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Saturday, 19 July, 2025
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सौर ऊर्जा के बड़े लक्ष्य के लिए ज़रूरी है स्मार्ट फंडिंग, ISA बन सकता है भरोसेमंद मंच

आईएसए को प्रोजेक्ट की मानक सूचना के लिए ‘ग्लोबल सोलर एसेट रजिस्ट्री’ की व्यवस्था को आगे बढ़ाना चाहिए, और राजनीति और मुद्रा संबंधी जोखिमों को दूर करने के लिए ‘सोलर क्रेडिट गारंटी’ की सुविधा भी देनी चाहिए.

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आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा की कमी जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है, तब सौर ऊर्जा सिर्फ एक तकनीकी समाधान नहीं रह गई है. यह अब वैश्विक राजनीति और विकास की दिशा को भी बदल रही है. ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ (आईएसए) इस बदलाव को आगे बढ़ा रहा है, लेकिन इसकी सफलता केवल घोषणाओं से नहीं होगी. इसे ऐसे मजबूत वित्तीय ढांचे बनाने होंगे, जो इसके बड़े लक्ष्य पूरे करने में मदद करें.

सौर ऊर्जा की ताकत और उपयोग को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इसे ज़रूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है, इसकी क्षमता को बढ़ाया जा सकता है और यह लागत से कहीं ज़्यादा फायदा दे सकती है, लेकिन जिन देशों में सूरज की रोशनी भरपूर मिलती है, वहीं अक्सर पैसों की कमी होती है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का कहना है कि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में साफ (प्रदूषण रहित) ऊर्जा के लिए 2022 में हर साल करीब 770 अरब डॉलर निवेश हो रहा था, जो 2030 तक 2.2 ट्रिलियन डॉलर तक होना चाहिए. इसका ज़्यादातर हिस्सा सौर ऊर्जा पर खर्च होना ज़रूरी है, लेकिन कई देश अभी भी कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं, कर्ज में डूबे हैं या लोगों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में लगे हैं — यही वजह है कि उनकी सरकारें सौर ऊर्जा में ज़्यादा निवेश नहीं कर पा रही हैं.

भारत का अनुभव बताता है कि भले ही सौर ऊर्जा से जुड़ी नीतियां सफल रही हों, लेकिन ग्रिड या बिजली उत्पादन के संयंत्रों में ज़रूरी निवेश करने की सरकार की क्षमता सीमित है. इसकी वजह है वित्तीय घाटे की सीमाएं और कर्ज़ लेने की सीमाएं. ‘ग्रीन बॉन्ड्स’ कुछ मदद तो करते हैं, लेकिन वे नियमों और प्रक्रियाओं में उलझ जाते हैं और उनका दायरा छोटा रह जाता है. इसलिए सरकार का पैसा शुरुआत देने में मदद कर सकता है, लेकिन उस पर पूरी व्यवस्था नहीं टिकी रह सकती.

अगर हम निजी क्षेत्र की बात करें तो वहां क्षमता की कमी दिखाई देती है. कई सोलर एनर्जी कंपनियां ज्यादा कर्ज़ लेकर काम कर रही हैं, जबकि दुनिया भर में ब्याज दरें बढ़ रही हैं और नए निवेश की संभावनाएं कम हो रही हैं. इसके अलावा, मुद्रा की अस्थिरता, नियमों को लेकर अनिश्चितता और बिजली ट्रांसफर की कमजोर व्यवस्था निवेशकों को रोकती है — खासकर उन देशों में जो इस क्षेत्र में आगे हैं. निजी निवेश बहुत ज़रूरी है, लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि निवेश की शुरुआत और बाहर निकलने की प्रक्रिया साफ हो और जोखिम कम करने की अच्छी व्यवस्था भी हो.

सोलर पावर कैसे टिकाऊ बने

एक अच्छा और संभावित समाधान ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट’ हो सकता है. इसके ज़रिए पहले से बने सौर प्लांट या ट्रांसमिशन लाइन जैसे प्रोजेक्ट बड़े निवेशकों को बेचकर पैसा जुटाया जा सकता है. इस पैसे को डेवलपर नई परियोजनाओं में लगा सकते हैं. भारत पहले ही सड़कों और ट्रांसमिशन लाइनों के लिए इन ट्रस्टों का अच्छा इस्तेमाल कर चुका है. अगर यही तरीका सोलर एनर्जी में भी अपनाया जाए तो काफी अच्छे नतीजे मिल सकते हैं. आईएसए को चाहिए कि वह सोलर प्रोजेक्ट्स के लिए ऐसा एक साझा ढांचा बनाए, जिसे सभी सदस्य देश इस्तेमाल कर सकें. अगर इस ट्रस्ट को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का समर्थन मिले, तो यह जोखिम भी कम करेगा और उन निवेशकों को भी आकर्षित करेगा जो मंदी के समय खरीदारी करना पसंद करते हैं.

