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Wednesday, 8 January, 2025
होममत-विमतक्या यूनुस सरकार कर रही है देश-विरोधी राजनीति, सुरक्षा के लिहाज़ से बांग्लादेश बना भारत के लिए खतरा

क्या यूनुस सरकार कर रही है देश-विरोधी राजनीति, सुरक्षा के लिहाज़ से बांग्लादेश बना भारत के लिए खतरा

बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के साथ राजनीतिक अस्थिरता के कारण भारत के साथ आर्थिक संबंधों में बाधा आई है जिसके चलते सप्लाई चेन, शुल्क संबंधी नीति और व्यापार को आसान बनाने वाली सीमा संबंधी व्यवस्था प्रभावित हुई है.

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बांग्लादेश और भारत के बीच सहयोग और तनाव का एक लंबा और जटिल इतिहास रहा है. इतने वर्षों में, यह रिश्ता राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा संबंधी पहलुओं के साथ विकसित होता रहा है. दोनों देश व्यापार, इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्रों के अलावा जल संपदा की साझीदारी समेत दूसरे मामलों में भी आपसी सहयोग बढ़ाते गए हैं, लेकिन बांग्लादेश में छात्रों के आंदोलन और हिंसा के साथ शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट और पिछले अगस्त में देश से हसीना का पलायन पिछले साल की बड़ी घटनाओं में शुमार हैं. इसने दोनों देशों के आपसी रिश्ते का स्वरूप बदल दिया और भारत के लिए सुरक्षा संबंधी गंभीर संकट पैदा कर दिया, जिसकी सीधी वजह बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन ही है.

यह सत्ता परिवर्तन जनता का भरोसा गंवा चुकी सरकार के खिलाफ दो से ज्यादा साल से मजबूत होते जा रहे आंदोलन का नतीजा है. अवामी लीग विरोधी भावनाएं कितनी उग्र हो चुकी थीं इसका अंदाज़ा इस पार्टी और इसके संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़ी हर चीज के प्रति लोगों की नफरत से लगाया जा सकता है. जिस शख्स को राष्ट्रपिता माना जाता था उनकी जबरदस्त निंदा की जा रही थी और उनकी मूर्तियां तोड़ी जा रही थीं. वर्षों के दमन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था. हसीना सरकार से जुड़ाव और उसका समर्थन करने के कारण बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाएं हावी हो गई थीं और उसे इस गुस्से का नुकसान उठाना पड़ा. भारत में हसीना का टिके रहना भी भारत के खिलाफ इस गुस्से को भड़का रहा है.

एंटी-इंडिया बांग्लादेश

मुख्य सलाहकार के रूप में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में विभिन्न मंत्रियों वाली वर्तमान सत्ता खुद को मजबूत बनाने के लिए भारत विरोधी भावना का इस्तेमाल कर रही. यह बिलकुल बदला हुआ नज़रिया सुरक्षा संबंधी सरोकारों, आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता संबंधी द्विपक्षीय रिश्ते के तमाम पहलुओं को प्रभावित कर रहा है. बांग्लादेश की नई सरकार ने जो राजनीतिक दिशा पकड़ी है उसका भारत के कूटनीतिक पहलू पर अहम प्रभाव पड़ेगा. भारत ने हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे थे. उनकी सरकार सीमा सुरक्षा से लेकर आतंकवाद और आर्थिक साझीदारी आदि तमाम मसलों पर भारत के साथ सहयोग बनाए रही थी, लेकिन पेंडुलम अब दूसरी दिशा की ओर मुड़ गया है, जैसा की पहले भी हो चुका है.

बांग्लादेश में मज़हबी कट्टरता का उभार भारत के लिए बड़ा खतरा बन गया है. मुस्लिम बहुल देश बांग्लादेश 1971 में अपनी आज़ादी के बाद से अब तक धर्मनिरपेक्षता की नीति पर चल रहा था, लेकिन अब उग्रवादी इस्लामी तत्वों के बढ़ते असर के साथ यह सब बदल रहा है. जमात-ए-इस्लामी (बांग्लादेश), हिफाजत-ए-इस्लाम, इस्लामी आंदोलन (बांग्लादेश) और बांग्लादेश अवामी ओलामा लीग जैसे मज़हबी संगठनों के नेताओं ने मुल्क को इस्लामी राज में तब्दील करने का खुला आह्वान किया है. बांग्लादेश में युवकों को कट्टरपंथी बनाने और वैश्विक जिहादी नेटवर्कों से उनके जुड़ाव के कारण हमारे सीमावर्ती राज्यों में हिंसा और उग्रवाद को बढ़ावा मिल सकता है.

बांग्लादेश से भारत में खासकर असम, पश्चिम बंगाल और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध घुसपैठ चिंता की एक स्थायी वजह रही है. बांग्लादेश की आबादी करीब 16 करोड़ है जो इसे दुनिया में सबसे घनी आबादी वाला देश बनाती है. आर्थिक अभाव, राजनीतिक अस्थिरता, और जलवायु परिवर्तन के कारण कई बांग्लादेशी बेहतर अवसर की तलाश में भारत आते रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश के कुछ नेताओं के बयानों से यह आभास होता है कि वह पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार समेत पूरा उत्तर-पूर्व अपना ‘लेबेंस्राम’ (निवास स्थान) मानते हैं. इस तरह के बयान अच्छे पड़ोसी वाले संबंध के लिए हानिकारक हैं.

