सिंध प्रांत के बादिन जिले में अपने कथित अपहरणकर्ताओं के घर की छत से मदद की गुहार लगाती रीना कुमारी मेघवर की बार-बार याद आने वाली क्लिप, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू और ईसाई लड़कियों के जबरन धर्मांतरण की भयावहता को दर्शाती है.
इस साल फरवरी में रीना को उसके पड़ोसी क़ासिम ख़ासखेली ने कथित रूप से अगवा करके पहले उसे जबर्दस्ती मुसलमान बनाया और फिर उससे शादी कर ली. रीना ने कथित रूप से बचपन में क़ासिम को राखी बांधी थी. जुलाई में पुलिस ने रीना को बचाया और कोर्ट के आदेश पर उसे उसके मां-बाप के घर भेज दिया.
फैसलाबाद का एक ईसाई रिक्शा ड्राइवर गुलज़ार मसीह अपनी 13 साल की बेटी चश्मन की कस्टडी के लिए जूझ रहा है, जिसे अगवा किए जाने के बाद कथित रूप से उसका जबर्दस्ती धर्म बदलवाया गया और फिर उसकी शादी मोहम्मद उस्मान से कर दी गई. गुलज़ार की ओर से दर्ज एफआईआर में पुलिस ने जहां उसकी उम्र 17 साल बताई है, वहीं निकाहनामे में दावा किया गया है कि उसकी उम्र 19 साल है.
लाहौर हाई कोर्ट ने उसके पिता की याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि धर्मांतरण के सवाल पर गौर करते समय, ‘मुस्लिम न्यायविद बच्चे की मानसिक क्षमता को काफी अहमियत देते हैं’. कोर्ट ने आगे कहा कि क़ुरान या हदीस में धर्मांतरण के लिए किसी न्यूनतम आयु का जिक्र नहीं है.
यह भी पढ़ें: लखीमपुर खीरी से वाया पंजाब -कश्मीर तक, जो हुआ ऐसे जोखिम भारत अब और नहीं उठा सकता
अल्पसंख्यक किसके पास जाएं?
रीना और चश्मन कोई अलग-थलग मामले नहीं हैं. पाकिस्तान के अंदर हाल ही में अल्पसंख्यक समुदायों की लड़कियों के जबरन धर्मांतरण के मामलों में इज़ाफा दर्ज किया गया है. बेशुमार परिवार अभी भी अपनी बेटियों के घर लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं. लेकिन वो एक ऐसी व्यवस्था से इंसाफ की उम्मीद लगाए हैं, जो उनके खिलाफ खड़ा है. पुलिस से लेकर न्यायपालिका तक, हर कोई निगाहें फेर लेता है अगर लड़की नाबालिग हो, उसे अगवा किया गया हो या उसका रेप हुआ हो, यहां तक कि अगर उसका कथित मैरिज सर्टिफिकेट भी फर्ज़ी हो. जब आस्था को किसी को सताने का बहाना बना लिया जाए, तो फिर इंसाफ कहीं नज़र नहीं आता.
बहुचर्चित जबरन धर्मांतरण विरोधी बिल, जिसका मकसद जबरन धर्मांतरण को अपराध करार देना था, अब धार्मिकता की वेदी पर बलि चढ़ा दिया गया है. बिल का मसौदा जिसपर 2019 से काम चल रहा था, धार्मिक मामलात के मंत्रालय द्वारा खारिज कर दिया गया, जिसने कहा कि ये बिल शरिया कानून के खिलाफ था.
धार्मिक मामलों के मंत्री नूर-उल-हक़ क़ादरी की राय थी कि प्रस्तावित बिल में धर्मांतरण के लिए 18 वर्ष की आयु सीमा, जज के सामने पेशी और 90 दिनों की प्रतीक्षा अवधि, शरीयत के खिलाफ है और मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं. धार्मिक समूहों के बढ़ते दबाव की वजह से सिंध विधानसभा में जबरन धर्मांतरण विरोधी बिल, दो बार पास होने में नाकाम रहा.
पिछले महीने, इस्लामिक विचारधारा काउंसिल ने भारचुंडी शरीफ के बदनाम पीर, मियां मीठो को बिल पर विचार-विमर्श के लिए आमंत्रित किया था. जो इंसान ज़ाहिरी तौर पर धर्मांतरण की फैक्ट्री चलाता दिख रहा है, उसे इस पर चर्चा के लिए बुलाया जाता है कि वो अपना धंधा कैसे बंद करे. ये क्या क्रूर मज़ाक़ है!
यह भी पढ़ें: #WorldMentalHealthDay : कोविड ने तोड़ा है तो अपने इसे जोड़ेंगे, दिल खोलिए दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी
इमरान खान के बदले सुर
एक क्रूर मज़ाक़ की बात करें, तो वज़ीरे आज़म इमरान खान जिनकी कल तक ये राय थी कि जबरन धर्मांतरण दरअसल धर्म-विरोधी है, अब इस्लामिक विद्वानों को आश्वस्त करते हैं कि उनके कार्यकाल में इस्लामी कानूनों के खिलाफ कोई भी नया कानून नहीं बनाया जाएगा.