ग्रिड इन्फ्रास्ट्रक्चर भी उतना ही महत्वपूर्ण है. यह अदृश्य ढांचा सौर ऊर्जा को टिकाऊ बनाता है. सूरज हर जगह चमक सकता है, लेकिन ऊर्जा का पारेषण और उसका भंडारण ज़रूरी है, और उसे ‘रियल टाइम’ में संतुलित करना ज़रूरी है. भारत के ‘ग्रीन एनर्जी कॉरीडोर’ और पुनर्निर्मित वितरण सेक्टर स्कीम ने प्रारंभिक मॉडल पेश किया है. फिर भी आईएसए के कई सदस्य देशों में ट्रांसमीशन, स्टोरेज और सीमा पार ट्रेडिंग की समेकित योजनाओं का अभाव है.

ग्लोबल पूंजी की भी इसमें अहम भूमिका है. आज दुनियाभर के पूंजी बाज़ारों में बड़ी मात्रा में नकदी मौजूद है, जो जलवायु से जुड़ी संपत्तियों (एसेट्स) में लंबी अवधि के निवेश की तलाश में है, लेकिन यह स्थिति हमेशा नहीं रहती. जैसे ही ब्याज दरें बढ़ती हैं या जलवायु से जुड़े जोखिम ज़्यादा होते हैं, पूंजी उन जगहों की ओर जाती है जहां नियम साफ-सुथरे हों, एसेट्स का रिकॉर्ड पारदर्शी हो और ऑनलाइन ट्रेडिंग या निवेश की सुविधा उपलब्ध हो. इसलिए, आईएसए को चाहिए कि वह एक ‘ग्लोबल सोलर एसेट रजिस्ट्री’ यानी वैश्विक स्तर की ऐसी व्यवस्था बनाए जहां सभी प्रोजेक्ट्स की जरूरी और मानकीकृत जानकारी मौजूद हो. साथ ही, राजनीतिक या मुद्रा से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए ‘सोलर क्रेडिट गारंटी’ जैसी सुविधा भी शुरू करनी चाहिए. आईएसए को यह भी ज़रूरी है कि वह सस्ती दरों पर मिलने वाली पूंजी का इस्तेमाल करके निजी निवेशकों को आकर्षित करने की दिशा में काम करे और इसके लिए निजी व सरकारी दोनों स्रोतों से फंडिंग के रास्ते बनाए.

नई रणनीतियां

भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 2014 में 3 गीगावाट (जीडब्लू) से भी कम थी मगर आज 100 जीडब्लू है. यह वृद्धि बताती है कि नीति, संस्थागत तालमेल और नई वित्तीय खोज के सही मेल से क्या कुछ हासिल किया जा सकता है, लेकिन 2030 तक 500 जीडब्लू का लक्ष्य हासिल करने के लिए नई रणनीतियां ज़रूरी होंगी जिनमें रूफटॉप और ‘डिस्कोम’ स्तर की सौर ऊर्जा के लिए निवेश और शहरी ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट’ की ज़रूरत तो पड़ेगी ही; ‘प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान’ (पीएम-कुसुम) जैसी स्कीमों को सक्रियता से लागू करके सौर ऊर्जा को खेती से भी जोड़ना पड़ेगा.

आईएसए की रणनीति का विकास तीन मुख्य सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए. पहला यह कि उत्पादन विशेष मकसद से बढ़ाया जाए. सौर ऊर्जा का विस्तार ऊर्जा संकट को कम करे और घरेलू ‘वैल्यू चेन’ का निर्माण करे. दूसरा यह कि वित्त पोषण के नए तरीके ईजाद किए जाएं. आईएसए पूंजी बाज़ारों को सक्रिय करे और ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट’ जैसे नए साधन का निर्माण करे. तीसरा यह कि एकता के साथ आगे बढ़ा जाए. उभरती अर्थव्यवस्थाएं साझा मानदंडों और सहकारी प्रयासों के साथ एजेंडा को आकार प्रदान करें.

सूरज हमें भूगोल, जलवायु के साथ-साथ सांकेतिक रूप से भी आपस में जोड़ता है, लेकिन इसकी शक्ति का पूरा लाभ उठाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा, साहसी सोच से काम लेना होगा और अपने वित्त का बुद्धिमानी से उपयोग करना होगा. इंटरनेशनल सोलर अलायंस को अब वादों के एक गठबंधन की बजाय अमल के एक मंच के रूप में उभरना होगा. यह केवल ग्रिडों को रोशन करने का नहीं, उन लोगों के जीवन में भी रोशनी लाने का समय है जो बिजली के पहले कनेक्शन का इंतज़ार कर रहे हैं.

(लेखक भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव और इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज, जयपुर के अध्यक्ष हैं. लेख में व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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