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Saturday, 21 December, 2024
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मैली यमुना कब बनेगी निर्मल और टेम्स नदी जैसी

देश की शीर्ष अदालत यमुना नदी के जल की गुणवत्ता के स्तर में सुधार के लिए 1994 से ही प्रयत्नशील है लेकिन न्यायिक सख्ती के बावजूद इस प्राचीन नदी को प्रदूषण से मुक्त नहीं कराया जा सका है.

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यह सर्व विदित है कि जल ही जीवन है और यही वजह है कि आदिकाल से ही भारत वर्ष में नदियों की पूजा होती आ रही है. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के कारण देश की प्रमुख नदियों का पानी नहाने योग्य नहीं रह गया है. उच्चतम न्यायालय से लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण के तमाम आदेश और निर्देशों के बावजूद मैली यमुना आज भी निर्मल नहीं हो पाई है.

राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने 2013 में Manoj Misra & Anr. Vs.Union of India &Ors. प्रकरण में यमुना नदी में पूजा सामग्री और निर्माण सामग्री और दूसरा मलबा डालने पर प्रतिबंध लगा दिया था. अधिकरण ने नदी में कूड़ा या पूजा सामग्री प्रवाहित करने पर पांच हजार रुपए और निर्माण सामग्री फेंकने पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया था. जुर्माना लगाने का भी निर्देश दिया था. शुरू में तो इस निर्देश का पालन करने के प्रयास किए गए लेकिन अब यह भी बहुत अधिक प्रभावी नहीं है.

स्थिति यह है कि यमुना नदी का जल मनुष्यों और मवेशियों के पीने योग्य नहीं होने के बावजूद छठ पर्व पर महिलाएं खड़ी होकर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य को अर्क दे रही हैं. जरा कल्पना कीजिए कि इस दूषित जल में खड़े होकर अपने आराध्य सूर्य की उपासना करने वाली महिलाओं के त्वचा की क्या स्थिति होगी.

यमुना नदी की दयनीय स्थिति का नजारा इसके पुल से देखा जा सकता है. निजामुद्दीन, ओखला और कालिंदी कुंज से लेकर इसके आगे भी यमुना नदी में गंदगी और बदबू के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है. इसके दोनों किनारों पर गंदगी का साम्राज्य कायम है.

दिल्ली में 22 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में प्रवाहित हो रही यमुना नदी को सरकार ने कभी टेम्स नदी की तर्ज पर स्वच्छ करने का दावा किया था, लेकिन आज यह एक गंदे नाले की शक्ल में प्रवाहित हो रही है. इसकी मुख्य वजह यमुना नदी में कचरा प्रवाहित करने वाले नाले हैं. अरबों रुपए की योजनाओं के बावजूद इन गंदे नालों से बगैर शोधित कचरे और दूषित जल को यमुना तक पहुंचने से रोकने के लिए प्रभावी तरीके से वैज्ञानिक उपायों का हमेशा अभाव रहा है.

दिल्ली सरकार ने 2007 में यमुना नदी में औद्योगिक कचरे का प्रवाह रोकने और इसके जल की गुणवत्ता में सुधार के लिए इंटरसेप्टर पद्धति शुरू करने का आश्वासन न्यायालय को दिया था, लेकिन यह काम भी आज तक अधूरा ही है.

यमुना नदी की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने भी बार-बार कहा कि इस पवित्र नदी की सफाई पर अरबों रुपए खर्च होने के बावजूद वजीराबाद बैराज के बाद ऐसा लगता है कि प्राचीन यमुना नदी नहीं बल्कि कोई गंदा नाला है.

देश की शीर्ष अदालत यमुना नदी के जल की गुणवत्ता के स्तर में सुधार के लिए 1994 से ही प्रयत्नशील है लेकिन न्यायिक सख्ती के बावजूद इस प्राचीन नदी को प्रदूषण से मुक्त नहीं कराया जा सका है.


