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Saturday, 2 November, 2024
होममत-विमतKCR का अंधविश्वास उन पर भारी पड़ गया, उन्हें इसके बजाय डिलीवरी और सुशासन पर फोकस करना चाहिए था

KCR का अंधविश्वास उन पर भारी पड़ गया, उन्हें इसके बजाय डिलीवरी और सुशासन पर फोकस करना चाहिए था

केसीआर का दो साल तक सचिवालय न जाना अंधविश्वास की छोटी सी बानगी है - नंबर छह के प्रति उनका प्यार भी काफी मशहूर है.

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तेलंगाना विधानसभा चुनाव में के.चंद्रशेखर राव की हार तार्किकता की जीत है. उन्होंने ऐतिहासिक तेलंगाना सचिवालय को वास्तु-अनुरूप बनाने के लिए तोड़ दिया और मंदिर शहर यादगिरिगुट्टा का 1200 करोड़ रुपये खर्च करके बड़े पैमाने पर पुनरुद्धार करवाया. उन्होंने अंधविश्वास की बेदी पर पूजा की, लेकिन ज्योतिष, अंकज्योतिष और वास्तु में उनका विश्वास उन्हें जीत की गारंटी नहीं दे सका. लेकिन अगर उन्होंने वादों को पूरा करने और सुशासन पर ध्यान दिया होता तो यह काम कर जाता.

इसने उन्हें अपने विरोधियों के राजनीतिक कटाक्षों के प्रति कमज़ोर बना दिया है, यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके “अंधविश्वास” पर कटाक्ष किया है.

मोदी ने पिछले महीने विधानसभा चुनाव से पहले कहा था, “केसीआर अंधविश्वास के गुलाम हैं और इसकी वजह से सचिवालय को ध्वस्त कर दिया गया.” उनका अंधविश्वास ऐसा है कि किसी ने उनके कान में कहा, ‘अगर मोदी की छाया आप पर पड़ गई, तो आपके सारे सपने नष्ट हो जाएंगे.’ उस दिन के बाद से, वह मुझसे 50 फीट की दूरी पर रहे और मुझसे मिलने हवाई अड्डे पर नहीं आए.

वास्तु के पालन की कोई भी मात्रा, ऐतिहासिक संरचनाओं का विध्वंस, और भाषण देने का समय ताकि वे मुहुर्त (शुभ समय) में फिट हो सकें, केसीआर के लिए जनादेश की गारंटी नहीं दे सके. पता चला, नतीजे जादुई रूप से नहीं बदले होते अगर उन्हें 3 दिसंबर के बजाय 5 दिसंबर को घोषित किया जाता. केसीआर फिर भी हार जाते.

‘अपशकुन’ को खत्म करना

हो सकता है कि राजनीति में अंधविश्वास व्याप्त हो. आख़िरकार, शपथ ग्रहण और शपथ ग्रहण समारोह अक्सर ‘शुभ’ दिनों पर आयोजित किए जाते हैं. लेकिन यह दुर्लभ है कि कोई नेता उनके जाल में इस कदर फंस जाए कि इसका असर उसके राज्य चलाने के तरीके पर पड़े.

कथित तौर पर केसीआर छह साल तक तेलंगाना विधानसभा में नहीं गए क्योंकि इमारत वास्तु अनुरूप नहीं थी.

कहानी यह है कि पिछले सचिवालय का जी ब्लॉक – जो कभी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकारों द्वारा साझा किया जाता था – शापित है. ‘सैफाबाद अभिशाप’ के नाम से मशहूर इस इमारत का निर्माण 1888 में निज़ाम VI वीर महबूब अली खान बहादुर ने कराया था.

जब महबूब अली महल का निरीक्षण करने के लिए जा रहे थे, तो दो सरदार जो उनके शासन को समाप्त करना चाहते थे, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मॉनिटर छिपकली – जिसे अपशकुन माना जाता है – उनके रास्ते में आ जाए. अली ने तुरंत इमारत को सील करवा दिया, जिसे बाद में 1940 के दशक में निज़ाम डोमिनियन के राज्य सचिवालयों के लिए खोला गया था.

