विधायक तापसी मंडल होनहार शख्सियत हैं. पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-सीपीएम) से भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने का फैसला किया और अब, 2026 से पहले, उन्होंने बीजेपी से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में दूसरी छलांग लगाई है, लेकिन 53-वर्षीय विधायक की पांच साल की योजना पर इतना हंगामा क्यों हो रहा है? 2021 के बाद, जब टीएमसी के विधायक बीजेपी में शामिल हुए और फिर थोड़ी-थोड़ी संख्या में वापस लौटे, तो बंगाल को यह समझ लेना चाहिए था कि उत्तर भारत में पुरानी ‘आया राम गया राम’ की राजनीति ने यहां भी अपनी जड़ें जमा ली हैं. पश्चिम बंगाल को अब उत्तर से अगले आयात के लिए तैयार रहना चाहिए: बेशर्म सांप्रदायिक राजनीति.
तापसी मंडल के पार्टी बदलने के बाद — जिसके लिए उन्होंने बीजेपी के “विभाजनकारी एजेंडे” को जिम्मेदार ठहराया — टीएमसी के खिलाफ बीजेपी के अगुआ सुवेंदु अधिकारी की सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ टिप्पणियों की बाढ़ आ गई. इतना कि ममता बनर्जी ने राज्य विधानसभा में बिना किसी पूर्व सूचना के रुककर उन्हें संविधान और अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के बहुसंख्यकों के कर्तव्य की याद दिलाई, लेकिन उनके सिपहसलारों ने अधिकारी को उसी तरह जवाब दिया और शायद सांप्रदायिक राजनीति के जिन्न को बोतल से बाहर निकाल दिया.
इसका नमूना देखिए.
इस हफ्ते की शुरुआत में अधिकारी ने गरजते हुए कहा कि जब भाजपा 2026 में सत्ता में आएगी, तो वह टीएमसी के मुस्लिम विधायकों को सड़क पर फेंक देगी. बाद में उन्होंने कहा, “अगले साल, केवल मुस्लिम ही टीएमसी के टिकट पर जीतेंगे, टीएमसी में कोई हिंदू विधायक नहीं होगा…जब भाजपा सरकार बनाएगी, तो टीएमसी विधायकों को सदन से बाहर कर दिया जाएगा.”
टीएमसी विधायकों की प्रतिक्रिया बिल्कुल भी संयमित नहीं थी. मंत्री सिद्दीकुल्लाह चौधरी ने “पैर तोड़ने” और कानूनी कार्रवाई करने की धमकी देते हुए कहा, “बंगाल में पहले कभी इस तरह की टिप्पणी के बारे में नहीं सोचा गया, चर्चा नहीं की गई या कहा नहीं गया.” हुमायूं कबीर ने अधिकारी को अल्टीमेटम जारी किया. उन्होंने कहा, “एक मुस्लिम विधायक के रूप में, मैं आपको चुनौती देता हूं: अगर 72 घंटों में आप अपने शब्द वापस नहीं लेते हैं, तो हमारे 42 (मुस्लिम) विधायक आपसे भिड़ेंगे…और बुझे नेबो.” बंगाली में बुझे नेबो का अर्थ है “बदला लेना”. यह कबीर द्वारा दी गई सबसे विनम्र धमकियों में से एक थी.
ऐसा नहीं है कि प्रतिद्वंद्वी दलों द्वारा पहले सांप्रदायिक रूप से तीखी टिप्पणियां नहीं की जाती थीं. ममता बनर्जी पर भाजपा द्वारा लंबे समय से 30+ प्रतिशत वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए अल्पसंख्यकों को खुश करने का आरोप लगाया जाता रहा है. बदले में, उन्होंने भाजपा पर बंगाल में हिंदुत्व की राजनीति को आयात करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है, लेकिन अब बयान तीखे हो रहे हैं और दोनों पक्षों की ओर से जवाबी हमले की धमकियां असहज यथास्थिति को खतरे में डाल रही हैं.
