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Saturday, 20 April, 2024
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मोदी सरकार का अंतिम बजट : खोदा पहाड़ निकली चुहिया, रोजगार चाहिए जोश नहीं

कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल के पौने दो घंटे के बजट भाषण में जोश तो दिखा मगर रोजगार की कोई बात नहीं सुनी गई.

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मोदी सरकार के अंतिम बजट से अपेक्षाएं आसमान छू रही थीं. हालांकि यह अंतरिम किस्म का बजट होता है मगर इसको लेकर मीडिया में भारी तूफान खड़ा किया गया. परंपरा यह है कि सरकार अपने अंतिम साल में लेखानुदान पेश करती है जिसके तहत, नई सरकार बनने तक कुछ महीने के लिए सरकार के खर्चों की मंजूरी ली जाती है. प्रधानमंत्री के नाटकीयता-प्रेम को देखते हुए तमाम पत्रकार और टीकाकार कुछ ऐसी हैरतअंगेज घोषणा की अपेक्षा कर रहे थे जिससे देश की सांसें रुक जाएं, खबरों की सुर्खियां बन जाएं, और शेयर बाज़ार शिखर पर पहुंच जाए. एक रिपोर्ट में तो यहां तक संकेत किया गया कि कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल अपने बजट भाषण के बीच में नरेंद्र मोदी को मौका देंगे, जो उठकर कुछ ऐसी अकल्पनीय ‘बड़ी’ घोषणा कर देंगे जिससे ये सारे मकसद पूरे हो जाएंगे. कुछ चमत्कारिक कर बैठने के मोदी के अनुराग को देखते हुए यह असंभव भी नहीं लग रहा था. आखिर, दो साल पहले उन्होंने बड़े जोश से नोटबंदी की घोषणा की ही थी!

अंततः वह पटाखा फुस्स ही साबित हुआ.

वित्तमंत्री ने अब तक का सबसे लंबा अंतरिम बजट भाषण दिया, जिसमें उल्लेखनीय रूप से जुमलेबाजी, हाज़िरजवाबी, और तो और रस्मी शेरोशायरी भी नदारद थी (वैसे, साहित्य की छौंक के रूप में भाषण के अंत में बेशक एक कवित्वहीन हिंदी कविता जरूर सुनने में आई). जो भी हो, उन्होंने मोदी को मौका नहीं दिया.

सरकार ने वास्तविक से ज्यादा काल्पनिक उपलब्धियों के खोखले दावे बेशक जरूर किए गए, जिनमें ऐसे आंकड़ों की छौंक भरी थी, जिसे संभवतः उस फिल्म (‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’) के पटकथा लेखक ने तैयार किया था जिसका जिक्र उन्होंने अपने भाषण में दो बार किया (‘फ़ैक्टचेकर डॉट इन’ ने वित्त मंत्री द्वारा पेश आंकड़ों में अशुद्धियों और अतिशयोक्तियों की पूरी सूची जारी की है). भारत के भविष्य के लिए 10 दीर्घकालिक लक्ष्यों के रूप में ‘विजन’ जैसी चीज़ भी थी. गनीमत है कि इसमें काल्पनिक आंकड़ों या नीरस तथ्यों का सहारा नहीं लिया गया. लेकिन पौने दो घंटे के कुछ कर्कश-से भाषण से आखिर हमें हासिल क्या हुआ? कुलमिलाकर तीन बड़ी घोषणाएं, और नज़रों में चुभने वाली एक चूक.

तीन घोषणाएं

गोयल की घोषणाओं में सबसे महत्वपूर्ण निश्चित ही किसानों के लिए बहुअपेक्षित न्यूनतम आय की व्यवस्था करने की घोषणा थी, जिसकी भविष्यवाणी कई विश्लेषक कर चुके थे. लेकिन यह सालाना महज 6000 रुपये या मासिक 500 रु. की पेशकश के रूप में सामने आई, वह भी उस समुदाय के लिए जिसके सदस्य रिकॉर्ड संख्या में खुदकशी करते रहे हैं. अपने अस्तित्व को लेकर ही हताशा के कगार पर पहुंच चुके किसान को पांच सौ का नोट क्या राहत दे पाएगा? क्या रोजाना के 16.5 रु. उसका परित्राण कर पाएंगे?

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जो चुनौती रखी थी उसे स्वीकार करने का मौका मोदी सरकार ने गंवा दिया. यह चुनौती थी एक ऐसी न्यूनतम आय गारंटी योजना बनाने की, जो भारत के निर्धनतम लोगों को जीवनरक्षक आमदनी करा सके और जिसमें कुछ मौजूदा सब्सिडियों को समाहित किया गया हो.

इससे भी बुरी बात यह है कि उक्त सरकारी योजना के तहत मिलने वाला इमदाद दो या इससे कम हेक्टेयर की जमीन वाले किसानों को ही मिलेगा, भूमिहीन किसानों या खेतिहर मजदूरों अथवा शहरी गरीबों को बिलकुल नहीं. लेकिन इस इमदाद को पाने वाले के जीवन में इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन- और यहां इसका कुटिल पहलू सामने आता है कि- यह तीन बराबर किस्तों में तुरंत भुगतान किया जाएगा. दूसरे शब्दों में, यह मोदी सरकार को हम जैसे करदाताओं के दो-दो हज़ार रु. 17 करोड़ बैंक खातों में जमा करने की छूट देगा ताकि यह रकम 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उनके हाथ में पहुंच जाए. इसे ‘प्रधानमंत्री री-एलेक्सन योजना’ या ‘मोदी को फिर जिताओ योजना’ नाम दिया जा सकता है.