जैसे ही भारत को आज़ादी मिली, हैदराबाद राज्य का पतन हो गया. केसीआर ने इमारत को अशुभ माना और कथित तौर पर वहां से कभी काम नहीं किया. इसके बजाय, उन्होंने काम करने के लिए अपने आवास पर एक भव्य कार्यालय बनाया.

इसके बाद और कोविड-19 महामारी के दौरान, केसीआर ने बिल्डिंग को ध्वस्त करने और एक नया निर्माण करने का निर्णय लिया. बेशक, मीडिया को इस कार्यक्रम को कवर करने की अनुमति नहीं थी (राजनेता मीडिया को एक अपशकुन मानते हैं). जल्द ही, 860 करोड़ रुपये की लागत से वास्तु-अनुरूप नया स्ट्रक्चर खड़ा किया गया. ऐसी बेशर्मी से भरी भव्यता मतदाताओं को पसंद नहीं आई.

भारत में अंधविश्वास कोई बाहर से आई अवधारणा नहीं है. केसीआर की तरह, उनके मतदाताओं में से कई लोग स्वयं वास्तु के प्रति जुनूनी होंगे. सिवाय इसके कि ईवीएम के बटन वास्तुशास्त्र को ध्यान में रखते हुए नहीं दबाए जाते.

कई लोग इस बिंदु को काउंटर-प्रोडक्टिव मानेंगे, क्योंकि, हाल के मोदी वर्षों में, राज्य और धर्म सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे का हाथ थामे चल रहे हैं. यहां तक कि चंद्रयान-3 के पीछे इसरो की टीम ने भी लॉन्च से पहले एक मंदिर का दौरा किया. लेकिन कुछ लोग तर्क देंगे कि धर्म और अंधविश्वास एक जैसे नहीं हैं. अधिकांश भारतीय कहीं न कहीं रेखा खींचेंगे.


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छह के प्रति प्यार

केसीआर का छह साल तक सचिवालय में न जाना सच्चाई का सिर्फ एक हिस्सा भर है. छह नंबर के प्रति उनका लगाव भी जगज़ाहिर है. 2014 में, जब उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, तो कहा जाता है कि उन्होंने अपने भाषण का समय इस तरह से निर्धारित किया कि यह किसी भी तरह से 12:57 बजे तक समाप्त हो जाए. जब आप एक, दो, पांच और सात जोड़ते हैं, तो कुल 15 होता है. और पांच + एक छह होता है.

केसीआर की कारों की नंबर प्लेटों का योग भी छह है और उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया है कि उनके परिवार के छह सदस्य सक्रिय राजनीति में भाग लें.

यहां तक कि छह ने विभिन्न समितियों में सदस्यों की संख्या भी निर्धारित करने में भूमिका निभाई. किसानों पर समन्वय समिति में 15 सदस्य थे, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जिला समिति में 24 सदस्य थे और राज्य स्तरीय समितियों में 42 सदस्य थे. इन संख्याओं के सभी अंक कुल मिलाकर छह होते हैं.

यदि किसी व्यक्ति के अंधविश्वासों से रोजमर्रा का सरकारी कामकाज इतनी बुरी तरह प्रभावित होता है, तो उसके मतदाता उसे गंभीरता से कैसे लेंगे?

नेपोलियन बोनापार्ट की एक कहानी है जो एक प्रसिद्ध हस्तरेखा पढ़ने वाले से मिलने गया जिसने उसे बताया कि वह कभी राजा नहीं बनेगा क्योंकि उसके पास ‘भाग्य रेखा’ नहीं है. बताया जाता है कि नेपोलियन ने अपना भाग्य खुद लिखने के लिए अपनी हथेली पर काटकर रेखाएं बना लीं. शायद इस कहानी से केसीआर को प्रेरणा मिली होगी.

यदि अंधविश्वासों के बारे में बात करनी है तो बातचीत सिर्फ संख्यात्मक गणनाओं पर केंद्रित नहीं होनी चाहिए बल्कि इस पर कि किस हद तक इन मान्यताओं ने सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया नुकसान पहुंचाया है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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