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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतजयंत सिन्हा का एक पूंजीपति से लेकर जोखिम लेने वाले नेता बनने तक का सफर हुआ पूरा

जयंत सिन्हा का एक पूंजीपति से लेकर जोखिम लेने वाले नेता बनने तक का सफर हुआ पूरा

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सिन्हा ने गौरक्षा के नाम पर हत्या के लिए दोषी ठहराए गए छह लोगों को माला पहनाकर प्रधानमंत्री की गोरक्षकों की निंदा को नजरअंदाज कर दिया।  

कभी-कभी एक तस्वीर किसी महत्वपूर्ण घटना की परिभाषित छवि हो सकती है। याद करिए दर्जी कुतुबुद्दीन अंसारी की तस्वीर को, कैसे खून से लथपथ शर्ट पहने, दहशत भरे चेहरे से हाँथ जोड़कर मदद की भीख माँग रहा था? यह 2002 गुजरात दंगों की सबसे प्रतिष्ठित (भयानक) तस्वीर थी। यह एक ऐसी तस्वीर थी जिसे दुनिया भर के संपादक प्राप्त करना चाहते हैं जब उन्हें समय का एक शक्तिशाली चित्रण करना होता है।

जब भी भारत में मॉब लीचिंग की कोई कहानी होती है यकीन मानिए इस तरह के संपादक हर समय इसी तरह की अन्य तस्वीर की तलाश में भी रहते हैं, – ऐसी एक तस्वीर झारखंड में गौरक्षा के नाम पर माँस कारोबारी की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए जमानत पर रिहा छह लोगों के साथ फोटो खिंचवा रहे केन्द्रीय मंत्री जयंत सिन्हा की है।

अगर गौरक्षकों के राजनीतिक संरक्षकों के बारे में सोचा जाए तो सिन्हा आपको याद आने वाली आखिरी नेता होंगें। उनकी प्रोफाइल इसमें सही नहीं बैठतीः आईआईटी दिल्ली, पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल का एक 55 वर्षीय पूर्व छात्र, और निवेश फंड प्रबंधक, प्रबंधन सलाहकार तथा हेज़ फंड प्रबंधक। भारत लौटकर राजनीति में करियर बनाने से पहले उन्होंने 20 साल फ़िलाडेल्फ़िया और बोस्टन में गुजारे थे। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के पुत्र और अपने पिता की सीट हजारीबाग से सांसद रहते हुए –  पहले, वित्त मंत्री अरूण जेटली के सहायक के रूप में फिर नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री के रूप में सरकार के कई लोगों पर अपनी छाप छोड़ी।

तो, उन्होंने गौरक्षकों को माला पहनाकर मिठाई क्यों खिलाई और यहाँ तक कि उनके साथ फोटो भी क्यों खिचवाई?

किसी के आदेश पर कार्य?

सिन्हा परिवार से परिचित लोग दावे के साथ कह सकते हैं कि वह “निश्चित रूप से ऐसे नहीं” है। एक पारिवारिक मित्र ने षड्यंत्रकारी स्वर में गुप्त रूप से बताया, “पिछली बार, जब उन्होंने अपने पिता द्वारा सरकार का विरोध किए जाने पर एक लेख लिखा था, तो ऐसा करने के लिए उनसे मजबूर किया गया था।”

किसी के आदेश पर सिन्हा द्वारा किए गए कार्य पर कटाक्ष करना एक विबंडना प्रतीत होती है। उन्होंने अपने इस कार्य को उचित ठहराते हुए ट्विटर पर इसका स्पष्टीकरण दिया और उन्हें इसका कोई पछतावा भी नहीं था। उन्होंने कहा कि वे “कानून की उपयुक्त प्रक्रिया का सम्मान” कर रहे थे। उन्होंने हिंसा की निंदा की और सतर्कता को अस्वीकार करते हुए आगे कहा कि उन्हें फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले पर “संदेह” था, जिसमें प्रत्येक अभियुक्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

अदालत के फैसले पर संदेह करना अलग बात है और एक व्यक्ति की हत्या करने वाले आरोपियों का अभिनंदन करना दूसरी बात है।

