बैसरन घाटी के शांत और शानदार वातावरण में छुट्टियां मना रहे निहत्थे पर्यटकों पर पहलगाम में हुए कायराना हमले के बाद, बदला लेने के लिए जोरदार और तीखी आवाज़ उठ रही है. कलमा न पढ़ पाने के कारण ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ में छुट्टियां मना रहे हिंदू पर्यटकों का नरसंहार कायरतापूर्ण कृत्य है और इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए.
एक हिंदू व्यक्ति मृत पड़ा है और उसकी नवविवाहिता पत्नी शव के बगल में ज़मीन पर बैठी है, यह मंज़र भारतीयों को हमेशा परेशान करेगा. यह हिंदुओं के नरसंहार से कम नहीं है और इसे स्पष्ट रूप से हिंदू नरसंहार ही कहा जाना चाहिए. कुछ लोग घाटी में हुए इस हमले और 7 अक्टूबर 2023 को हमास के नेतृत्व में इज़रायल पर हुए हमले के बीच समानताएं बता रहे हैं.
2008 के मुंबई हमलों, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की यात्रा के दौरान छत्तीसिंहपुरा में सिखों के नरसंहार, कालियाचक नरसंहार और डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान दिल्ली दंगों की भी भयावह गूंज है. अब, अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की यात्रा के दौरान हुए नवीनतम हमले के साथ, पैटर्न को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है. कश्मीर में हमला आर्थिक विकास और समृद्धि से लड़ने की एक व्यापक योजना का हिस्सा है, जिसने अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद घाटी को जीवंत कर दिया है. ग्रेटर कश्मीर को सड़क, हवाई और जल्द ही शुरू होने वाली ट्रेन सेवाओं के ज़रिए भारत की मुख्य ज़मीन से जोड़ने से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के आर्थिक पिछड़ेपन को और भी ज़्यादा बढ़ा दिया है.
वेंस की यात्रा के दौरान ध्यान भटकाने की एक चाल, इस हमले ने कश्मीरी मुसलमानों के प्रति बहुत ज़्यादा दुर्भावना और दुश्मनी पैदा की है. हालांकि, अपने भाइयों के खून के लिए रोना स्वाभाविक ही होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ के दौरान संयम बरता, जिसमें उन्होंने भारत के लोगों से गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भारत के सशस्त्र बलों के नेतृत्व वाली अपनी कोर टीम पर भरोसा रखने का अनुरोध किया. यह हमें याद दिलाता है कि भारत पाकिस्तान की किसी भी और आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए तैयार है, लेकिन भड़काऊ स्थिति को बढ़ाना वह रास्ता नहीं है जिससे हिंदू उस बिंदु पर पहुंच जाएं जहां से वापसी संभव न हो.
इसके बजाय, शुरुआती प्रतिक्रिया के रूप में ‘पानी के बम’ इस्तेमाल करना — जो अभी के लिए प्रतीकात्मक है — अन्य कूटनीतिक रूप से आक्रामक उपायों के साथ यह सुनिश्चित करने का सबसे प्रभावी तरीका प्रतीत होता है कि पाकिस्तान को आतंकवाद का राज्य प्रायोजक कहा जाए. ऋषि कश्यप की धरती में जो समृद्धि और शांति उग रही है, वह कोमल सेब के फूलों की कलियों की तरह है, जिसे मुट्ठी भर आतंकवादी प्रगति के संभावित वसंत को नष्ट करने के लिए तैयार नहीं कर सकते.
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कश्मीर का इतिहास
कश्मीर का इतिहास हिंदुओं के इतिहास से जुड़ा हुआ है. ऋषि कश्यप, जिन्हें देवताओं और राक्षसों का पिता कहा जाता है, उन्होंने अपनी पत्नियों अदिति और दिति के माध्यम से सतीसरस झील को सूखा दिया, जिसका नाम भगवान शिव की पहली पत्नी सती के नाम पर रखा गया था. गूगल अर्थ के विहंगम दृश्य को देखने पर आपको वरमुल्ला (वर्तमान बारामुल्ला) में पहाड़ों में एक खाई के साथ एक बेसिन भी दिखाई देगा, जहां से पानी बहता था.