कथित रूप से उन्होंने ये वायदा जबरन धर्मांतरण और घरेलू हिंसा से जुड़े बिलों पर चर्चा के दौरान किया. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान भी, जिसने पाकिस्तान की ओर से माफी प्रस्ताव को ठुकराते हुए जबरन धर्मांतरण-विरोधी बिल को इस्लाम विरुद्ध करार दिया था, इस सरेंडर को लेकर राहत महसूस कर रही होगी.
उलेमाओं के साथ पीएम की बातचीत की और ज़्यादा तफसील मुफ्ती तारिक़ मसूद ने साझा कीं, जिन्होंने दावा किया कि इमरान खान ने ऐसे बिलों को एक ‘साज़िश’ करार दिया लेकिन चिंता की कोई बात नहीं थी. मुफ्ती तारिक़ वही शख्स हैं जो अपने मानने वालों से कह रहा था कि वो तीन विधवाओं या तलाकशुदा औरतों से शादी करें और चौथी बीवी के तौर पर वो उन्हें नाबालिग कुवांरियां मुहैया कराएगा- अगर वो उन्हें 16 साल की लड़की नहीं दिला पाया, तो उनके लिए 8-8 साल की दो या 4-4 साल की चार लड़कियों का बंदोबस्त करेगा.
इमरान खान का यू-टर्न हैरान करने वाला नहीं है, ये देखते हुए कि उन्होंने 2006 के महिला सुरक्षा कानून के लिए वोट नहीं दिया था, जिसने ज़िया-उल-हक के हुदूद अध्यादेश के रेप और व्यभिचार प्रावधानों को बदल दिया था. खान के मुताबिक जनरल परवेज़ मुशर्रफ (रिटा) की सरकार ने ये बिल, ‘देश में मेड-इन-वॉशिंगटन इस्लामिक सिस्टम लाने के लिए’ पास किया था. जब से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सत्ता में आई, तब से बाल विवाह बिल जिसमें लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाकर 18 साल करने की बात थी, उसे भी इस्लामिक विचारधारा काउंसिल की मिलीभगत से खारिज कर दिया गया. जबकि नेशनल असेंबली में पास किए जाने के बावजूद, घरेलू हिंसा बिल कानून नहीं बन सका क्योंकि इस्लामी विचारधारा काउंसिल और धार्मिक मामलात मंत्रालय ने ऐलान कर दिया कि ये कानून गैर-इस्लामी है और इसके उपनियम, ‘सामाजिक मूल्यों का विरोध करते हैं’.
सत्ता संभालने से पहले इमरान खान हिंदू और ईसाई अकलियतों को मुखातिब किया करते थे, उनके अपहरण और जबरन धर्मांतरण के मुद्दे को उठाते थे और कहते थे कि उन्हें बिल्कुल मंजूर नहीं है कि सिंध में हर रोज़ हिंदू लड़कियां अगवा हो रही हैं और वो उनसे समान अधिकार देने का वादा करते थे. अब वो बस ये साबित कर रहे हैं कि वो सब कोरे वायदे थे, क्योंकि जैसे ही उन्हें घिरे हुए अल्पसंख्यकों के लिए कुछ करने का मौका मिलता है, वैसे ही उनकी सरकार सियासी नंबर बनाने के लिए धार्मिक दक्षिणपंथियों को खुश करने में जुट जाती है.
Regularly getting reports of r minorities being blackmailed & oppressed, esp daily kidnappings of Hindus in Sindh. Absolutely unacceptable.
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) October 7, 2014
जरा इस विडंबना को देखिए कि बाकी दुनिया के लिए अल्पसंख्यक अधिकारों का सबसे बड़ा मुजाहिद अपने घर में इस जिहाद की अगुवाई नहीं करना चाहता.
जबरन धर्मांतरण मानवाधिकार का मुद्दा है. अधिकारों के इस हनन के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को विदेशी एजेंट करार देने से, जो ‘पश्चिमी एजेंडा लागू’ करना चाहते हैं, ये सच्चाई नहीं छिप सकती कि इस मुल्क में बिना किसी दंड के, ऐसे जबरन धर्मांतरण बदस्तूर जारी हैं. एक ऐसा कानून बेहद ज़रूरी है जो धर्मांतरण के लिए न्यूनतम आयु तय करे और अपहरण तथा जबर्दस्ती को अपराध करार दे. ऐसा कानून ये ऐलान करने में बहुत कामयाब होगा कि पाकिस्तान जबरन धर्मांतरण को अपराध समझता है, हां, हमने उसे गलत समझा तो बात अलग है.
(लेखक पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @nailainayat. व्यक्त विचार निजी हैं)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: पैंडोरा पेपर्स: अमीरों का खेल और उसमें शरीक होने वालों का खुलासा