ग्लोबलाइजेशन के इस युग में योग भी ग्लोबल हो गया है.किसी समय जंगलों और गुफाओं में किया जानेवाला योग बीच बाजार में आ गया है और वहां इस कदर छा गया है कि वह अरबों डालर की इंडस्ट्री बन चुका है. योगगुरू दौलत भी बटोर रहे हैं और शोहरत भी.
दुनियाभर में सुपरहिट हो रहे इस योग का जन्मदाता महर्षि पतंजलि को कहा जाता है. वे योगसूत्र या योगदर्शन के रचयिता होने के कारण ऐसा कहना उचित भी है. मगर व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो आज का योग पतंजलि का राजयोग नहीं जो मुख्यत: गोरख या नाथपंथी योगियों का योग है. इसमें आसन बंध और प्राणायाम पर जोर दिया जाता है.पतंजलि ने तो अपने योगसूत्र में “स्थिर सुखासनम्” कहने के अलावा कहीं आसन शब्द का उल्लेख तक नहीं किया है ,न ही प्राणायाम की कोई विधि बताई है. विभिन्न आसनों की विशद चर्चा की बात तो जाने ही दीजिए. फिर आज का योग उसके आसन प्राणायाम,ध्यान की विधियां आए कहां से. योग के जानकारों का कहना है आज प्रचलित आसनों , प्राणायाम और ध्यान की तमाम विधियों का विस्तृत वर्णन तो केवल नाथपंथियों और विशेषकर गोरखनाथ के ग्रंथों में ही मिलता है.
इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि यह भारत की प्राचीन योग परंपरा से हटकर बना नया योग था वरन नाथपंथियों ने मध्ययुग में हठयोग की साधना का प्रचार प्रसार किया. उनके ग्रंथों को देखकर पता चलता है कि उन्होंने तबतक अविष्कृत हो चुकी सैंकड़ो आसनों की और प्राणायाम की विधियों को संहिताबद्ध किया और योगमार्ग को बहुत ही व्यवस्थित रूप दिया. सारा विश्व जिस आसन, प्राणायाम और ध्यान की साधना कर रहा है वह नाथयोग या हठयोग और उसकी विभिन्न शैलियों की देन है. और इस नाथपंथ के सबसे बड़े योगी थे गोरखनाथ. एक जमाने में नाथपंथ का अलख निरंजन का जयकारा देशभर में गूंजा करता था. तमाम योगगुरू, योग के अध्येता इस बात को मानते है कि आज जिस योग का दुनिया भर में चलन है या अभ्यास हो रहा है वह पतंजलि का राजयोग नहीं वरन नाथयोगियों का हठयोग है. नाथ संप्रदाय के नौ नाथ गुरु हैं:
1. मच्छेंद्रनाथ 2. गोरखनाथ 3.जालंदरनाथ 4.नागेशनाथ 5.भर्तरीनाथ 6.चर्पटीनाथ 7.कानीफनाथ 8.गहनीनाथ
9.रेवननाथ
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आधुनिक योग को पतंजलि के राजयोग से जोड़े जाने की वजह यह है कि स्वामी विवेकानंद ने पतंजलि के राजयोग पर पश्चिम में भाषण दिया था. इसलिए योग के साथ पतंजलि का नाम हमेशा के लिए जुड़ गया. उसके बाद दुनिया में जिस योग का प्रसार हुआ उसका प्रवर्तक पतंजलि को ही मान लिया गया. इस सदी में योग का प्रचार प्रसार करनेवाली स्वामी रामदेव की कंपनी का नाम पतंजलि है.
योगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी कहते हैं कि आज हम मानते हैं कि जो योगाभ्यास हम करते हैं, वे महर्षि पतंजलि के बताए हुए हैं, पर ऐसा नहीं है. पतंजलि की योग साधना मुक्ति की साधना है. रोग चिकित्सा, उनके अष्टांग योग में आया आसन और प्राणायाम का वर्णन चित्त को ध्यान की ओर ले जाने के लिए है.