हिंदू धर्म के शैव संप्रदाय का घाटी से गहरा संबंध है, जो ईसा पूर्व के युग से है, जिसे ईसाई धर्म या इस्लाम के जन्म से सदियों पहले का बताया जाता है. कश्मीर हिंदुओं के लिए एक पवित्र धरती है, जो दिव्य तीर्थयात्रा का मक्का है. बतौर संस्कृति मंत्री मैंने सैकड़ों मंदिरों का सर्वेक्षण किया जो इस धरती पर बिखरे हुए थे, उनमें से प्रमुख श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा थी, जहां भगवान शिव अपनी पत्नी के साथ बैठे थे, जो उनसे अमरकथा सुनना चाहती थीं.
मट्टन में प्राचीन मार्तंड सूर्य मंदिर भी है, जिसे कश्यप के पुत्र आदित्य के सम्मान में बनाया गया है, अनंतनाग में शिवाला मंदिर और अंदरनाग मंदिर भी हैं. भगवान शिव ने चंदनवाड़ी में अपनी जटाओं से चंद्रमा को मुक्त किया, शेषनाग में अपने सांपों को छोड़ा और माना जाता है कि उन्होंने अपने बेटे गणेश को महागुणस पर्वत पर छोड़ दिया था. उन्हें पंजतरणी में तांडव नृत्य करने और बैल गांव में अपनी प्रिय नंदी गाय को बांधने के लिए जाना जाता है, जो वर्तमान में पहलगाम है, जो हाल ही में हुए नरसंहार का स्थल है. अनंतनाग, श्रीनगर और गुलमर्ग सभी हिंदू इतिहास वाले नाम हैं, चाहे अब्दुल्ला, मुफ्ती या गिलानी कोई भी नैरेटिव गढ़ लें.
निर्विवाद तथ्य यह है कि पाकिस्तान ने इस पवित्र धरती की जनसांख्यिकी रूपरेखा को बदलने की कोशिश की है, जिसकी शुरुआत 1947 में स्थानीय आतंकवादियों के मौन समर्थन से मूलत: पाकिस्तानी घुसपैठ से हुई थी और 1989 के बाद, हिंदुओं के धर्म परिवर्तन और निर्दयी जातीय सफाए के माध्यम से. मूल कश्मीरी आबादी का अधिकांश हिस्सा एक ही वंश और विरासत साझा करता है, जिसमें धार्मिक विभाजन के दोनों पक्षों में डार, गंजू, मीर और भट्ट जैसे नाम आम हैं. घुसपैठ के बाद ही शुद्ध कश्मीरी खून पतला हुआ और अलगाववादी आंदोलन का जन्म हुआ.
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सिंधु जल संधि
19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान शामिल थे. इस संधि में छह नदियों सिंधु, चिनाब, झेलम, सतलुज, रावी और व्यास के पानी के संबंध में दोनों देशों के अधिकार और दायित्व तय किए गए थे. अविभाजित पंजाब में पांच नदियां बहती थीं, जिसे विभाजन के बाद दो भागों में विभाजित कर दिया गया था. 1951 में विश्व बैंक और अमेरिकी अटॉर्नी डेविड लिलिएनथल के हस्तक्षेप तक पानी साझा करने की अस्थायी व्यवस्था जारी रही और 1960 में सिंधु जल संधि समझौता हुआ. पश्चिमी नदियों (चिनाब, झेलम और सिंधु) का पानी पाकिस्तान को मिला और पूर्वी नदियों (सतलज, व्यास और रावी) का पानी भारत को मिला.
