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Sunday, 22 December, 2024
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तमिलनाडु में भाजपा का खाता खुलने के लिए खुशबू सुंदर ही काफी नहीं, स्टार पॉलिटिक्स का दौर खत्म

न केवल खुशबू सुंदर बल्कि भाजपा में शामिल अधिकांश नए सदस्य उन चार फैक्टर पर खरे नहीं उतरते हैं, जिन्होंने इसे संसद में दो सदस्यों वाली पार्टी से व्यावहारिक तौर पर बिना किसी प्रतिद्वंद्वी वाली सत्तारूढ़ पार्टी के मुकाम तक पहुंचाया है.

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कांग्रेस प्रवक्ताओं के साथ कुछ न कुछ तो बड़ा गड़बड़ है. खुशबू सुंदर पार्टी छोड़ने वाली कांग्रेस की पांचवी चर्चित मीडिया पर्सन बन गई हैं. कांग्रेस ने लोकप्रियता के मामले में अच्छी-खासी रेटिंग रखने वाले तमाम लोगों को आकृष्ट तो किया पर हरसंभव इस्तेमाल और उपयोगिता के लिहाज से उन्हें अपने साथ बनाए रखने में कहीं न कहीं चूक गई नजर आ रही है. अब तो ऐसा लगता है कि मौजूदा कांग्रेस नेतृत्व ‘दोस्तों को कैसे गवाएं’ विषय पर किताब लिखकर कहीं ज्यादा पैसे कमा सकता है.

जानी-मानी तमिल अभिनेत्री से राजनेता बनी खुशबू सुंदर के भाजपा में शामिल होने को लेकर सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली है. हालांकि, तमिलनाडु के राजनीतिक हलकों में इस पर कुछ समय से चर्चा जारी थी लेकिन भाजपा के प्रति उसके झुकाव का सबसे मजबूत संकेत तब मिला जब उन्होंने नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का समर्थन किया.


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‘नए सदस्य’ का मुद्दा

जैसी उम्मीद थी कि खुशबू सुंदर ने यह बताने से इनकार कर दिया कि उन्हें भाजपा से क्या उम्मीदें हैं और इस सवाल को कुछ इस तरह घुमा दिया कि पार्टी भारतीय नागरिकों के लिए अभी जो कर रही है, उससे कहीं ज्यादा करेगी. एक टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि ‘जब आपके पास 128 करोड़ ऐसे लोग हों जो वास्तव में एक आदमी पर भरोसा करते हों और वह हमारे प्रधानमंत्री हों तो मुझे लगता है कि वह कुछ ऐसा कर रहे हैं जो एकदम सही है.’

हालांकि, उनका एक पुराना ट्वीट कहता है, ‘एक भारतीय के नाते उन्हें (नरेंद्र मोदी को) अपना प्रधानमंत्री कहना मेरे लिए अपमानजनक है….वह एक चुनिंदा समूह के पीएम की तरह व्यवहार करते हैं…अंध भक्तों को तो यह सब दिखाई नहीं देता है…आप साम्प्रदायिक सोच वाले एक ऐसे व्यक्ति का अनुसरण करते हैं जिसे लगता है कि दूसरे धर्मों के लोग भारतीय नहीं हैं… मोदी भारत और उसके लोकतंत्र का अपमान हैं.’ अब जबकि वह जल्द ही तमिलनाडु में प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगी तो निश्चित तौर पर भीड़ को आकृष्ट करेंगी. लेकिन यह कहना मुश्किल है कि राज्य भाजपा कैडर उन्हें किस हद तक पार्टी नेता के तौर पर अपनाएगा. मौजूदा समय की मिली-जुली प्रतिक्रिया को देखते हुए तो यही लगता है कि भाजपा को शायद उतना लाभ न हो जिसकी उसने पार्टी में उनके प्रवेश से उम्मीद लगा रखी है.

भाजपा के संसद में दो सदस्यों वाली पार्टी से ऐसा सत्तारूढ़ दल, जिसका व्यावहारिक तौर पर निकट भविष्य में कोई प्रतिद्वंद्वी नजर नहीं आ रहा, बनने तक का सफर मुख्यत: चार फैक्टर पर निर्भर रहा है. अपने कार्यक्रमों और नीतियों के जरिये पार्टी की मूल विचारधारा का मजबूती से पालन. दूसरा फैक्टर समर्पित कैडर है जो कुछ मामलों में भारतीय जनसंघ के कार्यकर्ताओं की पहली पीढ़ी से जमीनी कार्यकर्ताओं की मौजूदा पौध तक पहुंचा है. तीसरा फैक्टर विपक्ष की घेराबंदी के लिए चुनावी बूथ स्तर तक केंद्रित बेहद अच्छी तरह सोची-समझी चुनावी रणनीति है. आखिरी और सबसे अहम फैक्टर है एक करिश्माई नेता को आगे करना.