पिता का छत्र छाया से दूर, हिंदुत्व को धन्यवाद

यह कार्रवाई निश्चित रूप से उन हिंदुत्व समर्थकों और सिन्हा के बीच सामंजस्य बढ़ाएगी, जो शायद उनकी विदेश शिक्षा और दृष्टिकोण से आशंकित थे। गिरिराज सिंह जो नरेंद्र मोदी के आलोचकों को पाकिस्तान भेजना चाहते थे, का उदय देखें। उनकी टिप्पणी उदार बुद्धिजीवियों को परेशान किया, लेकिन इसने चुनाव के बाद मंत्रिमंडल में उनकी एक सीट भी सुरक्षित की। बाद में उन्हें पदोन्नत किया गया और मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार दिया गया।

पिछली फरवरी में, उन्होंने भारतीय मुसलमानों को राम का वंशज कहा, और एक और विवाद खड़ा कर दिया। सिंह ने बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद कार्यकर्ताओं के परिवारजनों से मुलाकात की जिन्हें सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए पिछले हफ्ते गिरफ्तार किया गया था। पिछले दिनों उन्होंने जेल में उन कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी। वह उन कार्यकर्ताओं से पिछले दिन जेल में मिले थे। सिंह स्पष्ट रूप से वही कर रहे हैं जिसे वह एक और पदोन्नति पाने के लिए सबसे अच्छा समझते हैं।

2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में नामित संजीव बालियान को राज्य के केंद्रीय मंत्री नियुक्त किया गया था और तीन वर्षों से अधिक समय तक उन्होंने इसका प्रभार सम्भाला।

राज्य के एक और मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने बहुत ज्यादा राजनीतिक लाभ हासिल किया है क्योंकि उन्होंने धर्मनिरपेक्षतावादियों को पिछले साल दिसंबर में “बिना माता-पिता के लोग” के रूप में वर्णित किया था।

इसलिए, सिन्हा अपने विवादास्पद कार्यों पर विपक्षी दलों के आक्रोश के बारे में नहीं सोच रहे होंगे। उनको इसका लाभ उनके निर्वाचन क्षेत्र में दिख सकता है, चूंकि, उनके द्वारा माला पहनाए गए आरोपियों में से एक भाजपा का नेता था, क्षेत्रीय पार्टी इकाई भी सिन्हा के साथ है।

एक ही झटके में, जयंत सिन्हा ने एक उद्यमी से एक साहसी राजनेता के रूप में अपना परिवर्तन कर लिया है। वह अब अपने पिता की राजनीतिक विरासत पर निर्भर नहीं हैं।

जयंत सिन्हा ने एक उद्यम पूंजीपति से एक साहसी राजनेता के लिए अपना संक्रमण पूरा कर लिया है। वह अब अपने पिता की राजनीतिक विरासत पर निर्भर नहीं है।

गंभीर संभावनाएं

गौरक्षकों के लिए सिन्हा की सहानुभूति कुछ अन्य संभावनाओं पर प्रकाश डालती है।

प्रधानमंत्री की उपेक्षा करना: ऐसा लगता है कि बीजेपी के सांसद और मंत्री कुछ मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सार्वजनिक शब्दों को गंभीरता से नहीं लेते जैसा कि आम आदमी करता है। जयंत सिन्हा, जिन्होंने मोदी सरकार के बचाव के लिए अपने पिता की भी निंदा की थी, तो प्रधानमंत्री के विचारों को नजरअंदाज क्यों करेंगे? मोदी ने गौरक्षकों की निंदा की थी और कहा था कि उनमें से अधिकतर सामाज-विरोधी तत्व होते हैं जो अपने आप को गौरक्षक बताते हैं।

विकास में कोई भरोसा नहीं: यह संभव है कि ये नेता प्रधानमंत्री की बातों को गंभीरता से लेते हैं, लेकिन उनको राजनीतिक अनिवार्यताओं के प्रति सावधान रहने की सलाह दी गई है। शायद यही कारण है कि वे आधारभूत तरीके से कार्य कर रहे हैं क्योंकि वे अगले लोकसभा चुनावों में हिंदुत्व के एजेंडे का अनावरण करने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन अगर ऐसा है तो यह मोदी की विकास गाथा में आत्मविश्वास की कमी को इंगित करेगा।

गौ रक्षकों के साथ जयंत सिन्हा के भाई-चारे ने ऐसी कई संभावनाएं और प्रश्न उठाए हैं। लेकिन मेरे दोस्त जवाब हवा में उड़ रहा है (बॉब डायलन से माफी के साथ)।

Read in English : Jayant Sinha’s transition from venture capitalist to adventurous politician is complete

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