केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एनआईए (संशोधन) बिल पर लोकसभा में हुई चर्चा के दौरान कहा कि कांग्रेस ने पोटा (आतंकवाद निरोधक कानून) को वोट बैंक बचाने के लिए निरस्त किया था. उन्होंने कहा कि पोटा की मदद से देश को आतंकवाद से बचाया जाता था, इससे आतंकवादियों के अंदर भय था, देश की सीमाओं की रक्षा होती थी. इस कानून को यूपीए की सरकार ने 2004 में समाप्त कर दिया था.
पर अमित शाह को यह टिप्पणी करते हुए अपनी ही पार्टी के उत्तर प्रदेश के पूर्व पार्टी अध्यक्ष विनय कटियार की पोटा पर की गई टिप्पणी याद नहीं रही. न ही पार्टी का वर्ष 2003 का वह अभियान याद रहा जिसमें पार्टी के राजपूत विधायकों ने तत्कालीन विधायक राम इक़बाल सिंह के नेतृत्व में कुंडा के बाहुबली विधायक और मंत्री रह चुके रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया पर से पोटा हटाने के समर्थन में अभियान चलाया था.
तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने राजा भैया, उनके पिता और अन्य पर पोटा लगाकर जेल भेज दिया था. जिसके बाद सभी दलों के राजपूत विधायक लामबंद हो गए. इस अभियान का नेतृत्व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी रहे, एमएलसी यशवंत सिंह ने किया था. राजा भैया पर पोटा लगाने के विरोध में समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह खुल कर मैदान में आए. राजनाथ सिंह केंद्र में मंत्री थे, इसलिए वे खुलकर सामने आने में हिचक रहे थे. उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विनय कटियार ने 25 जनवरी 2003 को मीडिया से बात करते हुए कहा था, ‘पोटा पर सोटा यानी डंडा चलेगा.’
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विनय कटियार ने राजा भैया और उनके पिता उदय प्रताप सिंह पर पोटा लगाने का विरोध करते हुए, इसे उसी पोटा कानून का दुरूपयोग बताया था. जिसकी लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने तारीफ़ की थी.
पोटा का राजनैतिक दुरूपयोग कई राज्यों में किया गया, जिसके बाद विपक्षी दलों और जन संगठनों ने इसके खिलाफ अभियान भी चलाया. पोटा कानून जन दबाव की वजह से हटा. स्वराज अभियान के नेता और इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अखिलेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि केंद्र की भाजपा सरकार फिर उन्हीं काले कानूनों को वापस ला रही है, जिनके खिलाफ देश में आंदोलन हो चुका है. इससे देश में फासीवाद का खतरा मंडरा रहा है.
गौरतलब है कि राजा भैया पर पोटा लगाने के साथ पुलिस ने उनके घर पर छापा मारकर मौजूद लोगों को भी कम परेशान नहीं किया था. इस छापे के बाद इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता अमित शर्मा के साथ इस संवाददाता (अंबरीश कुमार) ने खबर के लिए कुंडा स्थित उनके महल का दौरा किया और देखा कि किस तरह पूरे घर में पुलिस ने तोड़फोड़ की थी. यकीनन ये काम राजनैतिक बदले की भावना से किया गया था. राजा भैया बहुत कुछ हैं, लकिन आतंकवादी नहीं हैं और ये बात सरकार को मालूम थी. इसी वजह से राजा भैया को समर्थन भी मिला.
इसी दौरे में हमने सीओ राम शिरोमणि पांडेय से इस छापे पर बात भी की थी. पांडे वही भाषा बोल रहे थे, जो सरकार बोल रही थी. यह खबर जनसत्ता में ‘कभी कुंडा का गुंडा तो कभी कुंडा का राजा ‘शीर्षक से आई. बाद में इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता अमित शर्मा से नाराजगी जताते हुए राजा भैया ने कहा था, आप लोग हमें गुंडा लिखना नहीं छोड़ेंगे.