चाहे मध्य प्रदेश हो या तमिलनाडु हाल में पार्टी में शामिल होने वाले नए सदस्य इनमें से किसी भी श्रेणी में फिट नहीं होते हैं. तमिलनाडु की राजनीति में सिनेमाई हस्तियों का वर्चस्व खत्म होता दिख रहा है. सी. राजगोपालाचारी और एम. भक्तवत्सलम जैसे दिग्गजों के परिदृश्य से बाहर होने के बाद तमिलनाडु की राजनीति सिल्वर स्क्रीन की दो बड़ी हस्तियों के नेतृत्व वाली द्रविड़ पार्टियों के बीच ही सिमटी रही है जिन्हें वस्तुत: भगवान जैसा दर्जा दिया जाता था. राज्य में सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों के नेतृत्व को अब सिने हस्तियों की तड़क-भड़क कुछ खास रास नहीं आ रही है. वह समय और दौर खत्म होता दिख रहा है. ऐसी स्थिति में यह कहना कठिन होगा कि कोई सिने कलाकार कितना भी सफल क्यों न हो राज्य में अपना खाता खोलने के लिए जूझ रही भाजपा को कोई बहुत फायदा पहुंचा पाएगा.

सारा भार अब भी मोदी पर

खुशबू सुंदर ने जया टीवी पर अपने कार्यक्रम हिट होने के बाद 2001 में अन्नाद्रमुक में शामिल होकर राजनीति में अपनी पारी की शुरुआत की. 2004 में जब केंद्र में भाजपा ने सत्ता गंवा दी और अन्नाद्रमुक नेता जयललिता की सियासी बाजी एकदम उलट गई तब 2006 में खुशबू द्रमुक में शामिल हो गईं. पार्टी का कोई बैकग्राउंड न होने और चार दशक तक द्रमुक के नेतृत्व में चले द्रविड़ आंदोलन से कोई संबंध न होने के बावजूद वह द्रमुक में उच्च पदस्थ प्रवक्ता का पद पाने में सफल रहीं. 2011 में पार्टी की हार के बाद उन्होंने उससे नाता तोड़ लिया. इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हुईं, जिसने 2014 में सत्ता गंवा दी. एक ट्विटर पोस्ट के अनुसार, भाजपा तमिलनाडु में सत्ता में नहीं है और इसलिए ‘बदकिस्मत’ खुशबू के इसमें शामिल होने पर भी कुछ खोने का सवाल नहीं उठता है.

फिर भी, भाजपा की स्थानीय इकाई ने कुछ नई रणनीति तो सोची ही होगी. पिछले कुछ हफ्तों में अन्य दलों के कई राजनेता और कई नौकरशाह भी भाजपा में शामिल हुए हैं. वे अपने साथ विश्वसनीयता और प्रशासनिक अनुभव लेकर आए हैं. भाजपा को तमिलनाडु में नए चेहरों और वहां के सामाजिक ढांचे में फिट बैठने वाले ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधियों की जरूरत है.

इसके अलावा, पहले द्रविड़ कझगम और फिर राजनीतिक मंच पर द्रमुक की तरफ से प्रचारित-प्रसारित द्रविड़ अलगाववाद की विचारधारा अब पुरानी और मतदाताओं के बड़े वर्ग द्वारा खारिज की जा चुकी लगती है. यहां तक कि हिंदी विरोधी, उत्तर विरोधी दुष्प्रचार के भी अब ज्यादा राजनीतिक निहितार्थ नहीं रह गए हैं.

राज्य स्तर पर कोई ऐसा नेता नहीं है जो करिश्माई व्यक्तित्व और लोकप्रियता के मामले में मोदी से मुकाबला कर सके. ऐसी स्थिति में पार्टी को राज्य स्तर पर एक अच्छी कोर टीम की आवश्यकता होगी, जो विचारधारा के स्तर पर गहराई से पार्टी से जुड़ी हो और कैडर तक पहुंच सके. साथ ही पार्टी में शामिल नए लोगों का उपयुक्त इस्तेमाल कर सके.

(लेखक ‘ऑर्गनाइजर’ के पूर्व संपादक है. व्यक्त विचार निजी हैं.)


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