इस समय देश अभूतपूर्व परिस्थितियों से गुज़र रहा है. करीब तीन महीने तक सारा देश एक तरह से बंद रहा. कोरोना महामारी के दंश ने देश को अस्त-व्यस्त कर दिया है. कारखाने, कंपनियां, सिनेमा, मॉल, दुकानें सभी बंद हो गए. इनमें काम करने वाले करोड़ों लोगों के लिए यह संकट की घड़ी रही. लाखों लोगों के रोजगार छिन गए और धंधे चौपट हो गए. आय के तमाम स्रोत सूख गए. सरकार से किसी तरह की मदद की उम्मीद करना बेमानी थी. ऐसे में लोगों के काम आई उनकी वर्षों की बचत.
हर महीने अपनी कमाई से वे जो बचत करते थे चाहे वह किसी भी फॉर्म में रही हो, इस संकट काल में उनके जीवन-यापन का साधन बन गया. लोगों ने एफडी तुड़वाई तो बहुत से लोगों ने बैंकों में रखी रकम से घर चलाया तो कइयों ने गहने गिरवी रखकर अपना काम चलाया. भयंकर आर्थिक संकट के इन दिनों में घर चलाना इसलिए संभव हुआ कि इस देश के लोगों में बचत करने की शानदार परंपरा रही है. अपनी गाढ़ी कमाई की बचत से इस बेहद कठिन समय में उन्होंने अपना और अपने परिवार का पेट भरा.
हालत यह रही कि जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह इजाजत दी कि इस संकट काल में लोग अपने प्रॉविडेंट फंड से आकस्मिक निकासी कर सकेंगे तो जैसे तूफान आ गया. इस साल के अप्रैल से जुलाई महीने के तीसरे हफ्ते तक कुल 30,000 करोड़ रुपए निकाल लिये गये. इसमें से 8,000 करोड़ रुपए तो कोविड के नाम पर निकाले गए और शेष नौकरियां जाने, सैलरी में कटौती तथा मेडिकल जरूरतों के कारण.
ईपीएफओ के मुताबिक कुल 50 लाख लोगों ने इस तरह से अपने पैसे निकाले. ईपीएफओ में कुल 6 करोड़ कर्मचारी योगदान करते हैं. इसी तरह म्युचुअल फंड्स से भी बड़े पैमाने पर पैसे निकाले गए. अकेले जुलाई महीने में म्युचुअल फंडों से 10 अरब रुपए निकाल लिये गये हैं. लेकिन दूसरी ओर निवेशकों ने जून के पहले की तिमाही में 1.24 लाख करोड़ रुपए निवेश भी किये थे. यह एक राहत की बात है.
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बचत की संस्कृति
दुनिया में दो देश हैं जो प्राचीन काल से ही बचत में विश्वास करते चले आएं हैं और वे हैं भारत तथा चीन. एशिया की इन दो महाशक्तियों का इतिहास देखेंगे तो हम पाएंगे कि प्राचीन काल में भी लोग बचत करते थे चाहे वो धन की हो या अनाज की.
आंकड़े बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को तेजी दिलाने में हमारी बचत की आदत ने बहुत मदद की है. आम पाठक को यह बात सुनने में अजीब लग सकती है लेकिन यह सच्चाई है. जब लोग डाकघरों या बैंकों में बचत करते हैं तो वह पैसा सरकार के काम आता है. उस पैसे से बहुत सारे विकास या कल्याण के काम होते हैं और सरकार बाहर से कर्ज लेने से बच जाती है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि यूबीएस सिक्योरिटीज ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि भारत की जीडीपी विकास दर के गिरने का एक कारण यह भी था कि यहां बचत घटती जा रही है जिससे निवेश भी घट रहा है.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2007-08 के बाद से भारतीयों के बचत में लगातार कमी आई है. उस समय कुल बचत आय की 36 प्रतिशत थी जो 2012 में 34.6 प्रतिशत हो गई और फिर 2019 आते-आते 30.1 प्रतिशत हो गई जिसका बुरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. इसका एक कारण यह भी रहा कि भारतीय पहले की तुलना में कहीं ज्यादा कंज्यूमरिज्म में विश्वास करने लगे. ज़ाहिर है महामारी के इस दौर में यह और भी घटा ही होगा.
