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Sunday, 22 December, 2024
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ब्राह्मणवादी विचारधारा पर एक थप्पड़ है ‘काला’ : जिग्नेश मेवाणी

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बहुत सारे दलित कार्यकर्ता और प्रगतिशील शक्तियां इस फिल्म को देखेंगे और स्वयं में ‘काला’ की छवि भी देखेंगे।

चुनावी राजनीति में शामिल होने और विधायक के परम्परावादी लेबल ने मुझे एक सेलिब्रिटी जैसी प्रतिष्ठा दी है और इससे मुझे जनता तक पहुँचने में और अधिक मदद मिली है।

मैं इस देश की वास्तविक सेलिब्रिटीज़ से भी इसकी अपेक्षा करूंगा। जैसे शानदार क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर अपना राजनीतिक मत जाहिर करने से बचते रहे हैं। इनकी तुलना खेल से जुड़े दूसरे देशों के महान लोगों से कीजिये, जिन्होंने अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए अपने मंच का उपयोग किया है, जैसे कि स्वर्गीय मुहम्मद अली। हिंदी सिनेमा में अमिताभ बच्चन का प्रोफाइल देखते हुए आप उम्मीद करेंगे कि वह लोगों के लिए खड़े हों लेकिन उन्होंने कभी भी आवाज़ नहीं उठाई है। दूसरी ओर, आमिर खान ने कभी-कभी विकास परियोजनाओं और राजनीतिक पदों पर बात की है। और फिर आपके पास प्रकाश राज जैसे लोग हैं जिन्होंने अपना पूरा करियर दांव पर लगा दिया है और बहादुरी से सवाल पूछ रहे हैं व दृढ़ता से बात कर रहे हैं भले ही इससे उन्हें भविष्य में मिलने वाली हिंदी फिल्मों की भूमिकाओं का नुकसान हुआ हो।

रजनीकांत की सुप्रसिद्ध छवि, उनकी राजनीतिक पार्टी और तूतीकोरिन में नागरिकों पर पुलिस की गोलीबारी पर उनकी हालिया टिप्पणियों को देखते हुए मेरा अपना संदेह है कि उनका असली जीवन कला का अनुकरण करता है या नहीं। लेकिन मुझे फिल्म निर्माता रंजीथ पा और उनके राजनीतिक नजरिये पर विश्वास है, न कि रजनीकांत पर।

रंजीथ की फिल्म ब्राह्मणवादी विचारधारा के लिए एक शानदार सांस्कृतिक प्रतिक्रिया है और मुझे इस तथ्य से प्यार है कि वह ऐसा करने में सबसे वाणिज्यिक माध्यम का उपयोग करने में सक्षम रहे हैं। मैं दृढ़ता से विश्वास करता हूँ कि वैकल्पिक सिनेमा महत्वपूर्ण है जहाँ आपके पास आपके वास्तविक अस्तित्व की स्वतंत्रता है लेकिन दुःख की बात है कि यह जनता तक नहीं पहुँचता। काला के साथ निदेशक ने दिखाया है कि कैसे गरीब-समर्थक अचेतन संदेशों के संचरण का उपयोग सबसे अधिक वाणिज्यिक तरीके से किया जा सकता है। कला पूरी तरह से विचारधारा से अलग नहीं हो सकती है और वह अपनी राजनीति को गुप्त तरीके से प्रकाश में लाते हैं और मैं केवल उम्मीद कर सकता हूँ कि वह फिल्म बनाना जारी रखेंगे।

जबकि काला सौन्दर्य की दृष्टि से उत्कृष्ट नहीं हो सकती है लेकिन इसका प्रकरण बहुत अच्छा था। 1990 के दशक के बाद से हमें एक मजदूर वर्ग के नायक, एक चॉल, एक बस्ती या एक विधवा महिला की दुर्दशा बहुत कम देखने को मिली है। इस संदर्भ में, काला जैसी फिल्में राहत के रूप में आती हैं।

देश भर में अधिकांश दलितों और मजदूर वर्ग को यह महसूस होता है कि उनके मुद्दे सिनेमा और पत्रकारिता के दायरे में नहीं हैं। काला जैसी फिल्म, जय भीम के नारे सुनते हुए या अम्बेडकर और गौतम बुद्ध की पेंटिंग्स और अलंकृत भाषा को देखते हुए, दलित जनता, जो मुख्यधारा मीडिया में अदृश्य रही है, के लिए स्पष्ट रूप से बहुत ही आकर्षक है।

धारावी का चयन करना घोर पूंजीवाद, राजनेता वर्ग और मजदूर वर्ग, जो दलित हैं, के बीच विरोधाभास को प्रकाश में लाने पर एक महत्वपूर्ण तरीका है। फिल्म में रजनीकांत के परंपरागत एक्शन दृश्यों की कमी है और मुझे नहीं लगता कि किसी को न्याय के लिए लाठियों और तलवारों का सहारा लेना चाहिए लेकिन एनआरआई शैली के मुख्य पात्रों को वर्षों तक देखने के बाद अब एक मजदूर वर्ग के नायक को देखना तरोताज़ा कर देने वाला है।

सबसे ज्यादा मर्मभेदी बात यह थी कि कैसे रंजीथ ने सूक्ष्म तरीकों से विध्वंस और विपरीत संस्कृति को दर्शाया है। उदाहरण के लिए राम के पौराणिक चरित्र को ही ले लीजिए: इस देश के बहुत सारे लोग उन्हें ‘भगवान’ भी कहते हैं, अन्य वर्णनों में यह भी वाद-विवाद है कि उन्होंने शम्भुक को मारा था जो कि एक शूद्र था। इस बीच, कई शूद्रों द्वारा रावण को अपना नायक माना गया है। काला राम की कहानी को पलट देती है और रावण की शोषित लोगों के एक नेता के रूप में जय-जयकार करती है।

‘काला’ होना अंधकारमय है और फिर संघर्ष होना तय है। हमें ‘काला’ होने का पुन: दावा क्यों नहीं करना चाहिए? शासकों का हमेशा तंत्र और राज्य सत्ता पर नियंत्रण होता है और जब कोई व्यक्ति संघर्षकर्ता के रूप में जनता से उभरता है तो उसे रावण के रूप में अलग कर दिया जाता है।

फिल्म में जब काला का किरदार मार दिया जाता है तो रंजीथ एक डायलाग के साथ आते हैं कि यदि आप एक सिर काटते हैं तो एक और सिर का उदय होगा, जिसमें वह रावण के 10 सिरों के समानांतर चित्रण करते हैं। सन्देश स्पष्ट है: आपने काला को मारने की कोशिश की लेकिन आप असहमति को कभी भी नहीं मार सकते। आगे और भी काला उदित होंगे।

जो लोग सिनेमा हॉल में फिल्म देख रहे थे, उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने मुझमें अपना काला पाया है। मैं कुछ साल पहले कबाली हुआ करता था और अब मैं एक काला हूँ। बहुत सारे दलित कार्यकर्ता और प्रगतिशील शक्तियां इस फिल्म को देखेंगे और स्वयं में ‘काला’ की छवि भी देखेंगे।

जिग्नेश मेवाणी गुजरात विधानसभा में एक निर्दलीय विधायक और राष्ट्रीय दलित अधिकारी मंच के संयोजक हैं।

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