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Sunday, 9 February, 2025
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कम रक्षा बजट के साथ विकसित भारत 2047 का लक्ष्य पाना असंभव है

चीन के समान मॉडल को अपनाते हुए, भारत को अपने सशस्त्र बलों में परिवर्तन करना चाहिए ताकि वह 2035 तक बीजिंग को चुनौती देने की स्थिति में आ सके तथा 2047 तक सैन्य शक्ति में उसकी बराबरी कर सके.

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रक्षा मंत्रालय की ओर से प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने जो बयान जारी किया है उसमें बड़े गर्व के साथ यह घोषणा की गई है कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने टेक्नोलॉजी के लिहाज से आधुनिक तथा ‘आत्मनिर्भर’ सेनाओं के साथ जिस ‘विकसित भारत@2047’ की परिकल्पना की है उसके अनुरूप भारत के केंद्रीय बजट में वित्त वर्ष 2025-26 के लिए रक्षा मंत्रालय के लिए 6.81,210.27 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.” इस घोषणा का अर्थ यह है कि यह बजट 2047 के विकसित भारत के लिए उपयुक्त विकसित सेना का जो खाका बनाया गया है उसके तालमेल में है और वह एक ऊंचे आदर्श को हासिल करने के अगले दो दशक के प्रयासों के लिए आधार तैयार करता है.

लेकिन मुझे संदेह है कि रक्षा बजट 2025-25 सेनाओं में परिवर्तन को हरी झंडी देना तो दूर, सेनाओं के आधुनिकीकरण में मामूली इजाफा करते हुए मौजूदा सैन्य क्षमता को बनाए रखने के लिए भी बमुश्किल पर्याप्त होगा.

कुल 6,81,210.27 करोड़ रुपए (78.5 अरब डॉलर) का जो प्रावधान किया गया है वह 2024-25 के रक्षा बजट से मात्र 9.5 प्रतिशत ज्यादा है, लेकिन संशोधित बजट अनुमानों के हिसाब से यह केवल 6.26 प्रतिशत ज्यादा है. इससे तो मुद्रास्फीति की 4-5 फीसदी की दर और पिछले साल डॉलर के मुक़ाबले रुपए की घटी हुई कीमत (जो आयातों पर असर डालती है) की भरपाई भर ही हो पाएगी. इस साल का रक्षा व्यय कुल 50,65,345 करोड़ के केंद्रीय बजट का 13.45 प्रतिशत है, और 2025 के लिए अनुमानित 4.27 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के 1.84 प्रतिशत के बराबर होगा.

इस आवंटन में पूंजीगत व्यय के लिए निर्धारित 1,80,000 करोड़ रुपए शामिल हैं. पिछले साल के मुक़ाबले इसमें 4.65 फीसदी की वृद्धि की गई है, जो कि बजट की 29 फीसदी के बराबर है. राजस्व व्यय के लिए 3.11.732.30 करोड़ रखे गए हैं, यानी पिछले वर्ष के मुक़ाबले इसमें 10 फीसदी का इजाफा किया गया है. पेंशन भुगतान के लिए 1.60,795 करोड़ यानी 14 फीसदी ज्यादा राशि रखी गई है. रक्षा मंत्रालय के सिविल खर्चों के लिए 10 फीसदी ज्यादा, यानी 28,682.97 करोड़ रुपए रखे गए हैं. वेतन, भत्तों, और पेंशन आदि के लिए आवंटन में 24 फीसदी की वृद्धि की गई, जो कुल रक्षा बजट का 49.6 फीसदी होगा. ‘सीमा सड़क संगठन’ (बीआरओ) को 9.74 फीसदी की अच्छी वृद्धि के साथ 7,146 करोड़ दिए गए हैं. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के बजटीय आवंटन में 12.41 फीसदी की वृद्धि के साथ 26,816 करोड़ दिए गए हैं. इंडियन कोस्ट गार्ड के लिए पूंजीगत बजट में 3,500 करोड़ से 43 फीसदी की वृद्धि करते हुए 5,000 करोड़ आवंटित किए गए हैं.