जब देश आज़ाद हुआ था तो उस समय भी लोग बचत तो करते थे लेकिन उसका स्वरूप दूसरा था क्योंकि देश में नकदी का प्रचलन कम था. लेकिन 1954 के आंकड़े बताते हैं कि उस समय बचत की दर महज 7.9 प्रतिशत थी लेकिन इसके बाद जैसे-जैसे देश ने तरक्की की, इसमें बढ़ोतरी होती गई. उधर चीनियों ने भी इस पर ध्यान रखा है और आज एक कंज्यूमर केन्द्रित देश होने के बावजूद वहां बचत की दर बहुत प्रभावशाली है. 2018 और 2019 में भी यह 44 प्रतिशत से ज्यादा रहा जिसका लाभ अंततः उसकी सरकार को मिल रहा है.
यहां यह बात ध्यान देने की है कि जब घरों में लोग कम बचत करते हैं तो उसका सीधा असर देश की कुल बचत पर पड़ता है और उसके बुरे परिणाम सरकार के घटते स्रोतों के रूप में दिखते हैं. पिछले कुछ वर्षों से भारतीय बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट की ब्याज दरें घटती जा रही हैं. इस समय तो यह इतनी गिर चुकी है कि लोग निराश हो रहे हैं. बैंकों की एफडी की बजाए लोग दूसरे अन्य विकल्प तलाश रहे हैं.
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आगे बचत के कौन-से विकल्प हैं
कोरोना के इस संकट काल में बचत जरूरी है. लेकिन यह कैसे होगा? इस समय जबकि आय के स्रोत घट गए हैं, तनख्वाहें घट गई हैं और खाने-पीने की चीजों की कीमतें बढ़ गई है, बचत करना कष्टदायक हो सकता है और फिर सवाल उठेगा कि कहां अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे लगाए जाएं जिससे अपने धन में इजाफा हो?
सच तो ये है कि यह समय बचत करने का ही है चाहे इसके लिए पेट काटकर पैसे बचाने पड़ें. जिनकी नौकरियां चली गईं वो तो लाचार हैं लेकिन जिनकी हैं उन्हें इसके लिए पूरा प्रयास करना चाहिए. सही रिटर्न पाने के लिए बेहतर होगा कि आप अपने प्रॉविडेंट फंड में अपना योगदान बढ़ा दें. इसे वीपीएफ यानी वॉलंटियरी प्रॉविडेंट फंड कहा जाता है. इससे आपको फायदा यह होगा कि आपकी जमा अतिरिक्त राशि पर भी वही ब्याज मिलेगा जो आपको अपनी सैलरी से कटी राशि पर मिलता है. इस समय यह 8.50 प्रतिशत है जो बैंकों के एफडी से कहीं ज्यादा है.
इसी तरह आप म्युचुअल फंडों में भी पैसे लगा सकते हैं जहां पिछले दिनों उनके एनएवी में काफी गिरावट आई थी. आने वाले समय में इनमें काफी विकास की उम्मीदें हैं. जो शेयर बाज़ार में पैसे लगा सकते हैं वे भी कुछ पैसे लगा सकते हैं और सही रिटर्न आने पर उन्हें बेच सकते हैं.
पोस्ट ऑफिस में पीपीएफ और एनएससी सहित निवेश और बचत की कई स्कीम हैं जिन पर अच्छा रिटर्न मिल सकता है. सीनियर सिटीजन के लिए कुछ अच्छी स्कीम हैं जिनमें निवेश करके आने वाले समय में बढ़िया रिटर्न मिल सकता है. हालांकि सोना उन ऊंचाइयों पर जा चुका है कि उसमें निवेश बेवकूफी होगी. रियल एस्टेट में पैसे लगाने का यह सही समय तो है लेकिन उतनी बड़ी रकम कहां से आएगी?
बहरहाल यह वक्त छोटे पैमाने पर ऐसी बचत करने का है जिसमें कम पैसे लगाकर कुछ बेहतर रिटर्न मिले. इस समय बचत करना सबसे कठिन है लेकिन आपको यह दर्द झेलना ही होगा क्योंकि आने वाला समय कितना बुरा होगा, यह कहना-सोचना मुश्किल है और उसके लिए यह कदम उठाना ही होगा. याद रखिए मनी सेव्ड इज मनी अर्न्ड यानि जो पैसा आपने बचाया वह ही आपकी कमाई है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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