भारतीय रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) ने फरवरी की अपनी बैठक में पॉलिसी रेपों रेट (वित्तीय संस्थाओं को दिए जाने वाले कर्ज पर या उनकी जमार राशि पर ब्याज की दर) में 25 बेसिस आंकों की बढ़ोतरी करके उसे 6.5 प्रतिशत कर दिया. इसके साथ ही पिछली मई से इस दर में 250 बेसिस अंकों की वृद्धि की जा चुकी है. कमिटी ने घोषणा की पॉलिसी रेट संबंधी उसकी नीति का ज़ोर मुद्रास्फीति को लक्ष्य के दायरे में रखने पर होगा. रेट और उसके रुख को लेकर उसके फैसले में विभाजन हो गया, कमिटी के छह में से चार सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया.
पॉलिसी संबंधी बयान में मुद्रास्फीति के मामले में सतर्कता भरा रुख अपनाया गया है. यह समझ में आने वाली बात है. जबकि मुख्य मुद्रास्फीति पिछले दो महीने में 6 फीसदी के ऊपरी स्तर से नीचे गिरी है. यह मुख्यतः सब्जियों और खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट के कारण हुआ है. लेकिन खाने-पीने की दूसरी चीजें अभी भी महंगी हैं. मूल मुद्रास्फीति अभी भी मुश्किल बनी हुई है.
बाजार उम्मीद लगाए था कि दर में 25 बेसिस अंकों की वृद्धि के बाद वृद्धि का घूमता चक्का स्थिर हो जाएगा, लेकिन रिजर्व बैंक की एमपीसी ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया. मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को स्थिर करने और मूल मुद्रास्फीति के मुश्किल बने रहने को तोड़ने के मामले में रिजर्व बैंक ने संकेत दिया कि वृद्धि का घूमता चक्का अभी स्थिर नहीं होने वाला है.
तमाम देशों के में केंद्रीय बैंक मुद्रा नीति को सख्त कर रहे हैं, बेशक धीमी गति से लेकिन दरों को ऊंची रखने पर सबकी सहमति दिखती है. इसके अलावा, चीन में कोविड से संबंधित पाबंदियों में ढील दिए जाने और आर्थिक वृद्धि की रफ्तार में उपयोगी वस्तुओं की कीमतों में भी बढ़ोतरी हो सकती है.
तमाम केंद्रीय बैंकों ने दरों में वृद्धि जारी रखी है
फेडरल ओपेन मार्केट्स कमिटी ने 1 फरवरी की अपनी बैठक में फेडरल फंड की दर में 25 बेसिस अंकों की वृद्धि करके इसे 4.75 फीसदी कर दिया. यह बाजार की अपेक्षाओं के अनुकूल था. इस फैसले के साथ जारी किए गए बयान में इस बैंक के गवर्नर जेरोम पौएल ने कहा कि मुद्रास्फीति में थोड़ी कमी आने के बावजूद वह ऊंचे स्तर पर ही है और फेडरल रिजर्व के 2 फीसदी के लक्ष्य से काफी ऊपर है. मजबूत श्रम बाजार मुद्रास्फीति में कमी लाने की अमेरिकी फेडरल रिजर्व की कोशिशों के प्रतिकूल है. रोजगार की ताजा रिपोर्ट कहती है कि जनवरी में 517,000 रोजगार जुड़े. श्रम बाजार की मजबूती बताती है कि केंद्रीय बैंक को मुद्रस्फीति में कमी लाने के लिए और कोशिश करनी पड़ेगी, दरें ऊंची बनी रहेंगी और टर्मिनल रेट उम्मीद से ऊंची रहेगी.