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शीर्ष अदालत ने एक अंग्रेजी समाचार पत्र में यमुना की स्थिति को लेकर प्रकाशित खबर का स्वत: संज्ञान लिया और इसे NEWS ITEM ‘HINDUSTAN TIMES’ ‘AND QUIET FLOWS THE MAILY YAMUNA’ शीर्षक से जनहित याचिका के रूप में पंजीकृत किया. इस मामले में न्यायालय ने करीब 18 साल तक सुनवाई की और समय समय पर यमुना नदी की सफाई, इसमें गिरने वाले गंदे नालों से आ रहे कचरे और इसके जल की गुणवत्ता में सुधार के लिए अनेक महत्वपूर्ण आदेश भी दिए थे.

इस बीच, न्यायालय ने महसूस किया कि यमुना नदी के प्रदूषण के मसले पर किसी उपयुक्त मंच पर विचार होना चाहिए और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के पास इससे संबंधित मामला लंबित है. इस तथ्य के मद्देनजर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहड़ और न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने 24 अप्रैल, 2017 को यमुना नदी से संबंधित याचिकाओं और आवेदनों का निस्तारण करके इसे हरित अधिकरण के फैसले के लिए छोड़ दिया.

न्यायालय की सख्ती का ही नतीजा था कि सरकार ने यमुना नदी विकास प्राधिकरण की स्थापना की. इसके अलावा राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना और यमुना सफाई योजना शुरू की लेकिन इसकी स्थिति फिर भी ढाक के तीन पात जैसी ही रह गई. दिल्ली में सरकारें आती जाती रहीं और यमुना नदी के प्रदूषण को लेकर राजनीति भी होती रही, मगर इसके जल की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ और राज्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा.

यमुना नदी के मामले में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि केंद्र सरकार ने 2005 में न्यायालय को सूचित किया था कि उसने लंदन की टेम्स नदी की तर्ज पर दिल्ली में यमुना नदी को प्रदूषण से मुक्त कराने की महत्वाकांक्षी रणनीति तैयार की है. न्यायालय ने इस कार्य योजना को अपनी सहमति भी प्रदान की लेकिन इसके बाद भी यमुना की स्थिति में सुधार नहीं हुआ और वह पहले से ज्यादा मैली हो गयी.

लंदन में टेम्स नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार के कार्यों में प्रशासन और सरकार के साथ ही स्थानीय निवासियों की भागीदारी भी थी, लेकिन यमुना नदी के मामले में ऐसा कुछ नहीं है. इसकी वजह इसमें गिरने वाले गंदे नालों को रोकने की योजना तरह-तरह की राजनीति का शिकार हो गई.

यमुना नदी को टेम्स नदी जैसा बनाने का दावा एक बार फिर 2016 में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर दिल्ली में आप सरकार के मुख्यमंत्री ने किया. मगर उनका यह संकल्प कभी भी मूर्तरूप नहीं ले पाया. इसका नतीजा यह हुआ है कि छठ पर्व के अवसर पर विषाक्त झाग के बीच में महिलाएं सूर्य की उपासना करने पर मजबूर हैं.

इसे राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव ही कहा जायेगा कि बार-बार विशेषज्ञों की समिति गठित किये जाने के बावजूद इस प्राचीन नदी में गंदे नालों के माध्यम से पहुंचने वाले औद्योगिक प्रदूषित जल को शोधन के बगैर ही रोकने के ठोस प्रयास नहीं हुए.

शीर्ष अदालत से मैली यमुना प्रकरण का निस्तारण होने से पहले ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने यमुना सफाई अभियान से जुड़े मनोज मिश्रा की याचिका पर जनवरी, 2015 में मैली से निर्मल यमुना पुनरुद्धार परियोजना, 2017 के तहत यमुना नदी की सफाई के लिए विस्तृत निर्देश दिये थे, लेकिन यह परियोजना भी अभी तक पूरी नहीं हो सकी है.

उम्मीद है कि छठ पर्व के अवसर पर गंदा नाला लग रही यमुना नदी को निर्मल और इसके जल को स्नान योग्य बनाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय युद्ध स्तर पर काम करेगा और इस काम में वे सभी राज्य सरकारें राजनीति से ऊपर उठकर सहयोग करेंगी, जिनसे होकर यमुना नदी प्रवाहित होती है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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