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Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतनवाचार युक्‍त शिक्षा न केवल सामाजिक, आर्थिक विकास में मददगार होगी, बल्कि प्रतिस्पर्धा के लिए भी है जरूरी

नवाचार युक्‍त शिक्षा न केवल सामाजिक, आर्थिक विकास में मददगार होगी, बल्कि प्रतिस्पर्धा के लिए भी है जरूरी

देश में 33 साल बाद नई शिक्षा नीति देश में आ रही है. नवाचारयुक्‍त, शोधपरक, अनुसंधान को बढ़ावा देती यह नई शिक्षा नीति देश के सामाजिक आर्थिक जीवन में नए सूत्रपात का आगाज करेगी.

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कुछ दिन पूर्व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान (आईआईटी) मद्रास के 56वें दीक्षांत समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 21वीं सदी की नींव तीन स्‍तंभों नवाचार, टीम वर्क और प्रौद्योगिकी पर टिकी हुई है. राष्‍ट्र की अर्थव्‍यवस्‍था में युवाओं की भागीदारी रेखांकित करते प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि भारत पांच खरब डालर की अर्थव्‍यवस्‍था बनने की दिशा में काम कर रहा है और विद्यार्थियों की प्रौद्योगिकी में नवाचार, आकांक्षा और अनुप्रयोग इस सपने को सच करेंगे.

तेज़ी से बदलते वैश्विक परिवेश में यह हमारा सौभाग्‍य है कि भारत को अनोखा जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्‍त है. हम सर्वाधिक युवाओं वाला देश हैं. यह एक प्रतिस्‍पर्धात्‍मक लाभ है जो हमें वैश्विक प्रतिस्‍पर्धा के युग में बढ़त प्रदान करता है. हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है कि हम अपनी युवा शक्ति को कैसे सकारात्‍मक और सृजनात्‍मक रास्‍ते पर प्रेरित करें. साल 2055 तक भारत में काम करने वाले लोगों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा रहेगी.

ऐसी स्थिति में यह आवश्‍यक है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को गुणवत्‍तापरक, नवाचार युक्‍त, कौशलयुक्‍त शिक्षा प्रदान करने में सफल हों ताकि वैश्विक प्रतिस्‍पर्धा के लिए कुशल मानव संसाधन तैयार किए जा सके. हमारे युवा प्रत्‍येक क्षेत्र में नवाचार के माध्‍यम से उत्‍कृष्‍टता हासिल करें. यही उत्‍कृष्‍टता देश के सामाजिक आर्थिक जीवन में प्रगति का सूत्रपात करेगी. विश्‍व के सबसे बड़े जनतंत्र के रूप में और विश्‍व में और विश्‍व के वृहदत्‍तम शिक्षा तंत्रों में से एक होने के गौरव के साथ एक बड़ी जिम्‍मेदारी का हमें एहसास है. हम बखूबी जानते हैं कि हम लगभग 33 करोड़ विद्यार्थियों के भविष्‍य का निर्माण कर रहे हैं.

देश में 33 साल बाद नई शिक्षा नीति देश में आ रही है. नवाचारयुक्‍त, शोधपरक, अनुसंधान को बढ़ावा देती यह नई शिक्षा नीति देश के सामाजिक आर्थिक जीवन में नए सूत्रपात का आगाज करेगी. नई शिक्षा नीति देश को वैश्विक पटल पर एक महाशक्ति के रूप में स्‍थापित करने के लिए समर्पित है. मेरा मानना है कि विश्‍व गुरु भारत अपने पुराने वैभव को तभी प्राप्‍त कर सकता है जब उसकी शिक्षा नवाचारयुक्‍त हो गुणवत्‍तापरक हो यही मूलमंत्र लेकर हम अपने देश के लगभग एक हजार विश्‍वविद्यालयों के कायाकल्‍प के लिए कृतसंकल्पित हैं.

हम 45,000 से अधिक महाविद्यालयों के गुणवत्‍ता सुधार के लिए पूरी तन्‍मयता से जुटे हैं. 15 लाख से अधिक विद्यालयों में आमूल-चूल परिवर्तन सुनिश्चित कर हमने देश का कायाकल्‍प करने का संकल्‍प लिया है. परम्‍परागत तौर पर हमारे संस्‍थानों का ज्‍यादा ध्‍यान शोध की तुलना में अध्‍यापन पर ज्‍यादा रहा है. हमने यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि प्रख्‍यात शिक्षाविदों, उद्योग जगत के साथ पाठ्यक्रम विकास विकसित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. उद्योगों के परामर्श कर नवीनतम् विषयों को जोड़कर सशोधित किया जा रहा है.


