scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतजावेद अख़्तर ने पाकिस्तानी लोगों और उनके आकाओं को दर्द-ए-डिस्को दे दिया है

जावेद अख़्तर ने पाकिस्तानी लोगों और उनके आकाओं को दर्द-ए-डिस्को दे दिया है

आज यह शिकायत एक भारतीय कर रहा है, इससे पहले यह पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ थे- जो 2018 में मुंबई हमले के मुकदमे में देरी पर सवाल उठाने के बाद उच्च राजद्रोह के लिए जेल गए थे.

Text Size:

अब भी नहीं पता कि क्या अधिक विचित्र था, पाकिस्तानी अतिवादी और मौसमी देशभक्त जावेद अख्तर की सीधी-सादी बातों पर सामूहिक रूप से पिघल गए या यौन उत्पीड़न के आरोपी गायक अली जफर की लाहौर में पार्टी में उनकी गोद में रोते देखे गए. जो सोचना चाहते हैं सोचें, लें. रात में सेल्फी लेने का दौर सुबह निंदा में बदल गया है.

एक बात तो निश्चित है. अख्तर ने पाकिस्तानी लोगों और उनके आकाओं को दर्द-ए-डिस्को दे दिया है. और यह तब है जब मैंने सोचा कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में व्हाइट हाउस में लौटने का अनुरोध करने के बाद मिशेल ओबामा के चीफ-ऑफ-स्टाफ के रूप में कार्य कर रहे थे. वह अभी तक नहीं लौटी है, लेकिन वह भारत लौट आया है और कैसे.

‘इज्जत, बेज्जती’ का तर्क

इस तरह यह सब शुरू हुआ लाहौर में महान उर्दू कवि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की याद में आयोजित सातवें फ़ैज़ महोत्सव में. एक दर्शक ने अख्तर से एक जरूरी सवाल पूछा, ‘आप कई बार पाकिस्तान गए हैं. जब आप वापस जाते हैं, तो क्या आप अपने लोगों को बताते हैं कि पाकिस्तानी अच्छे लोग हैं; वे न केवल हम (भारतीयों) पर बमबारी कर रहे हैं बल्कि हमें माला और प्यार से बधाई भी दे रहे हैं?’ इसपर भारतीय गीतकार ने जवाब दिया कि वह मुंबई से हैं और उसने सभी मुंबई वालों की तरह, 2008 के 26/11 के हमलों को सहा है. हमलावर नॉर्वे या मिस्र से नहीं थे. इसके जिम्मेदार आज भी पाकिस्तान में खुलेआम घूमते हैं. अगर कोई भारतीय इस बारे में शिकायत करता है तो आपको नाराज नहीं होना चाहिए.’ जबकि हॉल तालियों से गूंज उठा, अख्तर की प्रतिक्रिया निश्चित रूप से ‘पाकिस्तान की बेज्जती हो गई’ वाली तर्क में बदल दी गई.

राष्ट्रीय मिजाज: बात तो सच है मगर बात है रुसवाई की.

अख्तर साहब के जवाब पर पाकिस्तानियों की नाराज़गी भरी प्रतिक्रिया से ऐसा लगता है कि यह पहली बार है जब किसी ने मुंबई हमले के योजनाकारों के देश में आज़ाद घूमने के बारे में बात की है. इस आरोप से कि वास्तव में हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, बहुतों को असहज कर दिया है. यहां तक कि हुबुल वतनी (राष्ट्रवाद) के नाम पर, जावेद अख्तर को नमक हराम कहना, शायर को आमंत्रित करने के लिए फ़ैज़ महोत्सव के आयोजकों की आलोचना करना और अख्तर का वीजा जारी करने के लिए शहबाज शरीफ सरकार की आलोचना करना, यह सब एक आदर्श बन गया है. पाकिस्तानी चर्चा में आज 2019 के पुलवामा हमले पर अख्तर के पिछले ट्वीट्स, भारत में अज़ान के लिए लाउडस्पीकरों का उपयोग और अन्य बातों के अलावा, हिजाब सीरीज में एक गहरी डुबकी ने पहले से ही नाराज लोगों को और अधिक पीड़ा दी है.

बाकी मौसमी सेलिब्रिटी आलोचक इस ‘गुड फाइट’ में सबसे आगे रहे हैं. एक अभिनेता ने मजाकिया अंदाज में कहा कि न तो अजमल कसाब का चेहरा और न ही उसका अंदाज पाकिस्तानी था. कसाब के किस अंदाज ने उसे गैर-पाकिस्तानी निर्धारित किया होगा यह एक रहस्य बना हुआ है. लेकिन हमें इस अभिनेता से यह भी पता चला कि ‘आपके (जावेद अख्तर) के पास अजमल को हमारे साथ जोड़ने का कोई उचित सबूत नहीं था. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी काफी कुशल है और गलत बयान जारी नहीं करती है.’