दूसरी बड़ी घोषणा, जिसकी भी व्यापक भविष्यवाणी की जा चुकी थी, आयकर छूट की सीमा ढाई लाख रु. से बढ़ाकर 5 लाख रु. करने की है. मध्यवर्ग के लिए इस बहुप्रतीक्षित पेशकश का वाकई स्वागत किया जाना चाहिए. खासकर इसलिए भी कि यह एक ऐसी सरकार की ओर से की गई है जो इस वर्ग की जेब में निरंतर हाथ घुसाती रही है- कठोर करों के रूप में, चाहे वह हरेक लीटर पेट्रोल पर 20 रु. की एक्साइज ड्यूटी हो या रोजाना उपभोग की चीजों पर अनुचित तौर पर ऊंची जीएसटी हो. लेकिन चूंकि इस छूट की अपेक्षा पहले से ही थी इसलिए इसकी खबर से किसी के दिल की धड़कन खुशी के मारे तेज नहीं हुई.

साहसिक सोच का संकेत अगर एकमात्र किसी और घोषणा ने दिया तो वह थी असंगठित मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना की घोषणा. समाज के इस वर्ग को सामाजिक सुरक्षा तो चाहिए ही, लेकिन गोयल ने जो आंकड़ा बताया, वह शायद ही कोई उम्मीद जगाता है. 29 साल का युवा आज से अगर हर महीने 100 रु. जमा करेगा तो 31 साल बाद जाकर 3000 रु. महीना पाने का हकदार होगा. मुझे बीमांकिकी संबंधी गणना का तो पता नहीं है लेकिन मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा जब ऐसी कोई भी योजना सामने दिख जाए जिसमें 30 साल तक 1200 रु. सालाना जमा करने पर इससे बेहतर लाभ मिलता हो. तुर्रा यह कि अगर आपकी उम्र 30 साल या इससे ज्यादा हो तो किस्त और ऊंची हो जाएगी.

एक चूक

यह तो हुई तीन घोषणाओं की बात. लेकिन एक चूक जो हुई है उसका क्या? वह चूक है रोजगार… इसे मोटे हर्फों में लिखिए. यह वो हाथी है जिस पर प्राणिउद्यान के मैनेजर ने ध्यान देने से मना कर दिया.

भाजपा ने देश को बेरोजगारी के संकट में डाल दिया है. लापरवाही और नासमझी भरी नोटबंदी, हड़बड़ी में लागू की गई जीएसटी, और वृहद अर्थव्यवस्था के मामले में पांच साल की अयोग्यता ने देश को या तो पिछले साल 1.1 करोड़ रोजगार (सेंटर फॉर द मोनिटरिंग ऑफ र इंडियन इकोनोमी के मुताबिक) से या दो साल में 35 लाख रोजगार (ऑल इंडिया मैनुफैकचरर्स ऑर्गनाइज़ेशन के मुताबिक) से वंचित कर दिया. जो भी हो, यह 2014 के बड़बोले चुनावी अभियान में मोदी ने हर साल 1 करोड़ रोजगार का जो वादा किया था, उससे ठीक उलटा है. एनएसएसओ के आंकड़े, जिन्हें दबा देने की कोशिश की गई, बताते हैं की बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत है और यह पिछले 45 साल में इतनी ऊंची कभी नहीं रही. इससे भी बुरी बात यह कि 15 से 23 के आयुवर्ग के युवकों में यह दर 18.7 प्रतिशत और युवतियों में 27.8 प्रतिशत है.

प्रधानमंत्री और उनके शिक्षा मंत्री ने हाल में विभिन्न श्रोताओं के बीच सवाल उठाया था, ‘जोश कहां गया?’ इसकी जगह सवाल यह उठाया जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री जी, जॉब कहां गया?

सरकार से सहानुभूति रखने वाले लोग बचाव में कहते हैं- इज्ज़त बचाने वाली एक बात यह रही कि वित्तमंत्री ने यह कहकर ज़िम्मेदारी और समझदारी का परिचय दिया है कि वित्तीय घाटा मात्र 3.4 प्रतिशत है, जिसे अगले साल 3 प्रतिशत पर लाया जाएगा. दुर्भाग्य से इस तरह के गीत हम इस सरकार से पहले भी सुन चुके हैं. अगर आप पिछले पांच बजट भाषणों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि सरकार वित्तीय घाटे के अपने लक्ष्य को पूरा करने में हर साल विफल रही है. जिन लोगों को अरुण जेटली के वादे याद होंगे वे बताएंगे कि 3 प्रतिशत वाला लक्ष्य तो दो बजट पहले ही हासिल कर लेना चाहिए था.


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लेकिन गोयल को यह फिक्र करने की जरूरत नहीं है कि अधूरे वादों का अपराधबोध उन्हें बाद में परेशान करेगा क्योंकि अर्थव्यवस्था जिस खस्ता हाल में है, अगला बजट पेश किए जाने के समय तक इसे और बदहाल करने के लिए कोई भाजपाई वित्तमंत्री मौजूद नहीं होगा.

(डॉ. शशि थरूर तिरुवनंतपुरम से सांसद हैं और विदेश तथा मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री रह चुके हैं. तीन दशक तक वे संयुक्त राष्ट्र में एडमिनिस्ट्रेटर तथा पीसकीपर के पदों पर काम कर चुके हैं. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज में इतिहास की और टफ्ट्स यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय संबंधों की पढ़ाई की. साहित्य तथा साहित्येतर विषयों पर उनकी 18 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनकी सबसे ताज़ा किताब है—‘द पाराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर’.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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