2047 में अंतरराष्ट्रीय मंच पर तीसरे ध्रुव के रूप में उभरने वाले विकसित भारत को एक ऐसी अत्याधुनिक सेना की जरूरत होगी जो अपने राष्ट्रीय हितों को लागू करे सके और जरूरत हो तो उनकी रक्षा करने के लिए संपूर्ण रणनीतिक स्वायत्तता की गारंटी दे सके. विकसित सेना के निर्माण के लिए 2047 के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा ‘विज़न’ चाहिए, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की हर पांच साल पर समीक्षा होनी चाहिए और एक राष्ट्रीय रक्षा नीति चाहिए. इनमें से फिलहाल कुछ भी हमारे पास नहीं है, जो सेना में परिवर्तन लाने के लिए जरूरी हैं. और सबसे ऊपर, परिवर्तन के लिए रक्षा बजट में बड़ी वृद्धि की जरूरत है. अगले दो दशकों में, हमें विस्फोटक रणनीतिक माहौल के लिए भी तैयार होना पड़ेगा जिसमें सैन्य क्षमता निर्णायक भूमिका निभा सकती है, जो कि यूक्रेन और गाज़ा में जारी युद्ध, ग्रीनलैंड और गाज़ा को कब्जे में लेने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी, और 2020 से चीन के साथ सीमा पर जारी हमारे संघर्ष से जाहिर है. भारत का प्रमुख प्रतिद्वंदी, चीन, जिसका रक्षा बजट 296 बिलियन डॉलर है, पाकिस्तान के साथ मिलकर कार्य कर रहा है, जिसका रक्षा बजट 7.64 बिलियन डॉलर है, और अब संभवतः बांगलादेश भी, जिसका रक्षा बजट 3.6 बिलियन डॉलर है. यह हमारी सुरक्षा के लिए सीधी चुनौती है और विकसित भारत के हमारे मिशन के लिए खतरा है. इन सबका तकाजा है कि हम अपने रक्षा बजट में मजबूरन ही सही, कमसेकम एक दशक तक बड़ी वृद्धि करें.


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चीनी मॉडल

चीन इस बात का अच्छा उदाहरण है कि 2049 तक अपनी सेना को दुनिया की बेस्ट सेना बनाने के लक्ष्य के लिए काम करते हुए अमेरिका से आशंकित खतरों का सामना करने और अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को लागू करने के लिए किस तरह समयबद्ध आंतरिक कार्यक्रम चलाया जा सकता है. ‘2049 तक महाशक्ति वाली हैसियत हासिल करने’ के लिए चीन ने एक ‘ताकतवर तथा समृद्ध’ राष्ट्र बनने का जो सपना देखा उसके मद्देनजर उसकी सरकार ने अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कायाकल्प के लिए विशद सैन्य सुधार 2016 में ही शुरू कर दिया था. समयबद्ध लक्ष्य स्पष्ट कर दिए गए थे. महत्वपूर्ण ‘सूचनाकरण’ के साथ मशीनीकरण 2020 तक पूरा किया जाना था. मशीनीकरण के समेकित विकास, ‘सूचनाकरण’ और ‘खुफियाकरण’ को 2027 तक (पीएलए के सौ साल पूरे होने तक) ज्यादा गति प्रदान करना था. राष्ट्रीय प्रतिरक्षा का संपूर्ण अत्याधुनिकीकरण 2035 तक कर दिया जाना है. और पीएलए को 2049 तक (जब चीनी गणतंत्र के सौ साल पूरे होंगे) ‘वर्ल्ड क्लास’ सेना बना दिया जाना है. ‘सूचनाकरण’ का अर्थ यह है कि कमांड, कंट्रोल और हथियारों के इस्तेमाल के लिए दुश्मन को सूचना से वंचित रखा जाए, और एलेक्ट्रोमैग्नेटिक, साइबर तथा अंतरिक्ष के साधनों से संबंधित अपनी क्षमताओं में वृद्धि का पूरा लाभ उठाया जाए. ‘खुफियाकरण’ का अर्थ है सैन्य गतिविधि के सभी पहलुओं का ‘एआइ’ के पूरे परिदृश्य में इस्तेमाल, जिसमें ये भी शामिल हैं— तेज वेपन्स/ प्लेटफॉर्म, बॉट्स और स्वचालित वेपन सिस्टम; खुफिया नेटवर्क, क्लाउड, बिग डाटा तथा ‘इंटरनेट ऑफ मिलिटरी थिंग्स’ के समर्थन से संचालित रोबो सैनिक.

अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में आने के लिए तय दो समयबद्ध कार्यक्रम उसने पूरे कर लिये हैं. 2035 में पूरा किया जने वाला तीसरा कार्यक्रम अमेरिका की बराबरी में आने का है, जिसके बाद 2049 तक इस सबको मजबूती दिया जाएगा. चीन का रक्षा बजट 2015 में 196 अरब डॉलर का था, जो 2023 में बढ़कर 296 अरब डॉलर का हो गया, जबकि उसकी जीडीपी 11.06 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 18.2 ट्रिलियन डॉलर के बराबर की हो गई. चीन का घोषित रक्षा बजट उसकी जीडीपी के करीब 2 प्रतिशत के बराबर था. लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का आकलन है कि वास्तविक रक्षा बजट इससे 50 प्रतिशत ज्यादा का है.