पतंजलि अपने ‘योगसूत्र’ में आध्यात्मिकता की उच्च अवस्था का वर्णन है लेकिन हम आज जितने भी आसन, प्राणायाम, षट्कर्म, मुद्राएं, ध्यान, साधनाएं करते हैं, ये सब नाथयोग की देन हैं. आज जितना भी योग का फैलाव है उसका आधार नाथयोग ही है. जिसको हम कपालभाति प्राणायाम के नाम से जानते हैं, वह प्राणायाम नहीं है, बल्कि षट्कर्म का अभ्यास है, धौति, बस्ती, नेति, नौलि, त्राटक ये सभी क्रियाएं भी हठयोग की है जितने भी आसन हम करते हैं ये सभी हठयोग के हैं. अनुलोम-विलोम, नाड़ीशोधन, उज्जायी, शीतली, सीत्कारी, भस्त्रिका, आदि प्राणायाम हठयोग के हैं. मूलबन्ध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध भी हठयोग के हैं.
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि हठयोग की साधना और कुछ नहीं, बल्कि नाथयोग की ही साधना का एक अंग है. अतः आज हम जो भी योगाभ्यास कर रहे हैं, वह सब असल में नाथयोग है.
एक और योगाचार्य सद्गुरू जग्गी वासुदेव कहते हैं- जब पतंजलि ने योग सूत्र दिया, तो उन्होंने कोई भी विशेष तरीका नहीं बताया. इसमें कोई भी अभ्यास नहीं बताया गया है. उन्होंने तो बस जरूरी सूत्र दे दिए. अब इन सूत्रों से कैसा हार बनाना है, यह अपने आसपास मौजूद लोगों और परिस्थितियों के आधार पर हर गुरु अपने हिसाब से तय कर सकता है.
सूत्रों से हार बनाने का काम गोरखनाथ ने किया. तभी तो तुलसीदास ने कहा है – गोरख जगायो जोग. भक्ति आंदोलन से पहले सबसे शक्तिशाली धार्मिक आंदोलन गोरखनाथ का योगमार्ग था. भारत वर्ष की कोई ऐसी भाषा नहीं जिसमें गोरखनाथ संबंधी कथाएं नहीं पाई जाती हों. उन्होंने न केवल योग के विविध आयामों का आविष्कार किया वरन प्राचीन योगमार्ग को सुव्यवस्थित भी किया. आज उनका योग सारे विश्व में अपनी विजय पताका फहरा रहा है. मगर योग दिवस पर भी गोरख की चर्चा लगभग नहीं होती. हालांकि हम उनका ही योग करते है.
ओशो रजनीश ने अपनी पुस्तक ‘मरौ हो जोगी मरौ’ में गोरखनाथ के योगदान का बहुत सटीक वर्णन किया है. वे कहते हैं -‘गोरख से इस देश में एक नया ही सूत्रपात हुआ. गोरख एक श्रृंखला की पहली कड़ी हैं. उनसे एक नए प्रकार के धर्म का आविर्भाव हुआ. गोरख बिना न तो कबीर हो सकते हैं, न नानक हो सकते हैं न दादू, न वाजिद, न फरीद, न मीरा. इन सबके मौलिक आधार गोरख हैं.
‘लेकिन भारत की सारी संत परंपरा गोरख की ऋणी है. जैसे पतंजलि बिना भारत में योग की कोई संभावना नहीं रह जाएगी. गोरख ने जितना आविष्कार किया मनुष्य के भीतर अंतर खोज के लिए उतना शायद किसी ने नहीं किया है. उन्होंने इतनी विधियां दीं कि अगर विधियों के हिसाब से सोचा जाए तो गोरख सबसे बड़े आविष्कारक हैं.
दुर्भाग्यवश इस महायोगी के बारे में ऐतिहासिक जानकारी बहुत कम उपलब्ध है. उनके बारे में जो किवदंतियां हैं उनके द्वारा प्रवर्तित योगमार्ग के महत्व के प्रचार के अलावा कोई विशेष प्रकाश नहीं डालती.