बैंक ऑफ कनाडा ने पॉलिसी रेट में 25 बेसिस अंकों की वृद्धि करते हुए संकेत दिया कि वह दरों में वृद्धि को सशर्त विराम दे रहा है. इस बैंक के गवर्नर ने संकेत दिया कि वे इसलिए विराम देना चाहते हैं ताकि दरों में बार-बार वृद्धि का मांग और श्रम बाजार पर जो प्रभाव पड़ता है उसका आकलन किया जा सके. इस बैंक ने जनवरी में जो घोषणा की उसका अर्थ है कि वह दुनिया में पहला बड़ा केंद्रीय बैंक है जिसने दरों में वृद्धि को विराम दिया है (अमेरिकी फेडरल रिजर्व के विपरीत, जिसने केवल संकेत ही दिया है कि वह दरों में वृद्धि की गति को कम करेगा).
यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने दरों में 50 बेसिस अंकों की वृद्धि की है और वादा किया है कि ब्याज दरों में निरंतर वृद्धि की गति पर अंकुश लगाएगा. बैंक के बयान से लगता है कि वह मार्च में भी 50 बेसिस अंकों की वृद्धि कर सकता है. बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी हाल की अपनी एमपीसी की बैठक में दरों में 50 बेसिस अंकों की वृद्धि की घोषणा की और संकेत दिया कि आगामी बैठकों में भी दरों में वृद्धि की घोषणा की जा सकती है.
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खुदरा महंगाई में कमी कुछ चीजों की वजह से आई
खाद्य सामग्री की खुदरा महंगाई नवंबर में 4.7 फीसदी से घटकर दिसंबर में 4.2 फीसदी हो गई. लेकिन इस कमी का आधार व्यापक नहीं है. यह कमी सब्जियों की कीमतों में 15 फीसदी की और खाद्य तेलों की कीमतों में मामूली गिरावट के आई. अनाजों की कीमतों में दिसंबर में 14 फीसदी की वृद्धि हुई. गेहूं की रेकॉर्ड महंगाई सरकार को इसके निर्यात पर रोक लगाने को मजबूर कर सकती है ताकि स्थानीय सप्लाई ठीक रहे.
दूध, मसाले और अंडे, मांस-मछली की कीमतें भी चढ़े रहीं. अनाजों, दूध, और मसालों ने जनवरी में महंगाई बढ़ाने में प्रमुख योगदान दिया.
मूल मुद्रास्फीति नवंबर में 6 फीसदी से दिसंबर में बढ़कर 6.17 फीसदी हो गई. स्वास्थ्य, शिक्षा, और निजी देखभाल से जुड़ी चीजों की कीमतें भी बढ़ीं. लागत में वृद्धि उत्पादित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करती रहेगी और यह मूल मुद्रास्फीति को ऊपर चढ़ाती रहेगी.
चीन में बाजार खुलने से जींसों के दाम बढ़ेंगे
चीन में बाजार खुलने से जींसों की कीमतों पर दबाव बढ़ेगा. इसका अंतिम असर आगामी महीनों में सामने दिखेगा. चीन की अर्थव्यवस्था को लेकर बंधी उम्मीद औद्योगिक धातुओं की मांग बढ़ाएगी. उदाहरण के लिए, तांबे की कीमत में जनवरी के पहले पखवाड़े में तेजी आई और दूसरे पखवाड़े में वह गिर गई.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत को चीन में बढ़ती मांग से सहारा मिलेगा. लेकिन ऊंची ब्याज दरें वैश्विक अर्थव्यवस्था को सुस्त कर सकती हैं और मांग को कमजोर कर सकती हैं.
विराम दें या नहीं
इस सप्ताह एमपीसी ने दरों में 25 बेसिस अंकों की वृद्धि करने का फैसला किया, बेशक यह सर्वसम्मति से नहीं हुआ. दो सदस्यों ने इसके खिलाफ वोट दिया. इसकी वजह क्या थी यह बैठक के ब्योरे सामने आने पर ही स्पष्ट होगी. विरोध शायद इस चिंता की वजह से किया गया होगा कि मौद्रिक सख्ती से आर्थिक वृद्धि को खतरा हो सकता है. जहां तक रुख की बात है, दो सदस्य शायद तटस्थ रुख रखने के पक्ष में थे.
(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सीनियर फेलो हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)
(संपादन: ऋषभ राज)
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