यह भी पढ़ें: मोदी को मैन्युफैक्चरिंग से सर्विस सेक्टर की ओर मुड़ना होगा, ‘मेक इन इंडिया’ में सुधार की जरूरत


यह आप नहीं, मैं हूँ

यह आक्रोश सरकार द्वारा दी गई जानकारी से उपजा है, जिसके अनुसार कसाब की कलाई पर लाल धागे बंधे होने से निर्धारित होता है कि वह हिंदू और भारतीय है, पाकिस्तानी नहीं. और आगे यह भी की वह एक रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) एजेंट था. इस विचार को स्वीकार करने के लिए कि हां, कसाब पाकिस्तानी नहीं हो सकता था जबकि वह वास्तव में एक विदेशी था. इस बात की भी संभावना नहीं है कि हमलावर मिस्र या नॉर्वे से आए हों; वे मंगल ग्रह से अच्छी तरह से नौका विहार कर सकते थे. कसाब जैसी कोई चीज वैसे ही नहीं थी, जैसे एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन नहीं था या कारगिल युद्ध में कभी कोई पाकिस्तानी सैनिक नहीं लड़ा था. लेकिन फिर भी, जमात-उद-दावा प्रमुख और लश्कर-ए-तैयबा के सह-संस्थापक हाफिज सईद ने कसाब के लिए अनुपस्थिति में जनाजे की नमाज अदा करना किसी नायक के रूप में प्रस्तुत किया जाना अपने आप में प्रासंगिक था.

आज, यह शिकायत एक भारतीय कर रहा है, कल जब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे. 2018 में, शरीफ ने सीमा पार आतंकवाद और देश में मुंबई हमले की जांच को रोकने पर चिंता जताई. पूर्व पीएम ने कहा था, ‘आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं. उन्हें नन स्टेट एक्टर्स कहें, क्या हमें उन्हें सीमा पार करने और मुंबई में 150 लोगों को मारने की अनुमति देनी चाहिए? मुझे यह स्पष्ट करें. हम जांच पूरा क्यों नहीं कर सकते? यह बिल्कुल अस्वीकार्य है. ठीक इसी के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह कहा है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह कहा है.’ इसके तुरंत बाद, शरीफ और उनके साक्षात्कारकर्ता को पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद ख़ाक़ान अब्बासी के साथ राजद्रोह का दोषी ठहराया गया, जिन्होंने शरीफ की टिप्पणियों का बचाव किया था.

मुंबई आतंकी हमलों ने पाकिस्तान के भारत के साथ सामान्य संबंध बनाने की किसी भी संभावना से लगभग 15 साल आगे कर दिया. शरीफ से लेकर आसिफ अली जरदारी तक, क्रमिक सरकारों ने सदन को व्यवस्थित करने और अपराधियों को न्याय दिलाने की आवश्यकता पर चर्चा की है – बजाय इसके कि ये आतंकवादी जेलों से आंतकवाद को बढ़ा रहा हैं, भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ने पर सार्वजनिक भाषण दे रहे हैं या देश में धर्म परिवर्तन पर्यटन पर निकल रहे हैं.

यह जानकर दुख होगा कि पाकिस्तान के द्वीप के बाहर भी एक ऐसी दुनिया है जहां लोग वास्तव में प्रभावित हुए हैं और अपनी चिंताओं को व्यक्त किया है. भारत मुंबई हमलों को नहीं भूला है. भड़काऊ भाषण तथ्यों को नहीं बदल सकता. उत्तर पश्चिम की ओर देखें, और आप पाते हैं कि अफगानी पाकिस्तान की नकली ‘अच्छे तालिबान, बुरे तालिबान’ नीति के बारे में शिकायत कर रहे हैं. दोनों से दूर भागने में असमर्थ, सभी को नमक हराम के रूप में चित्रित करना कहीं अधिक आसान है. काश जावेद अख्तर को सूली पर चढ़ाने से यह सब दूर हो जाता.

नायला इनायत पाकिस्तान की फ्रीलांस पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख़ को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘ज़मीन की ज़ीनत’, दरबारी से प्रशंसक तक- अमीर खुसरो की नज़रो से ऐसी है राम की नगरी अयोध्या


 

share & View comments