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Sunday, 22 December, 2024
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मणिकर्णिका में कंगना का किरदार मोदी के न्यू इंडिया की ‘भारत माता’ जैसा है

मणिकर्णिका ट्रेलर में, जब खून से लथपथ चेहरे वाली कंगना रनौत हर-हर महादेव का जयकारा लगाती हैं, कोई यह सोच सकता है कि बस बाबरी मस्जिद गिरने वाली है.

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मणिकर्णिका फिल्म इस समय के भारत की भावना को समझ रही है.

मणिकर्णिका फिल्म में कंगना रनौत रानी लक्ष्मीबाई का किरदार निभा रही हैं. ट्रेलर के आख़िरी में वे खून से लथपथ रहती हैं और कहती हैं, ‘झांसी आप भी चाहते हैं और मैं भी. फर्क सिर्फ इतना है कि आपको राज करना है, और मुझे अपनों की सेवा’.

प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी से लेकर शहजादे राहुल गांधी के लिए झांसी को भारत बनाना चुनावी चुनौती हो सकता है.

मणिकर्णिका 19वीं सदी के भारत पर आधारित है. लेकिन वास्तव में वैसा ही राष्ट्रवाद आज के दौर में भी जीवित है और कंगना रनौत से अच्छा ‘भारत माता’ के किरदार को कोई नहीं निभा सकता था.

कंगना रनौत पहले से ही अपने राष्ट्रवाद को अपनी विशेषता बना चुकी हैं. न्यूज़18 के समिट में उन्होंने कहा कि एक साक्षात्कार में मैंने कहा था कि मैं राष्ट्रवादी हूं. लोगों ने कहा, ओह! आप उस टाइप की व्यक्ति हैं. मैंने पूछा, ‘आपका उस टाइप से क्या मतलब है.’ मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि अगर भारत आगे नहीं बढ़ता है तो मुझे भी नहीं बढ़ना चाहिए. मैं एक भारतीय हूं और भारतीय पैदा हुई हूं. मेरे पास इसके अलावा कोई अन्य पहचान नहीं है.

ऐसा प्रतीत होता है कि यह मणिकर्णिका की स्क्रिप्ट से लिया गया है. कला और जीवन प्रशंसनीय रूप से जुड़ा हुआ है.

यह कहना उचित होगा कि मणिकर्णिका शायद ही किसी प्रकार के विवाद में आये, जिस प्रकार से पद्मावत विवादों में आयी थी. इस फिल्म में कोई मुसलमान विरोधी नायक नहीं है, निश्चित रूप से डैशिंग रणवीर सिंह के रूप में कोई नहीं है, जो वास्तविक जीवन में फिल्म की पद्मावती से शादी करने जा रहा हो. किसी भी प्रकार के दृश्य की कोई अफवाहें भी नहीं हैं.

अंग्रेजों की निंदा करना आसान है क्योंकि वे सबसे सुरक्षित विलेन हैं. कोई भी भारत में उनके बचाव में नहीं आएगा. कंगना रनौत ने मणिकर्णिका के ट्रेलर में शानदार रूप से ब्रिटिश लड़ाकू के सिर को दो धड़ों में काट दिया है. सांप्रदायिकता और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का आरोप लगने का भी कोई खतरा नहीं है. शशि थरूर से दीनानाथ बत्रा तक सभी लोग औपनिवेशिक ब्रिटेन की बुराइयों को खत्म करने में एकजुट हो सकते हैं. लेकिन कंगना रनौत अपने किरदार के माध्यम से देशभक्त नहीं होने के एहसास को रोकती हैं.

इस समय में यह फिल्म, चाहे वह इतिहास या ऐतिहासिक कल्पना हो, केवल फिल्म नहीं है. वर्तमान में अतीत को दर्शाता है.

जब कंगना रनौत सद्गुरु जग्गी के साथ अपने सर्वश्रेष्ठ गायत्री देवी शिफॉन-मोती के सुरुचिपूर्ण अवतार में दिखाई दीं, तो उन्होंने उदारवादियों के खिलाफ खुलकर बोला और लिंचिंग का साधारणीकरण करने का आरोप लगाया. वह स्पष्ट रूप से मणिकर्णिका में एक दृश्य में, एक बछड़े को बचाती हैं. लेकिन उसे एक भेड़ के बच्चे में बदल दिया गया क्योंकि हम ‘गौरक्षक की तरह दिखना नहीं चाहते हैं.’

इसके बाद लिंचिंग के बारे में बातचीत हुई जहां सद्गुरु कहते हैं कि हिंसा पर बहस करने वाले लोगों ने भारत को नहीं देखा है और वे ‘शहरों में रह रहे हैं और इन चीजों के बारे में अंतहीन बात कर रहे हैं.’

लिबरल दांतों तले उंगली दबा लेते हैं जब उनको पता चलता है कि महिलाओं पर आधारित क्वीन जैसी फिल्म करने वाली उनकी स्टार कलाकार कंगना रनौत घोषित करती हैं कि वह नरेंद्र मोदी की प्रशंसक हैं और वह सोचती हैं कि वह ‘सही रोल मॉडल’ हैं. उनकी यह पसंद और सबको आश्चर्यचकित करती है. यह कंगना रनौत की धारणा की बजाय लोगों की धारणा को बताता है.

