scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमदेशबच्चों को सुधरने का वातावरण और मौका दिया जाना जरूरी, बचपन में हो जाती हैं गलतियां

बच्चों को सुधरने का वातावरण और मौका दिया जाना जरूरी, बचपन में हो जाती हैं गलतियां

बच्चों से होने वाली गलतियों को किशोर न्याय अधिनियम दोबारा न करने और सुधार का मौका दिए जाने की भावना पर आधारित है.

Text Size:

नई दिल्ली: इसी वर्ष मई में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने चार किशोरों को पुलिस द्वारा चोरी के संदेह में जेल में चेन से बांधकर रखे जाने और बुरी तरह पीटने के एक मामले का स्वतः संज्ञान लिया. इसको लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी किया.

इससे पहले पिछले वर्ष सितम्बर में राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने एक 15 वर्षीय नाबालिग को नशीली दवा रखने के आरोप में बाल सुधार गृह के बजाय जेल भेजे जाने और तीन महीने बाद जमानत पर रिहा होने के बाद उस लड़के द्वारा आत्महत्या किये जाने के मामले का स्वतः संज्ञान लिया. यह घटना उत्तर प्रदेश के एटा जनपद की थी. लड़के को एटा पुलिस ने नशीली दवाओं के कब्जे के संबंध में गिरफ्तार किया था और उसे किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश करने के बजाय जिला जेल भेज दिया गया था.

आयोग ने इस मामले में पुलिस, न्यायिक अधिकारी एवं डॉक्टर जिसने बच्चे की जांच की थी, की भूमिका पर भी सवाल उठाया है. ये मामले अपराध करने वाले बच्चों के मामले में पुलिस, न्याय व्यवस्था एवं समाज के एकतरफा दृष्टिकोण की बानगी भर है.

सभी करते हैं बचपन में गलतियां

हम में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने बचपन में गलतियां न की हों. उनमें से कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जो हमें ताउम्र याद रहती है. मुझे याद आ रही है एक कार्यशाला जिसमें एक पुलिस अधिकारी बता रहे थे कि उन्होंने बचपन में एक बार मक्का के खेत में से एक भुट्टा चुरा लिया. खेत मालिक ने उन्हें तो जलील किया ही साथ ही उनके पिताजी को भी बहुत खरी खोटी सुनाई. आज 30 वर्ष बीत जाने के बाद भी उन्हें उस व्यक्ति का चेहरा जस की तस याद है और उसके लिए उनके मन में नफरत भरी हुई है.

उसी कार्यशाला में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने भी एक वाकया सुनाया. उन्होंने बताया कि एक बार वे एक रेस्टोरेंट में अपने परिवार के साथ खाना खाने गये. उस समय उनका बेटा लगभग 8 साल का रहा होगा. उनका बेटा रेस्टोरेंट में कहीं घूम कर आया और उन्हें अपनी पेंट की जेब में पड़े बहुत से सिक्के दिखाने लगा. उन्होंने उससे पूछा कि ये सिक्के कहां से मिले तो उसने बताया कि छोटा सा एक मंदिर है रेस्टोरेंट में, वहीं से वो ये सारे सिक्के उठा लाया है. उन्होंने उसे समझाया. रेस्टोरेंट के मालिक को सारा प्रकरण बताया और फिर उनके बेटे ने ये सिक्के वापस किए.

यहां इस वाकये को बताने के पीछे मंशा ये थी कि अगर यही काम किसी गरीब बच्चे ने किया होता तो पहले रेस्टोरेंट के लोग ही उसे बुरी तरह मारते और फिर पुलिस भी उस पर जमकर हाथ साफ करती. इस कार्यशाला में विशेष किशोर पुलिस इकाई के नोडल अधिकारियों को किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम पर प्रशिक्षण दिया जा रहा था.

अक्सर हमें कम उम्र में ही बच्चों द्वारा किये गए अपराधों और समाज और पुलिस द्वारा उन्हें प्रताड़ित किये जाने की खबरें सुनने को मिलती रहती है. यदि किशोर न्याय अधिनियम की बात करें तो यह कानून भारतीय दण्ड संहिता यानी आईपीसी के उलट बच्चों को अपराधी मानने के बजाय उन्हें ऐसी गलतियां दोबारा न करने और सुधार का मौका दिए जाने की भावना पर आधारित है. जब हम अपने बच्चों को उनकी गलतियों पर समझा बुझा कर और छोटा मोटा दण्ड देकर छोड़ देते हैं तो उसी उम्र के इन बच्चों को सुधार गृह या जेल के हवाले क्यों कर देते हैं.