बांग्लादेश के कुछ पूर्व सेनाधिकारियों का यह बड़बोलापन आपत्तिजनक है कि वह भारतीय इलाकों पर आसानी से कब्ज़ा कर सकते हैं. ऐसे दावों ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि दूसरे देश की सेना अगर हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश करेगी तब भारत कोई “लॉलीपॉप नहीं खा रहा होगा”. इस हो-हल्ले में समझदारी की बात बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष जनरल वाकर-उज-ज़मां ने की. उन्होंने कहा कि भारत हमारा अहम पड़ोसी है, और बांग्लादेश ऐसा कोई काम नहीं करेगा जो उसके रणनीतिक हितों के खिलाफ जाता हो.

बहरहाल, भारी संख्या में अवैध घुसपैठ भी भारत के लिए कई चुनौतियां पेश कर रहा है. जैसे, जनसंख्या के स्वरूप में परिवर्तन का खतरा पैदा हो गया है, जिसके बारे में 1990 के दशक में असम के राज्यपाल रहे ले.जनरल एस.के. सिन्हा ने सावधान किया था. असम के कई जिले, खासकर बांग्लादेश से सटे ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणवर्ती जिले मुस्लिम बहुल हो गए हैं. सुरक्षा की दृष्टि से खतरा यह है कि अवैध घुसपैठियों में आतंकवादी, अपराधी, और प्रतिकूल विदेशी ताकतों के एजेंट भी शामिल हो सकते हैं. जनसंख्या की दृष्टि से लाखों अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी के कारण खासकर असम में संसाधनों के वितरण और सामाजिक एकता तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर को लेकर तनाव पैदा हो रहा है. अवैध घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने के लिए नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) का उपयोग किया जा रहा है. बांग्लादेश से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए 2019 में जो नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लाया गया वह विवादों का स्रोत बन गया है और उसने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ाया ही है.


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आर्थिक संबंध, विदेश नीति, दक्षिण एशिया

बांग्लादेश खासकर व्यापार, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और ऊर्जा के मामले में सहयोग के मामले में भारत का एक अहम आर्थिक साझीदार रहा है. पड़ोस में राजनीतिक उथल-पुथल और भारत विरोधी भावनाओं के कारण इन आर्थिक संबंधों में बाधा आ सकती है. पिछले वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार में काफी वृद्धि हुई है. भारत उसे मशीनरी, कपड़ों, और रसायनों समेत कई तरह की चीज़ें निर्यात करता रहा है. बांग्लादेश भारत को जूट, गार्मेंट्स, और समुद्री खाद्य पदार्थों जैसे कच्चे माल का निर्यात करता है. सत्ता परिवर्तन के साथ राजनीतिक अस्थिरता के कारण आर्थिक संबंधों में बाधा आई है जिसके चलते सप्लाइ चेन, शुल्क संबंधी नीति, और व्यापार को आसान बनाने वाली सीमा संबंधी व्यवस्था प्रभावित हुई है.

भारत बांग्लादेश में सड़क, रेलवे और बिजली आपूर्ति जैसी कई इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को लागू करने में शामिल रहा है. दोनों देशों के बीच संपर्क बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार उसे पुलों, सड़कों, बिजली की लाइनें आदि बनाने की परियोजनाओं के लिए आसान शर्तों पर कर्ज़ देती रही है. बांग्लादेश की नई सरकार अगर भारत से कट कर चीन या पाकिस्तान जैसे देशों के साथ करीबी रिश्ता बनाने का फैसला करती है तो इन परियोजनाओं को पूरा करने में देरी होगी या उन्हें रद्द ही करना पड़ेगा. ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र में भारत के निवेश कुप्रभावित होंगे. इसके अलावा, राजनीतिक अस्थिरता के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों से जुड़ी इन परियोजनाओं की रफ्तार बनाए रखना मुश्किल होगा.

नई व्यवस्था विदेश नीति को भी बदल सकती है. उदाहरण के लिए बांग्लादेश की नई सरकार चीन या पाकिस्तान के साथ करीबी रिश्ता जोड़ने का फैसला करती है, जिसके संकेत मिल भी रहे हैं, तो भारत की रणनीति भी प्रभावित होगी. पाकिस्तानी युद्धपोत बांग्लादेश में स्थित हैं, बांग्लादेश ने अपने सैनिकों को ट्रेनिंग देने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों को बुलाने का अभूतपूर्व फैसला किया है. इससे भारत के रणनीतिक हलकों में खलबली मची है. चीन की ‘बेल्ट ऐंड रोड’ पहल (बीआरआई) के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर में चीनी निवेश का स्वाद बांग्लादेश पहले ही ले रहा है. यह प्रवृत्ति और गहरी हो सकती है जिसके कारण दक्षिण एशिया में भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक होड़ बढ़ सकती है.

भारत को अपनी पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर प्रतिकूल पड़ोसियों का पहले से ही सामना करना पड़ रहा है. वह नहीं चाहेगा कि पूर्वी सीमाओं पर भी एक प्रतिकूल पड़ोसी खड़ा हो जाए, क्योंकि इससे उसकी पहले से ही नाजुक सुरक्षा स्थिति पर दबाव बढ़ेगा. सभी संभावित खतरों का प्रभावी मुक़ाबला ही भारत को दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को बांग्लादेश के आंतरिक दबावों से बेअसर रखने में मदद देगा.

(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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