राजा भैया कोई साधु-संत किस्म के नेता नहीं रहे हैं. उन पर हत्या समेत बहुत से मामले दर्ज हैं. वे अपने क्षेत्र में सामंती छवि वाले बाहुबली माने जाते हैं. इस छवि को गढ़ने में मीडिया की भी बड़ी भूमिका रही है. बेंती के उनके तालाब को लेकर मगरमच्छ वाली कहानी तो गढ़ी गई थी. हम लोगों ने उस तालाब को भी देखा और गांव वालों से बात भी की. वहां मगरमच्छ तो कभी रहा नहीं, मछली जरूर होती थी. बाद में इस तालाब का भी मायावती सरकार ने अधिग्रहण कर लिया.
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बाद में सीओ राम शिरोमणि पांडेय की इलाहाबाद जाते समय संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी. जिसे लेकर राजा भैया फिर विवादों में घिरे. बहरहाल, उत्तर प्रदेश में यह मामला पोटा के राजनैतिक दुरूपयोग का ही माना गया था. इसे लेकर उत्तर प्रदेश के बाद अमर सिंह ने दिल्ली में भी मोर्चा खोला था . वर्ष 2003 में 16 अप्रैल को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अमर सिंह ने राजपूतों का बड़ा जमावड़ा कर मायावती सरकार के खिलाफ हल्ला बोला और केंद्र की वाजपेयी सरकार पर दबाव डाला कि वे राजा भैया पर से पोटा हटाएं. भाजपा के एमएलसी यशवंत सिंह ने कहा, राजा भैया के खिलाफ पोटा लगाए जाने पर हमने आंदोलन छेड़ा था. पोटा का राजनैतिक इस्तेमाल मायावती ने किया था, जिसका हम सब विरोध कर रहे थे.
यह भी जानना चाहिए कि राजा भैया पर पोटा लगा क्यों. दरअसल वर्ष 2002-03 के दौर में भाजपा और मायावती के जब रिश्ते बिगड़ने शुरू हुए तो सरकार गिराने की कवायद शुरू हुई. राजा भैया समेत बीस विधायकों ने राज्यपाल से मायावती को बर्खास्त करने की मांग की थी. गौरतलब है कि तब केंद्र में वाजपेयी सरकार थी. ताज कारिडोर का मामला तूल पकड़ रहा था. केंद्र में जगमोहन पर्यटन मंत्री थे, जिन्होंने ताज कारिडोर को लेकर मायावती पर निशाना साधा था. राजा भैया दरअसल करीब डेढ़ दर्जन राजपूत विधायकों के अघोषित नेता माने जाते थे. इन विधायकों में सपा, बसपा और भाजपा के विधायक भी शामिल थे.
राजा भैया दबंग थे ही और मायावती को सीधी चुनौती दे रहे थे. यह मायावती जैसी नेता कैसे बर्दाश्त कर सकती थी. इसी वजह से एक विधायक की शिकायत पाकर राजा भैया की घेरेबंदी शुरू हुई. उन्हें गिरफ्तार कर पोटा लगवा दिया गया. ताकि जमानत लेकर वे बाहर न आ सके और मायावती के खिलाफ चल रहा अभियान ठंडा पड़ जाए. पर हुआ उल्टा. पोटा लगाने के खिलाफ ज्यादातर दल साथ आ गए. राजपूत विधायकों ने भी मोर्चा खोल दिया. भाजपा और सपा इस मुद्दे पर साथ नजर आई और अंततः मायावती को सत्ता से जाना भी पड़ा. देश में पोटा के खिलाफ विपक्ष एकजुट हुआ था. पर उत्तर प्रदेश में तो भाजपा का प्रदेश नेतृत्व ही खुलकर सामने आ चुका था. ऐसे पोटा को लेकर अमित शाह की टिप्पणी किसी के भी गले नहीं उतर सकती है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. जयप्रकाश नारायण की छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जुड़ाव रहा है. यह लेख लेखक के निजी विचार हैं.)