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अधिकारी का ढहता किला
2021 में भाजपा के बेशकीमती उम्मीदवार सुवेंदु अधिकारी दबाव में हैं. उस चुनाव में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपने विधायकों की संख्या 294 में से 77 तक पहुंचाई थी, लेकिन तब से यह संख्या घटकर 65 रह गई है. तापसी मंडल टीएमसी में शामिल होने वाली नौवीं विधायक हैं. उनके जाने से विशेष रूप से अधिकारी को दुख हो रहा है क्योंकि उन्होंने ही उन्हें सीपीएम से शामिल किया था. उनकी सीट हल्दिया उनके नंदीग्राम के ठीक बगल में है, जिसे वे पूर्वी मेदिनीपुर जिले में अपना गढ़ बताते हैं, जो उनके लिए और भी दर्दनाक है.
No room for divisive politics in Bengal!
Taking a strong stand against BJP’s politics of division, Haldia MLA Smt. Tapasi Mondal has joined the Trinamool Congress.
We welcome her in our fight against the Bangla-Birodhi BJP! pic.twitter.com/vfxLDbzwdy
— All India Trinamool Congress (@AITCofficial) March 10, 2025
और इस आशंका से कोई बच नहीं सकता कि चुनाव नज़दीक आने पर मंडल सरीखे कई और विधायकों के जाने की पहली संभावना हो सकती है — 2021 का उलट, जब तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था. कई विधायक पहले ही तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. अन्य भी ऐसा करने की कतार में है. टीएमसी का दावा है कि न केवल विधायक बल्कि सांसद भी पाला बदलने के लिए उत्सुक हैं.
यह सब भाजपा या अधिकारी के लिए अच्छी खबर नहीं है, खासकर ऐसे समय में जब वे राज्य भाजपा अध्यक्ष पद पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. यह एक लंबी कोशिश थी क्योंकि आरएसएस अपने ही लोगों को प्राथमिकता देता है और इस पैमाने पर अधिकारी एक लेट-लतीफ व्यक्ति हैं. सूत्रों का कहना है कि शीर्ष पद के लिए होड़ तेज़ होने के साथ ही अमित शाह भी उनकी मदद नहीं कर पाए हैं, जिसकी घोषणा अगले हफ्ते होने की उम्मीद है.
ममता का हिंदू कार्ड
ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी को चिंता करने की कोई बात नहीं है. उन्होंने चिंता जताई है कि उनके खिलाफ बार-बार लगाए जाने वाले तुष्टीकरण के आरोप उनके हिंदू वोटों को खा सकते हैं. शायद इसीलिए वे लगातार राज्य विधानसभा के अंदर और बाहर यह कह रही हैं कि वे एक गौरवान्वित हिंदू हैं, एक ब्राह्मण हैं जो अपने धर्मग्रंथों को जानती हैं.
बनर्जी अप्रैल के अंत में दीघा में बंगाल के अपने जगन्नाथ मंदिर का भी उद्घाटन करेंगी, जो पुरी के मंदिर की प्रतिकृति है जो राज्य के धार्मिक पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है. उन्होंने 2018 में इस परियोजना की घोषणा की थी. 2026 के चुनावों से पहले इसका पूरा होना संयोग नहीं हो सकता है.
अधिकारी के नवीनतम शत्रु को शानदार पुरस्कार मिला है. बनर्जी ने तापसी मंडल को महिला एवं बाल विकास और सामाजिक कल्याण विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया है — जो भाजपा के अन्य तटस्थ लोगों को संकेत देता है कि उन्हें भी रेड कार्पेट मिल सकता है. हालांकि, 2024 में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा, उसके 18 सांसदों की संख्या घटकर 12 रह गई, लेकिन उसका वोट प्रतिशत टीएमसी के 46 प्रतिशत के मुकाबले सम्मानजनक 38 प्रतिशत रहा. जैसे-जैसे राज्य में सांप्रदायिक बयानबाजी तेज़ होती जा रही है, बनर्जी उन ढीले सिरों को बांध रही हैं जो 2026 में उनकी परेड पर पानी फेर सकते हैं.
(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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