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Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतपुराने हिंदी गानों के बिगड़ते स्वरुप को लेकर लता मंगेशकर ने करी टिप्पणी, कहा न करें छेड़छाड़

पुराने हिंदी गानों के बिगड़ते स्वरुप को लेकर लता मंगेशकर ने करी टिप्पणी, कहा न करें छेड़छाड़

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ट्विटर पर हिंदी गानों के रिमिक्सीकरण को लेकर लता ने जताया ऐतराज़, पुराने समय की संगीत प्रणाली से भी कराया रूबरू।

नयी दिल्ली: वरिष्ठ गायिका लता मंगेशकर ने स्वर्णिम युग के गानों के बढ़ते रिमिक्सीकरण को लेकर अपनी नाराज़गी जताई है ।

शुक्रवार को ट्विटर पर लता ने ट्वीट किया:

वरिष्ठ गायिका ने यह टिप्पणी लेखक जावेद अख़्तर के साथ टेलीफोन पर हुई एक बातचीत के बाद लिखी ।

लता ने कहा कि वे गीत के मूलस्वरूप को बिगाड़े बिना नए परिवेश में डालने से में उनको कोई आपत्ति नहीं है,  पर क्रेडिट लेने और तोड़ मरोड़ कर उन गीतों को प्रस्तुत करने से वे काफी ख़फ़ा हैं ।

लता लिखती हैं, ” गीत का मूल स्वरूप कायम रख उसे नये परिवेश में पेश करना अच्छी बात है। एक कलाकार के नाते मैं भी ये मानती हूँ की कई गीत कई धुनें ऐसी होती है की हर कलाकार को लगता है की काश इसे गाने का मौक़ा हमें मिलता,ऐसा लगना भी स्वाभाविक है,परंतु, गीत को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करना यह सरासर गलत बात है। और सुना है की ऐसा ही आज हो रहा है और मूल रचयीता के बदले और किसी का नाम दिया जाता है जो अत्यंत अयोग्य है”।

बॉलीवुड कि फिल्मों में स्वर्णिम युग या जिसे गोल्डन एरा भी कहते हैं, के गानों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना कोई नयी बात नहीं है।

उदाहरण के तौर पर फिल्म ‘दम मारो दम’ मूवी का गाना, जिसमें दीपिका पादुकोण फीचर्ड हैं, को ही देख लीजिये । यह गाना आशा भोसले ने पहली बार फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में गाया था । गाने को रीमिक्स तो किया ही गया है उसके साथ साथ अभद्र भाषा का प्रयोग कर गाने के मूल रूप को पूरे तरीके से बदल भी दिया गया है ।

1960 की फिल्म ‘काला बाज़ार’ के देवानंद और वहीदा रेहमान पर चित्रित इस गाने “खोया खोया चाँद” को 2011 में आई फिल्म शैतान में सेक्सुअलाइज़ करके दिखाया गया था।

मिस्टर इंडिया में दर्शित श्रीदेवी के “हवा हवाई” गाने को कैसे भूला जा सकता है । 2011 में आई मूवी ‘शैतान’ में इसको तोड़ मरोड़ कर पेश किया और यह गाना भी युवाओं में बड़ा प्रचलित हुआ था ।

बॉलीवुड के गानों को तोड़ मरोड़ कर पेश किये जाने की लिस्ट लम्बी है।

लता मंगेशकर के लेख ने यह भी बताया कि स्वर्णिम युग के गानों को टेक्नोलॉजी के अभाव में बहुत मेहनत के साथ बनाया गया था । उन्होंने एक-एक करके हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सारे कलाकारों के योगदान को श्रेय भी दिया जिनके बलबूते पर आज उस युग को स्वर्णिम युग का दर्जा दिया जाता है।

उन्होंने लिखा “सुविधाओं का अभाव जरूर था, परंतु प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी । काम में लगन थी, प्रतिबध्दता की भावना थी। एक-एक गाने को खूब तराशा जाता था। कई दिन रिहर्सलें होतीं थीं। गाना सुंदर और अर्थपूर्ण हो इसलिए हर कोई हृदयपूर्वक कोशिश करता था। हर किसी पर सृजन का आशीर्वाद था। आज पीछे मुडकर देखती हूं और सोचती हूं तो लगता है कि वह दिन अभिमंत्रित थे, वह समय जादुई था”।

अंत में उन्होंने सभी रिकॉर्डिंग कंपनियों से प्रार्थना भी की “यह (रिकॉर्डिंग) कंपनीयां अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें ,संगीत को केवल व्यावसायिक तौर पे देखने के बजाय देश की सांस्कृतिक धरोहर समझके क़दम उठाए”।

लता मंगेशकर के लिखे गए संपूर्ण मत को यहाँ पढ़ें

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