शुरू में यह अनुचित था. भारत को, एक अपस्ट्रीम स्टेट के रूप में क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए पाकिस्तान को पानी का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा देने के लिए मजबूर किया गया. इससे भारत के पास बेसिन में पानी का 20 प्रतिशत से भी कम हिस्सा रह गया, भले ही जनसंख्या के हिसाब से हम अधिक पानी के हकदार थे, जिससे भारी कृषि और आर्थिक नुकसान हुआ. इसके अलावा, भारत केवल सीमित गैर-उपभोग उद्देश्यों जैसे कि जलविद्युत, नौवहन के लिए पश्चिमी नदियों का उपयोग कर सकता था और तब भी, हमने अपने विशेषाधिकार का पर्याप्त उपयोग नहीं किया.
कृषि उपयोग के संदर्भ में, भारत को पश्चिमी नदियों से केवल बहुत सीमित सिंचाई की अनुमति थी, जिसमें यह सीमा थी कि कितनी ज़मीन की सिंचाई की जा सकती है — भले ही ये नदियां जम्मू और कश्मीर के भारतीय क्षेत्र से होकर बहती हों. इसने क्षेत्र के आर्थिक और बुनियादी ढांचे के विकास को बाधित किया, जिससे और अधिक आक्रोश और अशांति पैदा हुई. भारत ने बेसिन के प्रवाह का बमुश्किल पांचवां हिस्सा इस्तेमाल किया और उसका भी कम उपयोग किया.
निलंबन के परिणाम
सिंधु जल संधि के निलंबन के परिणाम पाकिस्तान के लिए बहुत बड़े हैं क्योंकि यह अपनी 90 प्रतिशत कृषि और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए जल प्रणाली पर निर्भर है. पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में कोई विशेष उद्योग या आर्थिक विकास गतिविधियां नहीं हैं और यह काफी हद तक आदिम ज़मीन है, जहां कृषि पर बहुत अधिक निर्भरता है. इस इलाके में पानी की आपूर्ति में कोई भी समायोजन स्थानीय लोगों के लिए तबाही मचाता है क्योंकि इस वीकेंड मुजफ्फराबाद के पास झेलम में जलस्तर में अचानक वृद्धि के कारण जल आपातकाल की स्थिति पैदा हो गई और हटियन बाला क्षेत्र में बाढ़ का डर पैदा हो गया.
संधि के इस समापन का क्षेत्र में पाकिस्तान की जलविद्युत परियोजनाओं पर स्पष्ट दीर्घकालिक परिणाम होंगे और इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा संकट पैदा होगा. इससे सूखे महीनों में पानी की ज़रूरतों पर भी गंभीर असर पड़ सकता है और मानसून के दौरान पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में बाढ़ आ सकती है; जलवायु परिवर्तन के इस दौर में हिमालय में यह एक खतरनाक और परेशानी भरा समय होगा, जिसमें बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ सकती हैं. यह प्रभावी रूप से ‘वॉटर बम’ की तरह काम करेगा, जो शुष्क मौसम के दौरान पाकिस्तान में बहने वाली छह नदियों की सहायक नदियों को सुखा देगा और बारिश के दौरान बाढ़ और बारिश के कारण तबाही मचाएगा.
पहलगाम में पाकिस्तान के छद्म युद्ध के खिलाफ ‘वॉटर बम’ का इस्तेमाल करना भारत के लिए कूटनीतिक रूप से सही कदम है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान को ‘‘पानी की हर बूंद के लिए तरसाना और रेगिस्तान बनाना’’ है. सिंधु जल संधि को एक तकनीकी समझौता समझा जाना चाहिए था, लेकिन अब इसे कूटनीति, आतंकवाद विरोधी नीति, अंतर-राज्यीय राजनीति, पारिस्थितिक जोखिम और सार्वजनिक भावना और भू-राजनीतिक रणनीति के नजरिए से देखा जा रहा है.
संधि के निलंबन से धीरे-धीरे परिणाम सामने आएंगे और लंबे समय में पाकिस्तान का दम घुट जाएगा. जो अहस्तक्षेप नीति के रूप में शुरू हुआ है, वह हमारे क्षेत्र में इंजीनियरिंग जुड़ाव के साथ समाप्त होगा.
(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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