अगर हम आंकड़ों पर गौर करें तो नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की भारत में अपराध रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में पूरे देश में बच्चों द्वारा अपराध किये जाने के कुल 31,170 मामले दर्ज किये गए. यदि बच्चों पर होने वाले अपराध की बात करें तो 2021 में 1,40,839 प्रकरण दर्ज हुए जिनमें बच्चियों के साथ बलात्कार, उन्हें किडनैप करना या उनका यौन उत्पीड़न शामिल था. कुल मिलाकर बच्चों पर हुए अपराध बच्चों द्वारा किये अपराध की तुलना में चार गुना से भी ज्यादा है.


यह भी पढ़ें: ‘अन्याय, ऑरवेलियन’—EWS आरक्षण से SC/ST, OBC को ‘बाहर रखने’ पर असहमत जजों ने क्या कहा


कौन बना रहा है बच्चों को अपराधी

ये तो हम सभी जानते हैं कि बच्चा अपराधी पैदा होता नहीं है. फिर समाज, समुदाय व परिवार में वो कौन सी चीजें जो उसे अपराध करने की और धकेलती है. हम सभी को इस मानसिकता को समझना होगा. न्यायिक प्रक्रिया के पहले पायदान पर पुलिस होने के चलते बच्चों द्वारा किये गए अपराध के मामलों में पुलिस अधिकारी की संवेदनशीलता बहुत अहम हो जाती है.

एक और बड़ा सवाल बच्चे की उम्र को लेकर भी है. किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति बच्चा है. निर्भया प्रकरण के बाद 2015 में इस अधिनियम में कुछ परिवर्तन किये गए. इस कानून में अपराधों को सजा के आधार पर वर्गीकृत किया गया है. जिन अपराधों में कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान है उन्हें जघन्य अपराधों की श्रेणी में रखा गया है और ऐसे अपराध करने वाले 16-18 वर्ष के बच्चों को वयस्क की तरह माना जाए या बच्चे की तरह उस पर कार्यवाही की जाए यह जिम्मेदारी किशोर न्याय बोर्ड एवं बाल न्यायालय को दी गयी है. बोर्ड को इस प्रक्रिया में मदद करने के लिए कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत भी तय किये गए. इस तरह के मामलों में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के भी आदेश दिए गए हैं.

परन्तु ऐसे अपराध जिनमें सात साल से कम सजा का प्रावधान है, पुलिस को मामले से सम्बंधित दस्तावेज को किशोर न्याय बोर्ड के सामने प्रस्तुत करने और उनके दिशानिर्देशों पर कार्यवाही किये जाने की बात कही गयी है. इस कानून के अंतर्गत देश के प्रत्येक थाने में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी नियुक्त करने, उसे प्रशिक्षित करने और जिला स्तर पर विशेष किशोर पुलिस इकाई गठित करने के भी प्रावधान किये गए हैं. कानून में साफ कहा गया है कि विधि का उल्लंघन करने वाले बच्चों को पकड़ने, उनसे बातचीत करने और उन्हें किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करने के दौरान पुलिस वर्दी में नहीं रहेगी. इसके पीछे मंशा यही है जहां तरफ एक बच्चा बिना किसी भय के अपनी बात रख सके वहीं दूसरी तरफ उस बच्चे के खिलाफ समाज में कोई गलत संदेश न पहुंचे.

किशोर न्याय कानून को समझने की जरूरत

ऐसे में पुलिस के साथ-साथ न्यायिक अधिकारियों की भी क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है ताकि वे किशोर न्याय कानून की मूल भावना को समझ सके और कानून सम्मत कार्यवाही कर सकें. ऐसे कई प्रकरण सामने आते हैं जब अपना काम कम करने और असंवेदनशीलता के चलते बच्चों की उम्र को बढ़ा कर दिखा दिया जाता है और उसे व्यस्क कैदियों के साथ जेल में रहने को बाध्य होना पड़ता है. यह खुद समझा जा सकता है बच्चे यदि वयस्क कैदियों के साथ रहेंगे उनका किस तरह से मानसिक और शारीरिक शोषण होगा और छूटने का बाद भी क्या वे आसानी से समाज की मुख्यधारा में वापस लौट पाएंगे.

अतः जैसा की इस कानून में स्पष्ट लिखा है 18 वर्ष से कम उम्र के ऐसे बच्चे जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया हो उसे किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष अवश्य प्रस्तुत किया जाए. उनके साथ अपराधी की तरह व्यवहार न कर उनके पुनर्वासन के सक्रिय प्रयास किए जाए. जिस संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण के साथ हम अपने बच्चों को सुधर जाने का अवसर प्रदान करते हैं कहीं न कहीं वही प्रयास हमें इन बच्चों के साथ भी करके देखने जरुरी हैं.

(लेखक बाल अधिकारों के क्षेत्र में पिछले दो दशकों से सक्रिय हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन- ऋषभ राज)


यह भी पढ़े: भारतीय मां अपने छोटे बच्चे के साथ हफ्ता में 9 घंटे बिताती हैं वही अमेरिकी 13 घंटे, राज्य उठाए कदम


 

share & View comments