गोरखनाथ और उनके द्वारा प्रभावित योगमार्गीय ग्रंथों के अध्ययन से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि गोरखनाथ ने योगमार्ग को बहुत ही सुव्यवस्थित रूप दिया. उन्होंने लोकभाषा को भी अपने उपदेशों का माध्यम बनाया. उनके कुछ पद तो लोकोक्तियां बन गए हैं-जैसे अवधू मन चंगा तो कठौती में गंगा. आदि.
गोरखनाथ से पहले चौरासी सिद्धों का तांत्रिक वज्रयान प्रचलित था जिसे उन्होंने सात्विक हठयोग में परिवर्तित किया. नाथपंथ के नवनाथ देशभर में प्रसिद्ध रहे हैं. गोरखनाथ का आसन, प्राणायाम और ध्यान की तमाम विधियो पर आधारित हठयोग और उसकी विभिन्न शैलियां आज का योग हैं. योग की यह पद्धति ही आज दुनियाभर में मशहूर हो रही है. उसका वर्णन गोरखनाथ और या उनके नाम से प्रचलित ग्रंथों में ही पाया जाता है. वहीं से हठयोग देशभर में दसवीं शताब्दी के बाद लोकप्रिय हुआ था. लोकिन बाद की सदियों में लुप्तप्राय हो गया था.आधुनिक समय में मनुष्य को जब शरीर और मन की शांति के जरिये समग्र स्वास्थ्य में योग की उपयोगिता और उसकी इलाज की क्षमता का पता चला तब दुनियाभर के करोड़ों लोग इसे अपनाने लगे.
गोरखनाथ के नाम पर बहुत ग्रंथ चलते हैं. इनमें से कई तो उनके बाद के समय के और कई संदेहास्पद हैं. गोरखनाथ के नाम से बहुत-सी पुस्तकें संस्कृत में मिलती हैं और अनेक आधुनिक भारतीय भाषाओं में भी चलती हैं. निम्नलिखित संस्कृत पुस्तकें गोरखनाथ की लिखी बतायी गयी हैं- अवरोधशासनम्, अवधूत गीता, गोरक्षकाल, , गोरक्ष गीता, गोरक्ष चिकित्सा, गोरक्षशतक, गोरक्षसंहिता, नाड़ीज्ञान प्रदीपिका, योगचिन्तामणि, , हठयोग, हठ संहिता संस्कृत में हैं. इनमें कई पुस्तकों के गोरख लिखित होने में सन्देह है.
गोरखनाथ ने जिस हठयोग का उपदेश दिया वह पुरानी परंपरा से अधिक भिन्न नहीं है. शास्त्रों में हठयोग को सामान्य तौर पर प्राण निरोध साधना माना गया है.
हठयोग शब्द से लगता है बलपूर्वक किया गया योग मगर यहां हठ शब्द का अर्थ अलग है. शरीर में प्राण और अपान, सूर्य और चन्द्र नामक जो बहिर्मुखी और अंतर्मुखी शक्तियां हैं, उनको प्राणायाम, आसन, बन्ध आदि के द्वारा सामरस्य में लाने से सहज समाधि सिद्ध होती है. जो कुछ पिण्ड में है, वही ब्रह्माण्ड में भी है. इसीलिए हठयोग की साधना पिण्ड या शरीर को ही केन्द्र बनाकर विश्व ब्रह्माण्ड में क्रियाशील शक्ति को प्राप्त करने का प्रयास है. यही हठयोग और उसकी विभिन्न आधुनिक शैलियां ही आज सारी दुनिया को आप्लावित किए हुए है.
वहीं आज का योग है जिसकी दुनियाभर में चर्चा है. सारी दुनिया में लोग जिसका अभ्यास कर रहे हैं और स्वास्थ्य और मन की शांति हासिल कर रहे है. फिर हम इसे गोरख योग क्यों नहीं कहते?