कंगना रनौत शायद बॉलीवुड से बाहर आकर बोलने वाली सबसे दिलचस्प अभिनेत्रियों में से एक हैं. जहां सितारों को सुविधाजनक विचारों के लिए जाना जाता है, जब वे सुपरस्टारडम पर पहुंच जाते हैं तो अधिक कम्फर्ट में चले जाते हैं. दूसरी तरफ, वह झगड़ा करने से डरती नहीं हैं. सौभाग्य से कंगना के लिए, उनके विचार देश की शक्तियों के साथ समन्वयित हैं. इसलिए, कोई भी उनको पाकिस्तान जाने के लिए कभी नहीं कहेगा. इसके बावजूद, उन्होंने पाकिस्तानी कलाकारों को भारतीय फिल्मों में काम करने से रोकने का बचाव किया है. क्योंकि ‘जब आप सीमाओं के बारे में बात कर रहे हैं, तो आप एक गूढ़ दुनिया में नहीं जा सकते और कह सकते हैं कि ‘मैं एक कलाकार हूं’.

कंगना रनौत हमें याद दिलाना चाहती हैं कि ‘अमेरिकी अपने राष्ट्रीय गान के लिए खड़े होते हैं’. आप खड़े होने में शर्मिंदा क्यों महसूस करते हैं? यदि आप अमेरिकियों से कुछ सीखना चाहते हैं, तो उनसे अच्छी चीजें सीखें.’ हकीकत में, अमेरिकी फुटबॉल खिलाड़ी भी राष्ट्रीय गान के दौरान घुटने टेकते हैं. और यह मुद्दा राष्ट्रीय गान के लिए खड़े नहीं होने के बारे में कभी नहीं था. यह उस व्यक्ति को मारने या गिरफ्तार करने के बारे में था जो किसी भी कारण से ऐसा नहीं कर रहा था.

एक तरह से कंगना रनौत बहुसंख्यक समकालीन भारतीय राजनीति की मुख्य प्रवक्ता हैं, जो अपने उदारवाद में बहुत आत्मविश्वास रखती हैं. वे कहती हैं कि ‘हमारे जैसे विविधता भरे देश में लोगों को भावनाओं पर विचार करना होगा. तथाकथित उदारवादियों के लिए अपना सिर हिलना क्यों मुश्किल है? विचारशून्य होना उदार होना नहीं है.’ लेकिन उनका उदारवाद और विचार उनके वास्तविक नजरिये में छिपता हुआ नज़र आ रहा है.

उदाहरण के लिए ‘अगर कोई धर्म गाय की पूजा करता है तो आप गौहत्या नहीं कर सकते हैं. मैं शाकाहारी हूं, मैं कच्चा मीट नहीं देख सकती हूं. मुझे अपनी पसंद पर शर्म नहीं आती है. अगर यह भावनात्मक बात है, तो लोगों को क्यों उत्तेजित करें?’ यह उदारवाद हमें एक दूसरे के लंच बॉक्स और रेफ्रिजरेटर से दूर करता है, लेकिन राजस्थान में गायों को ले जाने वाले डेयरी किसानों की लिंचिंग से कंगना बचती नजर आती हैं. नकली व्हाट्सएप फॉरवर्ड का इस्तेमाल लोगों को उत्तेजित करने के लिए किया जाता है, इससे भी वे बचती नजर आती हैं.

आज के दौर में भारत में कई लोग ‘उदारवाद’ के इस बहुसंख्यक संस्करण पर भरोसा रखते हैं. विशेष रूप से वे लोग जो जो पुराने ढर्रे के उदारवादी लोगों से निराश हैं, क्योंकि, जैसा कंगना रनौत कहती हैं कि ये उदारवादी राजनीतिक रूप से सही होने के लिए आपको अपने समूह में इसलिए नहीं रखते कि ‘आप उससे घृणा नहीं करते जिससे वे घृणा करते हैं’. चाहे यह बॉलीवुड या राजनीति हो, यह सब भारत के पुराने लोगों के क्लब के बारे में खुलासा करता है. ‘पिछली सरकारों ने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के आधार पर विभाजन किया क्योंकि अल्पसंख्यक एक साथ झुंड में वोट करते हैं. सच्चाई यह है कि बहुसंख्यक लोगों को अल्पसंख्यक अनुकूल सरकारों के द्वारा मिटाए जाने का खतरा है.’ यह व्यामोह के लिए संगीत है जो कि बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देता है.

माना जा रहा है कि मणिकर्णिका एक ऐतिहासिक चरित्र के बारे में पीरियड फिल्म है. लेकिन जैसा कि पद्मावत ने हमें दिखाया, भारत में कुछ भी अतीत में नहीं है. सब कुछ वर्तमान में है. और मणिकर्णिका ट्रेलर में, जब खून से लथपथ चेहरे वाली कंगना रनौत हर-हर महादेव का जयकारा लगाती हैं, कोई यह सोच सकता है कि बस बाबरी मस्जिद गिरने वाली है. लेकिन वह किसी और समय के लिए एक और फिल्म है.

(संदीप रॉय पत्रकार, टिप्पणीकार और लेखक हैं.)

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