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हम सबको यह समझने की आवश्‍यकता है कि सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के पीछे तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी एक महत्‍वपूर्ण चालक है. शैक्षिक डिजाइन और वितरण में नवाचारों एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है. वर्तमान तकनीकी प्रगति के उपयोग के साथ अभिनव शैक्षिक कार्यक्रमों के सृजन एवं कार्यान्‍वयन सुनिश्चित करना आवश्‍यक है. जिसका व्‍यापक प्रसार परिवर्तन की अपार संभावनाएं लिए हुए है.

शैक्षिक उन्‍नयन से देश का उन्‍नयन संभव है. बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि नवाचार उन अरबों लोगों के लिए शैक्षिक अवसरों को उपलब्‍ध कराए जो समाज, राष्‍ट्र निर्माण में रचनात्‍मक भूमिका निभाते हैं. एक अध्‍यापक होने के नाते मैं यह महसूस करता हूं कि हम अपने विद्यार्थियों को नवाचार का सही अर्थ नहीं समझा पा रहे हैं. अपने सभी अध्‍यापकों, विद्यार्थियों को यह बताने की आवश्‍यकता है कि नवाचार किसी स्‍थापित चीज में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया है और कोई भी, कहीं भी, कभी भी, नवाचार या इनोवेशन कर सकता है. इसके लिए बड़े तामझाम की आवश्‍यकता नहीं है. उत्‍पादों, प्रक्रियाओं या सेवाओं में वृद्धिशील परिवर्तन नवाचार कहलाता है.

हाल में फ्रांस में यूनेस्‍को के सम्‍मेलन में विश्‍व के सर्वश्रेष्‍ठ एमआईटी के लोगों से मिला तो वहां की सर्वोत्‍कृष्‍टता का कारण जानना चाहा. उनके अनुसार एमआईटी का वास्‍तविक विक्रय बिंदु अपने विद्यार्थियों के प्रौद्योगिकी विचारों को बेहद सफल व्‍यवसायों में बदलने की विशेषज्ञता है. अमेरिका में सर्वश्रेष्‍ठ प्रौद्योगिकी – हस्‍तांतरण कार्यक्रम के रूप में वर्णित, एमआईटी स्‍नातकों ने हजारों कंपनियों को शुरू किया है, जिन्‍हें वे अपनी ‘जीवित प्रयोगशाला’ कहते हैं.

शिक्षा और विशेष रूप से तकनीकी शिक्षा किसी देश के विकास की आधारशिला है. पिछले दशकों में देश की तकनीकी शिक्षा प्रणाली में कई गुना विस्‍तार तो हुआ है पर वैश्विक पटल पर कुछ ही संस्‍थानों की उपस्थिति है. ऐसे परिदृश्‍य में संस्‍थानों में भारतीय विश्‍वविद्यालयों अनुसंधान संस्‍थाओं की उद्योग के साथ अत्‍यंत सीमित सहभागिता है. नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से हम इस कमी को पूरा करना चाहते हैं. प्रयत्‍न यह है कि हमारे शीर्ष संस्‍थान उद्योगों के साथ मिलकर प्रायोजित शोध को बढ़ावा दें. उत्‍पाद डिजायन के साथ संयुक्‍त शोधात्‍मक योजनाओं से शोध प्रकाशन को बढ़ावा मिलेगा.

इन संस्थानों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी दुनिया में आवश्यक कौशल और दक्षताओं के साथ स्नातकों को सशक्त बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. प्रतिस्पर्धात्मक युग में बढ़त हासिल करने के लिए, हमें बड़े पैमाने पर एक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाना चाहिए, जहां छात्रों और उद्यमियों के हाथों के माध्यम से फ्रंट लाइन अनुसंधान किया जा सके. इस तरह के इको-सिस्टम में, नई प्रौद्योगिकियों और नए उत्पादों में नए ज्ञान अधिग्रहण का अनुवाद करने का एक उच्च मौका है.

