा खतरनाक साबित होगी. कोरोनावायरस के प्रकोप के शुरुआती दौर में ही ये बात समझ में आ चुकी है और ये बात तथ्यों से भी साबित है कि ये बीमारी हर किस्म के लोगों के लिए समान रूप से जानलेवा नहीं है. ज्यादा उम्र के लोगों के साथ ही ये रोग ज्यादा खतरनाक उन लोगों के लिए है जो पहले से ही किसी और क्रोनिक यानी लंबे समय से चली आ रही बीमारी जैसे डायबिटीज, हायपरटेंशन, किडनी की बीमारी, ह्रदय रोग या सांस की बीमारी या विभिन्न प्रकार के कैंसर आदि से पीड़ित हैं. कोरोना वायरस से मरने वालों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो पहले से इस तरह की किसी एक या एक से ज्यादा बीमारी से पीड़ित चल रहे थे. भारत में डायबिटीज और हायपरटेंशन के मरीज दुनिया के ज्यादातर देशों से ज्यादा हैं.

चूंकि शराब और तंबाकू के बारे में ये निर्विवाद तथ्य है कि ये ऐसी 200 से ज्यादा बीमारियों का कारण भी है और उन्हें बढ़ाता भी है, इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि मौजूदा समय में इनका सेवन रोका जाए. शराब हर साल दुनिया में होनी वाली 30 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है. वैसे भी सरकार सामान्य दिनों में भी फिल्म आदि जनसंचार माध्यमों के जरिए शराब और तंबाकू के सेवन के खिलाफ अभियान चलाती है. ये तर्कसंगत नहीं है कि प्रधानमंत्री तो ये कहें कि लोगों को अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काढ़ा पीना चाहिए और दूसरी ओर सरकार शराब को सहज उपलब्ध बना दे. कोई ये तर्क दे सकता है कि वैधानिक तरीके से न बिकने पर भी ये नशीले पदार्थ मिल ही जाते हैं. लेकिन इन्हें हासिल करने के लिए प्रयास करने और इन्हें सहज उपलब्ध बना देने में अंतर है. वैसे भी जब हमारे अस्पतालों पर कोरोना महामारी के मरीजों का इतना भारी दबाव है, तब शराब और तंबाकू के कारण बीमार होकर आने वाले अगर अस्पताल तक न ही पहुंचें तो बेहतर है.

2. सरकार को इनसे राजस्व मिलता है: ये सही है कि शराब और तंबाकू से बनने वाले उत्पादों की बिक्री से सरकार को काफी राजस्व मिलता है. चूंकि कोरोनावायरस के प्रकोप से पहले भी अर्थव्यवस्था में सुस्ती थी और अब तो घोषित तौर पर मंदी है, तो सरकारों की कोशिश होगी की उसका राजस्व यानी आमदनी का कोई स्रोत बंद न हो. लेकिन ये ध्यान रखने की बात है कि जब महामारी फैल जाती है, तो उसे रोकने पर होने वाला खर्च उस राजस्व से कई गुना ज्यादा हो सकता है. इसके अलावा नागरिकों का स्वास्थ्य सर्वोपरि होना चाहिए. आखिर उस राजस्व का भी इस्तेमाल तो लोककल्याण के कार्यों में ही खर्च होना चाहिए. नागरिकों की जिंदगी और उनके स्वास्थ्य से बढ़कर लोक कल्याण और क्या हो सकता है?


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3. नशीले पदार्थों की बिक्री से बीमारी फैलने का खतरा– चूंकि भारत ने रैंडम टेस्ट यानी हर तरह के वर्ग और इलाके में जांच की रणनीति नहीं अपनाई है और लगभग सारी जांच प्रभावित इलाकों और प्रभावित लोगों के संपर्क में आए लोगों की हो रही है, इसलिए ये कहना सही नहीं है कि जहां केस नहीं आए हैं, वे इलाके कोरोना से मुक्त हैं. ऐसी स्थिति में वहां लॉकडाउन हटाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ये सिर्फ आवश्यक स्थितियों में ही किया जाए. मिसाल के तौर पर कृषि और उद्योग के क्षेत्र को खोला जाना चाहिए. लेकिन शराब और तंबाकू लेने के लिए लोग निकलें, ये उचित नहीं है. शराब के साथ सोशल ड्रिंकिंग का मामला जुड़ा है, वहीं शराब पीकर बट फेंक देना और तंबाकू-गुटखा खाकर थूक देना सामान्य बात है. ये आदतें अचानक इसलिए नहीं बदल जाएंगी कि इस समय महामारी चल रही है. ये बातें बीमारी फैलाने का काम करेंगी करेंगी.

4. घरेलू हिंसा बढ़ेगी-  भारत समेत दुनिया के कई देशों से ऐसी खबरें आई हैं कि लॉकडाउन या स्टे एट होम के दौरान महिलाओं और बच्चों के खिलाफ घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. परिवार में रहने की पति, महिलाओं और बच्चों की मजबूरी तथा मानसिक अवसाद आदि को मिलाकर एक ऐसी स्थिति बन गई है, जो महिलाओं और बच्चों के लिए खतरनाक है. शराब के सेवन को अगर अबाध तरीके से बढ़ावा दिया गया तो घरेलू हिंसा की घटनाओं में और बढ़ोतरी होगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनका निजी विचार है.)

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