रक्षा बजट और भारत के लिए मॉडल

जीडीपी के लिहाज से हम 2047 में उस स्थिति में पहुंचेंगे जिस स्थिति में चीन आज अमेरिका के मुक़ाबले है. चीन का रक्षा बजट 2008 में 78.78 अरब डॉलर का था, जो 2025 में भारत का रक्षा बजट है. यानी रक्षा बजट के मामले में हम उससे 17 साल पीछे हैं. भारत ने 20वीं सदी का युद्ध लड़ने के लिए 1963 से 2010 तक राष्ट्रीय सुरक्षा पर जीडीपी के 3 प्रतिशत के बराबर की राशि खर्च करने के सार्वभौमिक मानक का पालन किया. लेकिन पिछले दशक में हमारा रक्षा बजट जीडीपी के 2 प्रतिशत के बराबर का रहा. इस गतिरोध के कारण सैन्य क्षमता के मामले में हमारे और चीन के बीच बड़ी खाई बन गई. अगर रक्षा बजट में बड़ी वृद्धि नहीं की जाती तो इस खाई को पाटना असंभव हो जाएगा.

सेनाओं में परिवर्तन लाने की शुरुआत में ही हम चीन से एक दशक पीछे हैं. चीन वाले मॉडल को लागू करते हुए भारत को अपनी सेना में इतना परिवर्तन लाना चाहिए कि वह 2035 में वह उसे चुनौती देने की स्थिति में हो और 2047 तक उसकी सैन्य क्षमता की बराबरी कर सके. यह लक्ष्य हासिल करने के लिए एक दशक तक रक्षा बजट को तुरंत जीडीपी के 4 प्रतिशत के बराबर किया जाना चाहिए और उसके बाद इसे 3 फीसदी या उससे ज्यादा के बराबर किया जा सकता है. जीडीपी की वृद्धि दर आज गिरकर जबकि 6.3 से 6.8 फीसदी पर पहुंच गई है तो इस दर पर भी भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 11 वर्षों में दोगुना बड़ा हो जाएगा और 2035 तक 8 ट्रिलियन डॉलर के बराबर हो जाएगा. 2047 तक यह करीब 17.5 ट्रिलियन डॉलर के बराबर हो जाएगा. वृद्धि दर 8 फीसदी रही तो 2035 तक इसका आकार 9.5 ट्रिलियन डॉलर के, और 2047 तक 23 ट्रिलियन डॉलर के बराबर हो जाएगा.

वर्तमान वृद्धि दर पर रक्षा बजट को अगर बढ़ाकर जीडीपी के 4 प्रतिशत के बराबर कर दिया जाए तो 2035 तक इसका आकार 320 ट्रिलियन डॉलर के बराबर हो जाएगा, जो 2025 में चीन के रक्षा बजट के बराबर होगा. और अगर सेना में समग्र सुधार किए गए तो भारतीय सेना उस स्थिति में पहुंच जाएगी जिस स्थिति में चीन आज अमेरिका के मुक़ाबले है.


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बंदूक या मक्खन?

बंदूक या मक्खन?’ वाली बहस का तकाजा तो यही होगा कि विवेक से काम लिया जाए, खासकर इस तथ्य के मद्देनजर कि चीन ने 2015 में जब अपनी सेना में सुधारों की शुरुआत की थी तब उसकी जीडीपी 11 ट्रिलियन डॉलर के बराबर थी. लेकिन भारत को चीन से सीधा और सक्रिय खतरा है, जो उसकी अर्थव्यवस्था को नष्ट कर सकता है. लेकिन चीन को किसी सीधे खतरे का सामना नहीं करना पड़ा और 35 वर्षों तक वह वैश्विक निवेश का ठिकाना बना रहा.

भारत में 2010 से रक्षा बजट को जीडीपी के 2 प्रतिशत के बराबर रखने का जो मानदंड अपनाया गया उसके कारण वह चीन के आज के रक्षा बजट की बराबरी 2045 में कर पाएगा. यानी अगले 20 साल तक हम चीन की मेहरबानी के मोहताज रहेंगे, जो अपनी मनमर्जी से हमें न केवल परेशान कर सकता है बल्कि ‘विकसित भारत 2047’ के सपने को भी तोड़ सकता है.

जरा कल्पना कीजिए कि अगर रक्षा बजट में जीडीपी के 2 प्रतिशत के बराबर की वृद्धि कर दी जाए या पूंजीगत बजट के लिए 85 अरब डॉलर उपलब्ध किए जाएं तो 10 साल में क्या कुछ हो सकता है. अगर इसे जीडीपी के 3 प्रतिशत के बराबर रखने की परंपरा भी जारी रखी गई तो पूंजीगत बजट के लिए अतिरिक्त 43 अरब डॉलर उपलब्ध हो जाएंगे.

भारत अगर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना और 2047 में ताकतवरों की जमात में शामिल होना चाहता है तो उसे अगले दस वर्षों तक अपना रक्षा बजट अपनी जीडीपी के 4 प्रतिशत के बराबर रखना ही चाहिए, बल्कि उसे न्यूनतम 3 फीसदी के बराबर रखना तो उसकी मजबूरी ही है.

लेफ्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, एवीएसएम, ने 40 साल तक भारतीय सेना में सेवा की. वे उत्तरी कमान और केंद्रीय कमान के कमांडर रहे. रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में सदस्य के रूप में काम किया. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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