उद्योग-अकादमिक संबंध उच्‍च एवं तकनीकी संस्थानों के लिए अधिक महत्व रखते हैं. आज आवश्‍यकता है कि हम आगे बढ़ें और साथ ही मजबूत इंडस्‍ट्री-एकेडमिया लिंकेज बनाएं. उद्योग- समाज- शिक्षा की यह विजय हमारे राष्ट्र को अधिक से अधिक विकास और समृद्धि की ओर ले जाएगी. नवाचार युक्‍त शोध से हमारी जहां हमारे उद्योग जगत, हमारी सरकारी संस्‍थाओं, हमारी सार्वजनिक संस्‍थाओं, गैर सरकारी संगठनों को लाभ मिलेगा वहीं हमारे विश्‍वविद्यालय की वैश्विक रैंकिंग भी बढ़ेगी.


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हमारे कुछ संस्‍थान शैक्षिक जगत के दैपीप्‍यमान नक्षत्रों के रूप में विश्‍व पटल पर अपनी पहचान बनाने में सक्षम हुए हैं. लेकिन नई उँचाईयों तक पहुंचने के लिए एवं अंतर्राष्‍ट्रीय प्रतिस्‍पर्धा में सर्वोत्‍तकृष्‍टता सिद्ध करने के लिए उन्‍हें आवश्‍यक रूप से देशी, विदेशी संस्‍थानों के साथ सहयोग करना पड़ेगा. उन्‍हें संकाय विनिमय, खुला नवाचार, छात्र विनिमय, संयुक्‍त अनुसंधान, संयुक्‍त सम्‍मेलन, संयुक्‍त शोध प्रकाशन, सहयोगात्‍मक शोध पर विशेष ध्‍यान देना होगा.

शिक्षा से शैक्षणिक संस्‍थाएं सतत विकास के लक्ष्‍यों की प्राप्ति अपनी नवाचारयुक्‍त सामाजिक आर्थिक उन्‍नयन में उत्‍प्रेरक की भूमिका निभाते हैं. लक्ष्‍यों की प्राप्ति में नवाचारयुक्‍त कार्यशैली हो उत्‍कृष्‍ट परिणाम दे सकती हैं. सतत विकास के स्थिरता के तीन स्‍तंभ आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण का बेहतर समन्‍वय स्‍थापित करने के लिए नवोन्‍मेष समाधानों की आवश्‍यकता है. मुझे लगता है कि हमें अपने छात्रों को यह सिखाना होगा कि स्थिरता केवल पर्यावरण के बारे में ही नहीं है.

एक समाज के रूप में हमारा क्रियाकलाप प्रकृति के साथ सामंजस्‍य कैसे स्‍थापित करेगा यह जानने की आवश्‍यकता है. सतत विकास की अवधारणा को धरातल पर उतारते हुए हम अपने कार्यों को अपने व्‍यवहार को प्रकृति के अनुकूल कैसे करें यह विचारणीय है. जिस दिन हमारे युवा पूरी शिद्दत से इन सभी प्रश्‍नों के उत्‍तर ढूंढना शुरू कर देंगे तो हमें मंजिल जरूर मिलेगी चाहे कार्बन उत्‍सर्जन कम करने का विषय हो, नैनो टेक्‍नोलॉजी से कैंसर उपचार की बात हो या फिर कृत्रिम मेघा की प्रौद्योगिकी विकसित करना हो सर्वत्र नवाचार चाहिए.

मैं समझता हूं कि शिक्षण और अनुसंधान के क्षेत्रों में वैश्विक मानकों को प्राप्‍त करने और नियमित रूप से उनकी प्रगति का मूल्‍यांकन कर अपने संस्‍थानों तक नवाचार के महत्‍व को पहुंचाना हमारे समक्ष बड़ी चुनौती है. ऐसी स्थिति में जहां हमारे विद्यार्थी महत्‍वपूर्ण हैं, वहीं हमारे अध्‍यापकों की बड़ी भूमिका रहेगी. नवाचार के लिए एक विशिष्‍ट इकोसिस्‍टम की आवश्‍यकता है. एक सोच विकसित करने की आवश्‍यकता है. नित नए परिवर्तनों के साथ वैश्विक परिवेश में सामरिक रूप से महत्‍वपूर्ण बने रहना अत्‍यंत चुनौतीपूर्ण है. इन चुनौतियों का उत्‍तर हमें नवाचार युक्‍त इकोसिस्‍टम विकसित करके ही मिल सकता है.

(लेखक केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री है. ये उनके निजी विचार है. )

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